Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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( १९३ ) __ आचार्य सोमदेव ने निम्न प्रकार के गुप्तचरों का वर्णन किया है। कापाटिक उदास्थित, गृहपति, वैदेद्वित, तापस, किरात, यमपट्टिक, अहितुण्डिक, गौण्डिक, शौचिक, वाटच्चर, विट, विदूषक, पीठमर्दक, भिषग्, ऐन्द्रजालिक, वैमित्तक, सूद, आरालिक, जवाहक, तीक्ष्ण, क्रूर, रसद, जद, मक. बधिर, अन्ध । इस प्रकार राज्य में विभिन्न प्रकार के चारों का जाल-सा बिछा रहता था। इन गुप्तचरों में से कुछ ऐसे होते थे जो शत्रु राजा के निकट पहुंचने का प्रयास करते थे। वहां पर किसी प्रकार की नौकरी पर नियुक्त हो जाते थे जिससे कि शासन के आन्तरिक क्षेत्र में जो कुछ भी हो रहा है उसकी सूचना अपने राजा तक भेजते रहते थे। सामन्त शासकों के साथ सम्बन्ध :
जैन मान्यतानुसार प्राचीन काल में अनेक सामन्त राजा थे। दिग्विजय की नीति के कारण एक विजेता विजित राजा के राज्य को अपने राज्य में नहीं मिलाता था, अपितु उसकी अधीनता स्वीकार कर लेने पर उसे उसके राज्य में आन्तरिक स्वतंत्रता प्रदान कर देता था। इस प्रकार वह दिग्विजयी शासक के अन्तर्गत अपने प्रदेश पर शासन करता था। इस प्रकार उस समय में अनेक सामन्त राजा थे। इन सामन्त शासकों के अधीन भी अन्य सामन्त शासक होते थे। सार्वभौम शासक का अपने सामन्त शासकों के साथ सम्बन्ध उनकी शक्ति और स्थिति के अनुसार भिन्न होता था। भरत चक्रवर्ती जिसने कि दिग्विजय के लिए निकलकर सर्वप्रथम मागध तीर्थ पर अपना नामांकित बाण छोड़ा जिसे देखते ही मागधपति भरत राजा का सत्कार करने के लिए हार-मुकुट, कूण्डल, कड़ा, बाजूबंद, वस्त्र और आभूषण एवं नामांकित बाण तथा मागधतीर्थ का जल आदि भेंटे लेकर महाराजा भरत के पास आया। वहां आकर भरत की अधीनता स्वीकार करके प्रीतिदान के रूप में लाया हआ सामान भेंट किया। भरत राजा ने उनका प्रीतिदान स्वीकार किया
और उसे सत्कार सम्मान करके विदा किया। इसी प्रकार वरदानतीर्थ, प्रवास तीर्थ, सिंहल, हिमवंतगिरि, आदि प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर वहां के राजाओं को अपने अधीन बनाकर उपहार स्वरूप भेंट स्वीकार
१. नोति वाक्यामृतम् १४/८, पृ० १७२. ..