Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ (१९०) सैन्य के प्रमाण का निश्चय कर उसकी सूचता वह अपने स्वामी तक पहुंचा देता था। वर्तमान काल की भांति प्राचीन काल में भी दूतों का वध करमा वजित था। पदम पुराण में दूत को मारना मीति विरुद्ध वर्णित है। किंतु उसको अत्यन्त कष्ट देने के भी अनेक दृष्टान्त मिलते हैं। राजदूत का वध करना, राजधर्म के विरुद्ध ही नहीं बल्कि लोकाचार में निन्द्य माना है। राजदूत चाहे साधु हो अथवा असाधु, यह वास्तविक प्रश्न नही है, क्योंकि वह अन्य के द्वारा भेजा गया दूत है और वह उस दूसरे के हित में ही भाषण करता है, अतः राजदूत को कभी मृत्युदण्ड नहीं दिया जा सकता। भगवान श्री कृष्ण स्वयं युधिष्ठिर के दूत बनकर राजा धृतराष्ट्र के दरबार में हस्तिनापुर गये थे। वहां जाकर कौरवों और पाण्डवों दोनों के हित में विचार विमर्श किया गया । इस पर दुर्योधन ने कौरवों की सभा में यह प्रस्ताव रखा कि कृष्ण को बन्दी बना लिया जाये, जिससे पाण्डवों को शक्तिशाली समर्थक का बल प्राप्त न हो सके। दुर्योधन के इस प्रस्ताव से कौरवों के सभी सदस्यों को गहरा आघात पहुंचा। सबसे पहले उसके पिता धृतराष्ट्र ने ही इस प्रस्ताव की निन्दा की। हे दुर्योधन । तुम्हें राजा होकर इस प्रकार के शब्दों का उच्चारण नहीं करना चाहिए। तुम्हारा प्रस्ताव सनातन धर्म अथवा प्राचीन विधि के विरुद्ध है। श्री कृष्ण दूत बनकर हमारे पास आये हैं । उन्होंने हमारा कोई अपराध नहीं किया है, तो फिर तुम्हें उन्हें बन्दी बनाने का अधिकार कैसे प्राप्त होता है ? जैन मान्यतानुसार जब भरत राजा का सुवेग नामक मंत्री बाहुबलि १. पद्म पु० ३७/४७, ६/६८, ६६/५१-५६. २. पद्म पु० ३७/४७, ६/६८, ६६/५१-५६. ३. रामायण : सुन्दरकाण्ड ५२/५. ४. साधर्वा यदि वा साधः पुरैरेष समर्पितः । ब्रवन्परार्थ परवान्न दूतो वधर्महनि । वही ५/५२/२१. ५. रामायण कालीन युद्धकला पृ० २८४,

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248