Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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१०. उत्तरपुराण :
उत्तर पुराण महापुराण का पूरक भाग है। इसकी रचना जिनसेन के शिष्य गुणभद्र द्वारा हुई है। रचना काल १० वीं शताब्दी बताया गया है । इसमें अजितनाथ भगवान से लेकर २३ तीर्थकरों, सगर से लेकर ११ चक्रवर्तियों, ९ बलदेव & नारायणों और & प्रतिनारायणों तथा उनके काल में होने वाले जीवनधर आदि विशिष्ट पुरुषों के कथनाक दिये गये हैं । ग्रंथ के अन्त में ४३ पद्यों की विविध छंदों में निर्मित एक प्रशस्ति दी गई है जिसमें दो भाग हैं । प्रथम भाग १ -२७ तक के लेखक गुणभद्र हैं तथा दूसरे भाग के लेखक उनके शिष्य लोकसेन हैं ।'
११. उप्पन्न महापुरिस चरिय :
इस ग्रंथ में ५४ महापुरुषों का वर्णन किया गया है। इसकी रचना शीलाचार्य ने की है । ग्रंथ का रचना-काल विक्रम सं. ६२५ माना गया है । इस ग्रंथ मे प्रतिवासुदेवों को छोड़कर शेष ५४ को ही उत्तम पुरुष कहा गया है । चरित्र प्रतिपादन की दृष्टि से देखा जाये तो इसमें ५१ महापुरुषों का ही वर्णन है, क्योंकि शन्ति, कुन्थु और अरनाथ ये तीन नाम तीर्थंकर और चक्रवर्ती दोनों में समान्य हैं। महापुरुषों के समुदित चरित्र को प्राकृत भाषा में वर्णन करने वाले उपलब्ध ग्रन्थों में इस ग्रंथ का सर्वप्रथम स्थान है । इस ग्रंथ का श्लोक प्रमाण १०८०० है ।
१२. विषष्टि श्लाका पुरुष चरित :
इस महान ग्रंथ में जैनों के कथानक, इतिहास, पौराणिक कथाएँ, सिद्धान्त एवं तत्त्वज्ञान का संग्रह है । यह सम्पूर्ण ग्रन्थ १० पर्वों में विभक्त है । प्रत्येक पर्व अनेक सर्गों में विभक्त है । इस ग्रन्थ की आकृति ३६००० श्लोक प्रमाण है । * महासागर तुल्य इस विशाल ग्रंथ की रचना १२ वीं शताब्दी में हेमचन्द्राचार्य ने अपनी उत्तरावस्था में की थी ।
१. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० ६१.
२. वही पृ० ७०.
३. वही पृ० ६८.
४. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० ७०.