Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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(१७२) पद्म पुराण के अनुसार शत्रु के द्वारा आक्रान्त होने पर राजा लोग दुर्ग में आकर शरण लेते थे। इसके अलावा शत्रु पर आक्रमण करने के लिए भी दुर्ग में आश्रय लेना पड़ता था। महापुराण के अनुसार दुर्गों के अन्दर यथास्थान मन्त्र, शस्त्र, जल, घोड़े, जो तथा रक्षकों के रहने का उल्लेख मिलता है। पदम पुराण में दुर्गम दुर्ग का उल्लेख हुआ है। जैनेत्तर साहित्य में दुर्गों के प्रकार का विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। कौटिल्य ने चार प्रकार के दुगों का वर्णन किया है । (१) औदक (जल), (२) पर्वत (पहाड़ी), (३) धन्वन तथा (४) वन ।'
१. औदक :
चारों ओर नदियों से घिरा हुआ बीच से टापू के समान, अथवा बड़े-बड़े गहरे तालाबों से घिरा हुआ मध्यस्थल प्रदेश, यह दो प्रकार का औदक दुर्ग कहलाता है। २. पर्वत :
बड़े-बड़े पत्थरों से घिरा हुआ अथवा स्वाभाविक गुफाओं के रूप में बना हुआ पर्वत दुर्ग कहलाता था। ३. धान्वन :
जल तथा घास आदि से रहित अर्थात् सर्वथा ऊसर में बना हुआ धन्वन दुर्ग कहलाता था। ...४. वनदुर्ग :
चारों ओर दलदल अथवा काँटेदार झाड़ियों से घिरा हुआ वनदुर्ग कहलाता था।
१. पद्म पु० ४३/२८. २. पद्म पु० २६/४०. ३. महा पु० ५४/२४. ४. पद्म पु० २६/४७. ५. कौटिल्य अर्थशास्त्र २/३. पृ० ७७