Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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(१७३) अन्य शास्त्रकारों ने छः प्रकार के दुर्ग बताये हैं । धन्व, मही, वार्भ, जल, नृ तथा गिरि।
शुक्राचार्य ने नौ प्रकार के दुर्ग बताये हैं । ऐरिण, परिखा, पारिष, वन, धन्व, जल, गिरि, सैन्य तथा सहाय ।' समराङ्गण सूत्रधार में दुर्ग विधान की विवेचना की गई है। इसमें विजयार्थी राजाओं के लिए छ: प्रकार (जल, पंक, वन, ऐरिण, पर्वतीय तथा गुहा) के दुर्गों की आवश्यकता पर बल दिया गया है। . जैन पुराणों में दुर्गों का महत्त्वपूर्ण स्थान था। शान्ति एवं युद्ध काल में इनका बहुविध प्रयोग किया जाता था। राजा के लिए दुर्ग का होना उसकी शक्ति का द्योतक होता था।
रामायण में चार प्रकार के दुर्गों का उल्लेख है :
१. नदी, २. पर्वत, ३. वन और ४. कृत्रिम। (II) राजधानी :
राजधानी उसे कहते हैं जहां पर कि राज-व्यवस्था से सम्बंध रखने वाला राजा तथा अन्य राजकर्मचारी निवास करते हों। जैनमान्यतानुसार भी राजधानी उस नगर को कहा गया है जहां पर राजा रहता था। जैन ग्रंथों के अनुसार इन्द्र ने सर्वप्रथम विनीता नाम की राजधानी स्थापित की थी, जिसका कि दूसरा नाम अयोध्या भी कहा जाता था । अर्थशास्त्र में राजधानी को स्थानीय कहा गया है। राजधानी में ८०० ग्राम होते थे। प्राचीन ग्रंथों में राजधानी के लक्षणों का निरूपण करते हुये वर्णित है कि
१. महाभारत शान्तिपर्व ५६/३५, ८६/४.५, मनु० ७/७०, मत्स्य पु० २/७/६-७, ___ अग्नि पु० २२२/४-५. २. शुक्र० ४/६-७ पृ० ३६२. ३. द्विजेन्द्रनाथ शुक्ल-समराङ्गणीय, दिल्ली : वास्तुशास्त्रीय भवन निवेश
१९६४, पृ० ४१ ४. रामायण : युद्ध काण्ड ३/२१ ५. अर्थशास्त्र २/३. पृ० ७७.