Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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इस प्रकार मनुष्य लोक में धर्म का विनाश हो जाने पर वेदों के स्वाध्याय का भी लोप हो गया। वैदिक ज्ञान का लोप हो जाने पर यज्ञादि करना भी समाप्त हो गया। इस प्रकार वेद और धर्म का विनाश होने पर देवताओं के मन में भय उत्पन्न होने लगा, और वह ब्रह्मा की शरण में पहुंचे । ब्रह्मा को प्रसन्न कर सभी देवता हाथ जोड़कर इस प्रकार कहने लगे कि हे भगवन् मनुष्य लोक में मोह, लोभ, काम, राग आदि दूषित प्रवृत्तियों ने बैदिक ज्ञान को लुप्त कर डाला है, इस कारण हमें बहुत भय हो रहा है कि वैदिक ज्ञान का लोप होने से यज्ञ-धर्म भी नष्ट हो रहा है। इससे हम सब देवता मनुष्यों के सदृश हो गये हैं । हे भगवन् अब जिस उपाय से हमारा कल्याण हो सके वह उपाय सोचिये । आपके प्रभाव से हमें जो देव स्वरूप प्राप्त हुआ था वह नष्ट हो रहा है । देवताओं की बात सुनकर ब्रह्मा ने उनसे कहा, मैं तुम्हारे कल्याण की बात सोचूंगा। तदनन्तर ब्रह्माजी ने अपनी बुद्धि से एक लाख अध्यायों वाले एक नीतिशास्त्र की रचना की, जिसमें धर्म, अर्थ और काम का विस्तार से वर्णन
हुआ है।
इसके बाद देवताओं ने भगवान् विष्णु के पास जाकर कहा कि जो पुरुषों में सर्वश्रेष्ट पद प्राप्त करने का अधिकारी हो ऐसे व्यक्ति का नाम बताइये। तब भगवान नारायण ने एक मानसपुत्र की सृष्टि की। जो विरजा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। विरजा ने पृथ्वी पर राजा होने की अनिच्छा प्रगट की, और सन्यास लेने का निश्चय किया। विरजा के कीर्तिमान् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, कीर्तिमान् के कर्दम नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, कर्दम के अनंग नामक पुत्र हुआ, जो कार्यक्रम में प्रजा का संरक्षण करने में समर्थ तथा दण्डविद्या में निपुण था। अनंग के अतिबल नामक पुत्र हुआ । वह नीतिशास्त्र का ज्ञाता था, उसने विशाल राज्य प्राप्त किया। उसकी मानसिक कन्या से वेन का जन्म हुआ। वेन प्रजा पर अत्याचार करने लगा। तब वेदवादियों ने उसे मार दिया। फिर उन्होंने मन्त्रोच्चारण से वेन की दाहिनी जंधा का मंथन किया उससे पथ्वी पर एक नाटे कद का मनुष्य उत्पन्न हुआ। इसके पश्चात् वेन की दाहिनी भुजा का मंथन किया, उससे देवराज इन्द्र के समान पुरुष उत्पन्न हुआ। वह कवच तथा कमर में तलवार बांने और बाण लिए प्रकट हुआ। उसे
१. महाभारत शान्तिपर्व ५६/१५-२६ पृ० १२३