Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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जो राजा साधारण अपराध के लिए प्रजाजनों में दोषों का अन्वेषण कर भीषण दण्ड देता है वह राजा प्रजा का शत्रु है । इसलिए राजा को अपराधियों को उनके अपराधानुकूल दण्ड देना चाहिए, किन्तु अपराधियों को दण्ड अवश्य मिलना चाहिए क्योंकि दण्ड के अभाव में मत्स्य न्याय पनपता है । इसलिए राजा को समय-समय पर अपराधियों की खोज करवाकर दण्ड देते रहना चाहिए, लेकिन दण्ड अपराधानुसार ही देना चाहिए ।
(६) धार्मिक कर्तव्य :
प्राचीन समय में जैन मान्यतानुसार जब राजा का राज्याभिषेक हो जाता था, तब वह देश में अमारी घोषणा करवाता था । ( अमारी घोषणा का अर्थ है किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करना) उस समय सभी व्यक्तियों को करमुक्त कर दिया जाता था तथा कैदियों को कैदखाने से छोड़ दिया जाता था । महाराजा कुमारपाल ने राजपद पर आरूढ़ होने के तुरन्त बाद ही अमारी घोषणा करवाई थी । तथा वि. सं. १२१६ में हेमचन्द्राचार्य के पास, सकलजन समक्ष जैन धर्म की गृहस्थ दीक्षा धारण की थी । इस दीक्षा के धारण करते ही उसने उसी समय मुख्य तीन प्रतिज्ञाएँ ली थी ।
राज्य रक्षा निमित्त युद्ध के अतिरिक्त यावत् जीवन किसी प्राणी की हिंसा नहीं करना, शिकार नहीं खेलना, मद्य और मांस का सेवन नहीं करना । प्रतिदिन जिन प्रतिमा की पूजा करना और हेमचन्द्राचार्य का पदवन्दन करना इत्यादि ।'
जैन साहित्यिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि राजा जिन (जैन) मंदिरों की स्थापना कराते थे । सर्वप्रथम ऋषभ स्वामी का राज्याभिषेक करने जब इन्द्र हाजिर ( उपस्थित) हुआ था उस समय इन्द्र ने ही सर्वप्रथम मांगलिक कार्य के लिये अयोध्या के बीचों-बीच जिन मंदिरों की स्थापना की थी । उसके पश्चात्, ग्राम, नगर आदिकी स्थापना की थी ।
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१. कुमारपाल चरित संग्रह पृ० : २७ २. महा पु० १६ / ५०