Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
View full book text
________________
(१३६) अपनायी जाती थी। यदि इनके द्वारा सफलता प्राप्त नहीं होती तब युद्ध लड़े जाते थे। लेकिन युद्ध से पूर्व समझौते के लिए दूत भेजे जाते थे। जैसा कि भरत, बाहुबलि युद्ध होने से पूर्व भरत की तरफ से बाहुबलि के पास दूत भेजा गया था। यदि विपक्षी राजा दूत की परवाह नहीं करता तब राजदूत राजा के पादपीठ का अपने बायें पर से अतिक्रमण कर भाले की नोंक पर पत्र रख कर उसे समर्पित करता था। तत्पश्चात् युद्ध आरम्भ होता था।
लोग युद्ध के कला-कौशल से भली-भाँति परिचित होते थे। चतुरंगिणी सेना तथा आवरण और प्रहरण के साथ-साथ कौशल, नीति, व्यवस्था और शरीर की सामर्थ्य को भी युद्ध के लिए आवश्यक समझा जाता था।' रकन्धावार निवेश' युद्ध का एक आवश्यक अंग था । युद्ध करने से पूर्व नगरी को ईंटों से दृढ़ बना दिया जाता था तथा कोठारों को अनाज़ से भरकर युद्ध की तैयारियां की जातीं।
प्राचीन समय में युद्ध अनेक प्रकार से लड़े जाते थे। जैन सूत्रों में युद्ध, नियुद्ध, महायुद्ध, महासंग्राम आदि अनेक प्रकार के युद्ध बताये गये हैं। राजा भरत और बाहुबलि के बीच दृष्टियुद्ध, वाक्युद्ध, बाहुयुद्ध, दण्डयुद्ध और मुष्ठि युद्ध होने का उल्लेख मिलता हैं। यहाँ हम भरतबाहुबलि युद्ध का वर्णन करेंगे।
साठ हजार वर्ष की पुनीत जयशील विजय-यात्रा कर जब भरत महाराजा विनीता नगरी पधारे तब वहाँ उनका महाराजाधिराज के रूप में अभिषेक हुआ । अभिषेक होने के पश्चात् भरत महाराजा ने अपने अट्ठानवे भाइयों के पास संदेश भेजा कि “साठ हजार वर्षों में मैंने विद्याधरों सहित भारतवर्ष पर विजय प्राप्त की है । तुम भी अब मेरे प्रदेश में रहो, मेरी सेवा करो। नहीं तो मेरे प्रदेशों से बाहर निकल जाओ। यह
१. आ० चूर्णी० ए० ४५२. २. ज्ञाताधर्म कथांगसूत्र अ० ८, अ० १६, अर्थशास्त्र १०/१ पृ० ६००. ३. आ० चूर्णी० पृ० ८६. ४. वही पृ० २०६.