Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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(१४६) चेटक के पास वैशाली जाकर रहने लगा। कुणिक ने चेटक के पास दूत भेज कर हाथी और हार लौटाने का अनुरोध किया। लेकिन चेटक ने उत्तर में कहलाया कि मेरे लिए तो. दोनों ही बराबर हैं, यदि तुम आधा राज्य देने को तैयार हो तो हाथी और हार मिल सकते हैं। कुणिक ने दूसरी बार दूत भेजा लेकिन चेटक ने वही उत्तर दिया। यह सुनकर कूणिक को बहुत क्रोध आया। उसने तीसरी बार दूत भेजा । अबकी बार दूत ने अपने बायें पैर से राजा के सिंहासन का अतिक्रमण कर भाले की नोक पर पत्र रखकर चेटक को समर्पित किया। युद्ध के लिये यह खुला आह्वान था । कूणिक ने काल और सुकाल आदि राजकुमारों को बुलाकर युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया। कूणिक ने अभिषेक्य हस्तिरत्न को सजवाया और बीच-बीच में पड़ाव डालते हए अपने दल-बल के साथ वैशाली पहुंच गया । उधर चेटक ने अपने आज्ञाकारी काशी के नौ मल्लकी और कोसल के नौ लिच्छवी राजाओं को बुलाकर उनके साथ मन्त्रणा की। सभी लोग इस निर्णय पर पहुंचे कि शरणागत की रक्षा करना क्षत्रिय का धर्म है। (इस वाक्य से यह स्पष्ट होता है कि जैन मान्यतानुसार यदि कोई राजा या राजकुमार दूसरे राजा की शरण में आ जाता था तो शरण में आये की रक्षा करना राजा का परम कर्तव्य होता था।) मंत्रणा के पश्चात् युद्ध की घोषणा कर दी गयी। दोनों ओर से घमासान युद्ध हुआ। इस महासंग्राम में कूणिक की ओर से गरुडव्यूह और चेटक की ओर से शकटव्यूह रचा गया। फिर दोनों में महाशिलाकंटक और रथमुशल नामक युद्ध हुए। कहा जाता है कि इस संग्राम में लाखों सैनिकों का विध्वंस हुआ।' चेटक ने काल, सुकाल आदि राजकुमारों को मार गिराया। लेकिन अंत में गजराजा हार गये, और चेटक भाग कर नेपाल चला गया ।
राजा श्रेणिक के उदायी और भूतानंद नाम के दो और हाथी थे। युद्ध में पराजित होने के बाद चेटक ने सेचनक को जलते हए अंगारों के गड्ढे में गिरा कर मार डाला। उसकी जगह कूणिक ने भूतानन्द को
१. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० १०५ २. आ० चूर्णी २ पृ० १७२-७३.