Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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भोजन माँगा, लेकिन धन्य ने देने से इन्कार कर दिया। एक बार भोजन के पश्चात् धन्य को शौच की हाजत हुई। धन्य ने विजय से एकान्त स्थान में (शौच के लिए) जाने को कहा । विजय ने कहा तुम तो खूब खाते-पीते हो, मोज करते हो, इसलिए तुम्हारा शौच स्वाभाविक है, लेकिन मुझे तो रोज कोड़े खाने पड़ते हैं, और सदा भूख-प्यास से पीड़ित रहता हूं। यह कह कर उसने धन्य के साथ जाने से इन्कार कर दिया। थोड़ी देर बाद धन्य ने फिर विजय से चलने को कहा। अंत में इस बात पर फैसला हुआ कि धन्य उसे अपने भोजन में से खाने को दिया करेगा। कुछ दिनों के पश्चात् अपने इष्ट-मित्रों के प्रभाव से बहुत सा धन खर्च करके धन्य कारागार से छूट गया। सर्वप्रथम क्षौरकर्म (हजामत) कराने के लिए वह अलंकारिक सभा मे गया।' वहाँ से पुष्करिणी में स्नान कर उसने नगर में प्रवेश किया। उसे देखकर उसके सगे सम्बन्धी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसका आदर सत्कार किया। ..
राजा श्रेणिक को भी राजगृह के कारागार में कुछ समय तक कैदी बनाकर रखा गया था । प्रातःकाल और सायंकाल उसे कोड़ों से पीटा जाता, भोजन-पान उसका बंद कर दिया गया था, और किसी को उससे मिलने भी नहीं दिया जाता था। कुछ समय बाद उसकी रानी चेल्लणा को उससे मिलने की अनुमति दी गयी। वह अपने बालों में कोई पेय पदार्थ छिपाकर ले जाती थी, और उसका पान कर श्रेणिक जीवित रहता ।
पुत्रोत्पत्ति, राज्याभिषेक आदि उत्सवों के अवसर पर प्रजा का शुल्क माफ कर दिया जाता, और कैदियों को जेल से छोड़ दिया जाता
था।
१. अलंकारिक सभा में वेतन देकर अनेक नाई रक्खे जाते थे। ये श्रमण अनाथ, ग्लान
रोगी और दुर्बलों का अलंकारकर्म करते थे। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र १३, पृ० ३८७. २. जाताधर्मकथांग सूत्र २, पृ० १४४-१५०. ३. आ० चू० २, पृ० १७१. ४. ज्ञाताधर्मकयांगसूत्र १. पृ० ५०-५१.