Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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। (.१५७ ) कर देते, लोहे के पिंजरे में बन्द कर देते, भूमिगह अंधकूप या जेल में डाल देते, और शूली पर चढ़ा कर मार डालते।'
इस प्रकार जैन मान्यतानुसार चोरों को विभिन्न प्रकार की यातनायें देकर दण्डित किया जाता था। इसके अतिरिक्त यदि दण्ड देने वाला व्यक्ति राजा की आज्ञानुसार चोर को दण्ड नहीं देता तो राजा उस व्यक्ति भी दण्ड देता था क्योंकि राजा यह समझता था कि जरूर इसने अपराधी व्यक्ति से कुछ घूस खा ली होगी। .....जिनसेन कृत महापुराण में इस प्रकार का उदाहरण आया है । एक बार राजा ने एक चाण्डाल को आज्ञा दी कि तू विद्य च्चोर को मार डाल परन्तु आज्ञा पाकर भी उसने कहा कि मैं इसे नही मार सकता क्योंकि मैंने एक मुनि से हिंसादि छोड़ने की प्रतिज्ञा ले रखी है। ऐसा कहकर जब राजा की आज्ञा नहीं मानी तब राजा ने कहा कि इसने कुछ रिश्वत (घुस) खा ली है इसलिए उसने क्रोधित होकर चोर और चाण्डाल दोनों को निर्दयतापूर्वक सांकल से बंधवा दिया।
- इसके अलावा चोरों की भांति दुराचारियों को भी दण्ड दिये जाते थे। दुराचारियों को भी शिरोमुडन, तर्जन, ताडन, लिंगच्छेदन, निर्वासन और मृत्यु आदि दण्ड दिये जाते थे। वाणिय ग्राम-वासी उज्झित नाम का कोई युवक कामध्वजा वेश्या के घर नित्य नियम से जाया करता था। राजा भी वेश्या से प्रेम करता था। एक दिन उज्झित कामध्वजा के यहाँ पकड़ा गया। राजा की आज्ञानुसार राजकर्मचारियों ने उसकी खूब मरम्मत की। उसके दोनों हाथ उसकी पीठ पीछे बाँध दिये, और नाक, कान काट, उसके शरीर को तेल से सिंचित कर, मैले-कुचैले वस्त्र पहना कर,
१. विपाकसूत्र २, ३, औपपातिक सूत्र ३८, पृ १६२ आदि; तथा देखिये अर्थशास्त्र शामशास्त्री ४/८-१३, ६३-८८...
: २. महा पु० पृ ४७२, गाथा २६६. ३. निशीथचुर्णी १५, ५०६०, मनुस्मृति ८/३७४ : याज्ञवल्क्यस्मृति ३/५/२३२ में
आचार्यपत्नी और अपनी कन्या के साथ विषयभोग करने पर लिङ्गच्छेद का विधान है।