Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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( १३८ )
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करता है । जो कि अर्धभरत के उत्तरी खण्ड में निवास करते थे । तत्पश्चात् क्षुद्र हिमवंत को जीतकर वे ऋषभकूट पर्वत की ओर बढ़े और यहां शिलापट्ट पर कांकणी रत्न से उन्होंने अपने प्रथम चक्रवर्ती की लिखित घोषणा की । वैताढ्य के उत्तरखण्ड में निवास करने वाले नमि और विनमि नाम के विद्याधर राजाओं ने समुद्रा नामक स्त्री रत्न भेंट कर उन्हें सम्मानित किया । उसके पश्चात् गंगा नदी पार करते हुए वे गंगा के पश्चिमी किनारे पर स्थित खण्डप्रपात गुफा में आये, और अपने सेनापति को खण्ड प्रपात गुफा का उत्तरी द्वार खोलने का आदेश दिया । यहाँ पर उन्हें नव निधियों की प्राप्ति हुई। अंत में चतुर्दश रत्नों से विभूषित हो चतुर्दिश पृथ्वी को जीतकर भरत चक्रवर्ती अपनी राजधानी विनीता (अयोध्या) लौट गये, जहाँ बड़ी धूम-धाम से उनका राज्याभिषेक किया गया था ।' जैन पुराणों में उल्लिखित है कि भरत चक्रवर्ती ने जिस-जिस प्रदेश को जीता, जीतने से पूर्व सभी स्थानों पर तीन दिवस तक पौषधशाला में रहकर पौषधव्रत ग्रहण कर अट्ठम किया था, पश्चात् देशों पर आक्रमण किया था ।
भरत चक्रवर्ती के पश्चात् इनके समान ही ग्यारह (११) चक्रवर्ती और हुये हैं । उन्होंने भी दिग्विजय करके सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपना राज्य स्थापित किया था, जिनके कि नाम निम्न हैं: -
१. सगर, २. मधवा, ३. सनत्कुमार, ४. शान्तिनाथ, ५. कुंथुनाथ ६. अरहनाथ, ७ सुभूम, ८ महापद्म, ६. हरिषेण, १०. जय, ११. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ।
शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ चक्रवर्ती भी थे और तीर्थकर
भी थे ।
(II) युद्धनीति :
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प्राचीन समय में लोग युद्धों से बहुत भयभीत रहते थे । जैन मान्यतानुसार पहले यथासम्भव साम, दाम, दण्ड और भेद की नीति
१. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, वक्ष ३, पृ० १८४-२७७, आ० चू० पृ० १८२-२२८. उत्तराध्ययन टीका आ० १८. वसुदेव हिडी पृ० १८६ आदि तथा देखिए महाभारत १. १०/१०१.