Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
View full book text
________________
-: ( १११) ..सहस्राक्ष कहा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक राजा को अपनी मंत्रिपरिषद ": में सामर्थ्यानुसार अनेक मंत्रियों की नियुक्ति करनी चाहिए।' * मंत्रिपरिषद की रचना :
प्राचीन जैन ग्रंथों तथा हिन्दू ग्रंथों में मंत्रिपरिषद के सदस्यों में मंत्री - अमात्य, सचिव, महामंत्री, महा अमात्य और महासचिव शब्दों का प्रयोग
हआ है। किसी ग्रंथ में तो मंत्री, अमात्य और सचिव को एक ही माना
गया है । तथा कहीं मंत्री, अमात्य और सचिव में भेद प्रदर्शित किया : गया है।
आचार्य कौटिल्य ने मंत्री एवं अमात्य का भेद अर्थशास्त्र मे स्पष्ट कर दिया है। कौटिल्य अमात्य आदि के सम्बन्ध में अन्य आचार्यों के मत ... उद्धृत करने के उपरान्त अन्त में लिखते हैं कि पुरुष की सामार्थ्य
(विभिन्न आधिकाधिक पदों को प्राप्त करने की योग्यता) देखकर राजा किसी भी पुरुष को अमात्य अर्थात् राज्यव्यवस्थापक बना सकता है, क्योंकि अमात्य में सामर्थ्य की प्रधानता आवश्यक होती है। विश्वसनीय अमात्य
गण, समह, देश, काल और उचित कार्य की व्यवस्था देखकर राजा -: उपर्युक्त सहपाठी आदि सभी प्रकार के लोगों को अमात्य (कार्यसचिव) - पद पर नियुक्त कर सकता है, किन्तु मंत्री के पद पर नहीं। क्योंकि मंत्री तो वही हो सकता है कि जिसमें सचिव के समस्त गुण विद्यमान हों।
जैनागम निशीथ सूत्र में मंत्रिमण्डल के सदस्यों का अमात्य', सचिव, मंत्री, महामंत्री, के रूप में उल्लेख किया गया है । किन्तु इनमें भेद नही बताया गया है। निशीध चूर्णी में एक स्थान पर सचिव को मंत्री बताया है ।' तथा एक स्थान पर सुबुद्धि नामक व्यक्ति को जियसत्तु नामक राजा का अमात्य और मंत्री दोनों ही बताया गया है। समरा
१. अर्थशास्त्र अध्याय १५ प्रकरण १११० ४४ २. -अर्थशास्त्र अध्याय ८, प्रकरण ४, पृ०२१-- ३. निशीथचूर्णी : जिनदासगणिः सम्पा० उपाध्याय अमरमुनि तथा मुनि कन्हैयालाल,
आगरा : सन्मति ज्ञानपीठ १९५१, पृ० १६४. ४. वही १ पृ० १२७ ५. वही ६. वही ३, ५० ५७ ७. वही २, पृ० २६७, अमच्चों मंत्री। 5, वही, ३, पृ० १५०