Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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समय स्त्रियों के कारण होते थे । संकट अवस्था को प्राप्त स्त्रियों की रक्षा के लिये, स्त्रियों के सौन्दर्य से आकृष्ट हो उन्हें प्राप्त करने के लिए अथवा स्वयंवरों के अवसरों पर प्रायः युद्ध हुआ करते थे । प्राचीन जैन ग्रंथों में सीता', द्रौपदी', रूक्मिणी, पद्मावती, तारा, कांचना, रक्त सुभद्रा, अहिन्निका, सुवर्णागुलिका, किन्नरी, सुरूपा, विद्य ुन्मती" और रोहिणी
१. सीता की कथा विमलसूरि के पउमचरिय में मिलती है। रावण जब सीता को हरण करके ले गया, उसे प्राप्त करने के लिए राम ने रावण के साथ युद्ध किया था । २. द्रोपदी की कथा ज्ञातृधर्मकथा (१६) में आती है । कौरव और पाण्डवों का युद्ध महाभारत में प्रसिद्ध है ।
३. रुक्मिणी और पद्मावती का कृष्ण ने अपहरण किया था। इसका उल्लेख हेमचन्द्र के त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित ( ८.६ ) में मिलता है ।
४. अभयदेवसूरि के अनुसार तारा सम्बन्धी युद्ध का वर्णन त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित (७.६ ) में मिलता है । तथा देखिये वाल्मीकि रामायण ४.१६ । ५. कांचना, अहिन्निका, किन्नरी सुरुषा और विद्युन्मती की कथाएँ अज्ञात हैं । कुछ लोग राजाश्रेणिक की अग्र महिषी चेल्लणा को ही कांचना कहते हैं । प्रोफेसर बेबर ने इन्द्रकी उपपत्नी अहल्या को अहिन्निका बताया है ।
६. सुभद्रा का अर्जुन ने अपहरण किया था । इसकी कथा त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित में मिलती है ।
19. सुवर्णागुलिका का असली नाम देवदत्ता था । वह सिधुसौवीर के राजा उद्रायण की रानी प्रभावती की दासी थी । गुटिका के प्रभाव से वह सुवर्ण रंग की बन गयी थी । उज्जैन का राजा प्रद्योत हाथी पर चढ़कर उसे अपनी राजधानी ले गया । इस पर उदयन और चन्ड प्रद्योत में युद्ध हुआ था ।
८. रोहिणी युद्ध की कथा त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित में (८.४ ) तथा वसुदेव हिण्डी में मिलती है ।
६. काशी, कोसल, अङ्ग, कुणाल, कुरु और पाञ्चाल के राजाओं ने मिथिला की राजकुमारी मल्ली के रुप गुण की प्रशंसा सुनकर मिथिला पर आक्रमण किया । मिथिला के राजा कुम्भ का इन छहों राजाओं के साथ युद्ध हुआ था, ज्ञातृधर्मकथा
अ० ८.
१०. मृगावती कौशाम्बी के राजा शतानीक की महारानी थी । चित्रकार उसका चित्र बनाकर उज्जयिनी के राजा प्रद्योत के पास ले गया । चित्र देखकर वह मृगावती पर मोहित हो गया । उसने शतानीक के पास दूत भेजा कि या तो मृगाती को भेज दे, नहीं तो युद्ध के लिये तैयार हो जाये । आ० चूर्णी पृ० ८६ आदि । ११. निशोधचूर्णी १०, २८६०