Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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राजा की सेवा में उपस्थित हुआ और अनुमति मिल जाने पर यात्रा के लिए रवाना हुआ
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इसके अलावा यदि कभी किसी व्यक्ति की सम्पत्ति का कोई वारिस नहीं होता या कहीं पर गड़ी हुई निधि मिल जाती तो उस पर भी राजा का अधिकार होता था । चन्द्रकान्ता नगरी के राजा विजयसेन को जब पता चला कि किसी व्यापारी की मृत्यु हो गई है और उसकी सम्पत्ति का कोई वारिस नहीं है तो राजा ने कर्मचारियों को भेजकर उसकी सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया । लेकिन कुमारपाल ने अपने शासन में इस प्रथा का अंत कर दिया
(ग) सेना या बल :
प्राचीन समय में आंतरिक विद्रोह की शान्ति एवं बाह्य आक्रमण से राज्य की सुरक्षा के लिये सेना की उचित व्यवस्था होती थी । अर्थशास्त्र में सैन्य बल को " दण्ड" कहा गया है ।" राजा, महाराजाओं के पास चतुरंगिणी सेना की उचित व्यवस्था होती थी । जैन मान्यतानुसार भरत ने सर्व प्रथम चतुरंगिणी सेना की स्थापना की थी । " चतुरंगिणी सेना के अन्तर्गत रथ, हस्ति, अश्व और पदाति सैनिक होते थे । कन्या के विवाह में यह वस्तुएँ दहेज में दी जाती थीं । उस समय समस्त सेना सेनापति के नियंत्रण में रहती थी । उस समय सेना में व्यवस्था और अनुशासन कायम रखने के लिए सेनापति हमेशा सचेष्ट रहता था । युद्ध के अवसर पर राजा की आज्ञा पाकर वह चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित कर कूच के लिए तैयार रहता था । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में भरत चक्रवर्ती के सुषेण नामक सेनापति था । आ० चूर्णी में उसका विश्रुतयश, म्लेच्छ भाषा में विशारद, मधुर भाषी और अर्थशास्त्र के पण्डित के रूप में उल्लेख किया है ।'
१. उत्तरा।ध्ययन टीका १८.
२. कल्पसूत्र : टीका: समयसुन्दरगणि, बम्बई १९३६, १, आधार जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ ११२-११३
३. कुमारपाल चरित्र संग्रह पु० २३.
४. अर्थ- शास्त्र ६, १, पृ० ४१८
५. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति पृ १८४ ६. आ० चूर्णी पू० १९०.