Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
View full book text
________________
(१२८). (क) चतुरंगिणी सेना के अंग १. पदाति सेना:
चतुरंगिणी सेना के अन्तर्गत पंदाति सैनिक होते थे। कौटिल्य ने मौल (स्थानीय), भृत (वेतनभोगी), श्रेणी (प्रान्त में भिन्न-भिन्न स्थानों पर रहने वाले), मित्रबल, अमित्र बल (शत्रुसेना) और अटवीबल नाम के पदातियों का उल्लेख किया गया है। वे लोग हाथ में तलवार, भाला, धनुष, बाण आदि लेकर चलते तथा बाण आदि के प्रहार से रक्षा के लिए सन्नद्ध-बद्ध होकर चर्म और कवच धारण किये रहते, भुजाओं पर चर्मपट्ट बाँधे रहते तथा उनकी ग्रीवा आभरण तथा मस्तक वीरता सूचक पट्ट से शोभित रहता। योद्धा लोग धनुष-बाण चलाते समय आलाढे, प्रत्यालीढ, वैशाखा, मंडल और समपाद नाम के आसन स्वीकार करते थे। रामायण में मौल, भृत्य, मित्र और अटवी इन चार प्रकार की सेनाओं तथा महाभारत में मौल, भृत्य, अटवी और श्रेणी बल का उल्लेख है । वंशक्रम से आयी हुई सेना पैतृक अथवा मौल कहलाती है, धन देकर एकत्र की गई । सेना भृत्य, मैत्री भाव से एकत्र की गयी सेना मित्र, निश्चित समय पर सहायता देने वाली सेना को श्रेणी, पर्वत एवं अरण्य प्रदेशों में रहने वाले निषाद, मिल्ल, शबर आदि से संगठित की गयी सेना को आटविक एवं शत्रु सेना से आक्रांत होकर भागे हुए सैनिक यदि दस्यु भाव स्वीकार कर ले तो उनके द्वारा संगठित की गयी सेना अमित्र कहलाती थी।'
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में भी चतुरंगिणी सेना का उल्लेख मिलता है ।। भरत चक्रवर्ती जब दिग्विजय के लिये रवाना हुये थे तो उनकी चतुरंगिणी सेना में भी पदाति सेना सर्व प्रमुख थी।
१. अर्थशास्त्र २/३३ पृ० २२६. . २. औपपातिक सूत्र ३१ पृ० १३२ विपाक सूत्र २. ३. निशीष भाष्य २०, ६३०० ४. नेमिचन्द्र शास्त्री : आदि पुराण में प्रतिपादित भारत वाराणसी : १९१८, पृ.
३६८. ५. जम्बूदीप प्राप्ति पृ० १८४.