Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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(४) कमलों पर रखे हुए एवं उत्तम सुगंधित जल से भरे हुए कलशों द्वारा बड़ी धूम-धाम से महाराजा भरत का अभिषेक करते हैं।' बाद में फिर राजा, महाराजा, सेनापति, पुरोहित, अठारह श्रेणी, प्रश्रेणी, सोलह हजार देव, वणिक आदि भी भरत राजा का सुगंधित जल से अभिषेक करते हैं, और जय-जयकार की घोषणा करते हैं। पश्चात रोंयेदार कोमल और सुगंधित तौलिये से उनका शरीर पोंछकर, मालाएँ और विविध आभूषणों से उन्हें सजाया गया, और उपस्थित जन-समूह द्वारा राजमुकुट पहनाया
गया।
इस प्रकार बड़े धूम-धाम से अभिषेक हो जाने के पश्चात्, इस मंगल अवसर पर भरत महाराजा की आज्ञा से नागरिकों का कर माफ कर दिया गया और बारह वर्ष तक नगर में प्रमोद उत्सव मनाया गया था।
महापुराण में भगवान ऋषभदेव के राज्याभिषेक का बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके अनुसार राज्याभिषेक से पूर्व पृथ्वी के मध्यभाग में मिट्टी की वेदी बनाई गई, उस वेदी पर देवों ने बहुमूल्य आनन्द मण्डप का निर्माण किया जो रत्नों के चूर्ण समूह से बनी हई रंगावली से चित्रित हो रहा था। समीप में ही बड़े-बड़े मंगलद्रव्य रखे गये थे, देवों की अप्सराएँ अपने हाथों से चमर ढुला रही थीं। ऐसे मण्डप में योग्य सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके भगवान ऋषभदेव को बैठाया, और जब गन्धर्व देवों के द्वारा प्रारम्भ किये संगीत के समय होने वाला मदंग का संगीत स्वर चारों ओर व्याप्त हो रहा था तथा नत्य करती हुई देवांगनाओं के संगीत के स्वर में स्वर मिलाकर किन्नर जाति की देवियाँ कानों को सुख देनेवाला भगवान का यश गा रही थीं। उस समय देवों ने तीर्थोदक से भरे हुए सुवर्णों के कलशों से भगवान ऋषभदेव का अभिषेक करना प्रारम्भ किया। भगवान का राज्याभिषेक करने के लिए गंगा, सिंधु दोनों महानदियों का जल लाया गया था। इसके अलावा गंगा कुण्ड, सिंधु कुण्ड, पद्मसरोवर, नन्दीश्वर द्वीप, क्षीरसमुद्र, नंदीश्वर
१. जम्बूद्वीप प्राप्ति पक्ष ३ पृ० २८४. २. वही पृ० २८५.