Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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(६४) ४. असि-रत्न :- .
यह रत्न पचास अंगुल लम्बा, सोलह अंगुल चौड़ा एवं आधा अंगुल मोटा होता था। अपनी तीक्ष्ण धार से यह रत्न दूर में रहे हुए शत्रुओं को भी नष्ट कर डालता था। " ५. मणि-रत्न :
सूर्य और चन्द्रमा की तरह यह रत्न अंधकार को नष्ट करता था। इस रत्न को मस्तक पर धारण कर लेने से मनुष्य पर देव तथा तिर्यंच कृत उपसर्ग नहीं होता था। हस्तिरत्न के कुम्भ-स्थल पर रख देने से अश्वमेध विजय होती थी। ६. काकिणी-रत्न :
यह रत्न बारह अंगुल प्रमाण का होता था। इस रत्न के माध्यम से चक्रवर्ती वैताठ्य पर्वत की गुफा में उनपचास मण्डल बनाते थे। एक-एक मण्डल का प्रकाश एक-एक योजन तक फैलता था। और इसी रत्न से चक्रवर्ती ऋषभकूट पर्वत पर अपना नाम अंकित करते थे। ७. चर्म-रत्न :
दिग्विजय के समय नदियों को पार कराने में यह रत्न नौका के रूप में बन जाता था और म्लेच्छ (अनार्य) नरेशों के द्वारा जल-वृष्टि कराने पर यह रत्न सेना की सुरक्षा करता था। ८. सेनापति-रत्न :
वासुदेव के समान शक्तिवाला होता था। यह चार खण्डों पर विजय प्राप्त करता था। ६. गायापति-रत्न :
यह रत्न चक्रवर्ती की सेना के लिए उत्तम भोजन की व्यवस्था करता था। दिगम्बर ग्रंथों में गाथापति को गृहपति-रत्न कहा गया है। १०. वर्षकी-रत्न :
यह चक्रवर्ती की सेना के लिए आवास-व्यवस्था करता था। उन्मग्नजला, निमग्नजला आदि नदियों पर पुल बाँधने का कार्य यह रत्न करता था।