Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
View full book text
________________
(६२)
(ख) "राजा" (१) राजा तथा उसका महत्त्व :
प्राचीन समय में राज्य का सर्वोपरि महत्त्वपूर्ण व्यक्ति राजा होता था। उसी के आदेशानुसार ही राज्य की सारी व्यवस्था संचालित होती थी। कौटिल्य ने तो संक्षेप में राजा को ही राज्य स्वीकार किया है।' राजा तथा उसके महत्त्व के बारे में जैन पुराणों में प्रचुर सामग्री उपलब्ध है । पद्म पुराण में वर्णित है कि राजा द्वारा ही धर्म की उत्पत्ति होती है। जैन मान्यतानुसार पृथ्वी पर मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के उपयोग का अधिकार प्राप्त है, किन्तु राजा द्वारा सुरक्षित होने पर ही ये मनुष्यों को उपलब्ध होते है। राजा के विषय में यही विचार जैनेत्तर साहित्य में भी मिलता है। जैनेत्तर विद्वान कात्यायन के मतानुसार राजा गृह-विहीन, अनाथ और निर्वंशी व्यक्तियों का रक्षक, पिता एवं पुत्र के तुल्य होता था। अर्थात् वह प्रजा का संरक्षण पुत्रवत् करता था।
जिनसेन के अनुसार पृथ्वी पर जो कुछ भी सुन्दर, श्रेष्ठ एवं सुखदायक वस्तुएँ हैं, वे सब राजा के उपभोग के लिए होती हैं। महापुराण में वर्णित है कि राजा चारों वर्गों एवं आश्रमों का रक्षक होता
था।
__
जैनेत्तर साहित्य में राजत्त्व में देवत्त्व स्वरूप को मान्यता दी गई
१. राजा राज्यमिति प्रकृति संक्षेपः । कौटिल्य अर्थशास्त्र ८/२, पृ० ५२६. २. धर्माणां प्रभवस्त्वं हि रत्नानाभिव सागरः । पम पु० ६६/१०. ३. धर्मार्थकाममोक्षाणामधिकारा महीतले।
जनानां राजगुप्तानां जायन्ते तेऽन्यथा कुतः ॥ पम पु० २७/२६.
महा पु० ४१/१०३. ४. कामन्दक १/१३, शुक्र १/६७. ५. जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन पृ० २३५. ६. महा पु० ४/१७३.१७५. ५, स्वामिसम्पत्समेतोऽमूच्चतुर्वणधिमाश्रयः । मह पु० ५०/३.