Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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प्रासन :
जब कोई राजा यह समझ ले कि इस समय मुझे कोई दूसरा राजा और मैं किसी अन्य राजा को नष्ट करने में समर्थ नहीं हैं, और जो राजा शान्तभाव से रहता है । इसे आसन कहते हैं। इस सिद्धान्त को राजाओं की वृद्धि का कारण बताया गया है।'
यान :
शत्रु पर आक्रमण करना यान कहलाता है। अर्थात् अपनी वृद्धि और शत्रु की हानि होने पर दोनों का शत्रु के प्रति जो उद्यम है वह यान कहलाता है। यह शत्रु की हामि और अपनी वृद्धि रूप फल देने वाला होता है। संश्रय :
संश्रय का अर्थ है :-आश्रय देना । जिसको कहीं शरण नहीं मिलती है, उसे अपनी शरण में रखना संश्रय कहलाता है। षीभाव :
शत्रुओं में संधि-विग्रह करा देना ही द्वैधीभाव है।
जैनेत्तर ग्रन्थों से भी जैन पुराणों के षड् सिद्धान्तों की पुष्टि होती है।' इससे यह स्पष्ट होता है कि सभी मतों के आचार्यों ने राज्य के षड्सिद्धान्तों को मान्यता प्रदान की है।
१. मामिहान्यो हमप्यन्यमशक्तो हन्तुमित्यतो।
तूष्णींभावों भवेन्नेतुरासनं वृद्धिकारणम् ॥ महा पु० ६८/६९. २. स्ववृद्धौ शत्रुहानी वा द्वयोर्वाभ्युद्यमं स्मृतम् ।
अरिं प्रति विभोर्यान तावन्मात्रफल प्रदम् ॥ वही ६८/७०. ३. अनन्यशरणस्याहः संश्रयं सत्यसंश्रयम् । वही ६८/७१. ४. सन्धिविग्रयोवृत्तिद्व धीभावो द्विषां प्रति । वही ५. अर्थशास्त्र ७/३ पृ० ४०३ महाभारत शान्तिपर्व ६९/६७-६८. मनु ७/१६०
कामन्दक ९/१६, शुक्र ४/१०६५-६, ...