Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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(III) राज्य के षड्-सिद्धान्त : - - राज्य के मूल तत्त्वों में षड्-सिद्धान्त का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन सिद्धान्तों का उपयोग पर राष्ट्रों पर किया जाता था। इनका यथोचित पालन कर राजा सफलता के शिखर परआरूढ़ होता था। महापुराण के अनुसार षड् सिद्धान्त निन्नलिखित हैं :
संधि, विग्रह, आसन, यान, संशय और धोभाव ।' संधि :
युद्ध करते समय दो राजाओं में मैत्रीभाव हो जाना संधि कहलाती है। यह संधि दो प्रकार की होती है। (१) सावधि संधि :-निश्चितकालीन मित्रता को सावधि संधि कहते हैं। (२) अवधि रहित संधि :यह वह संधि है, जिसमें समय-सीमा का प्रतिबन्ध नहीं रहता है। कौटिल्य-अर्थशास्त्र में आमिष, पुरुषान्तर, आत्मरक्षण, अदृष्ट पुरुष, दण्डमुख्यात्म-रक्षण, दण्डोवनत, परिक्रम, उपग्रह, अत्यय, सुवर्ण, कपाल आदि संधियों का भी उल्लेख किया गया है। जैनेत्तर अग्निपुराण में सोलह प्रकार की संधियों का वर्णन किया गया है। विग्रह:
जब दो राजा (अर्थात् एक शत्रु राजा तथा दूसरा विजय प्राप्त करने वाला राजा) परस्पर एक-दूसरे का अपकार करते हैं, उसे विग्रह कहा जाता है ।
१. सन्धिः विग्रहो नेतुरासनं यानसंश्रयो। धीभावश्च षट् प्रोक्ता गुणाः प्रणयिनः
श्रियं । (महा० पु०६८/६६-६७) २. कृतविग्रहोया: पश्चात्केनचिद्वेतुना तयोः । ___मैत्रीभावः स संधिः त्यात्सावधिविंगतावधि ॥ वही ६८/६७-६८. ३. अर्थशास्त्र ७/३ पृ० - ३६-४३७. ४. वी० बी० मिश्र : पॉलिटी इन दो अग्निपुराण, कलकत्ता पन्थी पुस्तक १९६५,
पृ० १९४. ५. परस्परापकारोऽरिविजिगीष्वोः स विग्रहः । महा पु० ६८/६८, पद्म पु० ३१/३.