Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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जैन साहित्य में रामकथा के दो रूप पाये जाते हैं। एक तो विमलसूरी के पद्मचरिय में, प्रस्तुत पद्मपुराण या पद्मचरित्र में और हेमचन्द्र कृत त्रिषष्टिश्लाका पुरुष चरित्र में तथा दूसरा गुणभद्र, पुष्पदंतकृत महापुराण एवं कला चामुण्डराय पुराण में पहला रूप अधिकांश वाल्मीकि रामायण के ढंग का है जबकि दूसरा रूप विष्णुपुराण तथा बौद्धदशरथजातक से मिलता है।' ७. हरिवंश पुराण :
(हरिवंश पुराण) महाकाव्य की शैली पर रचा गया यह ब्राह्मण पुराणों के अनुकरण का एक पुराण है । इस ग्रंथ का मुख्य विषय हरिवंश में उत्पन्न हुए २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित्र वर्णन करना है। इस ग्रन्थ में ६६ सर्ग हैं, जिनका कुल मिलाकर १२ हजार श्लोक प्रमाण आकार है । इस ग्रंथ के अंत में ६६वें सर्ग में एक महत्त्वपूर्ण प्रशस्ति दी गई है जिससे ज्ञात होता है कि इसके रचयिता पुन्नाटसंधीय जिनसेन थे। इससे स्पष्ट होता है कि ये महापुराण (आदिपुराण) के रचयिता मूलसंधीय सेनान्वयी जिनसेन से भिन्न थे। इनके गुरु का नाम कीर्तिण और दादागुरु का नाम जिनसेन था जबकि दूसरे जिनसेन के गुरु का नाम वीरसेन और दादागुरु का नाम आर्यनन्दि था। जिनसेन ने इस ग्रंथ की रचना शक सं. ७०५ (सन् ७८३) अर्थात् विक्रम संवत् ८४० में की थी।
इस ग्रंथ में नेमिनाथ का ही चरित्र-चित्रण नहीं है, बल्कि उसे मध्यबिन्दु वनाकर इसमें इतिहास, भूगोल, राजनीति, धर्मनीति आदि अनेक विषयों तथा अनेक उपाख्यानों का वर्णन हुआ है । लोक संस्थान के रूप में सृष्टि-वर्णन चार सर्गों में दिया गया है। राज्यवंशोत्पत्ति और हरिवंशावतार नामक अधिकारों के उपलक्षण में चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नव नारायण आदि तिरेसठ शलाका पुरुषों का और सैकड़ों अवान्तर राजाओं और विद्याधरों के चरित्रों का वर्णन किया गया है। इस तरह यह अपने में एक महापुराण को भी अन्तर्गभित किये हुए है।
१. जैन साहित्य का यह इतिहास, भाग ६, पृ० ४१. २. वही-पृ० ४३. ३. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० ४६.