Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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द्वितीय अध्याय
"जैन पुराण साहित्य का परिचय"
पूर्व अध्याय में हमने भारत में राजनीति-शास्त्र की प्राचीन परम्परा का दिग्दर्शन किया । अब मैं अपना विषय “भारतीय राजनीति : जैन पुराण साहित्य संदर्भ में" प्रारम्भ करने से पूर्व पुराणों का संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक समझती हूं । सर्व प्रथम प्रश्न यही उठता है कि "पुराण" किसे कहते हैं ।
भारतीय परम्परा के अनुसार “पुराण" शब्द बहुत प्राचीन है । इतिहास के प्रारम्भ से ही इस शब्द का प्रयोग चला आ रहा है । "पुराण" का अर्थ है प्राचीन काल की घटनाओं को बताने वाला ग्रन्थ । “पुराण" के प्रादुर्भाव तथा पौराणिक-साहित्य में पर्याप्त अन्तर मिलता है। "पुराण" शब्द का उदय तो बहुत पहले ही हो चुका था, परन्तु पौराणिक ग्रन्थ बाद में रचे गए।
"पुराण" शब्द से वैसे तो आप अवगत होंगे ही, लेकिन फिर भी पुनः स्मरण कराने हेतु संक्षेप में यहां बता रही हूं। कोषकारों ने पुराण के निम्न लक्षण बताए हैं :
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराष्यिच ।
वंशानुचरित चैव पुराणं प चलक्षणम् ॥ जिसमें सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंश-पराम्पराओं का
१. महापुराण भाग १ : भगवज्जिनसेनाचार्य, काशी: भारतीय ज्ञानपीठ, १९४४,
प्रस्तावना पृ० १६.