Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust
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--(२२)---- - तीर्थों की स्थापना की गई है । इसके अलावा सत्पुरुषों के पूर्व भवों का वर्णन उपलब्ध है। पूर्वभव की कथाओं के अतिरिक्त प्रसंगानुसार अवान्तर कथायें और लोक कथाओं का भी वर्णन मिलता है । जैन पुराणों में कथाओं के साथ-साथ जैनाचार्यों के उपदेश भी मिलते हैं। जो कि कहीं पर विस्तार से कहीं पर संक्षिप्त रूप में हैं। उनमें जैन सिद्धान्तों का प्रतिपादन, सत्कर्म प्रवृत्ति तथा असत्कर्म निवृत्ति, संयम, तप, त्याग, वैराग्य, ध्यान, योग, कर्म सिद्धान्त की प्रबलता के साथ हुआ है । इसके अतिरिक्त तीर्थंकरों की नगरी, माता-पिता का वैभव, कर्म, जन्म, अतिशय, क्रीड़ा, शिक्षा, राज्याभिषेक, दीक्षा, तपस्या प्रव्रज्या, परिषट, उपसर्ग, केवलज्ञान प्राप्ति, समवसरण, धर्मोपदेश, विहार, निर्वाह, इतिहास आदि का वर्णन संक्षेप या विस्तार के साथ मिलता है।
जैन मान्यतानुसार आचार्यों द्वारा वर्णित होने के कारण जैन पुराण प्रमाणभत माने गए हैं।' महापुराण में वर्णित है कि जो पुराण का अर्थ है वही धर्म का अर्थ है । वस्तुतः पुराण पाँच प्रकार का बताया गया है। क्षेत्र, काल, तीर्थ, सत्पुरुष और सत्पुरुष का चरित्र । जैन पुराणों में चार पुरुषार्थों-धर्म, अर्थ, काम, एवं मोक्ष पर विशेष बल दिया गया है, और उन्हीं के कथन का सत्पुरुषों द्वारा उपदेश दिया गया है। पुराण को पूण्य, मंगल, आयु, तथा यश को बढ़ाने वाला श्रेष्ठ और स्वर्ग देने वाला बताया गया है।
जिस प्रकार की सामग्री पारम्परिक पुराणों तथा उपपुराणों में प्राप्त है, वैसी जैन पुराणों में नहीं पायी जाती। परन्तु जो भी जैन पुराण साहित्य विद्यमान है, वह अपने ढंग का निराला एवं अनूठा है। इसलिए
१. महा० पु० १/२०४. २. सच धर्मः पुगणार्थः पुराणं य चथा विदुः । ___क्षेत्रं काल च तीर्थश्च सत्पुसस्तद्विचेष्ठितम् ॥ महा० पु० २/३८. ३. उत्तरपुराण: श्री गुणभद्राचार्य सम्पा० पन्नालाल जैन, काशी, भारतीय ज्ञानपीठ
- १६५४, ५४/७, पाण्डव पु० १/४१. .. ४. महापुराण १/२०५.