Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ मकारादि
ज्वरानपि हरेत्सर्वान्कुर्यात्कान्ति मतिं वलम् ।। (५१९७) माक्षिकाविडवलेहः पाण्डुरोगाभवाद्धन्ति रक्तपित्तश्च विडग्रहम् ॥ (यो. र. । छर्दि; वृ. यो. त. । त. ८३) धातुक्षीणो वयःक्षीणः स्त्रीषु क्षीणः क्षयी च यः। सिताचन्दनमध्वादयं विलिहेन्मक्षिकाशकृत् । तेभ्यो हितश्च वन्ध्याय महाकल्याणको गुडः ॥ सोपद्रवा पित्तभा छदिरेतेन शाम्यति ॥ __पीपल, पीपलामूल, चीता, गजपीपल, धनिया, मक्खीकी बीट (विष्टा) में मिश्री और सफेद बायबिडंग, अजवायन, कालीमिर्च, हर्र, बहेड़ा, चन्दन मिलाकर शहदके साथ चटानेसे उपद्रवयुक्त आमला, अजमोद, नीलकी जड़, जीरा, कालानमक | पित्तज वमन नष्ट हो जाती है । (संचल ), सेंधा नमक, सामुद्र नमक, (५१९८) मागधिकादिलेहः सज्जीखार, बिड नमक (बिरया संचर), (ग. नि. । हिक्काश्वासा. ११) अमलतास, दालचीनी, तेजपात, छोटी इलायची, मागधिका तन्मूलं नागरविभीतकंच सञ्चूण्य । कलौंजी, सोंठ और इन्द्रजौ का चूर्ण १।-१। क्षौद्रयुतोऽवलेहः शमयति कासं त्रिरात्रेण ॥ तोला; (पत्थर पर पिसी हुई) मुनक्का २० तोले; पीपल, पीपलामूल, सोंठ और बहेड़ा समान निसोतका चूर्ण ४० तोले; गुड़ ३ सेर १० तोले; | भाग लेकर चूर्ण बनाकर उसे शहदमें मिलाकर तिलका तेल १ सेर और आमलेका स्वरस ६ सेर चाटनेसे खांसी ३ दिनमें ही नष्ट हो जाती है। लेकर सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें ( मात्रा-१॥ माशा । दिनमें ४-५ बार ।) जब अवलेहके समान गाढ़ा हो जाय तो उतार । (५१९९) मातुलुङ्गादिलेहः कर ठण्डा करके चिकने पात्रमें भरकर रख दें।
( वृ. नि. र. । कासा.) इसे नित्य प्रति अग्निबलानुसार गूलर, मातुलुङ्गरसो हिङ्गत्रिफला मधु शर्करा । आमला या बेरके बराबर सेवन करनेसे समस्त सपिर्मध्वावलेहोयं पित्तकासविनाशकृत् ।। ग्रहणी रोग, बीस प्रकार के प्रमेह, उरःक्षत, प्रति. बिजौ रेका रस, भुनी हुई हींग, हर्र, बहेड़ा, श्याय, निर्बलता, अग्निमांद्य, समस्त ज्वर, पाण्डु, आमला, मुलैठी और मिश्री समान भाग लेकर रक्तपित्त और मलावरोधका नाश होता तथा कूटने योग्य चीज़ोंको कट छानकर चूर्ण बनावें कान्ति, मति और बलकी वृद्धि होती है। और फिर सबको घी और शहदमें मिलाकर
जिनकी धातु क्षीण है, जिनको आयु क्षीण | सेवन करें । हो चुकी है और जिनमें कामशक्ति की कमी है यह अवलेह पित्तज खांसीको नष्ट करता है उनके लिये तथा क्षयी और वन्ध्या स्त्रियों के लिये (५२००) मातुलुङ्गाद्यवलेहः यह गुड़ अत्यन्त उपयोगी है।
(वृ. यो. त. । वातगु.) __ (५१९६) महाभल्लातकावलेहः मातुलुङ्गरसोहिङ्ग दाडिमं विडसैन्धवम् । प्रयोग संख्या ४८६२ “भल्लातकावलेह” देखिये। | सुरामण्डेन पातव्यं वातगुल्मप्रशान्तये ॥
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