Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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१८
श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
- - - आनन्द --निर्भर--सुर----प्रमादिगानै--
दिवपूर-जयशब्द-कलप्रशस्तैः । उद्गीयमान-जगतीपति-कीतिमेना, पीठस्थली वसुविधार्चनयोल्लसामि ॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीस्नपनपीठायार्थम् । वाद्यत्रोषणम् । जयशब्दोच्चारणम् । कर्मप्रबन्धनिगरपि होनताप्त, ज्ञात्वापि भक्तिवशतः परमादिदेवम् । त्वां स्वीयकल्मषगणोन्मथनाय देव, शुद्धोदकरभिनयामि नयार्थतत्त्वम् ॥१०॥
मों ह्रीं थीं क्लीं ऐं अहं वं मं हं संतं पं बं बं हूँ हैं सं सं तं तं पं पं झ झ न्वी हवी ध्वी क्ष्वी द्रा द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय नमोव्हते भगवते श्रीमते पवित्रतरजलेन जिनमभिषेचयामि स्वाहा । इत्युच्चा शुद्धजलेन स्नपर्ने कार्यम् । तीर्थोत्तमभव नीरैः, क्षीरवारिधि--- रूपकैः । स्नपयामि सुजन्माप्तान्, जिनान्सर्वार्थसिद्धिदान् ||११||
दूरावनम्र-सुरनाथ-किरीटकोटीसंलग्नरत्न किरणच्छवि-धूसरांघ्रिम् । प्रस्वेदतापमल-मुक्तमपि प्रकृष्ट
भक्तया जलै जिनपति बहुधाऽभिषिञ्चे ॥१२॥
प्रधाचे जम्मूदीपे भरतक्षेत्र मार्यखण्डे............ 'वेशे........ नगरे........ मासे शुभे....... 'पके . ......तियो... ... .. वासरे ..........बिनमन्विरे पूजनकारकपोताणतापसायिकामावक-धाविकारणा
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