Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 83
________________ मी भक्तामर महामण्डम पूजा -- - - -- - --- - - - -- -- द्धि ) ॐ ही अहं जामा सप्पिसवाणं ।। । मंत्र }ो नमो गपिऊणावधविषप्रणा रानगेगशोकदोयग्रहकप्पदुमजाई महागाप- गगसकलयहरे ॐ नमः म्वाहा । {!) (विधि ) श्रद्धासहित ऋद्धि-की साधना से भयङ्कर युद्ध का भय मिट जाता है ।। ४२ ॥ अर्थ है वृषभेश्वर ! इस प्रकार जो विवेकशील बुद्धिमान् पुरुष प्रापके इस पवित्र स्तोत्र का रात-दिन श्रद्धासहित चिन्तयन, अध्ययन, माराधन और मनन करते हैं, उनके मदोन्मत्त हाथी, विकराल सिंह, भमकता दावानल, भयंकर सर्प, बीभत्स संग्राम, विशुम्प समुद्र, शस्त्रप्रहार और बन्धनजनित भय भी भयाकुल होफर अतिशीन नष्ट हो जाते है । और फिर प्रापके भक्तमनों की मोर लौटकर वार नहीं करते ॥४२॥ ॐ ह्रीं संग्राममध्ये क्षेमङ्कराय क्लीमहावीजाक्षरसहिताय धीवृषभजिनेन्द्राय अध्यम् ।।४२॥ Like the Darkness dispelled by tlie luster of the rays of the rising sun, the army. accompanid by the loud roar of the prancing horses and elephants, cren of powerful kings, is dispersed in the battle-field with the mere recitaion of Tlay na me, 42. सर्व शान्तिवायक कुन्तानभिन्न-गजशोणित - वारिवाह, वेगावतार - तरणातुर - योष-भीमे । यद्धे जयं विजितदुर्जयजेयपक्षाः, त्वत्पादपङ्कजवनयिणो लभन्ते ॥४३॥

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