Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 60
________________ त्री भक्तामर महामण्डल पूजा हत्वा कर्मरिपून बहून् कटुतरान्, प्राप्तं परं केवलं । ज्ञानं येन जिनेन मोक्षफलदं, प्राप्तं द्रुतं धर्मजम् ।। अर्घेणात्र सपूजयामि जिनपं, श्री सोमसेनस्त्वहं । मुक्तिश्रीष्वभिलाषया जिन ! विभो! देहि प्रभो ! वांछित्तम् ।। ॐ ह्रीं हृदयस्थितषोडशदलकमलाधिपतये श्री वृषमदेवायाम् । अथ चतुर्विंशतिदलकमलपूजा पुष्टियोपनियोक बुद्धस्त्वमेव विबुधाचितबुद्धिबोधात् त्वं शङ्करोऽसि भुवनत्रय - शङ्करत्वात् । घालासि धीर ! शिवमार्गविषे विधानात् म्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥२॥ बुद्धः प्रबुदो वरबुद्धराजो मुक्ते विधानाद्भविनां विधाता। सौख्यप्रयोगात् जिन ! शङ्करोऽसि, सर्वेषु मत्येषु सदोत्तमस्त्वम् ।।२।। शान पूज्य है, अमर अापका, इसी लिए कहलाते बुद्ध । भुबनत्रय के सुख-सम्बर्द्धक, अतः तुम्हीं शङ्कर हो शुद्ध । मोक्ष-मार्ग के प्राद्य प्रवर्तक, अतः विधाता कहें गणेश । तुम सम भक्तीपर पुरुषोत्तम, और कौन होगा अखिलेश ॥२५॥

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