Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 79
________________ ८४ श्री भक्तामर महामण्डल पूजा - -- - -- ..- .-. - जिन भक्तों को तेरे चरणों, के गिरि की हो उन्नत प्रोट । ऐसा सिंह छलांगें भरकर, क्या उसपर कर सकता गोट?॥३९॥ (ऋद्धि) ॐ ह्रीं णमो वचनबलीरणं । (मंत्र) ॐ नमो एषु दत्तेषु वर्द्धमान तब भयहरं वृत्ति वर्णा यै मंत्राः पुनः स्मर्तव्या अतोना परमं शनिवेदनाय नमः स्वाहा । (!) (विधि) श्रद्धासहित ऋद्धि-मंत्र का पाराघन करने से बङ्गल का मा सिंह भी रस हो जाता है । और सर्प का भम भी नहीं रहता। अर्थ-हे परमश तिवायक देव ! जिसने मदोन्मत्त हस्तियों के उन्नस गण्डस्थलों को अपने नुकीले नाखूनों से क्षत-विक्षत करके उनसे निकलने वाले दधिर से सने गज-मुक्तामों को बिखर कर प्रवनीतल को मलंकृत कर दिया और अपने शिकार पर छलांग गरकर माफमरण करने के लिये उचत ऐसे वहाड़ते हुए सूखार सिंह के पंजों के बीच पड़े हुए मापके परम भक्तों पर वह बार नहीं कर सकता प्रर्थात् हिंसक सिंह मापके भक्त के समक्ष अपनी स्वाभाविक करता को भी छोड़ देता है । १९ ॐ ह्रीं युगादिदेवनामप्रसादात् केशरिभयविनाशकाय क्लीं महावीजाक्षरसहिताय श्रीवजिनेन्द्राम अय॑म् ॥३६।। Even the lion, which las decorated part of the earth with the collection of ricarls bcsineered with bright blood flowing from the pierced licuds of the elephants though ready to pounce, docs not attack the traveller who has resorted to the mountain of Thy feet, 39. सर्वाग्नि शामक कल्पान्तकाल - पवनोद्धतबह्निकल्पं, दावानलं ज्वलितमुज्ज्वलमुत्स्फुलिङ्गम् । विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं, स्वनामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ।।४।।

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