Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
त्वन्नामतोयेन कृता सुधारा, बलिप्रतापं हरति क्षणात्सा |
भवाग्नितापप्रलयङ्करस्त्वं,
अतस्तवेष्टिं विदधे वरार्थः ॥ ४० ॥
प्रलय काल की पवन उठाकर, जिसे बढ़ा देती सब ओर । फिकें फुलिंगे ऊपर तिरछे, प्रजारों का भी होवे जोर ।। भुवनत्रय को निगला चाहे प्राती हुई अग्नि भभकार प्रभु के नाम - मन्त्र जल से वह, बुझ जाती है उसही बार ||४०||
(ऋद्धि) ह्रीं पहं सुमो कायवलीणं ।
(मंत्र) ह्री श्री क्लो ह्रां ह्रीं अग्नेः उपशमं कुरु स्वाहा । (विधि) श्रद्धा सहित ऋद्धि-मंत्र का श्राराधन करने से अग्नि का भय मिट जाता है |४०||
वर्ष - हे लोकपालक ! प्रापके गुरंगगान से भयङ्कर तथा बेग से बढ़ता हुआ दावानल भी भक्तजनों का कुछ भी बिगाड़ नहीं कर
संता ॥४०॥
ॐ ह्रीं संसाराग्नितापनिवारणाय क्लींमहाबीजाक्षरसहिताय श्रीवृषभ जिनेन्द्राय मध्यंम् ॥१४०॥
The conflagration of the forest, which is equal to the fire fanned by the winds of the doomsday and which emits bright burning sparks and which advances forward as if to devour the world, is totally extinguished by the recitation of Thy neme. 40.