Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 63
________________ भी पर मामला -.. - .-...-.. ....-.- -. -..--.के एकमात्र उपास्य उत्कृष्ट ईश्वर हैं। आप ही संसार-समुद्र को सुखा कर मामयों को प्रजर-अमर पद देने वाले सत्यवेव हैं। प्रतः हम, बारबार प्ररामन करते हैं । पुनश्च पाप पूजक को जगत्पुल्य बना देते हैं, पतः पाप भति नमस्करणीय हैं ॥२६॥ ॐ ह्रौं नानादुःखविलीनाय क्लींमहादीजाक्षरसहिताम श्रीवृषभजिनेन्द्राय पर्यम् ॥२६॥ O God Jinendra ! O Lord ! you are the destroyer of the miseries of all the three worlds. therefore I bow down to you. I offer my salutes to you who is like a pure matchless ornament, you are the Lord of all the tcree worlds you can dry up the ocean of the world 26. __ शत्रून्मूलक को विस्मयोऽत्र वि नाम गुरगरशेष स्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश ! दोष- रुपात्त - विविधाश्रय - जात - गईः, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिवपीक्षितोऽसि ॥२७॥ कमद्धतं दोषसमुच्चयेन, कृत्वाऽत्र गर्व जिन! संश्रितोऽसि । स्वप्नेऽपि न त्वं गुणराशिधामा, दोषाश्रितो मर्त्यसमाश्रयेण ॥२७|| गुणसमूह एकत्रित होकर, तुझमें यदि पा चुके प्रवेश । क्या प्राश्चर्य न मिल पाये हो, अन्य प्राश्रय उन्हें जिनेश ।। देव कहे जाने वालों से, प्राश्रित होकर गर्वित दोष । तेरी मोर न झांक सके वे, स्वप्नमात्र में हे गुणकोष ॥२७॥

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