Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
"
श्री भक्तामर महामण्डल पूजा -- -. .-- सद्धर्मराजजय - घोषण • घोषक: सन्,
खे दुन्दुभि लनति ते यशसः प्रवादी ।। ३२।। बादित्रनादो ध्वनतीह लोके,
घनाधनध्वान । समप्रसिद्धः । प्राज्ञां त्रिलोके तत्र विस्तराप्तां,
पूज्यां करोम्यत्र जिनेश्वरस्य ।। ऊँचे स्वर से करने वाली, सर्व दिशाओं में गुञ्जन । करने वाली तीन लोक के, जन-जन का शुभ-सम्मेलन ।। पीट रही है डंका-"हो सत् धर्म"-राज की ही जय-जय । इस प्रकार बज रही गगन में, भेरी तव यश की अक्षय ।।३२॥
र ऋद्धि ) ॐ ह्रीं अहं णमो धोरगुणान्नभचारिणं ।
( मंत्र | ॐ नमो ह्रां ह्रीं है. ह्रः सर्वदोष निवारणं कुरु कुरु स्वाहा ।
(विधि) श्रद्धासहित ऋद्धि-मंत्र द्वारा कुमारी कम्पा के हाप से काते गये सूत को मंत्रित कर गले में सामने से संग्रहणी तपा उदर की भयानक पीड़ा दूर होती है ॥३२॥
अर्थ-हे दुम्बुभिपते ! अपने गम्भीर भोर उच्च शब्द से विशाओं का व्यापक, त्रैलोक्य के प्राणियों को शुभसमागम की विभूति प्राप्त कराने में वक्ष और जैनधर्म के समोचोन स्वामी जिनदेय का यशोगान करने वाला "सुन्दुभि" बामा पापका सुपश प्रगट कर रहा है। यह (दुन्दुभि प्रातिहार्य का वर्णन है ॥३२॥ *ह्रीं लोफ्याज्ञाविधायिने क्लींमहाबीजाक्षरसहिताप
श्रीदृषभजिनेन्द्राय अय॑म् ।