Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 75
________________ श्री भक्तामर महामण्डल पजा लक्ष्मीबायक उन्निद्रहेमनवपङ्कज - पुञ्जकान्तो, पर्यल्लसन्नखमयुख-शिखाभिरामौ । पादौ पदानि तव पत्र जिनेन्द्र ! धत्तः, __ पानि तत्र विबुधाः परिकरूपयन्ति ॥३६॥ विहारकाले रचयन्ति देवाः, पानि पादं प्रति सप्त सप्त। सम्प्राप्य पुण्यं शिवशं व्रजन्ति, तव प्रभावेन करोमि पूजाम् ।। जगमगात नख जिसमें शोभे, जैसे नभमें चन्द्रकिरण । विकसित नूतन सरसीरुहसम, हेप्रभु तेरे विमल चरण ।। रखते जहां वहीं रचते हैं, स्वर्णकमल, सुरदिव्य ललाम । अभिनन्दन के योग्य चरण तव, भक्ति रहे उनमें अभिराम ॥३६॥ (ऋद्धि) ॐ ह्रीं अहं णमो विप्पोसहिपत्ताणं । {मन्त्र) ॐ ह्रीं श्रीं कलिकुण्डदण्डस्वामिन् आगच्छ प्रागच्छ पात्ममंत्रान् प्राकषय, भाकर्षय पात्ममंत्रान् रक्ष रक्ष, परमंत्रान् छिन्न छिन्द मम समोहितं च कुरु कुरु स्वाहा । (विधि) श्रद्धासहित १२०० ऋद्धिमन्त्र का जाप करने से सम्पत्ति का लाभ होता है ॥३६॥ मर्प-हे पूज्यपाद ! घोपवेश देने के लिये जब पाप प्रापंलग में बिहार करते है, तब देवगण पापके चरणों के नीचे कमलों की रचना करते हैं ।३६॥ ॐ ह्रीं पावन्मासे पद्मश्रीयुक्ताय क्लींमहावीजाक्षरसहिताय श्रीवृषभजिनेन्द्राय भयम् ॥१६॥

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