Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रो भक्तामर महामण्डल पूजा
७३ . ( मंत्र) ॐ नमो अट्ठ मट्ठे क्षुद्रविघठे क्षदान् स्तम्भय २ रक्षा कुरु कुरु स्वाहा ।
(विधि) श्रद्धापूर्वक ऋद्धि-मंत्र को प्राराधना करने से शत्रु का गौर्य नष्ट होता है ॥३०॥
अर्थ-हे चामराधिपते ! जिस पर देवों द्वारा सफेव पर होरे जा रहे हैं ऐसा भापका सुवर्णमय शरीर ऐसा सुहावमा मासूम होता है, जैसा करने के सफेद जल से शोभित शुभेच पर्मत का तट । यह (बामर प्रातिहाथ) का वर्णन है ॥३०॥ ॐ ह्रीं चतुःषष्टिचामरप्रातिहायंयुक्ताय क्लींमहावीजाक्षर
सहिताय श्रीवृषभजिनेन्द्राय प्रय॑म् । Thy gold-lustred body, to which grace has been imparted by the waving chawties which is as white as the Kunda-flower, shines like the high golden baow of Sumeru-mountain, on which do fall the streams of rivers which are bright with (like) the rising moon. 30.
राज्य सम्मानरायक छनत्रयं तव विभाति शशाकान्त
मुचः स्थितं स्थगितभानुकरप्रतापम् । मुक्ताफल - प्रकर - आल - विवद्ध - शोभ,
प्रत्यापयत् त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥३१॥ त्रैलोक्यराज्यं कथितं प्रमाणं, क्षत्रत्रयं शऋसमानकान्ति। मुक्ताफलैः संयुतकं सुशोभ, विराजते नाथ! तवोपरिष्टात ||