Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
सानता हमा सुन्दर सूर्यविम्म । अर्थात् जैसे उदयाचल पर्वत के शिखर पर पूर्व शोमा पाता है वैसे ही रत्नजटित सिंहासन पर पापका शरीर शोभायमान होता है.। (विसीय प्रातिहार्य वर्णन) ॐ ह्रीं महिलासचितसिंहासनप्रातिहार्ययुक्ताय क्लीमहावीनाक्षर
___सहिताय श्रीवृषभजिनेन्द्राय अयम् । Thy gold-lustred body shines verily on the throne in the 15 f:10:11: s itr'i which is varigated with the mass of rays of gems, of the high Rising mouptain, the rays of which (disc), spreading in the firmament like a creeper, look (excecdingly) graceful. 29.
पात्र सम्भक कुन्दावदात - चलचामर - चार - शोभं,
विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम् । उद्यच्छशाङ्क - शुचिनिर्भर • वारिधार
मुच्चस्तदं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ।३०। गङ्गातरङ्गाभविराजमानं, विभ्राजते चामरचारुयुग्मं । सुदर्शनाद्रो गतनिर्भरं वा, तनोति देशेऽत्र-महाविकाश ।। ठुरते सुंदर चवर विमल अति, नवल कुन्द के पुष्प-समान । शोभा पाती देह प्रापकी, रौप्य धवल-सी प्राभावान ।। कनकाचल के तुङ्ग शृङ्ग से, झर झर झरता है निझर । चन्द्र-प्रभा सम उछल रही हो, मानो उसके ही तट पर ।।
(ऋति) * ह्रीं पहं णमो घोरगुणागं ।