Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 66
________________ श्री भक्तामर महामण्डल पूजा -- --.--- .. ---- नेत्रपौड़ा विनाशक सिंहासने मरिणमयूखशिखाविचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्ब विदिल सदंशुलतावितानं, तुङ्गोदयाद्रिशिरसीव सहस्ररश्मः ॥२६॥ सिंहासनं प्राणिहितकर यत्, सुशोभते हेममयं विचित्र । सहस्रपत्रोपरिकणिकायाम, विराजते जैनतनुः सुशोभा ॥ मणि-मुक्ता किरणों से चित्रित, अद्भ त शोभित सिंहासन । कान्तिमान् कंचन-सा दिखता, जिसपर तब कमनीय वदन ।। उदयाचल के तुङ्ग शिखर से, मानो सहस्ररश्मि वाला । किरण-जाल फैलाकर निकला, हो करने की उजियाला ॥२९।। (ऋदि) ॐ ह्रीं अहं णमो घोरतवाणं । (मंत्र ) ॐ ह्रौं णमो गमिऊरण पासं विसहर फुलिंगमंतो विसहर नाम रकारमंतो सर्वसिद्धिमोहे इह समरंताणमपणे जागई कप्पदुम सर्वसिद्धि ॐ नमः स्वाहा । (!) (विधि) बवासहित प्रतिदिन १०८ बार ऋद्धि-मंत्र जपमै से हर प्रकार की नेत्रपीड़ा दूर होती है ॥२६॥ पर्थ हे रलजटित सिंहासनस्य र ! तपापे हए सोने की चमकती प्राभा के समान पापका कांतिमान् विष्य सुम्बर मनोहारी शरीर, झिलमिलाती रत्न-मणियों की किरण-पंक्ति से मुशोभित, मावचर्यजनक सिंहासन पर ऐसा ही शोभा देता है, जैसा कि उदयाचल पर्वत के उत शिवार पर, सहस्र-प्रार-किरणसमूह का बितान(मंजप)

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