Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
--
-
-
---
-..
(ऋद्धि) ॐ ह्रीं प्रहं णमो उग्गतवाणं ।
( मंत्र) ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रः प्रसि मा उ सा झा झौं स्वाहा । ॐ नमो भगवते जयविजयापराजिते सर्वसौभाग्यं, सर्वसौख्य घु कुरु २ स्वाहा ।
(विधि) श्रद्धासहित प्रतिदिन ऋद्धि-मंत्र के जपने से नजर उतरती है | और अग्नि का प्रसर आराधक पर नहीं होता ।।२।।
प्रयं-हे पुरुषोत्तम ! विश्व को बराचर वस्तुओं को एक साथ एक समय में जान लेने वाला प्रापका बुधिरोष (केवलमान देवदेवेन्द्रों द्वारा पूजित होने से प्राप बुद्ध कहे जाते हैं। सब प्राणियों को बिना भेव-भाष सुख-शान्ति का पथ प्रदर्शन कर उन्हें प्रारम-कल्याण ही प्रोर अग्रसर करते हैं, अतः प्रापको शङ्कर कहते हैं। आपने कमबन्धन-पुक्त जीरों को संसार से छुटकारा पाने का रास्ता बता कर प्रतियोषित किया है, मतः मापको ब्रह्मा कहते हैं। प्रवनीतल पर प्रापके समान उपरोक्त गुरखों वाला कोई दूसरा पुरुष पैदा नहीं हुआ है। प्रसः पापको पुरुषोत्तम भी कहते हैं ॥२५॥
ॐ ह्रीं षड्दर्शनपारङ्गसाय कलीमहाव जाक्षरसहिताय
___ थीवृषभजिनेन्द्राय प्रय॑म् ।।२५।।
As Thou.possessest that knowledge which is adored by gods, Thou indeed art Buddha, as Thou dost good to all the three worlds, Thou art Shankar; as Thou prescribest the process leading to the parth of Salvation, Thou. art Vidhata; and Thou, O Wise Lord, doubtless art Purushottama.25.