Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 42
________________ श्री भक्तामर महामण्डल पूजा हे अनिमेष दिलोकनाय प्रभु, तुम्हें देखबार परम-पवित्र । तोषित होते कभी नहीं हैं, नयन मानकों के अन्यत्र । चन्द्र-किरण सम उज्ज्वल निर्मल, क्षीरोदधि का कर जलपान । कालोदधि का सारा पानी, पीना चाहे कोन पुमान ।।११।। (ऋद्धि) ॐ ह्रीं प्रहं णमो पत्तेयबुद्धीम् । (मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रां श्री कुमसिनिवारिण्य महामायाय नमः स्वाहा। (विधि) श्रद्धासहित १ दिन सम प्रतिदिन १०८ बार ऋद्धिमंत्र जपने से जिसे बुलाने की उत्कण्ठा हो वह पा सकता है। बारह हजार मंत्र जपकर सरसों के तीन घेर फरे तो वर्षा होय ॥१॥ अर्थ-हे लोकोत्तम ! जैसे औरसागर के निर्मल और मिष्ट जस का पान करने वाला मनुष्य अन्य समुद्र के खारे पानी को पीने की इच्छा नहीं करता, उसी तरह पापको वीतरागमुद्रा को निरण कर मनुष्यों के नेत्र अन्य देवों की सरागमुद्रा के देखने से तृप्त नहीं होते ।।११॥ ॐ ह्रीं सकलतुष्टिपुष्टिकराव क्लीमहावीजाक्षरसहिताय हुण्यस्थिताय श्रीपभदेवाय प्रय॑म् ।।११। Having (0:1cc) seen Yo:, fit to be seen with winkless eyes or by Gods. the eyes of man jo not find satisfuction clsewhere. Having drunk the moon-white milk of the milky Occan. wlio desires to drink the saltish water of the sea ?il. हस्ति-मद-विदारक, वांछित रूप प्रदायक यः शान्तरागरचिभिः परमाणभिस्त्वं, निर्मापितस्त्रिभुवनकललामभूत !

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