Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 56
________________ श्री भक्तामर महामण्डल पूजा ६१ सुवनिता जनयन्ति सुतान् बहून्, तब समो नहि नाथ! महीतले तनुवरं सुखदं सुरभासुरं मनसि तिष्ठतु मे स्मरणं तु ते ॥ सौ सौ नारी सौ सौ सुत को, जनती रहती सो सो ठौर । तुम से सुत को जनने वाली, जननी महती क्या है और ? तारागरण को सर्व दिशाएँ, घरें नहीं कोई खाली । पूर्व दिशा ही पूर्ण प्रतापी दिनपति की जनसेवा गमो श्रागासगामिरां (ऋद्धि) (मंत्र) ॐ नमो वीरेहि भय २ मोहय २ स्तम्भय २ पद धारणं कुरु २ स्वाहा । ( ! ) (विधि) श्रासहित हल्दी की गांठ को १०८ बार मंत्रित कर चबाने से डाकिनी शाकिनी भूत पिशाच चुड़ैल ग्रादि भाग जाते हैं ||२२|| अर्थ- हे महीतिलक ! जिस प्रकार सूर्य को पूर्व दिशा ही उत्पन्न करती है; अन्य दिशाएं नहीं, उसी प्रकार एक भ्रापको माता हो ऐसी हैं जो आप जैसे पुत्ररत्न को पैदा कर सकीं, भ्रम्य किसी माता को ऐसे पुत्ररत्न को पैदा करने का सौभाग्य उपलब्ध नहीं हुआ ॥ २२ ॥ ॐ ह्रीं मद्भूतगुणाय क्लीं महाबीजाक्षरसहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभदेवाय श्रष्यंम् Though all the directions do possess stars, yet it is only the castern direction which gives birth to the thousandrayed (son), whose pencils of ra ys shine forth brilliantly. So do hundreds of mothers give birth to hundreds of sons, but there is no other mother who gave birth to a son like You 22

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