Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 51
________________ श्री भक्तामर महामण्डल पूजा --. विश्व-प्रकाशक मुखस रोज लब, अधिक कांतिमय शांतिस्वरूप । है अपूर्व जगका दाशि-मण्डल, जगत शिरोमणि शिव का भुप । (ऋद्धि) ॐ ह्री प्रहं णमो विउयाट्टपत्ताणं । ( मंत्र } ॐ नमो भगवते जय विजय मोहय २, स्तम्भय २, स्वाहा । (विधि) धद्धासहित ३ दिन तक १००० आप जपना चाहिये । १०८ बार ऋद्धि-मंत्र जपने से यात्रुमुख स्तम्भित हो जाता है। अर्थ-हे चन्द्रवरन ! श्रापका मुखफमल एक विलक्षण चन्नमा है। क्योंकि प्रसिद्ध चन्द्र तो रात्रि में ही उदित होता है, परन्तु आपका मुखचन्द्र सदा उदित रहता है । चन्द्रमा साधारण अन्धकार का हो नाश करता है, परन्तु प्रापका मुखचन्द्र मोहरूपी महान अन्धभार को नष्ट कर देता है । चन्द्रमा को राष्ट्र ग्रस लेता है और बाइस छिपा देते हैं। परन्तु मापके मुखचन्द्र को न राहु ग्रस सकता है और न मावस छिपा सकते हैं । चन्द्रसी कान्ति कृष्णपक्ष में घट जाती है, परन्तु प्रापके मुखचन्द्र को कान्ति सदा सदा रहती है। तथा चन्द्रमा रात्रि में क्रम ऋम से केवल प्रधंद्वीप को ही प्रकाशित करता है, परन्तु प्रापका मुख चन्द्र समस्त लोक को एक साथ प्रकाशित करता है ।। १८॥ ॐहीं चन्द्रवत्सर्वलोकोद्योतनकराम सीमहावीजाक्षरसहिताय हृदयस्थिताय धीवृषभदेवाय अयम् ।।१८।। Thy lotus-like countenallcc, - which rises cotesbally, destorys to the great darkness of ignorance, is accessible neither the mouth of Rabu nor to the clouds; possCS$CS great of luminosity, is the universe-illuminatiog peerless wrioon. 18.

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