Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
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संसारसमुा से निकालने वाले जिनेन्द्रदेव के घरों को नमस्कार कर में यह स्तुति करता हूं ॥१॥ ॐ ह्रीं विश्वविध्नहराय क्लींमहाबीजाक्षरसहिताय हृदयस्थिताय
श्रीवृषभजिनाय अध्यम् ॥१॥ Having duly bowed down to the feet of Jina, which, at the beginning of the yuga, was the prop for med drowned in the ocean of worldliness, and which illumine the lustre of the gems of the prostrated heads of the devoted gods, and which dispel the vast gloom of sins. 1.
सकलरोगनाशक यः संस्तुतः सकलवाङ - मयतत्त्वबोधा--
दुद्भुत - बुद्धि - पटुभिः सुरलोकनाथैः । स्तोत्र जगत्त्रितयचित्त - हरेरुवारः,
स्तोष्ये किलाहमपितं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥२॥ रम्यैः सुसंस्तवन - कोटिभि - रादरेण,
- देवैःस्तुतो विविधशस्त्रयुत जिनो यः । संसारसागर - सुतारण - नौसमानं,
पूजामि चारुचरु - चन्दन - पुष्पतोयैः ।।२।। सकल वाङमय तत्त्वबोध से, उद्भव पटुतर धी-धारी । उसी इन्द्र की स्तुति से है, बन्दित जग-जन मन-हारी ।। अति आश्चर्य की स्तुति करता, उसी प्रथम जिनस्वामी की । जगनामी • सुखधामी तद्भव - शिवगामी अभिरामी को ।।२।।
(ऋद्धि) ॐ ह्रौं पई एमो प्रोहिमिणाणं ।