Book Title: Bhaktamara Mahamandal Pooja
Author(s): Somsen Acharya, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ श्री भक्तामर महामण्डल पूजा - -- - सम्यक्त्वमुख्य - गुणकाष्टक - धारिसिद्धः, सिद्धः भवेत्स भविनां भवतापहारी ॥ में मति-हीन-दीन प्रभु तेरी, शुरू करू स्तुति अघहान । प्रभु-प्रभाव ही चित्त हरेगा, सन्तों का निश्चय से मान । जैसे कमल-पत्र पर जल-कण, मोती कैसे प्राभावान । दिपते हैं फिर छिपते हैं असली मोती में है भगवान ।। (ऋद्धि) ॐ ह्रीं अहं णमो मरिहताणं, रामो पादाणुसारिणं । ( मंत्र ) ॐ ह्रां ह्रीं ह्र, ह्रीं ह्रः असि प्रा उ सा अप्रतिचक्रे फट विच काय झी झों स्वाहा । ॐ ह्रीं लक्ष्मणरामचन्द्र देव्यै नमो नमः स्वाहा। (विधि) २१ दिन तक प्रतिदिन श्रद्धासहित ऋद्धि मंत्र का जाप करने से सब प्रकार के परिष्ट मिट जाते हैं ॥८॥ भर्य-हे प्रभो ! जिस तरह कमलिनी के पत्र पर पड़ी हुई पानी को बंब उस पसे के प्रभार से मोती के समान सुन्दर विलकर दर्शकों के चित्त को प्रसन्न करती है, उसी प्रकार मुझ मन्दबुद्धि द्वारा की गई पापको स्तुति भी भापके प्रभाव से सम्जनों के चित्त को प्रसन्न करेगी॥८॥ ॐ ह्रीं मने कसंकटसंसारदुःखनिवारणाय बलीमहावीजाक्षरसहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभजिनाय अयम् ।।।। Thinking thus O Lord, I, though of little intelligence, begin this eulogy (in praise of you ), which will, through Your rragnanimity, captivate the minds of the righteous, water drops, indeed, assume the lustre of pearls on loutsLeaves. 8.

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107