Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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प्रस्तावना
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मेष में गुरु अस्त हो तो थोड़ी वर्षा, बिहार, बंगाल और आसाम में सुभिक्ष, राजस्थान और पंजाब में दुष्काल; वृष में अस्त हो तो दुभिक्ष, दक्षिण भारत में अच्छी फसल और उत्तर भारत में खण्डवृष्टि; मिथुन में अस्त हो तो घृत, तेल, लवण आदि पदार्थ महेंगे महामारी का प्रकोप; कर्क में अस्त हो तो सुभिक्ष, कुशल, कल्याण और समृद्धि; सिंह में अस्त हो तो युद्ध, संघर्ष, राजनीतिक उलट-फेर और धन का नाश; कन्या में अस्त हो तो क्षेम, सुभिक्ष, आरोग्य और उत्तम फसल; तुला में अस्त हो तो पीड़ा, द्विजों को विशेष कष्ट, धान्य गहेंगा; वृश्चिक में अस्त हो तो धनहानि और शस्त्र भय; धनु राशि में अस्त हो तो भय, आतंक, नाना प्रकार के रोग और साधारण फसल मकर में अस्त हो तो उड़द, तिल, मूंम आदि धान्य महंगे, कुम्भ में अस्त हो तो प्रजा को नष्ट एवं मीन राशि में गुरु अस्त हो तो सुभिक्ष, अच्छी वर्षा, धान्य भाव सस्ता और अनेक प्रकार की समृद्धि होती है। गुरु का क्रूर ग्रहों के साथ अस्त या उदय होना अशुभ है । शुभ ग्रहों के साथ अस्त या उदय होने से शंभ-ग्न साप्त होता है।
बुध का क्रूर नक्षत्रों में अस्त होना तथा क्रूर ग्रहों के साथ अस्त होना अशुभ कहा गया है । मंगल का शनि क्षेत्र की राशियों में अस्त होना अशुभसूचक है। जब मंगल अपनी राशि के दीप्तांश में अस्ता या उदय को प्राप्त करता है तो शुभफल प्राप्त होता है।
ग्रहों के अस्तोदय के समय समान मार्गी और वक्री का भी विचार करना चाहिए। इस निमित्तज्ञान में समस्त नहों के चार प्रकरण गभित है । ग्रहों की विभिन्न जातियों के अनुसार शभाषभ फल का निरूपण भी इसी निमित्त ज्ञान के अन्तर्गत किया गया है । शनि का क्रूर नक्षत्र पर वक्री होना और मृदुल नक्षत्र पर उदय हो जाना अशुभ है। बोई भी ग्रह अपनी स्वाभाविक गति से चलते समय यकायक वत्री हो जाय तो अशभ फल होता है।
लक्षणनिमित्त स्वस्तिक, कलश, शंख, चक्र आदि चिह्नों के द्वारा एवं हस्त, मस्तक और गदतलकी रेखाओं द्वारा शभाशुभ का निरूपण करना लक्षणनिमित्त है । वरलक्षण में बताया गया है कि मनुष्य लाभ-हानि, सुग्ध-दुःख, जीवनमरण, जय-पराजय एवं स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य रेखाओं के बल से प्राप्त करता है। पुरुषों के लक्षण दाहिने हाथ से और स्त्रियों के बायें हाथ की रेखाओं से अवगत करने चाहिए । यदि प्रदेशिनी और मध्यमा अंगुलियों का अन्तर सधन हो-वे एकदूसरे से मिली हो और मिलने से उनके बीच में कोई अन्त र न रहे, तो बचपन में सुख होता है । यदि मध्यमा और अनामिका का बीच सधन अन्तर हो तो जवानी में सुख होता है । लम्बी अंगलियाँ दीर्घजीवियों की, सीधी अंगुलियां सुन्दरों की, पतली बुद्धिमानों की और चपटी दूसरों की सेवा करने वालों को होती हैं । मोटी अंगुलियों वाले निर्धन और बाहर की ओर झुकी अंगुलियों वाले आत्मघाती होते