Book Title: Badmer Jile ke Prachin Jain Shilalekh
Author(s): Jain Shwetambar Nakoda Parshwanath Tirth
Publisher: Jain Shwetambar Nakoda Parshwanath Tirth
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________________ ( 10 ) जिन्होंने मावादियों के विस्थापन में सहयोग दिया। मीठ पानी मी स्त्रोतों की नदियों में ब कुमों में कमी होने लगी। मारवाड़ के राजघराने से मालानी के राठौड़ अपने प्रापको अलग मानकर छोटी-छोटी जागोरियों में विभक्त हो गये जिससे लूटपाट इत्यादि बढ़कर नागरिक जीवन अशांत अनुभव करने लगा। फलस्वरूप इस काल में जो स्थान प्राबादी के स्थानान्तरण के कारण विकसित हुये वहां नबीन मन्दिर बने पर साथ ही जहां से विस्थापन हया हाधर्म स्थानों का विखराव व नगरों का खण्डहरों में परिवर्तन होना रहिटोचर होता / चूंकि इसके पश्चात् अग्रेजो शासन का प्रभाव पहुँच चुका था अतः सुरक्षा व शांति को दृष्टि से बाड़मेर के मालानी- क्षेत्र की अपेक्षा इस जिले के पचपदरा, सिवाना व शिव क्षेत्र अधिक शान्त व सुरक्षित थे। यहीं पर धामिकः विकास भी दृष्टिगोचर होता है। ईसा की उन्नीसवीं सदी के अन्तिम चरण में मालानी भी मारवाड़ राज्य का अंग बन गया और वहां भो परिस्थितियों में बदलाव प्राया / . इस अन्तिम काल में व स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् मन्दिरों के निर्माण, कला का विस्तार व वैशिष्ट्य तथा इस जिले में नाकोड़ा पाववाय जैन तीर्थ का पुनरुद्धार महत्वपूर्ण है। परम विदुषी गुरुनानी श्रीसुन्दर श्रीजी प्राचार्य हित विजयजी व प्राचार्य हिमाचलसूरिजी ने इस विकास में विशेष योगदान दिया। इन शिलालेखों के अध्ययन से इस क्षेत्र के जैन-जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है / मूति कला की दृष्टि से अनेक परम्परायें सामने आती हैं ज धुनों की गच्छ-परम्परा की एक विशाल सूची चौरासी गच्छ की न्यता को प्रमाणित करती है। अधिकांश लेखों में उपकेश अथवा प्रोस वंशी अथवा ओसवाल या उकेश नामों से एक ही श्रावक समूदाय का सम्बोधन दृष्टिगोचार होता है जिसका क्षत्रिय परम्परानों से घनिष्ठ सम्बन्ध प्रकट होता है / जूझारों के लेख, सतियों के लेख, श्रावक नामावली के साथ श्राविकाओं का नारी महत्व परम्पराओं की एक विशेष गुणवत्ता प्रकट करता है / इस विषय में शोधकार्य हेतु लेखों का यह संकलन महत्व पण योगदान दे पायगा ऐसा कामना है। . ........ . .. -चम्पालाल सालेचा