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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख प्रकाशक: श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ 2
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख प्रकाशेक श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ पो. मेवानगर / जि. बाड़मेर (राज.) ....
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________________ * प्रकाशक: श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ-मेवानगर * सर्वाधिकार सुरक्षित * प्रथमावृत्ति-१,००० प्रति * प्रथम संस्करण: वीर संवत् 2514 वि संवत् 2044 . ई सन् 1987 * मूल्य ॐ प्राप्ति स्थान: श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ पेढ़ी पो. मेवानगर जिला बाड़मेर (राज.) * मुद्रक : कैलाशचन्द जैन, जैन प्रिण्ट से, 806, चौपासनी रोड, जोधपुर, (राजस्थान) फोन : 28782, 21756.
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________________ आमुख श्रीजैन-श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ-तीर्थ भारत के जैनतीर्थों में अपना एक विशिष्ट स्थान है। इस तीर्थ की बहुप्रायायी गतिविधियों में, ज्ञानक्षेत्र में भी अनेक कार्यक्रम तीर्थ ने अपने हाथ में लिए हैं। प्राकृत भारती के माध्यम से विशिष्ट साहित्य के प्रकाशन में सहयोग दिया जा जा रहा है। सेवा मन्दिर रावटी के माध्यम से प्रागम प्रकाशन का महत्व पूर्ण कार्य हो रहा है। पूर्व में प्रसिद्ध विद्वान् श्री अगरचंद नाहटा द्वारा सम्पादित जैनकथा-संग्रह व विविध तीर्थकल्प का प्रकाशन तीर्थ ने करवाया। पत्राचार पाटयक्रम के अंतर्गत मुनि श्रीगुरगरत्न विजयजी की निश्रा में त्रि-स्तरीय जैन शिक्षण कार्यक्रम चल रहा है। .. भारत के प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री डा. वाकणकर के तीर्थ पर आगमन पर उन्होंने राजस्थान के जैन पुरातत्व पर शोधकार्य में तीर्थ को नेतत्व प्रदान करने का संकेत किया था व तत्पच्छात इस क्षेत्र में कार्यशील होंने की अोर प्रथम कदम के रूप में तीर्थ ने अपने मूल क्षेत्र बाड़मेर जिले का शिलालेख-सर्वेक्षण का कार्य हाथ में लेने का निश्चय किया एवं तीर्थ के पुस्तकालय प्रभारी श्री हीरालाल जोशी को सर्वेक्षण का कार्य सौंपा। तीर्थ की ज्ञान समिति श्री पारसमल भंसाली, श्री सुल्तानमल जैन श्री चम्पालाल सालेचा, श्री गणपतचन्द पटवारी श्री भूपचन्द जैन के मार्गदर्शन में इस सर्वेक्षण-कार्य को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया जा रहा है / निश्चित ही यह संकलन जैन-संस्कृति ही नहीं समस्त भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व हेतु एक महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रन्थ सिद्ध होगा। श्रीपाश्ववप्रभु जन्मकल्याणक पोष कृष्णा दशमी 2044 वि. 16.12.1987 अध्यक्ष व ट्रस्ट मण्डल श्री जैन इवताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ
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________________ प्रस्तावना * पश्चिमी राजस्थान जिसमें मरुमंडल, पूगल, जांगल, माड, सूराचन्दा रायधड़ा इत्यादि के प्राचीन क्षेत्र पाते हैं। पुरातन काल से हो जैन-धर्म और संस्कृति का महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है / वर्तमान पुरातत्वीय खोजों के अनुसार यह क्षेत्र सिन्धु घाटी की सभ्यता के अन्तर्गत पाता है और उपलब्ध प्रमाणों के अनुमार सिन्धु घाटी को सभ्यता जैन-धर्म व सस्कृति से प्रमुख रूप से प्रभावित थी। सोल प्रोफ मोहनजोदड़ो में वृषभ जो कि प्रथम तीर्थ कर भगवान् आदिनाथ अथवा ऋषभदेव का चिह्न है, स्वस्तिक जो कि जैन अष्ट मंगलों में से एक है। मीन युगल जिनका अष्ट मंगलों में स्थान है। नाग जो सातवें तीर्थ कर श्रीसुपाश्वनाथजी को अनेक मूर्तियों पर मिलता है तथा तेईसवें तीर्थ कर श्रीपार्श्वनाथ का चिह्न है, एक जैन प्रतीक के रूप में महत्वपूर्ण संकेत है तथा नग्न साधुनों का जैनों की काऊसग्ग ध्यान मुद्रा में अंकन इस शिलालेख पर जैन प्रभाव अथवा सिन्धु घाटी सभ्यता के जैन सम्बन्धों के रूप में एक उल्लेखनीय प्रमाण प्रस्तुत करता है / वासुदेव कृष्ण व बाईसवें तीर्थंकर श्रोअरिष्टनेमि के जैन-ग्रन्थों में उल्लेख इन दोनों महापुरुषों का सम्पूर्ण पश्चिमी भारत पर प्रभाव प्रकट करते हैं जिसमें कृष्ण-जरासन्ध युद्ध का तत्कालीन वैदिक सरस्वती नदी के किनारे नाकोड़ा तीर्थ मेवानगर के पास सोनवल्लो (वर्तमान सोनली) के पास युद्ध वर्णन को इस क्षेत्र को जैन ऐतिहासिकता के साथ जोड़ते हैं। __ भगवान् पार्श्वनाथ के गणवरों व पट्टधर प्राचार्यो ने भारत में अपने अखिल भारतीय साधुनों की गणव्यवस्था को अथवा गच्छव्यवस्था को व्यवस्थित करने हेतु भारत को नौ क्षेत्रों में विभाजित किया था जिसमें एक क्षेत्र सिन्धु सोवीर भी था जिसका यह भू-भाग भी एक हिस्सा था / जिससे स्पष्टतया इस क्षेत्र में भगवान् पार्श्वनाथ के समय जैन-प्रभाव का विशद स्वरूप दृष्टिगोचर होता है और इसी पार्श्वनाथ-परम्परा के पट्टधर प्राचार्य रत्नप्रभसूरि ने ओसवाल समाज की स्थापना की थी जो घटना महावीरनिर्वाण के पश्चात् की प्रथम व द्वितीय शताब्दी की घटना है / मरुमंडल क्षेत्र में अनेक मन्दिरों में प्राचार्य रत्नप्रभसूरि के समय के प्रतिबिम्ब प्रति. ष्ठानों के उल्लेख मिलते हैं जो महावीर के पूर्व तेईसवें तीर्थ कर पार्श्वनाथ के समय में इस क्षेत्र के जैन-प्रभाव की पुष्टि करते हैं / यह उल्लेखनीय है
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________________ कि पश्चिमी राजस्थान व सिन्ध में भगवान पार्श्वनाथ जिनालयों की भरमार है जो उपर्युक्त कथन के महत्वपूर्ण प्रमाण हैं। भगवान् महावीर के मोक्षगामी अन्तिम राजषि शिष्य सिन्धु सौवीर के राजा उदायन थे जिनकी राजधानी वीतभया नगरी थी। इसी धीतभया से अवन्ति नरेश प्रद्योतसेन चमत्कारी काष्ठ प्रतिमा अपनी प्रेयसी के प्राग्रह पर रात्रि में उठाकर ले गये थे जिसके कारण उदायन ने प्रद्योत पर हमला किया था व उसे परास्त कर कैद कर लिया था, पर एक प्राकाशवाणी के आधार पर वह प्रतिमा अवन्ति में ही छोड़ दी गई थी। अनेक विद्वानों का मत है कि बड़ौदा के म्युजियम में रखी हुई जैन काष्ठ प्रतिमा वही वीतभया नगरी की जिन-प्रतिमा है / यह वीतभया नगरी कालान्तर में रेत भरे तुफानों में बाल-समाधि प्राप्त कर गई पर निश्चित ही महावीर के काल में इस क्षेत्र के विस्तृत जैन-प्रभाव को प्रकट कर रही है। महावीर के काल में ही राजर्षि उदायन को दर्शन देने हेतु महावीर का इस क्षेत्र में विचरण होने की सम्भावना है तथा सांचोर के महावीर मन्दिर तथा सिरोही क्षेत्र में जीवितस्वामी की प्रतिमायें इस सम्भावना को प्रबल करती है। प्रस्तुत शिलालेखों में विक्रम संवत 1280 का एक महत्वपूर्ण शिलालेख (गुड़ा) नगर के महावीर मन्दिर से प्राप्त हुप्रा है / और उस शिलालेख में उस स्थान का नाम रड़धड़ा उल्लिखित होना इस स्थान, शिलालेख व क्षेत्र में अत्यन्त प्राचीन महावीर व जैन-प्रभाव को प्रकट करता है। __ इस क्षेत्र में कुछ प्रतिमायें सम्प्रति राजा के काल की सिद्ध हुई हैं। सम्राट् सम्प्रति सम्राट अशोक के पौत्र व कुणाल के पुत्र थे व एक प्रसिद्ध जैन-अनुयायी के रूप में विख्यात हैं। सम्राट् सम्प्रति के प्रशासन में तक्षशिला पजाब व मरुमंडल क्षत्र इत्यादि थे और इन क्षेत्रों में सम्प्रति. कालीन जैन-प्रतिमाए मिलती हैं जो कला की दृष्टि से एक विशेष रूप से पहचानी जाती है। उस काल में चूकि प्रतिमानों पर लेख लिखने की परिपाटी नहीं थी इसलिये इन प्रतिमानों का सही काल-निर्धारण करना सम्भव नहीं है, परन्तु यह प्रतिमायें इस क्षेत्र में जैन-प्रभाव को प्रमाणित करती है। - इसी सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि सिकन्दर व उस काल में इस क्षेत्र में रहने वाले मालव, क्षुद्रक इत्यादि जातियों का संघर्ष व उस संघर्ष में सिकन्दर का पराजित होना व घायल होना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य है। चन्द्रगुप्त मौर्य जैन सम्राट् थे सैल्युकस से युद्ध में इन मालवों व
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________________ क्षद्रकों का चन्द्रगुप्त को सहयोग इस क्षेत्र के निवासी मालवों क्षद्रकों पर भी जैन-प्रभाव की सम्भावना प्रकट करता है / तत्पश्चात् सम्राट सम्प्रति का इस क्षेत्र पर प्रशासनिक प्रभाव इस मैत्रिक सम्बन्ध की पुष्टि करता है। चुकि सिकन्दर का काल रत्नप्रभसूरि के काल से समकालीन है अत: यह भी उपर्युक्त जैन-प्रभाव शृंखला की पुष्टि करता है। संप्रति का काल गुप्तकाल का पूर्वार्द्ध था। एक ओर इतिहासकारों का यह मत है कि सिकन्दर का सामना करने हेतु मालव व क्षुद्रकों ने अपने आपसी विवाद भला कर उन्हें स्थायी एकता में परिवर्तित करने हेतु आपस में शादी ब्याह कर लिए थे व दूसरी ओर इसी काल में विभिन्न जातियों का रत्नप्रभवसूरि द्वारा ओसवाल जाति की स्थापना कर उन्हें शादी ब्याह हेतु स्थायी एकता में बाँधना इतिहास का एक अद्भुत सामन्जस्य है व एक ऐतिहासिक तथ्य की पुष्टि का संकेत है। जैन-ग्रन्थों के प्राचीन उल्लेखों के अनुसार वीरमसेन नामक दो भाईयों ने वीर-निर्वाण की दूसरी शताब्दी में नाकोड़ा ब बीरमपुर नाम के दो नगर बसाये और दोनों ने अपने अपने नगरों में जिन-मन्दिरों के निर्माण करवाये / नाकोड़ा नगर में भगवान पार्श्वनाथ का मदिर बनवाया व बीरमपुर में तीर्थ कर चन्द्रप्रभुजी को मूलनायक के रूप में स्थापित किया गया। वीरमपुर में कालान्तर में जीर्णोद्धार के समय चन्दाप्रभु के स्थान पर भगवान् महावीर की प्रतिमा स्थापित की गई जो पुनः जोर्णोद्धार के समय नाकोड़ा के नागद्रह से प्राप्त भगवान् पाश्वनाथ की प्रतिमा से परिवर्तित हुई है। अभी नाकोड़ा में पंचतीर्थी मन्दिर में जो महावीर की विशाल पीत पाषाण-प्रतिमा विराजित है वह यही मूलनायक जी की प्रतिमा है / इस प्रतिमा पर पीछे की ओर एक लेख है जिसमें इसे महावीर-बिम्ब के रूप में उल्लिखित किया गया है / लगता है यह उल्लेख इसे किसी जिर्णोद्धार में पुन: स्थापित करते समय लिया गया है क्योंकि यह शारीरिक भाग जहाँ यह उल्लेख किया गया है, लेख लिखने, का स्थान नहीं है / स्पष्ट है जिस काल की यह प्रतिमा है उस समय लेख लिखने की परम्परा नहीं थी। इस प्रतिमा की कुछ और विशेषताए भी हैं, इस प्रतिमा के पीठासन पर सुन्दर उत्कीर्णी है जो बहुत पुरानी प्रतिमाओं में ही मिलती है। 15 वीं शताब्दी की अन्य प्रतिमाओं में यह जित्कीर्णी नहीं है / प्रतिमा की नाक विशेष रूप से तीखी, हाथों की कोहनयां शिल में पाछे से सहारे के पत्थर से जुड़ा होना, कानों के कुण्डलों
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________________ का हिस्सा लम्बा होना तथा पीठ से चिपका हा होना, प्रतिमा को संप्रति काल की अथवा उसके समीपस्थ उतरार्द्ध की होना प्रदर्शित करता है। - श्री नाकोड़ा तीर्थ के दो काउसग्ग संवा 1203 वि. के हैं। इन पर श्रीवच्छ चैत्य लिखा है श्रीवत्स भगवान शीतलनाथ का चिह्न है जिससे प्रतीत होता है कि या तो इस वर्तमान प्रादिनाथ मदिर में कभी शीतलनाथ भी मूलनायक थे अथवा इस क्षेत्र में शीतलनाथ का अलग मंदिर था व किसी भूमिगृह स्थापन के पश्चात जीर्णोद्धार के समय इन काउसग्गीयों को इस जिनालय में स्थापित किया गया हो / शिलालेखों के अनुसार मूलरूप से यह मंदिर विमलनाथ मंदिर था व भगवान आदिनाथ का यहाँ स्थापन इसके पश्चात का है जो संभवतया संवत 1525 के आसपास का हो / तीर्थ के भण्डार में धातुप्रतिमा पर संवत 109 उत्कीर्ण है / उसके प्रागे का कुछ भाग घिसा हुआ है / संभव है यह प्रतिमा 1060 से 1066 विक्रमो को हो / अर्थात ईसा की नौवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में जैन-प्रभाव असंदिग्ध है। किराड़ . जूना देवका, चौहटन, गुढ़ा-नगर के मंदिर भी अति प्राचीन हैं। किराड़ में वर्तमान धनीभूत मंदिरो में जैन-मंदिर भी थे व उनके शिलालेखों का ऐतिहासिघ महत्त्व है / डा. वाकणकर के अनुसार देवका के सूर्य मन्दिर तथा किराड़ के विभिन्न मन्दिर खेड़ के विष्णु मंदिर इत्यादि गुप्तकाल व उसके पूर्व के हैं। खेड़ का जैन-शिलालेख जो वहां एक टांके के मन्दिर क्षेत्र में ही खुदाई के समय प्राप्त हुमा था संवत 1026 के प्रासपास का है और वर्तमान विष्णमन्दिर के पास से प्राप्त होने का अर्थ है कि प्राचीनता में जैन सस्कृति का यहाँ प्रभाव इस नगर के समद्धिकाल से ही होना चाहिए। खेड़' एक प्राकृत शब्द है जिसका उल्लेख कल्पसूत्र में भी हुया है / प्राकृत में खेड़ का अर्थ 'समद्धिशाली नगर' है। जबकि खेडा शब्द नगरों के प्रासप स के ग्रामीण इलाकों के लिए आज भी राजस्थान गुजरात व महाराष्ट्र में काम लिया जाता है / नाकोड़ा तीर्थ पर अनेक प्रतिमाओं पर खेड़ नगर व महेवा का उल्लेख है, जिनमें कुछ बिना संवत् की है / विक्रमी को प्रारम्भिक शताब्दियों में प्रतिमानों पर सवत लगाने अथवा लेख अकित करने की प्रथा नहीं थी अतः यह मूतियें प्रत्यन्त प्राचीन होना प्रतीत होती है। खेड़ के वर्तमान विष्णुमन्दिर व प्रदेश के समीप के मन्दिरों का शिल्प गुप्त काल - व उसके पूर्व का है।
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________________ - प्राचार्य कालक.की बहिन साध्वी सरस्वती का गर्दभिल्ल द्वारा हरण, कालकाचार्य का पार्श्वकुल अर्थात पारसियों के कुल-स्थान वर्तमान ईरान की ओर इस मरुप्रदेश के मार्ग से जाना व शकों का इसी प्रदेश से प्रागमन व यहां से समुद्री मार्ग से गुजरात की ओर से मालवा क्षेत्र पर आक्रमण एक ऐतिहासिक घटना है / प्राचार्य कालक का काल ईसा से पूर्व पहली व दूसरी शताब्दी के मध्य का है व इस काल में किराड़ , जना, खेड़ व वीरमपुर, प्रोसियां, सत्यपूर (सांचौर), भीनमाल में विशाल जैन-प्रभाव ने ही कालकाचार्य को इस पथ से ईरान तक जाने का मार्ग प्रशस्त किया था / . .. गर्दभिन्ल को परास्त करने के तुरन्त बाद शकों की निरंकुशता के कारण कालकाचार्य ने उनका साथ छोड़ दिया व विक्रमादित्य ने शकों को पुनः इसी मार्ग से भारत के बाहर खड़ेद दिया। विक्रमादित्य के गुरु आचार्य सिद्धसेन दिवाकर थे व इस बिजय के पश्चात जब यह क्षेत्र गुप्तों के अधीन पाया तो प्राचार्य सिद्धसेन दिवाकर का विचरण भी इस क्षेत्र में हुप्रा। . ............... ...... . - गुप्तों के काल के पश्चात् सम्राट हर्षवर्द्धन अथवा वहद भोज के समय चीनी यात्री ह्यांगचांग भारत आया था। हर्षवर्द्धन के दरबार में बाणभट्ट व मयूर भट्ट इत्यादि विद्वान थे और उनकी विद्वता से अधिक प्रभाव प्रमाणित करते हुए प्राचार्य मानतुगसूरि ने भक्तामरतोत्र की रचना की / प्राचार्य मानतुगसूरि के जीवन-वर्णनों में उनका खेड़ वीरमपुर आने का उल्लेख मिलता है। ह्यांगचांग की यात्राओं में उसका भीनमाल से खेट (खेड़) उडम्बर (शेरगढ़ तहसील में औदम्बर व उड़), पीतशीला (जैसलमेर के पास वर्तमान में पीतला) होते हए मुलतान जाने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि खेड़ उस काल का महत्त्वपूण नगर था। - सिंध में दाहर पर मुस्लिम अाक्रमण 712 ई. में हुआ / इस काल में मौर्यों व गुप्तों के पश्चात प्रतिहारों व परमारों का इस क्षेत्र पर अधि. कार हुा / मोहम्मद बिन कासिम के पश्चात सिंध के मुसलमान शासकों ने इस क्षेत्र पर आक्रमण प्रारम्भ कर दिये थे जो गजनवी के सोमनाथ आक्रमण तक चालू रहे। खेड़ मन्दिर व सिनली में मन्दिरों को मुस्लिम अाक्रमणों से बचाने हेतु 'गधी गाल' की मूर्तियां मिली हैं जो इस क्षेत्र पर लगातार मुस्लिम हमलों का प्रमाण है / इन आक्रमणों में मन्दिरों की तोड़-फोड़ व कलामूर्तियों को विकृत करना, मन्दिरों को मस्जिदों में
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________________ ( 7 ) परिवर्तित करना ग्राम बात थी। पूरे बाड़मेर क्षेत्र में इस प्रकार के भाग्नावशेषों की भरमार है / खेड़ के वैष्णव मन्दिर की समस्त कलाकृतियां विकृतरूप में है व इसी काल में जैन मन्दिर भी तड़ गये व उनके अवशेष जसोल व मेवानगर में प्राप्त हैं / नाकोड़ा तीथ पर खण्डित परिकर भी इसके प्रमाण है, पर च कि ऐसे प्राक्रमण स्थायी प्राधिपत्य में परिवर्तित नहीं हुए अतः जब भी आक्रमण होते अथवा समीप के क्षेत्रों में प्रशांति होती तो प्रतिमानों को भूमिगत कर दिया जाता व स्थिति सामान्य होने पर पुन: जीर्णोद्धार करा दिया जाता व प्रतिमाएं प्रतिष्ठित करादी जाती थी। परमारों के काल में ही गुजरात के सोलंकी सम्राटों का प्रभाव इस क्षेत्र पर बढ़ा व गुजरात के सभी सोलंकी सम्राट जैन-धर्म से प्रभावित थे व सिद्ध गज जयसिंह व विशेष रूप से कुमारपाल तो प्रसिद्ध जैन-सम्राट हुए हैं अत: इस काल में इस क्षेत्र में भी जैन प्रभाव को पर्याप्त सहयोग मिला। किराड़ व बाड़मेर जिले के अनेक स्थानों पर सोलंकी राजामों के लेख मिले हैं। प्रस्तुत संग्रह के नाकोड़ा तीर्थ के संवत् 1203 के काउ सग्गियों पर सोलंकी राज्य होने का उल्लेख है। विक्रमी 1082 में मुहम्मद गजनवी लुद्रवा को रोंदते हए किराडू जूना (बाहड़मेर) से धोरीमन्ना, पालनपुर होते हुए सोमनाथ पहुँचा / इस अशांति के समय समस्त जिले में संकट का आभास हुप्रा प्रत: प्राप्त लेखो में इस काल के लेखों का प्रभाव है, और उसके पश्चात् पुन: कुमारपाल के समय शांति स्थापन होने पर भूमिगत प्रतिमानों का जीर्णोद्धार होने से उस समय की बहुत सी प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं / गजनवी व गोरी के बीच के सौ वर्षों के काल को इस क्षेत्र में जन-संस्कृति के फैलाव का स्वरिंगम युग कहा जा सकता है व इस लेख-संग्रह में इस काल के शिलालेखों की पर्याप्त सूची उपलब्ध है। पृथ्वीराज की पराजय के पश्चात इल्लूमिश व अजमेर में स्थित उस के हाकिम बाबाशाह के समय में सिंदरी के समीप नाकोड़ा नगर पर मुस्लिम हमला हुआ और इसी हमले में सभवतया यह नगर ध्वस्त हुआ और सम्भव है इसी समय नाकोड़ा तीथं की वर्तमान पार्श्वप्रभु की प्रतिमा को भूमिगत किया गया हो। यह समय संवत 1270 मे 1350 वि. के मध्य होना चाहिए / शिलालेखों में महेवा क्षेत्र के इस काल के शिलालेख नहीं है। ...,
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________________ - भारतीय सभ्यता के ध्वंस व विनाशलीला रचने में अलाउद्दीन खिलजी अग्रणी रहा जिसने सिवाना, बाड़मेर, सांचोर व जालोर पर अपनां अातंककारी अभियान चलाया संवत 1360 से 1400 वि. के चालीस वर्षों में ही सिवाना का दुगं. खेड व वीरमपुर के नगर व मदिर ध्वस्त हए, जूना बाहड़मेर किराडू व सांचोर का विनाश हुप्रा व जालौर के कान्हदेव व वीरम को वीरगति प्राप्त होकर वहाँ मुसलमान हाकिम बैठा / इन सभी ध्वस्त मदिरों में कुछ तो नगर व मंदिर सदा के लिए ध्वस्त हो गएं व कुछ का जीर्णोद्धार विक्रम की पूरी पन्द्रहवी सदी में बिखरे रूप में हुआ क्योंकि जालौर क्षेत्र में लगातार पुनः सत्ता प्राप्ति हेतु हिन्दू राजाओं के मुसलमानों से युद्ध होते रहे व इसी काल में कन्नौज से आये राव सीहा व व उनके वंशजों ने पालो व बाड़मेर क्षत्र में अपनी प्रभाव बढाना प्रारम्भ किया। गुजरात में सोलकी सत्ता के शिथिल होते ही गोहिल राजपूतों ने जो सोलकियों के सरदार के रूप में खेड़, महेवा-क्षेत्र में अवस्थित थे खेड़, पर अपना राज्य स्थापित कर दिया। कहावत है कि "पोल देख ने गोहिला घसोया' पर शीघ्र ही राव प्रांसथान ने खेड़ पर कब्जा कर लिया व राठौड़ों का प्रभाव सिवाना व आसपास के क्षेत्रों पर बढने लगा / राठौड़ों के काल में जैन-सस्कृति को पर्याप्त संरक्षण मिला व प्रोसवालों के मोहनोत व छाजेड़ गौत्रों की इन्हीं राठौड़-परम्परा से उत्पत्ति हई है / राठौड़ राजवंशों पर भी जैन-प्रभाव था, ऐसा उल्लेख मिलता है कि तपागच्छ के एक साधजी ने मोहनगी को मोहनोत बनाया। उनका गच्छ तपागच्छ था पर राठौड़ों का गच्छ खरतर था / इस क्षेत्र की अनेक प्रतिमानों व मंदिरों के शिलालेखों पर राठौड़ राजामों के उल्लेख मिलते हैं। बाड़मेर के इतिहास में मल्लिनाथ वीरम व जगमाल के समय में माढ के नवाब व दिल्ली के तुगलक सम्राटों की सम्मिलित फौजों से युद्ध की घटना अपना ऐतिहासिक महत्व रखती हैं / मल्लिनाथ का काल संवत् 1430-56 के करीब रहा है। इस काल में महेवा क्षेत्र प्रशांत रहा व इस क्षेत्र में इस काल के शिलालेखों का अभाव है। इस युद्ध में राठौड़ों ने फिरोजशाह तुगलक वा माढू के मोहम्मद एबक पर विजय प्राप्त की। .., विक्रम की सोलहवीं शताब्दी अर्थात् संवत् 1500-1600 तक की काल इस क्षेत्र में राजनैतिक शान्ति का काल रहा / इसी काल में अनेक
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________________ ( 6 ) मन्दिरों के जीर्णोद्धार हुए जिसमें नाकोड़ा तीर्थ, नगर, गुडा, कनाना, इस्सानी, विशाला, भाडरवा, आसोतरा, पाटौदी, बालोतरा, पर्चपदरा, बाड़मेर, खण्डप पारल, सरणपा, मोकलसर कोटड़ा, राणीगांव, कर्मावास, जेठन्तरी अर्थात् बाड़मेर जिले के हर क्षेत्र में जिन-मन्दिरों के निर्माण, प्रतिष्ठाएं इत्यादि के शिलालेख मिलते हैं / इसी काल में खरतरगच्छचिर्य दादा गुरुदेव कोतिरत्नसूरिजी, जो इसो क्षेत्र के मेवानगर के रहने वाले धर्म व जिनालय बनाने का विशाल रूप से कार्य किया। प्राचार्य कीत्तिरत्नसूरि की स्तुति में इस क्षेत्र में गुरु प्रतिमायें, गुरु-गादुकायें व शिखोलेखें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं / इस सदो के विभिन्न मन्दिरों में नाकोड़ा-तीर्थ के मन्दिरों में निर्माण व जीर्णोद्धार एक ऐतिहासिक उपलब्धि है जिसके लिखित नाकोड़ा ग्राम के नागद्रह से प्राप्त श्रीपार्श्वनाथ की प्रतिमा को मेवानगर (चीरमपुर) से मूलनायकजी के रूप में विराजमान करना इस क्षेत्र का एक सौभाग्यपूर्ण प्रसंग कहा जा सकता है / - इसके पश्चात् भारत की राजनीति में मण्डौर व जोधपुर में मलानी क्षेत्र से ही विस्तार पाये राठौड़ राजवंश का उदभव व मुगलसत्ता का विस्. तार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। मुगलकाल की राजनैतिक गतिविधियों ने इस क्षेत्र को भी अत्यन्त प्रभावित किया / जोधपुर के राव मालदेव का अपने ज्ये. पुत्र रामदेव से अप्रसन्नता के कारण चन्द्र सेन को राज्य देना व साम्रट अकबर का चन्द्रसेन के विरुद्ध अभियान, चन्द्रसेन का सिवाना व मालानी केपहाड़ों में मोर्चा बांधना व इस क्षेत्र में मुगल सेनाओं का निरन्तर जमाव पूनः एक प्रशान्त वातावरण को उत्पन्न करते हैं। और यह पूरा क्षत्र उस अशान्ति से प्रभावित होकर इस क्षेत्र के अनेक प्राचीन नगर व्यापार व्यवसाय से रिक्त हो जाते हैं और इसी क्रम में महाराज जसवन्तसिंह के स्वर्गवास हो जाने पर अजीतसिंह को राठौड़ वीर दुर्गादास द्वारा मुगल चंगुल से बचाकर लाये उन्हें सिवाना के छप्पन के पहाड़ों से भोमलाई तक कीपहाड़ी शृखला में रखनाव समस्त मारवाड़ में मुगल आधिपत्य के साथ निरन्तर मुगल-राजपूत संघर्ष इस क्षेत्र के समस्त राजनैतिक, आर्थिक व धार्मिक जीवन को प्रभावित करते है / फलस्वरूप खेड़, महेवा, जसोल व मालानों के सम्पूर्ण क्षेत्र में जनजीवन प्रशान्त रहता है / अतः इसी काल में मेवानगर खालो हा वहां के निवासी एक शान्त व सुलभ वातावरण हेतु विभिन्न क्षेत्रों में फैल गये / हालांकि मेवानगर के नानक जी संखलेचा का वहां के शासक पुत्रों द्वारा अपमान इस घटना का तात्कालिक कारण बना पर वास्तव में उस समय अनेक ऐसी राजनैतिक परिस्थितिये थी
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________________ ( 10 ) जिन्होंने मावादियों के विस्थापन में सहयोग दिया। मीठ पानी मी स्त्रोतों की नदियों में ब कुमों में कमी होने लगी। मारवाड़ के राजघराने से मालानी के राठौड़ अपने प्रापको अलग मानकर छोटी-छोटी जागोरियों में विभक्त हो गये जिससे लूटपाट इत्यादि बढ़कर नागरिक जीवन अशांत अनुभव करने लगा। फलस्वरूप इस काल में जो स्थान प्राबादी के स्थानान्तरण के कारण विकसित हुये वहां नबीन मन्दिर बने पर साथ ही जहां से विस्थापन हया हाधर्म स्थानों का विखराव व नगरों का खण्डहरों में परिवर्तन होना रहिटोचर होता / चूंकि इसके पश्चात् अग्रेजो शासन का प्रभाव पहुँच चुका था अतः सुरक्षा व शांति को दृष्टि से बाड़मेर के मालानी- क्षेत्र की अपेक्षा इस जिले के पचपदरा, सिवाना व शिव क्षेत्र अधिक शान्त व सुरक्षित थे। यहीं पर धामिकः विकास भी दृष्टिगोचर होता है। ईसा की उन्नीसवीं सदी के अन्तिम चरण में मालानी भी मारवाड़ राज्य का अंग बन गया और वहां भो परिस्थितियों में बदलाव प्राया / . इस अन्तिम काल में व स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् मन्दिरों के निर्माण, कला का विस्तार व वैशिष्ट्य तथा इस जिले में नाकोड़ा पाववाय जैन तीर्थ का पुनरुद्धार महत्वपूर्ण है। परम विदुषी गुरुनानी श्रीसुन्दर श्रीजी प्राचार्य हित विजयजी व प्राचार्य हिमाचलसूरिजी ने इस विकास में विशेष योगदान दिया। इन शिलालेखों के अध्ययन से इस क्षेत्र के जैन-जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है / मूति कला की दृष्टि से अनेक परम्परायें सामने आती हैं ज धुनों की गच्छ-परम्परा की एक विशाल सूची चौरासी गच्छ की न्यता को प्रमाणित करती है। अधिकांश लेखों में उपकेश अथवा प्रोस वंशी अथवा ओसवाल या उकेश नामों से एक ही श्रावक समूदाय का सम्बोधन दृष्टिगोचार होता है जिसका क्षत्रिय परम्परानों से घनिष्ठ सम्बन्ध प्रकट होता है / जूझारों के लेख, सतियों के लेख, श्रावक नामावली के साथ श्राविकाओं का नारी महत्व परम्पराओं की एक विशेष गुणवत्ता प्रकट करता है / इस विषय में शोधकार्य हेतु लेखों का यह संकलन महत्व पण योगदान दे पायगा ऐसा कामना है। . ........ . .. -चम्पालाल सालेचा
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________________ OMMODO OVVWWOVVV: VODOVOD MADOOOOOOOOOOOOOOOOO मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान, मेवानगर OVVYOVU:WWWW:WWW:WOWOWO
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________________ A DADADADADADA #D DWOWWWWWWWWWWWWWWWWW OOMOOD:DOBRODDAH श्री नाकोड़ा भैरव जी, मेवानगर HUVVV VVVVVVVV:W
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________________ अनुक्रमणिका क्रमांक नाम-ग्राम 1. अजीत 2. प्रासोतरा 3. कनाना 4. कर्मावास 5. कल्याणपुरा 6. किराड़ MK 1 0 0 7. कुण्डल 8. कोटड़ा 6. कोरना 10. खेड़ खण्डप 12. गुड़ा मालानी 13. चौहटन 14. जसोल 15. जना बाहड़मेर जेठन्तरी 17. तिलवाड़ा 18. थोब 16. धोरीमना 20. नगर 21. टापरा 22. डंडाली 23. पचपदरा 24. पादरू 25. पाटोदी 26. पारलू av. बाड़मेर नगर ~ ~ Y 5 V 25 .
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________________ اللہ اللہ سے الله ل ه الله الله له 28 बालोतरा 26 बुढ़िवाड़ा 30. भाड़खा 31. मजल 32. मडली 33. मिठोड़ा 34. मेवानगर 35. मोकलसर 36. रमणीया 37. राखी 38. राणीग्राम 36. रामसर 40. विठजा 41. विशाला 42. शिव 43. सपा 44. समदड़ी जंक्शन 45. सिणधरी 46. सियाणी 47. सिवाना 48. हरसाणी 46. श्रीनाकोड़ा तीर्थ-मेवानगर 50. परिशिष्ट (1) लेखानुसार गच्छ नामावली 51. परिशिष्ट (2) संवतानुसार लेखों की सूच 4. ~ " x 1 xxxxxxxxx m mro xxur 99 U Ww Mmm WM
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________________ ग्राम अजीत यह ग्राम बाड़मेर-जोधपुर रेलमार्ग पर पाया हुआ है। यहां पर एक श्वेत पाषाण का शिखरबन्द मन्दिर है। श्री मूलनायकजी श्री ऋषभदेवजी की प्रतिमा श्याम पाषाण की है। मन्दिर के अन्दर एक छत्री बनी हुई है जिसमें श्री शांतिनाथजी, श्री अजीतनाथजी तथा श्री अनन्तनाथजी विराजमान हैं। 1. श्री मूलनायकजी श्री ऋषभदेवजी प्रतिमा लेख: __वि. सं. 2013 माघ सुदि 14 बुधे श्री ऋषभदेव जिनबिंब ग्राम दूदाड़ावाड़ाया (अजीत) श्रीसंघेन श्रीसंघेस्य श्रेयोर्थ कारापितं प्रतिष्ठितं च तपागच्छाधिपति भट्टारक प्राचार्यदेव श्रीरंगविमलसूरीश्वरेण कारापिता कालान्द्री नगरे / 2. छत्री लेख: वि. 1961 द्वि वैसाख सुदि 5 सकल श्रीसंघेन श्री शान्तिनाथबिंब स्थापितं प्रतिष्ठित तपागच्छाधिपतिराज श्रीविजयसिद्धिसूरि निर्देशेन मुनिकल्याणविजयेन : तीनों प्रतिमाओं पर नाम के सिवाय एक ही लेख है / 3. धातु मूर्ति छोटी: सं. 1664 व. पोस व. 7 बुधे सा. हेमाकेन पार्श्वबि. का. प्रतिष्ठितं श्रीविजयदेवसूरिभिः / 4. पञ्च घातु प्रतिमा लेखः संवत् 1576 वर्षे मिगसर सुदि 6 दिने रविवासरे उकेसवंशे बोहिथरागोत्रे सा. मेला भार्या मेलादे पुत्र सा. रणधीर भार्या सोमलदे................... / ग्राम आसोतरा ... यह ग्राम बालोतरा से विठूजा बस मार्ग पर पाया हुआ है। बालोतरा सिवाना बस मार्ग पर श्री खेतारामजी की प्याऊ पर उतर कर
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख पैदल 3 किलोमीटर पर भी पड़ता है / यहां एक जैन मन्दिर है जिसका जीर्णोद्धार का काम चल रहा है / श्रीमूलनायकजी श्रीमुनिसुव्रतस्वामीजी हैं। 1. श्रीमूलनायकजी प्रतिमा लेखः सं. 1955 का. कृ. 5 गुरो दिनानन्द समस्त संधेन बिंब कारितं प्रतिष्ठित श्रीराजेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठा कारिता ।।मु।। जशरूप ............ / 2. दाहिनी प्रतिमा लेखः सं. 1921 शाके 1786 प्र. माघ मासे शुक्ल पक्षे 7 तिथौ गुरुवासरे वृहत्खरतर मरूदेशे आसोतरा ग्राम............श्री नेमिनाथ.........। '3. वाम प्रतिमा लेखः सं. 1955 का. कृ. 5 खुदालावास्तव्य सा. पूनमा सा. ताराचन्द ....... बिंब कारितम प्रतिष्ठित श्रीराजेन्द्रसूरिभिः / / (8) 4. पंच धातु प्रतिमा छोटी:- संवत् 1522 वर्षे वैशाख वदि 1 गुरो श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे. पदमा भार्या कालासन हापा बहुया गोवरा निमित श्रीपादिनाबिंब करापित प्रतिष्ठित श्रीवृहत्गच्छे भटारि. श्रीहेमप्रभसूरिभिः / / 5. पंच धातु प्रतिमा मंझली:' संवत् 1567 वैसाख सुद 10 उकेसवंशे नाहटागोत्रे सा. हापा भार्या साहणदे सुत सा. माझण-परिवारसरीकेण निजपुण्यार्थ श्री. शीतलनाथबिंब कारित: प्रतिष्ठित खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः प्रजा माना चिरंनदन्नः / . '6. पंच धातु प्रतिमा बड़ी नवीन: श्रीगढसिवानायां वि. सं. 2040 माघ कृष्ण प्रतिपदा तिथौ श्रीपार्श्वनाथजिनबिंब श्रीहरकचन्दजी श्रेयार्थ सुपुत्र पुखराज, धीगड़मल, हस्तीमल मोहनलाल बालड़ तपागच्छीय प्रा. भ. श्रीमद्विजयसोमचन्द्रसूरिश्वराणां शुभनिश्रायां कारितम् ॥शुभ।।
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख ग्राम कनाना यह ग्राम बालोतरा समदड़ी बस मार्ग पर पाया हुआ है / यह वीर राठौड़ दुर्गादासजी का ग्राम है। यहां पर एक श्रोनेमिनाथ भगवान् का शिखरबन्द मन्दिर पाया हुअा है। (11) 1. पूर्व प्रतिष्ठा लेख मन्दिर के दरवाजे के बाहर दीवार में चुने हुए पत्थर पर: महाराजाधिराज महाराज श्रीगजसिंहजी संवत 1661 माह सुदि 5 दिन चैत्य प्रतिष्ठा माह सूदि 6 दिन श्रीपार्श्वनाथप्रतिमा स्थापित तिष्ठा श्रीहंसगणी कारापितं, तपागच्छ / सूत्रधार मेघा क्रतेन / / . (12) 2. जीर्णोद्धार लेख-- विश्व पूज्य प्रातः स्मरणीय श्री श्री 1008 श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर श्रीमज्जैनाचार्य विजय धनचन्द्रसूरीश्वरे सद्गुरुभ्यो नमः वि. संवत् 2009 में माघ सुदि 12 सोमवार को प्रातः शुभ मुहूर्त में इक्कीसवें श्रीनमिनाथ भगवान व यक्ष यक्षरिण एवं भैरूजी प्रादि की प्रतिष्ठा श्री कनाना सकल श्री संघ ने अति समारोह के साथ श्री तपागच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद्विजय धनचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के पट्टालकार साहित्याचार्य न्याम्भोनिधि श्रीमद्विजय तीर्थेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के कर कमलों से प्रतिष्ठा कार्य हुप्रा / / इत्यलम / / शिल्पकार सोमपुरा गोमराज जसाजी मु. विरामी. लि शिष्य मुनि लब्धिविजय तारीख 26-1-1953 :-ईति शुभमः (13) / 3. पंच धातु प्रतिमा लेख : ___ संवत् 1518 वैशाख सुद 3 प्राग्वाट साना भा. सायादे पु. वासुराकेन भार्या वदल्हादे देवराज सेहाग कुटुंबयुता भा. सूरिमदे श्रेयार्थ श्रीकुन्थमार्थबिंब का. प्र. वृहततपागच्छाधिराजश्रीरत्नशेखरसूरि शिष्य श्रीलक्ष्मीप्रागरसूरिभिः श्रीरस्तु / / . . .
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 14) 4. / / संवत् 1523 माघ सुद 6 शा.म. झाझेण भार्या लूणी पुत्र लोलाकेन भार्या पूनी पुत्र नाथ कुट म्बयुतेन निजश्रयार्थ श्रीश्र यांसबिंब का. प्र. तपा. श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः 5. संवत् 1524 वर्षे मार्ग क. 5 ऊः ज्ञातीय सा. धीरा भा. फतु पुत्र ताल्हा भा. सकतू पुत्र लषमरण टाल्हादिकुट बेन श्रीशान्तिनाथबिंब का. प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः सिरोहीनगरे ।।श्रीरस्तु / . 6. संवत् 1524 वर्षे ज्ये. सुद 6 ऊ. सा. जोरा भा. दारादे पुत्र हेमा भा. पदमणी लाहू पुत्र वरसींग भा. श्रंगारदेकुट बयुताभ्यां का. श्रीआदिनाथ बिंब प्र. तपागच्छाधिराज श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ग्राम कर्मावास यह ग्राम समदड़ी से दो किलोमीटर नदी के किनारे बसा हा है। समदड़ी से अजीत तक यहां होकर बस जाती है। मन्दिर के जीर्णोद्धार का कार्य चाल है। श्रीमूल नायकजो श्रीपार्श्वनाथजी हैं तथा दो प्रतिमाएं श्रीशान्तिनाथजी व श्रीचन्दाप्रभुजी की हैं। लेख सीमेंट के कारण अस्पष्ट है। (17) 1. पंच धातु प्रतिमा पंचतीर्थी:--- / संवत् 1535 व. मा. सु. 5 गु वीसा श्रे. जेठा सा. अमुक्त सतम भोजाकेन भा. वडयादे स्व सा. साजन सुत नाथादिय श्रीचन्द्रप्रभबि. का. प्र. तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / __ (18) 2. पंच धातु प्रतिमा बड़ी-- __ सं. 1520 वर्षे जेठ सु. 10 प्राग्वाट सा.सह्लदेव सा. हर्ष सुत सुदाला नाति कुट बयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्री विमलबिंबका. प्र. तपा. श्रीरत्नशेखरसूरिपाट श्रीसदभासागरसुरिश शृगपुरभिः ग्राम कल्याणपुरा यह ग्राम बालोतरा जोधपुर बस मार्ग पर आया हुआ है। यहां पर श्रीमलनायकजी शांतिनाथजी का शिखरबन्द मन्दिर है /
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 5 (16) 1. श्रीमूलनायकजी शांतिनाथजी प्रतिमा लेखः / सं. 1862 वर्षे माघ शुक्ल पंचम्यां श्रीकल्याणपुर श्रीसंघेन श्रीशांतिनाबिंब प्रतिष्ठापितं श्रीवृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहरिसूरिभिः / / (20) 2. प्रतिष्ठा लेख: ।श्रीजिनाय नमः संवत् 1966 वैसाख मासे शुक्ल दसमी तिथौ रविवासरे श्रीकल्याणपुरनगरे सकलश्रीजैनश्वेताम्बरसंघेन श्रीशांतिनाथ जिनभवनस्थ जीर्णोद्धार कारितं प्रतिष्ठापितं च देवदेवीपरिवार एवं दादा श्रीजिनकुशलसूरिपादुकासहिते जिनबिंबानि वृहत् खरतरगच्छाधिपति श्रीजिनजयसागरसूरिनेतृत्वे पं. यतिवर्य नेमिचन्द्रेण क्रिया बिभानंच कारितं ॥श्री रस्तु।। यावज्जंबूदीवे यावन्नसत्रे मदितो मेरू: यावच्चद्रादित्यो नावद्भवनं विसरी भवतु / कल्याणमस्तु / ग्राम किराडू यह ग्राम बाड़मेर से पश्चिम में आया हुआ है / प्राज के लिखित इतिहास के अनुसार यह ग्राम इस जिले का सबसे प्राचीन मरु प्रदेश की राजधानी था / यहाँ पांच खण्डहर मन्दिर हैं जो कला के इस जिले के ही नहीं, परन्तु राजस्थान के गौरव हैं / एक भो जैन मन्दिर नहीं है। परन्तु सोमेश्वर मन्दिर के वि सं. 1206 के लेख का जैन धर्म से सम्बन्ध है। यह ग्राम बाड़मेर मुनाबाव रेलगाड़ी के खडीन स्टेशन से तीन किलोमीटर दूर है तथा बाड़मेर सीयारणी बस मार्ग पर है। वि.सं. 1206 का लेख. अब खराब हो चुका है और कुछ पुस्तकों में छपा है जो प्राप्त नहीं हो सका परन्तु आशय प्राप्त हुपा है वह इस प्रकार हैअहिंसा की आज्ञा (अमारी प्राज्ञा): महाराजा अल्हणदेव जो अपने प्रभु (श्रीकुमारपाल) की कृपा से आज शिवरात्रि के दिन किरातकूप, लाटहरड़ा और शिव का शासक है यह प्रमारी आज्ञा प्रचारित करता है कि हर मास के दोनों पक्षों की प्राठम, एकादशी व चतुर्दशी को कोई महाजन, तंबोली, ब्राह्मण इत्यादि जीव
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________________ वाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख हिंसा नहीं करें और जो इस आज्ञा का उल्लंघन करके जीव हिंसा करेगा तो साधारण नागरिक को मृत्युदड तथा राजकुल के सदस्यों को आर्थिक दंड भुगतना पड़ेगा। ग्राम कुण्डल यह ग्राम रमणीया पादरू बस मार्ग पर है। यहां पहले जैन-धर्मावलम्बी के काफी घर थे / परन्तु आजकल सिवाना वगैरा अन्य जगह बस गये हैं तथा अपने साथ प्रतिमायें ले जाकर वहीं पर मन्दिर बनवाये या अन्य मन्दिरों में प्रतिमायें प्रतिष्ठित करादी गई है। यहां पर एक जैन मंन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में विद्यमान है। यहां कोई लेख प्राप्त नहीं हुआ। ग्राम कोटडा यह ग्राम बाड़मेर जिले की तहसील शिव से दस किलोमीटर पश्चिम में है / शिव से कोटड़ा पक्की रोड़ है, परन्तु शिव हरसाणी बस मार्ग यहाँ से 5 कि. मी. दूर है। शिव से पैदल या ऊँट पर जाना पड़ता है। किसी समय बड़ा नगर था। बाड़मेर जिले में तीन नगर ऐसे हैं जहां परकोटे वकिले बने हुए हैं उनमें से एक कोटडा भी है। अभी भी परकोटे का एक दरवाजा व कुछ अवशेष विद्यमान हैं। कोटड़ा किसी जमाने में प्रोसवालों की 24 गाँवों की पंचायत का मुख्यालय था। बाड़मेर में रहने वाले पड़ाइयां (सिंघवी) गोत्र वाले कोटड़ा से बाड़मेर आये हुए है। यहाँ पर श्रीशीतलनाथजी का मन्दिर है तथा 18 पंच धातु प्रतिमाएं हैं जो कोटड़ा के ही खण्डहर हुये मन्दिरों से लायी हुई हैं। श्रीशीतल नाथजी की सर्व धातु की मूर्ति करीब आधा मीटर ऊँची मानवाकर है। इस पर कोई लेख नहीं है। यह मूत्ति ठोस न होकर अन्दर से खोखली है। (21) 1. पादुकाजी छोटे लेख : // 60 // शक्तिहर्षगणि कृतम/संवत् 1557 . (22) 2. पादुकाजी छोटे लेख : संवत् 1677 पासु सुदि 4 तिथौ पं. अभयवद्धनमुनिशिष्य नां पादुके कोटड़ा श्रीसंघ कारितं / प्र. वृधखरतरचच्छ श्रीजिनराजसूरिभिः
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (23) 3. पादुका जी बड़ी लेख :- . .. // संवत् 1581 वर्षे भादवा सुदि 4 दिनै श्रीगुणलाभगणी नां पादुके कारित प्रतिष्ठते श्रीकोटड़ादुर्ग मध्ये कल्याणमसूरिः (24) 4. पादुकाजी बड़ी लेख : संवत् 1602 वर्षे प्राषाढ़ मास शुक्ल पक्षे नवम्यां तिथौ रविवार श्रीकोटड़ासंधेन फारित श्रीमजिन कुशलसूरीश्वर पादुका / स्वस्तिश्रीजयो नित्यम / / (25) 5. चौबीसी-सब तीर्थंकरों व उनकी माताओं के नामपट्ट क्रमांक सहित: 1 लेख-- .संवत् 1600 वर्षे चेत्र मास सुदि 6 6. पंच धातु प्रतिमा (1) श्री शान्तिनाथ जी: / / सं. 1537 वर्षे वे. सुदी 6 दिने उकेशवशे आईच्चरणगोत्र साधुशाखायां पवछा भा. वालहदे पुत्र गेला नरा गेलाभ्यां भा. गेलमदे पू. सोना रत्नपाल नरा भा. नारिंगदे पू. सहजा भा. सूहागदे पू. गजादिस. श्रीशान्तिनाथबिंब का. प्र. श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरि पट्ट श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः (27) 7. पंच धातू प्रतिमा (2) श्रीशीतलनाथजो : ॥संवत् 1530 वर्षे पोष वदि 2 बुधे श्रीब्राह्मणगछे श्रीश्रीमालज्ञातियः श्रेष्ठी षोजा भा. हांसी सु. धनाकेन भा. मिरणीयूतेन सु. धर्मासहितेन मात्र-पित्र-श्रेयार्थः श्रीशीतलनाथबिंब का. प्र. श्रीबुद्धिसागरसूरिभिः किरिडूवास्तव्य / / (28) 8. पंच धातु प्रतिमा 3 श्रीवासुपूज्यजी: सं. 1512 वर्षे वैसाख सुदि 10 गुरु उ. ज्ञा. सा. महिराज़ भा. रादे सु. नयिणमलय सीरामा म्यारामा भा. राजू मात्र श्रेयसे श्रीवास्तु. अविनका. प्र. श्रीवृधब्राह्मरणीया वटके श्रीउदयप्रभसूरिभिः श्रीः / /
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (26) 6. पंच धातु प्रतिमा (4) श्रीचन्द्रप्रभ स्वामीजी: // संवत 1555 वर्षे ज्येष्ठ सु. 3 सोमे / श्रीउएसवंशे / लालणशाखायां सो. वेला भा. वीलागदे पुत्र सा. वरजांग सुश्रावकेण भार्या श्री चांपलदे पुत्र रामा-भम रा-कुशला-देदा लघुभ्रात्र जैसासहितेन स्वंश्रेयार्थ श्रीअंचलगछे श्रीसिद्धान्तसागरसूरीणामुपदेशेन श्रीचन्द्रप्रभस्वामीबिंब कारितं प्र.श्रीसंघेन // .. . (30) 10. पंच धातु प्रतिमा (5) श्रीशीतलनाथजी: // 1653 वर्षे अलाई 42 माघ सुदि 15 सोमे उकेशवंशे चौपड़ागोत्रे सं. पूनसी पुत्र संप श्रीराज पुत्र संगुणयां उदयसिंह पुत्र अभयराज वछराज गोपालदास प्रमुखतया श्रीशीतलनाथबिंब कारित प्रतिष्ठित श्रीखरतरगछे श्रीजिनमाणिक्यसूरि-पट्टालंकार युगप्रधानश्रीश्रीश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ (31) . 11. पंच धातु प्रतिमा (6) श्री अभिनन्दन: __ संवतू 1556 वर्षे माह सुदि 10 दिने शनी ऊकेशवंशे गणधरगोत्रे सा. देवा पुत्र सा. हर्ष श्रावकेण भार्या हीरादे पुत्र उदादियुतेन श्री. अभिनन्दणबिंब कारितं प्र. खरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्ट-श्रीजिनहंस सूरिभिः / / (32) 12. पंच धातु प्रतिमा (7) श्री शान्तिनाथजी : संवत् 1541 वर्षे माह वदि 4 गुरौ श्री प्राग्वाटज्ञातीयमहं काला भार्या झमकू सुत हरदास भार्या हीरादे सामल भार्या अमरी पूत्रादियूतेन कुटुंबवृधेन श्रीशान्तिनाबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनदेवसूरिभिः श्री कड़ो ग्रामे / (33) 13. पंच धातु प्रतिमा (8) श्री पद्मप्रभजी :- संवत् 1450 व. माह वदि-सोमे ऊके म. देवसी पुत्र हरपाल भा. सुहागदे पु. ऊका भा. कर्मादे पु. देवा-ईस-जस-धवलाभ्यां श्रीपद्मप्रभबिंब
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख . प. श्रीसंघे श्रीसुमतिसूरिभिः / / (34) 14. पंच धातु प्रतिमा (8) श्रीशांतिनाथजी: संवत 1452 वर्षे जेष्ठे श्रीशांतिनाथबिंब / सा. कूष्टा कारितं / प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे / / श्रीजिनराजसूरिभिः / / (35) 15. पंच धातु प्रतिमा (10) श्रीचन्द्रप्रभस्वामीजी:. सं. 1513 वर्षे जेष्ठ वदि 11 श्रीसावड़ारगच्छे उ. ग्रामे वागोरे स. वरा भा. वामलदे पुत्र वाढा-लुभा-हांसा-करणसहितेन मात्र-पित्र श्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभस्वामी-बिंब करा. प्र. श्रीवारसूरिभिः / / 16. पंच धातु प्रतिमा (11) श्रीचन्द्रप्रभस्वामीजी: संवत् 1575 वर्षे मा. वदि 8 सोम श्रीजागा भार्या जामूणदे म. शांगा भा. सील्हू हर्षादे श्रीचन्द्रप्रभ-बिंब कारापितं श्रीचित्रगच्छे श्रीजयाणंदसूरिभिः प्रतिष्ठितं / / श्री। 17. पंचधातु प्रतिमा (12) श्रीमहावीरजी: __स. 1483 फागुण वदि 11 गुरौ उप. ज्ञातीय सा. देल्हा भा. धमिरिण पुत्र मोल्हासहितेन श्रीमहावीर-बिंब कारि प्र. मजहड़ियागच्छे श्रीमुनिप्रभसूरिभिः / (38) 18. पंच धातु प्रतिमा (13) श्रीपार्श्वनाथजी: सं. 1461 वर्षे माघ सु. 15 सूरज सा. गोत्रे साबू भा. साबू सा. चावड़ा भार्या चहिणदे पु. पाल्हा-सोल्हा पित्र-मात्र-भ्रात्र श्रे. श्रीपार्श्वनाथबिंब का. प्र. श्रीधर्मघोषगछे श्रीमलयचन्दसूरिभिः (36) 16. पंच धातु प्रतिमा (14) श्रीमुनिसुव्रतजी: सं. 1507 वर्षे जेष्ठ सुदि 2 दिने ऊकेशवंशे चौपड़ागोत्रे सा. मोण पुत्र सा. देशलेनयुतेन श्रीमुनिसुव्रत-बिंब का. प्रति खरतरगचे जिनगद्रसूरिभिः //
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________________ 10 ] . बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (40) 20. चौबीस ग्रामों की पठाल पर प्रतिष्ठा लेख: // 60 / / श्रीलक्ष्मीराणी विलास वक्षतमान श्रीकोटड़ा खेरपुर पृथ्वीराज नराधिप............. . वंदित खरतर साधु चुडामणि श्रीमजिनचन्द्रसूरि सुगुरु पिढ़िपादश स्तुतिः / / 1 / / संवसारं मुनि प्रहग्म रासंदुमान / विशाख मासि सितम नवमी प्रधराना सिध वरणो धर्मशालो पठाल // 2 // युग्मं / / संवत 1614 वर्षे वैशाख सुदि 6 तिथौ बुधवार श्रीकोटड़ा नगरे / / राणा श्रीपृथ्वीराज विजयराज्ये। श्रीवृहद्खरतरगच्छे श्रीजिन भद्रसूरि-संताने श्रीजिन चन्द्र सूरि, श्रीजिनसमुद्रसूरि श्रीजिनहंससूरि श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्ट पूर्वाचलसह सूकरावतार श्रीजिनचन्द्रसूरि सूरीश्वर प्रवरधर्म कषानुयोग श्रवण प्रवरण श्रवणान वसति करावण जात श्रीजैन। श्रीसुविदितणा हंसघन निर्मापिता पौषधशाला श्रीमद्देव गुरुप्रसादिना चन्द्रार्क चिरंजयतात् / श्रीरस्तु कल्याणमस्तु / / श्री: श्री: श्रीः ग्राम कोरना यह ग्राम बालोतरा प्रागोलाई बस मार्ग पर है / यहां पर एक जैन उपासरा है। यहाँ पर तातेड़ों का एक मन्दिर बनाया हुअा है / वह मन्दिर अधूरा है / जागीरदारों से लड़ाई-झगड़ा होने पर गाधैया डाल कर तातेड़ यहाँ से चले गये थे। मन्दिर की बनावट सुन्दर है। 1. उपासरा निर्माण का लेख: ॥श्री पारसनाथजी सहाय छ / उपासरों पंचो महाराजा श्रीभीमसिंहजी री वार में करायो जागीरी ईदा श्रीजोतिघजी री में / / / / भीमों दुगड़ गोत्र सा. वाता भ्राता खेता फता। लिखत जगन्नाथजी गौड़ / सं. 1854 रा वैसाख सुद 3 करायो। (42) 2. पंच धातु प्रतिमा लेख-भाषा गुजराती:
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख V स्वस्ति श्रीमेहसाणानगरे सं. 2028 वै. सु. 6 गुरुवारे मुनिराज श्रीधरणेन्द्रसागरजी ना उपदेशथी जोधपुर नि. ज्ञानदेवी हुक्मराज करणमलजी मोहनोत श्रीपार्श्वनाथ पचतीर्थी भराव्या छ / तपा प्रा. श्रीकैलाशसागरसूरिने प्रतिष्ठा करी छै / / (43) 3. सती लेख: . संवत्. 1833 वर्षे प्रासोज सुद 13 दिन मा सती रतनां जात चौपड़ा बेटी हरनाथजी जात चोरडीया जयां रे लारे मा सती हुई तोरणां उपरां बैठे बैठे प्रतिमा चढ़ाई तलाई कांठे प्रतिष्ठापितं / '- - : ग्राम खेड़ यह ग्राम बालोतरा स्टेशन से 8 किलोमीटर पर बाड़मेर-जोधपुर लाइन पर रेलवे स्टेशन है। किसी समय बड़ा नगर था तथा मारवाड़ के राठौड़ों की प्रथम राजधानी थी। आज कोई जैन बस्ती या मन्दिर नहीं है परन्तु पुराने मंदिर के अवशेष जसोल से प्राप्त हुए हैं जो यथास्थान उत्कीर्ण हैं / इससे मालूम पड़ता है कि यहाँ पर दो जैन-मन्दिर थे। एक श्री. आदिनाथजी का तथा दूसरा श्रीमहावीर स्वामी का / इसी श्रीऋषभदेव मन्दिर के स्तम्भ का लेख श्रीरणछोड़ रायजी के मन्दिर के परकोटे में लगा हुआ है। .../ (44) 1. श्रीररणछोड़रायजी मन्दिर के परकोटे में लगा लेखः-- ॥श्री खेटयी भावदेवाचार्य गछे श्रीरिषभदेव-चैत्ये....... वीरचन्द देसल पुत्र पालूण बाल पुत्र पूनमचन्द्र नांगदेव नारायणमाणिक पुत्र जिनचन्द्र नेमिचन्द्र पुत्र धनदेव ...... वैद्य जसपाल सिंघल श्रेयार्थ / श्रीरिषभदेव चैत्यै तोरण कारापिता प्रतिष्ठितं श्रीविजयसिंहसूरिभिः // संवत् 1237 आसाढ़ वदि 7.. ग्राम खंडप यह ग्राम मोकलसर पाली बस मार्ग पर पाया हुआ है। यहाँ पर दो जैन मन्दिर हैं। एक में मूलनायक श्रीपार्श्वनाथजी की प्रतिमा विराजलान है तथा दूसरे में मूलनायक श्रीसुब्रतस्वामी विराजमान हैं।
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख श्रीपार्श्वनाथ मन्दिर (45) 1. श्री मूलनायक श्री पार्श्वनाथ जी प्रतिमा लेखसंवत् १८६...वर्षे सावरण....--.गुरु....... - (46) 2. पंच धातु प्रतिमा-- // संवत् 1528 वष.......उपके शज्ञातीय छाजेड़गोत्र सा. पाता भा. सूहवदे पुत्र नरसिंघ-त्रिणांसहितेन श्रीमूनिसवतबिंब कारितं प्रति. ष्ठितं पल्लीवालगछे श्रीयशोदेवसूरिपट्टे श्रीश्री श्रीनवरत्नसूरिभिः मात्म पुण्यार्थ / श्रीसुव्रतस्वामी मन्दिर (47) 3. श्री मूलनायकजी प्रतिमा लेख-- संवत् 2025 मार्ग शुक्ल 6 चन्द्रे प्रतिष्ठापिता खण्डप श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं विजयहिमाचलसूरिभिः श्रीमूलनायक स्थापना शा. दलिचंद चम्पालाल फरसराम बिनायकिया। (48) . 4. पंच धातु प्रतिमा लेख:-- सं. 1501 माघे मुडसलवासि प्राग्वाट श्रे. मणीरसी भार्या पूनादे पुत्र हर्षनाम्ना श्रीअभिनन्दनबिंब कारितं प्र. तपा श्रीसोमसुन्दरसूरि-शिष्य-श्रीमुनिसुन्दरसूरिभिः / (46) 5. पंच धातु प्रतिमा लेख:-- ___ संवत् 1337 वैसाख सुद 7 शा. बारूपाल भार्या वाल्हणदेवी पुत्र वाड़ा भार्या .......पु. बुड़ाकेन पित्रोः श्रेयो श्रीशान्तिनाथबिंब का. प्र. श्रीविजयप्रभ / / (50) 6. जैन जुझार लेख-- संमत 1947 मू / हीरजी मती असाढ़ सुद 13
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख ग्राम गुड़ा-मालानी यह ग्राम प्राजकल तहसील का मुख्यालय है / यहाँ बाड़मेर तथा बालोतरा से सिणधरी होकर बसें पाती-जाती हैं। गांव लूनी नदी के किनारे बसा हुआ है। श्रीपार्श्वनाथ मन्दिर व दादावाड़ी (51) 1. दादावाड़ो प्रतिष्ठा लेख-- सं. 2042 फा. शु 3 गुड़ामालानीग्रामे श्रीजिनकुशलसूरिप्रतिमाप्राण-प्रतिष्ठापितं प्रा. जिनकांतिसागरसूरि-शिष्य-मुनिमणिप्रभसागरेणखरतरगच्छ श्रीसंघेन कारापितं / (52) 2. श्रीमूलनायकजी श्रीपार्श्वनाथजी प्रतिमा लेख-- संवत 1546 . - श्रीमालसंधे। 3. पादुका लेख-- संवत 1835 मिति फाल्गुन वदि 5 शुक्र गुढ़ा ... धर्मगणि पं. महिमाधर्ममुनि, पं. राजधर्म मुनि पं. ज्ञानसारादिसहितेः ॥श्री।। ___ (54) 4. पादुका लेख-- __ श्री जिनकुसलसूरिणां पादुका ___(55) 5. पादुका-- श्री जिनदत्तसूरिणां पादुका (56) 6. पादुका-- . सं. 1835 मिति फाल्गुन वदि 5 शुक्रे गुढ़ा ........... मानसारादि।
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख तपागच्छ मन्दिर की प्रतिष्ठा होनी है-- (57). 7. पादुका लेख-- ' श्रोपावस्य पादुके 1/(58) 8. पच धातु प्रतिमा लेख-- - सं. 1527 मा. व. 7 मउड़ीवासी प्राग्वाट सा. महिपा भा. हर्ष पु. खेताकेन भा. खेतलदे प्रमुख कुटम्बयुतेन श्रीश्रीश्रीप्रादि बिंब का. प्र. तपागच्छेश श्रीरत्न शेख रसूरि-पट्टालकार श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / , एक खण्डहर मन्दिर लूनी नदी के किनारे बना हुआ है। यह मन्दिर पूर्ण रूप से इटों से बना है / गर्भगृह व आगे चबूतरा ईंटों का बना हुआ है। - ग्राम चौहटन यह इसी नाम की तहसील का मुख्यालय है। बाड़मेर से बस से जुड़ा हुआ है तथा बाड़मेर से दक्षिण-पश्चिम पाया हुआ है / जैन समाज के दो मन्दिर व एक दादावाड़ी है / एक टोले की खुदाई में कुछ मूत्तियें प्राप्त हुई हैं जो सातवीं-आठवीं शताब्दी की हो सकती है। श्री शान्तिनाथजी के शिखरबन्द नवीन मन्दिर व दादावाड़ी की प्रतिष्ठा अभी शेष है। प्राचीन घर मन्दिर श्री पार्श्वनाथजी का है। श्रीमूलनायकजी की श्याम पाषाण प्रतिमा है, लेख कोई नहीं है / / (59) .. ... 1. पंच धातु प्रतिमा लेख-- सं. 1458 वर्षे फागुण वदि 1 शुक्र उपकेशज्ञातीय चांगा सा. रत्नसी भार्या पाकी पुत्र रूपाकेन श्रीशान्तिनाथ-बिंब कारितं प्र. श्रीपल्लिगच्छे श्रीशान्तिसूरिभिः / खुदाई में प्राप्त मूत्तियों का विवरण इस प्रकार है१. श्री महावीर स्वामी जी की श्वेत पाषाण प्रतिमा पद्मासन / करीब एक मीटर। 2. जिन प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा प्र के पास स्त्री-मूर्ति। श्वेत पाषाण / करीब आधा मीटर /
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 15 3. जिन प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा। श्वेत पाषाण / करीब प्राधा मीटर। .: 4. कीर्तिमुख / पद्मासन जिन-प्रतिमा / दोनों किनारों पर युगल स्त्री-पुरुष / श्वेत पाषाण / 1. 5. कीर्तिमुख / पद्मासन जिन-प्रतिमा दोनों किनारों पर युगल स्त्रीपुरुष / श्याम पाषाण। 6. श्वेत पाषाण अम्बिका / आधा मीटर 7. श्रीपार्श्वनाथ जिन-प्रतिमा। पद्मासन / मय परिकर / करीब प्राधा मीटर / 8. देव-प्रतिमा श्वेत पाषाण 6. देवी-प्रतिमा चारभुजा / मकरासन / प्राधा मीटर / 10. श्याम पाषाण जिन-प्रतिमा / कायोत्सर्ग मुद्रा / ग्राम जसोल ..... यह ग्राम जोधपुर बाड़मेर के बालोतरा रे. स्टेशन से तीन किलोमीटर दूर है / बालोतरा व जसोल के बीच लूनी नदी बहती है / बालोतरा से . नाकौड़ाजी जाने वाले बस मार्ग पर स्थित है। 1. जसोल वृहत्खरतरगच्छीय जैन उपाश्रय यंतिजी. चुन्नीलालजी लालचन्दजो। (60) 1. पोषधशाला-निर्माण लेख:... श्रीगौड़ीपार्श्वनाथजी सहाय // श्रीगौतमस्वामीजी लब्धी ॥:श्रीमहालक्ष्मीजी रिद्धि वृद्धि कुरु / / श्री भैरू बावन वीर गोरा काला चोसल जोगिनी सुप्रसन्न भवन्तु ।।श्री।।२४।।श्री।। .. श्रीजिनायनमः / ॐ ह्रीम श्रीम् नमः / / संवत 1848 वर्षे पासोज सु. 6 नवमी थी उपासरे रो कारखानो शुरु कोनो श्रीवृहतखरतरगच्छे जंगम युगप्रधान विद्यमान भट्ठार्क जी. श्री 108 श्रीश्रीजिनचन्द्रसूरिजी विजयराज्ये श्रीश्रीजिन भद्रसूरि साखायाम उपाध्याय श्री 108 श्रीकनकचन्द्रजीगणी तत्शिष्यवाचकश्रीश्रामहिमाकल्याणजी तशिष्यउपाध्यायजी श्री 108 श्रीताराचन्दजीगरिण तत्शिष्य उपाध्यायश्री
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख श्रीगोड़ीदासजीगणी भ्राता वाचकश्रीश्रीरामसिंघजीगरणी ततशिष्य विद्यमान पंडितप्रवरश्रीदेवीचन्द जो पडितप्रवर श्रीवषताजी पंडित श्रीमारणकचन्दजी पडित महासिंघजी ततशिष्यपडित रूपचन्द पंडित प्रानन्दचन्द पडित सम्भूगम पडित घनरूप चिरू गुलाबचन्द सपरिवार-शिष्य. सहितेन श्रीमहेवादेशे श्रीपाय तखत श्रीजसोल नगरे राठहुड़ रावलजी श्रीभारमलजी तत्पुत्ररावलजीश्रीजेतमालजी ततपुत्र रावलजीश्री. कल्याणमलजी तत्पुत्ररावलजीश्रीप्रतापसिंघजी भ्रात श्रीराज श्रीबाघसिंघजी राजश्री शीवदानसिंघजी राज श्रोसवाईसिंघजी विद्यमान रावलजी श्रीवषतसिंघजी राज श्रीपृथ्वीराजजी राज श्री शेरसिंघजी राज श्रीमालदेजी कुंवरजो श्रीशरतसिंघजो विजयराज्ये महेवचा समस्त सिरदारोंस हितेन श्रीवहतभद्रार्क खरतरगच्छे श्रीसंघ समस्त अग्रदेन नवीन पौषधशाला करापितं श्रीसंघ मोक्ष मुत्ता श्रीढेलरियागोत्रे मुत्ता श्रीगांधीगोत्रे मुत्ता भंसालीगोत्रे श्रीकूकूम चौपड़ागोत्रे गणधर डोसी चौपड़ागोत्रे श्री कांकरियागोत्रे श्रीसंखवालेचागोत्रे गोलेछागोत्रे पारखगोत्रे बजहड़गोत्रे लुरिणयागोत्रे नाहटागोत्रे बाफरणागोत्रे चतुरगोत्रे फोगटगोत्रे समस्त श्रीसंघ आग्रहेन प्रदेवच पंडित वषता पंडित महासिंघ चिरू रूपचन्द प्रानन्द शंभु धनरूपचन्द गुलाबचन्द परिवारसहितेन पौषधशाला करापितं / श्रीरस्तु कल्याणमस्तु श्रीसंघ जयवंता भवंतु / / सलावता इसाक पुत्र करीम मेहमद / अभयराम पौषधशाला प्रादनेन कृत // श्री / / श्री! (61) 2. स्तम्भ लेख: ॥संवत् 1825 वरषे भाद्रवा वदि 6 दिने उपाध्यायजी श्रीताराचंद जी गरिण कक्ष पादिका / / पंडत राजेन करावतं॥ 3. श्वेत पाषाण परिकर पर लेख / यह परिकर खेड़ के भग्न मन्दिर से लाया हुआ प्रतीत होता है / सं. 1243 पोष वदि 1 श्रीभावदेवाचार्यगच्छे श्रीखेटिय ऋषभदेव चैत्ये श्र. धांधल सुतविमलचन्द्रेण भ्रातृ-दासल-थिरदेव-मूलदेव प्रासाणंद पाल्हा सुतमणोहर-सोमदेव-भगिन्यारूपिणी पद्मिन्यादि समस्त कुट म्बसहितेनप्रात्मश्रेयार्थे श्रीशान्तिनाथबिंब कारितं / /
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 17 सही .. जसोल खरतरगच्छ उपासरे का परवाना // श्रीरामजी // ।राज श्री वाघजी कुवर श्री प्रथीराजजी लिखावतु गाम जसोल में गुरां श्रीताराचन्दजी रा चेला देवीचन्दजी वखतोजी जयराजजी महासंघजो रहे छै सु दरबार सुरजाबन्दो होयने राखोया छै सो इण बाबत ने इणारे उपासरे बाबत कोई श्रीपूज सरदार महाजन साकर सुकर रजपूत कोई इणों सू केवत करण पावे नहीं दे पाद अनाद रा म्हारा गुरु छै सो इणा ने कोई कहसो तो जसोल रे धरणीयों ने वैराजी करसी. ने इणो रे कोई काम काज परसी तो राज श्रीवाघजी कुवर प्रशीराजजी इणो रो बेटो पोतरो होसी तको इणा रे चेला पोतरों रो गोर बरदाश राखसी ने इणा सु घर वद रो जाब राखसी प्रो लिखत माऊजो श्रीभटियाणीजी श्रीवाघजी हजूर रजाबन्दी किनो छ सं. 1826 रा काती सुद. 8 लिखतु मुता हुक्मा रा छ / साख 1 सोलंकी पाद री छै हुक्म सू। / .... .... / .. तपागच्छ जैन मन्दिर (64) 5. शिलालेख रंग-रोगन के कारण अस्पष्ट:--. -... संवत् 1882 वर्षे भादवा वदि 2 दिने रवीवार उ. प्रा. निखत्रे राउल श्रीवोरमदेवजी विजयराज्ये असाउल नगरे महेवे सेठ अभाजी तेज माल नार (नो)तनजी सुखराजजी लक्ष्मीचन्दजी देवराजजी .. ... श्रीकुथनाथ श्रीशांतिनाथ........समस्त साहूकारान शुभ दिने भवन:करापिता श्री श्री श्री (65) 6. पंच धातु प्रतिमा लेख:-- - संवत 1476 वैसाख वदि 2 श्रीऊकेशवंशे छाजड़गोत्रे सा. खेता पु. प्रासधर पु. करमा भा. करमादे पु. भारमलेन भा. भरमादे पु. सहसा 'सुश्रीग्रादिनाथबिंब कारितं आत्मश्रेयसे प्रति. श्रीपल्लीवालगच्छे श्रीयशोदेवसूरि / 17. पंच घातु प्रतिमा लेखः-- // सवत् 1517 वर्षे माघ वदि 5 दिने श्रीउपकेशगच्छे श्रीकुकुदामार्यसंताने श्रीउपके शज्ञातौ विंचर गोत्रे सा. दादू पु. सा. श्रीवस पु. सा.
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________________ . बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख सुललित भा. ललतादे पु. साहरण केन. भा. संसारादेयुतेन पित्ररौ श्रेय. से श्रीअजितनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीश्रीककसूरिभिः / . . /(67) 8. पंच घातु प्रतिमा लेख:.... सं.-१५१६ साव सु, 1 सोम प्रा. प. सावंत भा. नासलदे पुत्र सुदाकेन भा. वाहमाल्ही पु. मेरा-तोलादियुतेन स्व श्रेय से श्रीकुथुनाबिंब कारितं प्र. तपा. श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / . .. ... तपागच्छ उपासरा , अक्षरों में गलत तरीके से रंग भरने से लेख खराब हो गया है। 6. .......... श्री 108 विजयदेव ..........सकल पंडित सिरोमणी श्री 108 श्रीइन्द्रसागरजी........ श्रीश्रीमाणिकसागरजी तशिष्य संजय. सागरजी मिथुनसागरजी. शिष्य सुखसागरजीसहितेन कारापिता ........ रावलजी श्रीसूरजसिंघजी . . श्रीशांतिनाथजी मन्दिर श्रीसंघ खरतरगच्छ 10. 24 तीर्थंकरों की माताएं-श्वेत संगमरमर नामपट्ट संवत् 1356 1111 (70) : 11. श्रीमूलनायकजी शांतिनाथजी लेख: संवत् १२३२..........माल्हणदेव गुणचन्द कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीविजयसिंहसूरिभिः / 12. पादुका लेख:... संवत 17 रा फागुण सुदि.२ वाचनाचार्य श्रीहीराणंदजी वाचनाचार्य श्रीजीवराजजी उपाध्याय श्रीकनकचन्द्रजी वाचनाचार्य श्रीमेघराजजी भट्टार्क श्रोलाभसूरि राज्ये जसोल श्रीसंघे करापितं पंडित ताराचन्द्र उपदेशात। (72) 13. खेड़ के भग्नावशेष श्रीमहावीरं मन्दिर का पाषाण पट्ट जो जसोल में ... प्राप्त: 1. संवत 1246 वर्षे कात्तिक वदि 2 श्रीभाव ... 1. संवत 1246 वर्षे कात्तिक
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 2. देवाचार्यगच्छे श्रीखेट्टिय श्रीमहावीरं मूल चैत्ये 3 श्रे. सहदेवसुतेन सोनिगेन प्रात्मयोंर्थ 4. संभवजुगं प्रदतं / / जना बाहड़मेर. बाड़मेर से दक्षिण पश्चिम में जूना बाहड़मेर प्राया हुप्रा है / 1600 ई. से पहले बाड़मेर के लोग वहीं रहते थे। यह बाड़मेर से लगभग 22 कि. मीटर पर पाया हुया है। बाड़मेर जिले में तीन नगर हैं जहाँ परकोटा व किला बना हया है। इसमें जना बाहड़मेर एक है / बाड़मेर से मुनाबाव जाने वाली गाड़ी से जसाई स्टेशन उतर कर जूना बाहड़मेर जाना पड़ता है। जसाई स्टेशन से लगभग 5 कि. मीटर का रास्ता है। नगर पहाड़ों के बीच में पाया हया है। यहाँ श्री प्रादीश्वर भगवान् का उत्तुंग तोरण मन्दिर आजकल खण्डहररूप में विद्यमान है / गर्भगृह व सभामण्डप की कारीगरी देखने लायक है। सभा मण्डप के स्तम्भ पर वि. सं. 1352 का लेख है वह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। ... लेख इस प्रकार है- ... 1. श्रीं / / संवत 1352 वैशाख सुदि 4 श्री बाहड़मेरौ महाराज 2. कुल श्रीसामन्तसिंहदेव कल्याण विजयराज्ये तत्रियुक्त 3. श्री 2 करणे वीरासेल वेलाउल भा. मिगल प्रभृतयो 4. धर्माक्षराणी प्रयच्छन्ति यथा श्रीआदिनाथ मध्ये सन्ति 5. ष्ठमान श्रीविघ्नमर्दन क्षेत्रपाल श्री चउण्ड देवाराजयो 6. उभयमार्गीय समायात सार्थ उष्ट्र 10 वष 20 उभयादपि उर्द्ध 7. सार्थ प्रति द्वयोर्देवयोः पाइलापक्षे भीमप्रिय दविंशोंपक 8. अर्दोद्धन ग्रहीतव्या / असो लागो महाजनेन मानितः यथोक्तं ... 6. बहुभिर्व सुधायुभुक्ता राजभिः सगरादिभिः यस्य यस्य यदा भू 10. मी तस्य तस्य तदा फेलं ॥छ।। .." यह लेख इसलिये महत्वपूर्ण है कि इस लेख में जालोर के चौहान राजा सामन्तसिंहदेव का नाम पाया हुआ है। इन्हीं के पुत्र कान्हड़देव 'पर वि.स. 1367 में अलाउद्दीन खिलजी ने हमला किया था। कान्हड़दे प्रबन्ध के अनुसार उस समय सिवाना, बाहड़मेर व सांचौर पर भी हमला किया गया था / उसी समय यह मन्दिर तोड़ा गया होगा।
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________________ 20 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख __ इस लेख से मालूम होता है कि कर लगाने में दस ऊंट माल व बीस बैलों पर माल बराबर माना जाता था। कर महाजनों की राय से वसूल किया जाता था / ग्राम जेठन्तरी यह ग्राम बालोतरा समदड़ी बस मार्ग पर पाया हना है / यह ग्राम बाड़मेर जोधपुर रेल मार्ग का भी रेल्वे हाल्ट है। यहाँ पर एक घर मन्दिर है। .... (74) 1. श्रीशीतलनाथजी प्रतिमा.. संवत् 1681 (75) .. 2. पंच धातु प्रतिमा:1: संवत 1536 वर्षे वैशाख सुदि 5 रवि प्राग्वाटज्ञातीय सा. जगमाल भार्या अमरी सुतसोमा भार्या सोभागिरिण आत्मश्रेयार्थ श्रीआदिनाथ बिंब कारितं श्रीवृघतपागच्छे श्रीजिनमारिणक्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं / . (76) 3. ताम्रपट्ट चारों ओर लेख (तीर्थ पट्टा) पक्ति (1) // 60 // स्वस्ति श्री संवत 1981 वर्षे श्री स्तंभ तीर्थ नगर वास्तव्य श्री प्रोसवाल ज्ञातीय सा. देवा भार्या देवलेद पुत्र सा. राजा भा. रमादे // पंक्ति (2) पुत्ररत्न सा. हेमा-खीमा-लाखा भा. गोई पुत्ररत्न जयंतपालाकेन भ्रातृ पुत्र सा. जगमाल जिणपाल-महिपाल-उदयकिरण // पंक्ति (३)श्री विद्याधर-रत्नसी-जगसी-पदभसी पुत्री लाली भ. भरघाई प्रमुख समस्त कुटुब युतेन स्व श्रेय से / / श्रीतपागच्छ नामक श्रीश्रीश्री / / पंक्ति (4) हेमविमलसूरिणामुपट्टरान श्रीतीर्थ पितलमयार कारापिताः प. लब्धिश्रुतगणि वारके सा. लाखाकेन कारापिताः / / .. तिलवाड़ा . यह ग्राम बाड़मेर जोधपुर रेल मार्ग पर आया हुआ है / यह लूनी नदी के किनारे बसा हना है / यहाँ पर चैत्र मास में भारत प्रसिद्ध श्रीमल्लिनाथजी का पशु मेला भरता है / यहाँ पर आज कोई जैन बस्ती
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 21 नहीं है परन्तु पूर्वकाल में रही होगी, ऐसा यहां के खण्डहर जैन मन्दिर से मालूम पड़ता है / यहाँ एक ईटों का बना हुप्रा शिखरबन्द मन्दिर है जो जमीन में धंस रहा है / उसके दरवाजे में जाने के लिये भी हाथों के बल रेंगना पड़ता है। ...... . .... थोब .. यह ग्राम बालोतरा प्रागोलाई बस मार्ग पर पाया हुआ है / यहाँ पर एक उपासरा है जिसमें एक पंच धातु प्रतिमा है / (77) 1. पंच धातु प्रतिमा लेखः सं. 1568 वर्षे माह सुदि 4 गुरौ उएके कुन्तीयान्तरगोत्रे / सा. साजण भा. सारवई पु. श्रोरग भा. सकतादे पुत्रपदमानण वोरडातेन भ्राता पुण्यार्थ श्री ऋषभबिंब कारितं प्रतिष्ठित श्रीधर्मघोषगछे जति शृतसागरसूरिभिः ततऽट्ट श्रीश्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / श्रुते / / . . यहाँ पर तालाब पर जैन देवलियां भी प्राप्त हुई है जिनके लेख इस प्रकार हैं . (78) 1. // श्रीरामजी। संवत 1901 पोह वद 13 वार सोम दन मु. वागाजी बालसंदाणी जात लुणोया लारे सती हुई संपादे महेवसा कलांगण सिघजी री वार में / लीखत रामा दुरगा। -- (76) 2. // श्रीरामजी।। संवत 1604 रा सरामण सुद 1 रे दन सा. वाला रागणी जात रा वागरेचा तणां लारे सती हुई 1904 रा प्रासोज सुद 12 रे दन हई मास 2 दन 11 पची हुई। मेवसा ढा. श्रीकलाणसीगजी उदेसीगोत / . धोरीमना यह ग्राम ग्राम बाड़मेर से दक्षिण में पाया हुआ है। यह गांव पंचायत समिति का मुख्यालय है तथा गुड़ा मालानी तहसील के अन्तर्गत है। बाड़मेर से यहाँ तक बस सेवा है तथा बाड़मेर सांचोर, बाड़मेर महमदाबाद बस के रास्ते पर है। यहां पर एक जैन मन्दिर है जो घर मन्दिर है / मूलनायकजी श्रीशान्तिनाथजी है / यहां निम्न लेख प्राप्त हैं /
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________________ 22 / बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख / 1. श्रीमूलनायकजो श्रीशान्तिनाथजी प्रतिमा पर अस्पष्ट लेख. सवत 1652. श्री विजयराजसूरि ....... 2. दादाजी जिनकुशलसूरिजी प्रतिमा लेख // सं. 2001 वेसाख कृष्ण 6 श्रीधोरीमना-संधेन श्रीजिनकुशल.. सूरि मूर्ति-प्रतिष्ठितं / . 3. पंच धातु प्रतिमा लेख-. सं. 1481 वर्षे माघ सुद 10 सोमे उसवालज्ञातीय संघवी झड़सिल प्रार्या सुहवदे तयो पुत्रा दुसल वजो नरोया श्रेयार्थ श्रोविमलनाथबिंब का. श्रीप्रचलगछे श्रीजयकीतिसूरि उपदेशेन प्र. श्रीसूरिभिः 4. पंच धातु प्रतिमा नवीन भाषा गुजराती राँका सेठिया जोधराज प्रतापमलजीयेनि धर्म-पत्नि मीरा बेन, धोरीमना तरफ श्रीदेरासर में सं. 2035 श्री अंजनश्लाका विधि पू. प्रा. वि. कनकप्रभसूरिजी तथा पू. प्रा. वि. भुवनशेख रसूरिजी प्रा. रत्नशेखरे. सूरिजी प्रा. रत्नशेखरसूरिजी निश्रामा झाव नगर मां वि. सं. 2035 माध शुवल 14 ता. 10-2-76 ना शुभ लग्ने कराई छ / . नगर यह ग्राम प्राचीन है। इसका प्राचीन नाम राडधरा नगर था / एक खण्डहर मन्दिर श्रीमहावीरस्वामीजी पर वि. सं. 1280 का लेख है। इतना पुराना और इतना अलंकृत जैन मन्दिर दूसरा कोई नहीं मिला। मन्दिर में गर्भगृह सभामण्डप इत्यादि भव्य व कलात्मक है / मन्दिर प्राधा जमीन में फंस चुका है। पास में नया मन्दिर बनाया गया है / मूलनायकजी श्रीग्रजीतनाथजी हैं। यह ग्राम बालोतरा गुड़ा बस मार्ग पर है। बाड़मेर से भी सिरणदरी होकर जाया जाता है। . (84) .. . * 1. जीर्ण शीर्ण श्रीमहावीरजी मन्दिर पर लेख:-- -- // सवत् 1280 अश्विनि वदि 14 रवि देव श्री.... ......श्रे. जसहरि....... आत्म श्रेयार्थ....... (85) 2. // 60 / / संवत 1516 वर्षे पोस वदि 11 दिने गुरुवारे श्रीराठउड़
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलाले व [ 23 राजो श्रीसोनम पुत्र श्रीश्रीवयरसल्ल नरेश्वरेय बांधव सांमल सा. हांसा पुत्र हरीय सुख सपरिवारेय तेजबाई भरतार भाटि महिप पुण्यार्थे गोविन्दराजेन श्रीश्रीमहावीरचेत्ये वा. मोदराजसूरि . उपदेसे ........सुभ भवतु iiनारदेन लखत।। (86) 3. मूलनायकजी श्रीप्रजोतनाथजी मन्दिर लेखः पादुका पर लेखः - . सं. 1652 वर्षे श्रीखरतरगच्छ प्राचार्य श्रीनुवरत्नसूरिणां पादुका करापित श्रीसूत्रधार पवहण / (87) 4. पादुका लेख: ॥श्रीपार्श्वनाथ नमः सं. 1656 बर्षे श्रीप्रचलगच्छेश श्रीविवेकमेरूगरिण चैत्र सुदि 7 दिने स्वर्गगताः श्रीरायघड़ापुर मध्येएषः पादुका प्रतिष्ठितं श्रीसंध। (88). 5. पादुका लेखः श्रीजिनकुशलसुरिणां पादुका कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीश्रीजिनसिंहसूरिभिः कल्याणमस्तु .... (86) 6. पादुका लेखः ॥संवत् १६७१........उपाध्याय श्रीदेवशेखरैः ॥श्रीसंघ श्रीवाचक श्रीरत्नशेखराणां पादुकाः कारापिता प्रतिष्ठितः च कल्याण लिखतु / / . . (60) . 7. श्रीमूलनायकजी श्रीग्रजीतनाथजी पर लेखः / सवत् 1758 वर्षे वैसाख सुद 6. . (61) 8. छोटी प्रतिमा लेखः संवत 1568 वर्से वैसाख सुद 3 शुक्रस्य .. .. (62) 6. छोटी प्रतिमा पर लेखः श्रीसुपार्श्वनाथबिंब का. प्रतिष्ठितं श्रीजिवचन्द्रसूरिभिः
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (63) 10 पंच धातु प्रतिमा लेखः - संवत् 1438 वर्षे ज्येष्ठ वदि 4 शनैः श्रीप्राग्वाटज्ञातीय को. पदमा भार्या श्रियादे पुत्रकानाकेन अंबिका कारापिता। 11. पंच धातु प्रतिमा:. सं. 1562 वर्षे चेत्र वदि 5 शुक्रे उपकेश सा. नरपाल भा. नामलदे पु. देल्हा भा. भरमादे पु. तेजा-रुपा आत्मश्रेयार्थ श्री........नाबिंब का. उपकेशगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीसिद्धिसूरिभिः (95) 12. पंच धातु प्रतिमा:-. . 1. सं. 1306 वर्षे फागुण वदि.४ सा. जिनचन्द्र सुत लक्ष्मण सुत कुमराकेन सुत निजपाल श्रेयार्थ श्रोपावनाबिंब कारित प्रतिष्ठितं श्रीजयदेवसूरि शिष्य श्रीअमरचन्द सूरिभिः (66) 13. पंच धातु प्रतिमाः ____ संवत 1203 फागुण सुदि 6 ब्राह्मणगच्छे मातृ-भृत्य-सिरिश्रेयसे सा. मंजुसेन कारिता / (67) 14. पंच धातु प्रतिमाः // संवत 1524 वर्षे ज्येष्ठ सुदी 6 उपकेश वंशे तेलहरागोत्रे म. मदन पुत्र म. बाहड़ पूत्र म. राजा. म. देवदतयो म. राजाकेन पुत्रसूरासहितेन श्रीसुविधिनाथ बिंब कारित प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः सुभ भयात् / / टापरा यह ग्राम बालोतरा से सिणधरी जाने वाली बस के रास्ते पर पाया हुआ है। यहाँ पर घर मन्दिर है। श्रीमूलनायकजी श्रीपार्श्वनाथजी की श्याम पाषांण प्रतिमा करीब चौथाई मीटर ऊची है। दूसरी प्रतिमा श्वेत पाषाण की श्रीअम्बामाता की है जो करीब 2/3 मीटर है। दोनों प्रतिमानों पर कोई लेख नहीं है : .
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________________ जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 25 डंडाली यहां पर सिणधरी से प्राईवेट बस जाती है। ग्राम लूनी नदी के. किनारे बसा हुआ है। (68) 1. स्थापना लेख____ॐ परम पूज्य मेवाड़ केसरी प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयहिमाचल सूरीश्वरजी महाराज के शिष्य रत्न मुनि श्रीलक्ष्मीविजयजो मुनि श्रीमानकविजयजी के उपदेश से डडाली श्रीसंघ द्वारा निर्मित लक्ष्मी भवन (66) 2. पंच धातु प्रतिमा छोटी संवत 1534 वर्षे फागुण सुदि 3 उसवाल जगतसिंह देवराज भार्या भारु पुत्र राजेन्द्र वच्छराज भा. राजलदे पुत्र विजा किरता सहितेन स्व धेयार्थ श्रीसुवधिनाथबिंब कारापितं प्र. श्रीवृहदगच्छ श्रीदेवचन्द्रसूरि पट्टे श्रीदेव उजरसूरिभिः / / (100) 3. पंच धातु प्रतिमा बड़ी सं. 2028 ज्ये. शु 4 भृगुवासरे इयं संभवनाथ जिनेन्द्र चतुर्विशतिका हिमाचल स्ते वाली लक्ष्मीविजयो पदेशात डंडाली वास्तव्य मरलीया गोत्र थानमलस्य पुत्र भूरचन्द चंपालाल रिखबवन्द पुत्र पुत्रेः का प्रतिष्ठा पिताच सिलंदर श्रीसंधेन प्र. वि. हिमाचलसूरिभिः श्री रस्तु लि: लक्ष्मी विजयः पचपदरा ... यह ग्राम बालोतरा जोधपुर बस मार्ग पर पाया हुआ है / बालोतरा से पचपदरा साल्ट रेलगाड़ी भी जाती है। यह गांव इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी है। मूलनायक श्रीशान्तिनाथजी भगवान का शिखर बन्द मन्दिर 101) पंच घातु प्रतिमा लेख-मूलनायकजी शांतिनाथजी जालोर नि. मनरुपचन्द शेठ किशोरबन्द मीठालाल कारित अंजनशलाका स्वस्ति
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________________ 26 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख श्रोपालोनगरे वीर सं 2511 पोष वदो 6 दिन श्रीनवलखा पार्श्वनाथ जैन मंदिर द्रव्येन हः शेठ नवलचन्द सुप्रतचन्द जैन पेढी पाली कारितं प्रा. कैलाससागरसूरीश्वरैः प्रतिष्ठितं / / (102) 2. श्रीपार्श्वनाथजी संगमरमर प्रतिमाश्रीम. श्रीजिनराजसुरि गुणचन्द्रः शान्ति / / (103) 3. श्रीसुमतिनाथजी संगमरमर प्रतिमा // संवत 1677 वर्षे श्रावण 2 दिने मेड़तानगर सा. रत्न भार्या रखणादे पुत्र सा ......भार्या लालनदे नाम्न श्रीसुमतिनाबिंब कारित प्रतिष्ठितं जुग. प. भट्टारक श्रीम. श्रीजिनराजसूरीश्वरसहित / / दादावाड़ी जैन श्वेताम्बर - (104) 4. श्रीपादुकाजी लेख: ॥सवत 1941 वर्षे शाके 1806 प्रवर्तमाने जेष्ठमासे शुक्लपक्षेः पंचम तियौ 5 गुरुवासरे दादाजो श्रोजिनदत्तसूरिः जिनकुशलसूरिश्वर चरण प्रतिष्ठित ... ...मुता धरमज श्रीसंघ उपदेशतः श्रीरस्तु। कल्याणमस्तु / / श्रीपायचन्दगच्छ जिनालय (105) 5. पंच धातु प्रतिमा : // 1532 वर्षे वैसाख सुदि 3 श्रीजिनम सुराणगोत्रे सा. जयता पुत्रहेमा भ्रात-हाँसलाहस्त श्राअजितनाथ बि. प्र. श्रीधम्मघोषगच्छे श्रीपद्माणादसूरिभिः / श्रीरस्तु / / (106) 6. पच धातु प्रतिमा: // स 1525 वर्षे मागसिर सुदि 10 शुक्रवारे पवित्र श्रीबाफरणा गोत्रे सा. जयतासताने सा. सोनपाल पनि सोनलदे पुत्रो सा. सीधरेण भ्रातृसमुदाययुतेनमू श्रेयसे श्रीकुथनाथबिंब का. प्र. श्रीवहदगछीय श्रीमरुप्रभमूरिपट्टे श्रीराजरत्नेसूरिभिः / / श्रीरस्तु /
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 27 - उपासरा (107) 7. यक्षदेवलेखः प. पू. मेवाड़ केसरी नाकोड़ा-तीर्थोद्धारक प्राचार्यदेव श्रीमद्हिमाचलसूरीश्वराणां श्री त्रिमुख यक्षदेव शा. अमोचन्दजी गुलाबचन्दजी पुत्र पौत्रस्य श्रोहजारोमलजी सालेचा पचपदरा वालों ने करा प्रतिष्ठितस्य स्थवीर मालानी देशोद्धारक श्रीलक्ष्मीविजय वि.सं. 2037 वै. शु. 10 गुरौ (108) 8. श्रीमणिभद्र लेख: वि. सं. 2033 फा. कृ. 7 गुरी अयं तपागच्छरक्षक मणिभद्र यक्षराट पचपदरासंघेन का. प्र. केलवाड़ा प्रतिष्ठित विजय हिमाचलसूरिभिः लि. पं. श्रीविद्यानन्दविजयगणिनां श्रीरस्तु / (106) ___. वि. सं. 2033 फा. कृ. 7 गुरो इदं श्रीसंभवनाथबिंब पचपदरा संघेन का. प्र. केलवाड़ा श्रीसंघेन प्र. तपागच्छेश श्रीमद्धिजयहीरसूरीश्वर संतानीय हितांतेवासि विजयहिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु / (110) 10. प. पू मेवाड़ केसरो नाकोड़ा-तीर्थोद्धारक प्राचार्यदेव श्रीमद्विजय हिमाचलसूरीश्वराणां समुदायस्य शिष्या पुण्यश्री तत्शिष्या उद्योतश्री प्रेरण्यां पचपदरा श्रीसंघन अस्य क्रियाभवनसहित चतुर्मुखजिनमंदिरस्य नवनिर्माण का. प्र. स्थवीर लक्ष्मीविजयबलभद्र विजयांभ्यां वि. स. 2037 वै. सु. 10 श्रीरस्तु / / (111) 11. सं. 2024 वै. शु. 6 चन्द्रे श्रीऋषभजिनबिंब सादड़ीवास्तव्य पुकराजस्य धर्मपत्नि धापूदेव्या का. प्रतिष्ठापितं घाणेराव श्रीसंघेन प्र. विजयहिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु / 12. सं. 2024 वै. सु. 6 चन्द्रे श्रीग्रादिजिनबिंब पूनमीयागोत्रे किस्तुरचन्दरस्य पुत्रधन गज तत्पुत्र मांगीलाल-अचलदास-रंगराजै का. प्रतिष्ठिापित च घाणेराव श्रीसंघेन प्रतिष्ठित हितान्तवासी विजय हिमापालसूरिभिः श्रीरस्तु॥
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________________ 28 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (113) 13. वि सं. 2033 फा. कृ. 7 गुरौ इयं चक्रेश्वरीदेव्यामूर्ति पचपदरासंघेन कारिता प्र. श्रीकेलवाड़ा श्रीसंघेन प्रतिष्ठित विजयहिमाचलसूरिभिः लि. पं. विद्यानन्दविजयगणिना श्रीरस्तु॥ (114) 14. प. पू. मेवाड़ केसरी नाकोड़ा-तीर्थोद्धारक प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयहिमाचलसूरीश्वराणां श्रीदुहितादेव्या शा. भंवरलालजो पारसमलजी नरपतराजजी पुत्र पौत्रस्य गुलाब बन्दजा ढेलरिया पचपदरा तपागच्छ प्र. स्थवीर मालानी देशोधारकलक्ष्मी विजय वि. सं. 2037 वै. सु. 10 गुरु . सती देवलियां (115) लेख: 15. सं.।। 1952 वरणयक प्रमद लालारणौ जानरा लकड़ : भादरवा (116) 16. संवत 1847 फागुण वद 6 वार सनीसर ताराचन्दजी किरपाणी ..... लुकड़ वाणीया / (117) 17. // संवत 1883 रा वर्षे सेत सुन 5 वार सूरज दन सा. करता गोषाणो जात लुकड़ सरगगत प्राप्त हुये तणरी प्रस्तरी मुता दोलारी पुत्री उमादे सती हुई वैसाख सुद 7 रे दन / प्रो पुतली साढ़ी सोमपुरा। श्रीरामजी सत छ। (118) 18 / / संवत 1877 रा वर्षे मतो वैसाख सुद 15 रे दन सती हुई पड़पोतरा लारे नरसीघ री दादी जात तातेड़ बेटो सारंगजी री जात सालेसा नाम सैनी जेठ सुद 8 सढ़ी। 16. कबूतरों के चोतरे के पास स्तम्भ लेख: ॥श्रीजलंधरनाथजी '. ॥श्रीराजराजेश्वर महाराजाधिराज महाराजा श्री श्री श्री 108 श्रोतखतसिंघजी महाराजकुवार श्री 105 श्री....... इब वचनाय नांदड़ी
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख . छै पचपदरै रा महाजना समस्त ने श्रीदरबार सू महरवान होयने नड़ विराड माफ कीयौ है श्री पाल-पोलाद ...........जमीन में लेख / पादरू ग्राम पादरू-बालोतरा से बस जाती है। मोकलसर रमणीया से भी बस पाती है / यहां पर एक जैन-मन्दिर है जिसका जीर्णोद्धार का काम चालू है / श्री संभवनाथजी मूलनायक का मन्दिर शिखरबन्द है। (120) 1. प्रतिष्ठा लेख ॐ अर्हते नमः - वि सं. 2020 ज्येष्ठ शुक्ला 5 चन्द्रवासरे पुनर्वशु नक्षत्रे मिथुनलग्ने श्रीपादरुन गरे श्रीसकलसंधेन श्रीसौधर्मवृहत तपोगच्छीय श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश तत्पट्ट विभूषित श्रीमद्विजयधनचन्द्रसूरि श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरि श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरि शिष्य श्रीसंघ प्रमुखगणाधीश मुनिप्रवर विद्या विजय-करकमलोभ्यः प्रकर्ष महोत्सवसह प्रतिष्ठा करापिताः। 2. श्रीमूलनायकजी संभवनाथजी लेख - // यतेतर 6 सहस्रनिते संवत्सरे माघमासे सितेपक्षे मुणोत सा. हिन्दुजो सुत सोगमलेन श्रीसंभवनाथस्वामिनप्रतिबिंब सिद्ध कारिता च तद अंजनशलाका गदैया माणकजी सुत परागचन्द्रेण एवं कृता श्रीमद्यतीन्द्रसूरिभिः माहोरनगरे / (122) 3. श्रीशीतलनाथजी लेख - सं. 2002 माघ सुद 6 गुरुवासरे मुणोत हिन्दुजी सुत सोगमलेन श्रोशीतलनाथ जिनबिंब निर्मापितं तद अंजनशलाका गदैया माणकजी सुत परागचन्द्रेण कारापितं / . (123) 4. श्रीश्रेयांसनाथजी लेख विक्रम सं. 2002 माघ सुदि 6 गुरुवासरे नेनावत भगजी सुत मांगीलालेन श्रीश्रेयांसनाथ-जिनालय कारितं गदैया मारणकजी सुत
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख - परागचन्द्रेणांजनशलाका कारितं तांच श्रीम. विजययतीन्द्रसूरीश्वर कर. कमल: प्राहोरनगरे राजेन्द्रसूरि संवत 36 (124) 5. चरणपादुका लेख सं. 2000 वैसाख धवल 6 श्री सिवाणा उम्मेदपुरा श्रीसंघेन युगप्रधान दादा श्रीजिनदत्तसूरि श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां चरणयुगलं कारितं च प्रतिष्ठितः खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनजयसागरसूरि नेतृत्वे पं. यतिनेमिचन्द्रेणः (125) 6. चरण-पादुका लेख- . श्रीसौधर्म वृहततपोगछिया क्रियोद्धारक समर्थ प्रभावक श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वराणां चरणपादुका श्रीपादरूसंघेन करापिता तत्प्रतिष्ठा वि सं. 2020 ज्ये शु. 5 चन्द्रवासरे श्री यतीन्द्रसूरीश्वर-शिष्य विद्याविजयेनकृतं / (126) 7. प्राचीन श्रीपार्श्वनाथ प्रतिमा लेख || स. 1861 साके 1726 मिगसर सुद 5 (127) 8. जैन सती लेख-नव निर्मित कमरे में पुनः स्थापित मोनाजी तातेड़ की पत्नी अणदादेवी 1835 संवत माहा सुद 5 को सती हुई है। मुया बसरामजो रा बेटा रूपचन्द हरकचन्द दलीचन्द चपालाल घंवरचन्द मुकनचन्द तातेड़ परिवार ने नवोन स्थापना कराया संवत 2035 वेसाख सुद 7 पाटौदी यह ग्राम बालोतरा शेरगढ़ बस मार्ग पर आया हुआ है / यहां एक उपासरा तथा श्रीगौड़ी पार्श्वनाथजी का घर मन्दिर पाया हुआ है। दोनों खण्डहर अवस्था में है / उपासरा में दो पंच धातु की प्रतिमाएं हैं / एक पर लेख बिल्कुल घिसा हुआ है तथा दूसरी श्रीविमलनाथजी की प्रतिमा है।
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 7 (128) 1. चौबीसी श्रीविमलनाथजी प्रतिमा लेखः, संवत 1524 वैसाख सुदि 3 महेवावासी उकेश शा. चांपा भा. नानादे मु. सा. बाहड़ेन भा. कर्मा पुत्र देवराज भा. पार्वतः लखमादे पौत्र आसा प्रांबालो आदि कुटुंबयुनेन श्रीविमनाथबिंब चतुर्विशतीपट्टः का. प्र. तपाश्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः श्रीगौड़ीपार्श्वनाथ मन्दिर (126) 2. चरण-पादुका लेखः / / संवत् 1835 ग आषाढ़ सुदि 15 दिने श्रीजिनकुशलसूरिणापादुका पाटौधो नगरे समस्तखरतरसंवेन कारिता वहतखरतरगछे म. श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं / / चतुर्मासकृते / (130) 3. चरण-पादुका लेख: संवत् 1835 रा अषाढ़ सुदि 15 दिने गुरुवारे श्रीपारसनाथजी रा पादुका पाटौदी नगरे समस्त श्रोसंवेंन कारिता वृहतखरतरगछे भ. श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः उपदेशात् प्रतिष्ठित // चतुरमासकृत / पारलू यह ग्राम बाड़मेर जोधपुर रेल मार्ग का स्टेशन है तथा बालोतरा समदड़ी बस मार्ग पर भी पाया हुआ है / यहाँ पर श्रीमूलनायकजी श्रीशीतलनाथजी का शिखरबन्द मन्दिर है / (131) 1. प्रतिष्ठा लेखः-- जयन्तु वोतराग : श्री सौधर्म वृहततपोगच्छाधिपति, पूज्यपाद भट्टारक गुरुदेव प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी मां. के पट्टधर न्याय-चक्रवर्ती श्रीधनचन्द्रसूरीश्वरजी म. के पट्ट साहित्य-विशारद श्रीभूपेन्द्रसूरीश्वरजो म. के पट्ट तीर्थोद्धारक श्रीयतीन्द्रसूरिश्वरजी म. के पट्ट गणाधीश श्रीविद्याचन्द्रसूरीश्वर म. ने बी. नी. सं० 2501 वि. सं. 2031 श्रीराजेन्द्रसूरि
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________________ 32 ] बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख सं. 66 माघ सुदि 10 शुक्र श्रीशीतलनाथजिन की प्रतिष्ठा की शुभम श्रीपारलूनगरे। (132) 2. श्रीमूलनायकजी श्रीशीतलनाथजी:-- स. 2027 माघ सु. 10 शुक्र पारल जैनसंघेन श्रीशीतलनाथबिंब का. मुथा सूरजमल भलेचन्द सरेमल नेमिचन्द माणकचन्द्रेण का. प्रतिष्ठायां प्र. पं. श्रीकल्याण विजय श्रीसौभाग्यविजयादिगणिना प्रतिष्ठा मित्र-परिवारेण श्रीबालवाड़ा स्थाने / 3. श्रीसंभवनाथजो की प्रतिमाएं श्रीमूलनायकजी के दोनों ओर:-- सं. 2027 माघ सु. 10 शुक्र पारल-जनसंघेन श्रीसंभवनाथबिंब का. मुथा भलेचन्द सिरेमल पुत्र पौत्र का. प्रतिष्ठायां प्र पू. श्रीकल्याण. विजय श्रीसौभाग्यविजययादि गणिनां-मित्र-परिवार श्रीबालवाड़ा स्थाने / (134) 4. श्रीदादाजी जिनकुशलसूरिजी :-- . वि. सं. 2031 माघ शुक्लपक्षे 10 तिथौ शुक्र दादा जिनकुशलसूरीश्वरस्यबिम्ब निर्मापिता श्रीपारलू-श्रीसंघेन प्रा. प्रतिष्ठाकृता च श्रीमद्विजयविद्याचन्द्रसूरीश्वर श्रीसौधर्भ वृहततपोगच्छे / (135) 5. प्राचीन मूत्ति श्रीशीतलनाथजी :-- .. संवत 1661 वर्षे वै.. सु. 5 शु. पारलू-संघेन सीतलनाथबिंब का. प्र. मुनिकल्याणविजयेनः गोलनगरे / 6. पंच धातु प्रतिमा लेख:-- सं. 1528 बर्षे जेठ सु. 5 दिने पोसीनावासी प्राग्वाटज्ञातीय भाशर भार्या भावलदेसुतव्य पेघाकेन भा सोनी भागिनेय-कलादिकुटुबयुतेन निजश्रेयोर्थ श्रीसुविधिनाबिंब का. प्रति. तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः श्रीरस्तु / / बाड़मेर नगर बाड़मेर नगर इसी नाम के जिले का मुख्यालय है / इस नगर की प्राबादी करीब 70 हजार है। यहाँ जन मतावलब्धियों के करीब 2 हजार
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 33 - र हैं। यह नगर बस मार्ग से जैसलमेर, जोधपुर, जालोर, पाबूरोड़, जयपुर व अहमदाबाद से जुड़ा हुआ है / यहाँ से प्रतिदिन तीन गाड़िये दो मोघ्रपुर व एक प्रागरा को जाती है। यह नगर वि. स. 1615 के बाद में राव भीमोजी ने बसाया था। इसके पहले जूना बाहड़मेर प्राबाद था जो वहां से करीब 15 मील पर है / यहाँ पर जन धार्मिक स्थान निम्न हैं वहाँ प्रतिदिन सेवा पूजा तथा धार्मिक उत्सव मनाये जाते हैं / . 1. श्रीचिन्तामणि पाश्वनाथ जिनालय, जूनी चौकी . 2. श्रीमहावीर जिनालय, जूनी चौकी 3. श्रीपादेश्वर मन्दिर, खागल मौहल्ला 4. श्रीदादावाड़ी मन्दिर, खागल मौहल्ला 5. श्रीशान्तिनाथ मन्दिर, खागल मौहल्ला 6. श्रीपार्श्वनाथ मन्दिर (बोथरा मन्दिर), खागल मोहल्ला 7. श्रीगौड़ीपार्श्वनाथ मन्दिर, सोननाडी ८.श्रीचन्दाप्रभुजी मन्दिर, गांधी चौक 6. श्री कल्याणपुरा मन्दिर 10. श्री कल्याणपुरा दादावाड़ी 11. ढाणी बाजार, जैन मन्दिर 12. पंचतीर्थी, लोलरिया धोरा 13. सच्चीया माता मन्दिर, ढाणी बाजार श्रीचित्तामरिण पार्श्वनाथ जिनालय (137) 1. स्थापना लेख: ___ मादरेचा बोहरा नेमाजी जीवराजजी दीपचदोत ने श्री मन्दिरजी बनवाकर श्रीसंघ के भेंट किया। प्रतिष्ठा सं. 1665 में / (138) 2. पंच धातु छोटी प्रतिमा लेखः संवत 1713 वर्षे वैसाख सुदि 7 शुक्रे सिरोही वा. श्री वृ. सं.
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख मोहन सं. करमचन्द स. हरचन्द सं. सामल सं. कुप्ररजी सं. प्रासकरणं समस्त कुटुम्बयुतेन श्रोनमिनाथबिंब का. प्र. श्रीविजयराजसूरिभिः / (139) 3. पंच धातु बड़ी प्रतिमा लेखः / संवत 1466 वर्षे वैशाख सु 13 शुक्रे / श्रीश्रीमालज्ञा. स. राजा स. सुनसम नरसिंह भा. बाई नागनदे सुन सा. सामल / / स. सामल भार्या-वानूसहितेन पित्री सूधा पितृव्य सा. नापा स. जाटा स. धर्मा / / पांचएति खात भात // धना करम च श्रेयांसश्रीपादिनाथचतुर्विशतिपट्ट कारितः // प्रतिष्ठितः पिप्पलगच्छ भट्टारक श्रीमुनिशेखरसूरिपट्टे श्रीगुणरत्नसूरिभिः / / श्रीः (140) 4. पंच धातु मंझली प्रतिमा लेखः संवत 1603 महा वदि 5 शुक्र श्रीउदयपुरवास्तव्य श्रीसहस्रफरणापार्श्वनाथ जो श्रीधर्मशालासंघ समस्त मारणकबाई श्रीशांतिनाथ पंचतीर्थी कारापितं तपागच्छे प. रूपविजयगरिणभिः प्रतिष्ठितं च / / (141) 5. प्रतिष्ठा लेख :-- सं. 1976 मि. प्राषाढ़ कृष्ण 7 शुक्रवार श्रीबाहड़मेरनगरे श्रीपार्श्वजिन चैत्ये प्रांचलगच्छे पं. जीणवेदो प्रतिष्ठिता श्री विवेकसागरसूति विजमराज्ये श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरि-शिष्य पं. जीतसागरोपदेशे व श्रीसघश्रीपुण्यार्थ त्रिलोकचन्दमुनिना चिरजदतु : ...... (142) 6 पब्बासन के नीचे लेख :-- ... सं. 1665 वर्षे सा. ठाकुरसीकेन कारापिता (143) 7 श्रीमूलनायकजी के पास जिनप्रतिमा लेख :-- इद श्रीग्रजीतनाथ जिनबिंब अचलगच्छाधिपति प्राचार्यश्रीगुणसागर, सूरोवरेण प्रति ठं बाड़मेर पावलगच्छीय संवत् 2033 मिगसर शुक्ला 11 बुध।
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 35 .. 8. अजनशलाका लेख :-- श्री चिन्तामणी पार्श्वनाथ जैन मन्दिर की मूत्तियों की अंजनशलाका प्रतिष्ठा विक्रम सदत 2033 मिगसर शुक्ला एकादशी के शुभ दिन में प्रचलगच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीगुणसागरसूरीश्वरजी महाराजजी ने करवाई। परमपूज्य आचार्य भगवन्त ने बाड़मेर अचलगच्छ जैन श्रीसंघ के प्राग्रह पर विक्रम संवत 2033 में बाड़मेर नगर में परम पूज्य प्राचार्य देव श्रीगुणसागरसूरीश्वरजी म. सा., प. पू तपस्वी रत्न उपाध्याय श्रीगुणोदयसागरजी म. सा., परम पूज्य साहित्य रत्न श्रीकलाप्रभ सागरजी म. सा., परम पूज्य श्रीवीरभद्रसागरजी म. सा., परम पूज्य श्री महोदय सागरजी म. सा., परम पूज्य श्रीसूर्योदयसागरजी म. सा., परमपूज्य श्रीमहाप्रभसागरजी म. सा. परम पूज्य श्रीहरिभद्रसागरजी म. सा., परम पूज्य श्रीराजरानसागरजी म. सा., प. प. पूर्णोदयसागरजी म. सा. ग्यारह साधुनों सहित एवं पाच र्यदेव की प्राज्ञा. त्तिनी साध्वी श्रीप्रियवन्दा श्रीजी म सा., वनलता श्रीजी म. सा... इन्दुकला श्रीजी म. सा. ने यहां चतुर्मास किया / ऐतिहासिक चतुर्मास में प्राचार्यदेव के सद्उपदेश से बाड़मेर में श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथजी के जैन मन्दिर के प्रांगण में चारों ओर नवीन चार जिनालय बनाने हेतु विक्रमी संवत 2033 श्रावण शुक्ला तृतीया को शिलारोपण भव्य समा.' रोह के साथ सम्पन्न हा शिलारोपण के चार-पांच मास के पश्चात ही चारों कोनों में लघु जिनालय प्रतिष्ठा के लिये बनकर तैयार हो गये / इन नवनिर्मित चार लघु मन्दिरों के साथ श्रीगौड़ी पार्श्वनाथ की प्रतिमा जो नीचे के छोटे पार्श्वनाथ मन्दिर में विराजमान थी उन्हें बहमान के साथ श्रीचिन्तामरिण पार्वनाथजी के बड़े मन्दिर में शिखर के पीछे नया चौमुखी का मन्दिर बनवाकर अन्य तीन नई श्रीपार्श्वनाथजी की प्रतिमानों सहित प्रतिष्ठित किया। इसके पास ही अचलगच्छधिपति आद्य आचाय दादा श्रीपायरक्षितसूरीश्वरजी महाराज स हेब की प्रतिमा मध्य में प्रतिष्ठित की इसी प्रतिमा के जिमणे बाजू इन्हीं के शिष्य लक्ष क्षत्रिय प्रतिबोधक जैन बनाने वाले प्राचार्य दादा श्रीजयसिंहसूरीश्वरजी और दाहिने बाजू बाड़मेर के श्रीचिन्तामरिण पार्श्वनाथजी के उपदेशक व प्रतिष्ठायक प्राचार्य श्रीदादाधर्ममूर्तिसूरीश्वरजी की प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई। ये तीनों प्राचार्य दादा युगप्रधान पदवीधारक हैं / अचलगच्छीय नीचे
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________________ 36 / बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख पुराने छोटे पार्श्वनाथ मन्दिर में श्रीगौड़ी पार्श्वनाथजी की मूल प्रतिमा के स्थान पर श्रीमहावीर स्वामी की प्रतिमा सहित पांच जिन प्रतिमायें पांच यक्ष यक्षिणी देवियों एवं दादा श्रीकल्याणसागरसूरिश्वरजी की एक भव्य प्रतिमा श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथजी के मन्दिर में प्रतिष्ठित है। संवत 2033 मिगसर सुदी 11 बुधवार तारोख 2-12-1976 (145) . 6. ताम्रपत्र लेख: परमपूज्य गच्छाधिपति आचार्य भगवन्त श्रीगुणसागरसूरीश्वरजी . म. सा. की प्राज्ञानुवतिनो स्वाध्याय उपासक प. पू साध्वी श्री खीरभद्रा श्रीजी म. सा. की सुशिष्या बा. ब्र. करूणामूर्ति प. पू. निर्मलगुणा श्रीजी म. सा. की सुशिष्या तपस्वी रत्ना ब्र.प. पू. साध्वी श्रीज्योतिष्प्रभा श्रीजी म. सा. एवं बा ब्र. प. पू. साध्वी श्रीवारीवणा श्रीजी म. सा. को प्रेरणा से ... ... .श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय में ताम्रपत्र पर बारह सौ सूत्र खुदवाकर ज्ञानोयार्जन हेतु दर्शनार्थे सप्रेम। 10. तीर्थपट्ट लेखः. श्री बाड़मेर श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालये अचलगच्छापति प्राचार्यदेव श्रीगुणसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब की प्रेरणा से संवत् 2037 का चतुर्मास में प्राचार्य भगवन्त की प्राज्ञानुवर्तिनी बाल ब्रह्मचारी प. पू निर्मलगुणा श्रीजी म. साहिब की शिष्या बाल ब्रह्मचारी प. पू. साध्वी श्रीज्योतिष प्रभा श्रीजी म. साहिब एवं बाल ब्रह्मचारी प. पू. साध्वो श्रीवरोषणा श्री जी म. साहिब को निश्रा में तीर्थ ट्टोप को थयेल उच्छामरिण प्रसंगे। श्री महावीरजी का मन्दिर (147) 1. लेखः___ इदं श्रीमहावीरस्वामीजिनबिंब श्रीप्रचलगच्छाधिपति प्राचार्य श्रोगुणसागर सूरीश्वर प्रतिष्ठितं ....... बाड़मेर अचलगच्छ वि. सं.२०३३ वी. सं. 2503 मृगसिर शुक्ला 11 बुधवार ___ (148) 2. पगलियाजी लेख टूटा हुमा: सं. 1733 वर्षे फागुण वदि 1 सोमवार .
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख ......., दादावाड़ी खरतरगच्छ . (146) 1. सोढियों के पास कमरे में पगनियाजो पर लेख:-... संवत् 1606 रा ......शनिवार गुणो मोतीचन्दजी री छत्री हुई। . (150) 2. पगलियाजी लेखः / सनत 1671 वर्षे प्रासू वदि 10 रवीवार पुण्य योग श्रीखरतरगच्छ श्रीजिनमाणिकसूरि पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि पादुके कारितेस्त // 3. पगलियाजी लेखः संवत् 1644 वर्षे श्रावण सुदि 13 वार प्रादित श्री जिनकुशलसूरि पादिका श्रीखरतरगच्छे / ___ (152) 4. पगलियाजी बड़ा लेखः ___ संवत् 1672 वर्षे फागुण वदि 12 वृहपत दिने भट्टार्क श्री जिन कुशलसूरिसुरानं पादुके सुभभवतु / / / - प्रादेश्वर भगवान् का मन्दिर (153) 1. शृगार चौकी लेखः. संवत 1928 वर्षे भाद्रपद 2 ....... ...वृहत खरतरगच्छे भट्टारक श्रीमातुसूरिरावतजी श्रोवाकोदास कु। जुहारसिंग विजेराज्ये श्रीसुमतनाथजी री शिणगार चौकी श्रोखरतगच्छ कराई सलावट फूसा / / (154) 2. प्रतिष्ठा लेख: संवन 1676 वर्षे माह सुदि 15 रविवार पुष नषत्रे राउत श्री उदेसिंहजीविजयराज्ये श्रीसुमतिनाथ ...... .. श्रीसंघ करावऊ सूत्रधार षीमा नारायण नरसंघ खरतरगच्छ भट्टार्क जिनराज सूरि विजय राज्ये / . (155) 3. पंच धातु प्रतिमा लेख:-. . सं. 1512 वर्षे वैशाख सुदि 5 श्री श्रीमाल ज्ञा. श्रे. सहसा भा.
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________________ 38 ] बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख भोली पुत्र जिनदास मेहाजस युतेन स्व. श्रेयांस श्रीकुथनाबिंब का. आगमगच्छ श्रीहेमरत्नसूरिणामुपदेशिन प्रतिष्ठितः / / श्री शांतिनाथजी का मन्दिर (156) 1. श्री महावीरजी की मूर्ति पर लेख:___महात्मा किशनलालजी की स्मृति में / (157) 2. श्री चन्दाप्रभुजी प्रतिमा लेखःचन्दा प्रभुजीबिंब टापरा श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं / (158) 3. श्रीमलनायकजी पर लेख सीमेण्ट के कारण अस्पष्ट:संवत 1862 शाके 1738 श्रीपार्श्वनाथ मन्दिर (बोथरा मन्दिर) (156) 1. पंच धातु प्रतिमा छोटी: सं. 1527 व माह सु 13 सा. साल्हा भा. हासलदे पु. सा. गुणदत्तेन भा. गेलमदेव तिहणा गोपादिक युतेन श्रीसुमतिनाबिंब का. प्र. तपागच्छे श्रीसोमसुन्दरसूरि सताने श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ।।श्री।। : . (160) 2. // सं. 1580 वर्षे वैशाख सुदि 13 शुक्र श्रीश्रीमाली ज्ञा. म. हीरा भा. सषी सु. मं. हेमा भा. हमोरदे पुत्र म. भवाकेन भा. वसी सु. अमरा युतेन स्व श्रेय से श्रीसुविधिनाबिंब श्री प्र. श्री पुण्यरत्नसूरि पट्टे श्रीसुमतिरत्नसूरिण मुपदेशे कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना ॥श्रीः।। (161) 3. श्रीमूलनायक प्रतिमा लेखः- .... / सं. 1628 शाके 1763 प्रवर्तमाने मिति माघ सुदि 12 गुरी श्रीपाश्वजिनबिंब प्रतिष्टितं श्रीमद्वृहदखरतरगच्छाधीश्वर जगम / युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनयशोसूरिभिः
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________________ ..... बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख . ..... [.. 36 . 4. पादुकाजी लेख. सं. 1962 शाके 1827 श्रीपीगलनाम संवत्सरे पोष मासे दिवसे बुधवासरे पुष्य नक्षत्रे ध्र वयोगे विवे करणे शुभ योगे श्री चितामरिण पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा महोत्सवे श्रीजिनकुशलसूरिणां चरण पादुका स्थापितं भट्टारक जंगम युग प्रधान वृहत खरतरगच्छनायक प्राचार्य गच्छेश श्रीजिनसिद्धसूरीभिः कारितं गोपा बोहिथरा बाहड़मेर रावत हीरासिंघजी भाराणी वशे राज्य प्रधाना श्रीरस्तु / 5. पादुका लेख-- सवत् 1962 शाके 1827 श्री पिगलनाम संवत्सरे प्रवर्तमाने पोष मासे पुष्य नक्षत्रे बुधवासरे विवे करणे कुकल शुभयोगे श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा महोत्सवे श्रीजिनदत्तसूरि चरण पादुके गोपा वीजा बोहिथरा वास बाहड़मेर भट्टारक जंगम युग प्रधान वहत खरतरगच्छे श्रीजिन सिद्धसूरिभिः कारितं रावत हीरासिंघजी भाराणी वंसे राज्य प्रधानात श्रीरस्तु / 6. यति मूर्ति लेख ... (164) " श्री 108 श्री पं. नेमीचन्दजी यति जन्म तिथि स्वर्गवास विक्रम सवत् 1948 विक्रम संवत 2006 चैत्र शुकला पूर्णिमा माघ कृष्ण 13 मंगलवार (मेरु तेरस) 13 जनवरी 1953 संगीत रत्न, विद्याविलास, उपाध्याय, पण्डित श्रीनेमीचन्दजी महाराज साहब का स्मृति स्तूप विक्रम संवत् 2022 में बनाया गया सन् 1665 .. श्रीगोड़ीसा पाश्र्वनाथजी मन्दिर (165) 1. पगलियाजी ले - ____सं. 1508 आषाढ़ सुदि--रा पादुका धरावी श्रीगोड़ीसा पारस नमः 2. प्रतिमा लेख-- ___ सं. 2042 ज्ये. सु 12 बाड़मेरनगरे पार्श्वनाथ जिनबिंब प्रतिष्ठा-: पितं खरतरगच्छाचार्य जिनकान्तिसागरसूरिभिः /
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________________ 40 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (167) 3. सं. 2042 ज्ये. शु. 12 बाड़मेरनगरे दादाकल्याणसागरसूरिजी की मूतिबिंब प्रतिष्ठापित खरतरगच्छाचार्य जिनकान्तिसागरसूरिभिः . (168) 4. सं. 2042 ज्ये. सु. 12 बाड़मेर नगरे दादा साहेब कुसल गुरुदेव बिंब प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छाचार्य जिनकान्तिसागरसूरिभिः 5. वि.सं. 2042 ज्येष्ठ शुक्ल 12 शुक्रवासरे:-- बाड़मेरनगरे श्रीगौड़ी पार्श्वनाथ, दादा गुरुदेव, नाकोड़ा भैरवादि बिंबानी प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छाचार्य जिनकान्तिसागरसूरिभिः शुभ भवतु श्रीसंघस्य / (170) 6. श्री गौड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार लेख:. प. पू. युग प्रभावक प्राचार्य श्रीजिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के प्राशीर्वाद से प. पू. प्रतिनी प्रेम श्रीजी म.सा. की प्रशिष्या साध्वी श्रीसुलोचना श्रीजी म.सा. साध्वी श्रीसुलक्षणाश्रीजी म. सा. के सदुपदेश से हुमा / प्रतिष्ठा सं. 2042 ज्येष्ठ शुक्ला 12 शुक्रवार तारीख 31.5-1985 (171) / 7. पगलिया लेख:-- श्री 108 श्रीचन्दन श्रीजी महाराज सा. श्री 108 श्रीहेतश्री महाराज की रतनशिष्या स्वर्गवास सं 2020 मुः सादड़ी (172) 8. पगलिया लेख: श्री 108 श्रीचन्दनश्रीमहाराज की रतनशिष्या श्री 105 श्री प.तेहश्रीमहाराजसाहेब स्वर्गवास 2024 मुः बाड़मेर श्रीचन्दा प्रभुजी मन्दिर, गांधी चौक 4 (173) 1. पंच धातु प्रतिमा:- ॥सं. 1514 मार्ग सु-प्राग्वाट सा. साल्हाकेन चार्या बर्जु सुत सा. वीरा माणिक वसनादि कुटुम्बयुतेन पितृव्य सा. चांपा श्रेयोर्थ सुमतिनाथ
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 41. SM बिंब कारितं प्र. तपा श्रीसोमसुन्दरसूरि श्रीमुनिसुन्दरसूरि पट्टे श्रीरत्नशेखरसूरिभिः / / (174) 2. पच धातु प्रतिमाः___ सवत 1463 वर्ष फागुण वदि 1 दिने ऊकेशवंसे रांका गोत्रे श्रे. धीरा पुत्र श्रे. लाखाकेन तत्पुत्र देल्हा तेजा जिणदत्त गुरणदत्त परिवार युतेन स्व. पुण्यार्थ श्रीशांतिनाबिंब कारितं श्रीखरतरगच्छो श्रीजिनराजसूरि पट्टे श्रीजयेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं / / (175) 3. मूर्ति लेख: / / सं. 2016 माघ सु. 14 गुरु पुष्य योग श्रीवासुपूज्यबिंब मेवानगरे श्रीसंघ करापितम प्रतिष्ठितम आचार्य वि. हिमाचलसूरिभिः (176) 4. मूलनायक चन्दाप्रभजी लेख:--: 1. 3 वर्षे माघ सु. 10 रवी मांडवला वास्तव्य शा. चन्दनमलजी भार्या मिश्री पुत्र हस्तोमन कांतिलाल अमृतलाल पुत्र पौते स्वपितरौ श्रेयार्थ 'चन्द्रप्रभु का. श्रे. पूजाजी पत्न्या गजरां श्राविका .......... (177) 5. मूर्ति लेख:-- सुद 10 रवी अजमेर वास्तव्य भूरमल चांपा पीरूमल रूपचन्द्र स्व' मातल्य श्रेयार्थ........पं. कल्याण विजय गणिनः / श्रीदादाजिनकुशलसूरिजी (178) "6. लेख दादाजी:-- * संवत 2026 बाड़मेर शा. प्रासुलाल सोहनलाल चम्पालाल चन्द्र प्रकाश बोथरा द्वारा प्रतिष्ठः श्रीमतो मथरी वीस स्थानक तपस्या निमिते संघ भेंट / (179) .. 7. शिला पट्ट लेख:-- .. खरतर गच्छाधिपति प. पू. आचार्य भगवन्त श्रीजिनउदयसागर सूरीश्वरजी एवं जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के आशीर्वाद से
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________________ 42 ] बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख प्राज्ञानुवर्ती प पू. प्रवर्तनी प्रेमश्रीजी म. सा. की प्रशिष्या सुलोचना श्री जी म.सा. सुलक्षणाश्रीजी म. सा. के सद उपदेश से मन्दिर के केशर, धूप, दाप, दूध के लिये साधारण खातों की नामावली............ कल्याणपुरा मन्दिर व दादावाड़ी (180) 1. लेख-श्री पार्श्वनाथ जिनालय व तीर्थ की धर्मशाला:-' ___ कल्याणपुरा बाड़मेर श्री प्रादमल पुत्र श्री ऊमचन्द बोथरा द्वारा श्रीसंघ को भेंट भादवा सुदि 3 संवत 2008 (181) 2. दादाजी की प्रतिष्ठा लेख--- वि. सं. 2040 मार्गशीर्ष कृष्ण पंचम्यां बाड़मेर नगरे प्रवर्तिनी प्रमोदश्री पुण्य स्मृतौ तच्छिष्याः साध्वी प्रकाशश्री: रतनमालाजी। विद्युतप्रभाजी: शासन-प्रभाजी ! प्रभृतयः तासां सदुपदेशेन छाजेड़ गोत्रीयो विशनचन्द पुत्र पौत्रेः जीवनमल नेमीचन्द बाबूलाल सम्पतराज पुखराज मदनलाल राकेशकुमार कल्याणपुरा विभागे नवनिर्मित दादावाटिकायां कारितेयं छत्री / दिनांक 25--1983 (182) 3. परम पूज्या प्र. स्व श्रीप्रमोदश्रीजी म. सा की पुनीत स्मृति में जैन श्रीसंघ द्वारा इसका निर्माण कराया गया। (183) 4. प्रवर्तनी स्व. श्रीप्रमोदश्रीजी म. की पुण्य स्मृति में उनकी शिष्या साध्वी श्रीप्रकाशश्रीजी म. के सदुपदेश से शाह जीवनमल, नेमीचन्द, बाबूलाल, सम्पतराज पुखराज, मदनलाल, राकेशकुमार छाजेड़ की तरफ से दर्शनार्थ भेंट दि.२५-११-१९८३ (184) 5. पंचधातु प्रतिमा लेख-- संवत 1356 माघ वदि 11 बुध प्राग्वाट ज्ञातीय उ. यजसीह भा. राजलदे ....... श्रीशांतीनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीचित्रगच्छे श्री. धर्मदेवसूरि शिष्ये: श्रीपद्मदेवसूरिभिः /
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 43 . (185) 6. संवत 1450 वर्षे माह वदि 6 सोमे श्रीश्रीमाल वा.व. लूणकरण भार्या ललतोद पुत्र वीकाकेन श्रीचन्द्रप्रभबिंब कारितं श्रीरत्नसागरसूरिणमुप देशेन प्र. श्रीसूरि / (186) 7. सं. 1503 वर्षे श्रीश्रीमाल ज्ञा पितृ पूनसिंह मातृ पदमलदे व भ्रातृ नरसिंह व स्व श्रेयांस सुत वीकाकेन श्री विमल पंच तीर्थों का. प्र. पिप्पलगणति भवीप्रा. श्रीधर्मशेशरसूरिभिः (187) 8. सं. 1506 फागुन सु. 2 प्राग्वाट मं. प्रासा भा. कूजी पुत्र म. जहता केन भार्या मानू पुत्र वीसादि कुटुंब युतेन श्रीधर्मनाथबिबकारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः (188) 6. संवत 1573 वर्षे माह वदि 13 उसवालज्ञातीय फोफेलीयागोत्रे सा. जईता भा. पयतलदे पु.सा. भोलानाथ, तोला भा. नारंगदे स्वपुण्यार्थ श्रीसुविधिनाथ बिम्ब कारापितं श्रीधर्मघोषगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीउदयप्रभसूरिभिः (186) 10. सं. 1527 माघ व. 7 वीरवाटक वा. प्राग्वाट म. हीरा भा. कूअड़ पु म. इलहाकेन भा. दाडिमदे पु. लगा दिकुटुंबयुतेन श्रीविमलनाथबिंब का प्र. तपाश्रीरत्न शेखरसूरिपट्ट श्रीलक्ष्मोसागरसूरिभिः / / (190) 11. संवत 1558 वर्षे वै. वदि 13 सोमे चंडालीयागोत्रे म. वाधा भार्या राजू पुत्र वना भार्या श्रीवती पुत्र सा. दीझा. प्रमुखपरिवार स्वपुण्यार्थ बिंबकारितं श्रीचन्द्रप्रभसबिंब श्रीषरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः प्रतिष्ठतं / ___(161) 12. नवीन बड़ी प्रतिमा पंचधातु लेख गुजराती भाषा:-- .) :: स्वस्ति श्रीशिवगंजनगरे श्रोवीर सं. 2501 श्री विक्रम सं. 2031 वैशाख सुदि 15 तिथी श्रोशांति जिनबि शिवगंज (राजस्थान) श्रेष्ठिवर्य बाड़मेर निवासो मुता गोत्रीय मालू शाह लणकरणजी की धर्मपत्नी श्रीमती
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________________ 44 / बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख गेरीकंवर बाई की तरफ से श्रीमद्विजय श्रीप्राचार्य हिमाचलसूरिश्वरजी के शिष्य मुनि श्रीलक्ष्मोविजय की प्रेरणा से कारितं प्राचार्य श्रीकैलाशसागरसूरिश्वरजो प्रतिष्ठितं च शुभंभूयात् श्रीसंघस्य / / . (162) 13. स्वस्ति श्रीवीर सं. 2505 विक्रम सं. 2036 नेमी संवत 30 वर्षे वैशाख शुक्ल 13 तिथौ गुरुवासरे सादड़ीनगरे मुनिश्रीलक्ष्मीविजयस्य सदुपदेशाद् बाड़मेर निवासी श्रेष्ठि श्रीजोरावरमलजी लूणकरणजी जनेता गवरोबाई स्मृत्यार्थ श्रीऋषभदेवजिनबिंबे मिदं कारितं प्रतिष्ठितं च शासनसम्राट् तपागच्छीयाचार्य प्रवर श्रीमद्विजय नेमीलावण्यदक्ष. सूरिश्वराणां पट्टधराचार्य श्रीमदविजयसुशीलसूरिणां / / शुभंभवत श्रीसंघस्य / / ढाणी बाजार जैन-मन्दिर (193) 1. श्रीविमलनाथजी मूलनायकजी प्रतिष्ठा लेखः वि. सं. 2042 ज्येष्ठ शुक्ल 12 बाड़मेर नगरे श्रीविमलनाथ चौमुख मन्दिरे जिनबिंबानी दादा गुरुदेव प्रतिमान, भेरवबिंब यक्ष-यक्षिणी. ज्येष्ठ शुक्ल 10 रात्री शुभलग्ने अंजन कारित / शुभं भवतु श्रीसंघस्य / 194) 2. पंच धातु प्रतिमा लेखः सं 1527 ... भा. साहलदे स. जावदेन भा. मनकु पुत्र....... प्रतिष्ठितं श्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्य श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः .12. पचतीर्थी मन्दिर लोलरिया धोरा पर घर मन्दिर खण्डहर के रूप में विद्यमान है / न कोई मूर्ति है और न कोई लेख है / श्री सच्चीया माताजी का मन्दिर, ढाणी बाजार (165) 1. प्रतिष्ठा लेख: श्रीप्रोसियां सच्चीया माता की प्रतिमा संवत् 2034 माह सुदि 11 की साल में शा. भंवरलाल पुत्र रतनलाल मदनलाल रामलाल पवनलाल बेटा पोता जेकचन्द पूनमचंदाणी पड़ाईया की तरफ से विराजमान को /
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 2. श्रीअचलगच्छाधिपति प. पू. प्रा. भ. श्रीगुणसागरसूरिश्वरजी म. सा. की आज्ञानुवति बा. ब्र. प. पू. ज्योतिष्प्रभा श्रीजी. म. सा. को प्रेरणा से समेतशिखरजी महातीर्थ के अधिष्ठाईदेव श्रीभोमियाजी महाराज का यह बिंब पड़ाईया पोकरदास रूगामलजी के परिवार सहित बाड़मेर श्रीसंघ को भेट संवत 2038 मिगसर वदि 11 रविवार तारीख 22-11.81 (197) . 3. अंचलगच्छाधिष्ठिका महाकालीदेवी के इस बिंब की प्रतिष्ठा प. पू. प्रा. भ श्रीगुणसागरसूरिश्वर म. सा. की आज्ञानुवर्तिनी बा. व. प. पू. ज्योतिष्प्रभा श्रीजी. म. सा. के कर-कमलों द्वारा शा. नानबाई जेवत गा. कच्छ बीदड़ावाला ने करवाई तपस्वी दो बहनों की तरफ से यह बिंब भराया एवं कच्छनाना प्राशंचोप्रा वाला प्रदीप छेड़ा की तरफ से देहड़ी कारवाई संवत् 2038 मिगसर वदि 11 रविवार / . बालोतरा . . .. यह ग्राम बाड़मेर जोधपुर रेल्वे लाईन पर पाया हुअा है / बाड़मेर जिले का दूसरा बड़ा नगर है / यहाँ से बाड़मेर, जोधपुर, सिवाना, जालोर तथा आसपास के छोटे बड़े ग्रामों को बसें जाती है। प्रसिद्ध जैन-तीर्थ श्री नाकोड़ा जी के लिये यही रेल्वे स्टेशन है जो तीर्थ से 11 कि.मी. दूर है। यहाँ पर कई जैन-मन्दिर, दादावाडीयां वगैरा है।" श्री धर्मनाथजी का मन्दिर पारस भवन (198). . 1. पब्बासन लेख जगती अघ विनाशे, कौशलं श्रीं ह्रीं यतीन्ने। सुकृत गुण निधाने, हिम्मतो धीर वीरै / / परिमल गुण शोभा, नाम मेवानगरे।। कृत विहित प्रतिष्ठा. धर्मनाथस्तु बिम्ब / / . सं. 2016 माघ सु. 14 गुरुपुष्ययोगे बालोतरानगरस्थ पार्श्वनाथभवने श्रीधर्मनाथबिम्बानि मेवानगरे श्रीसंघेन कारितं प्रतिष्ठितं /
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख पन्यासजी श्रीहित विजयजी के शिष्य आचार्यदेव विजयश्रीहिमाचलसूरिभिः प्रतिष्ठितं / ___तगतगढ़वास्तव्य प्राग्वाट संघवी श्रीअंचलजी तत्पुत्र केसरीमल स्य, धर्मपत्नी मगीदेवी बालोतरा नगरस्थु पार्श्वनाथभवने श्रीधर्मनाथमन्दिरनिमित्ते श्रीनाकोड़ा पार्श्वनाथस्य प्रत्यक्षाघिष्ठाय कन्चरणकमले। 7001) रुपये निसादर समर्पितम श्रीरस्तु / . (166) 2. श्रीधर्मनाथजी प्रतिमा लेख.... स. 2016 माघ सुदि 14 तिथौ गुरुपुष्य योगे श्रीधर्मनाथबिंब बालोतरानगरस्थ श्रीपार्श्वनाथभवने मेवानगर श्रीसघेन कारितम प्रतिष्ठितं प्राचार्य श्री हिमाचलसूरिभिः शुभमस्तु / / तपागच्छ उपासरा (200) 3. मणिभद्र यक्ष मूत्ति लेख / / सं. 1955 श्रा. सु. 5 गुरो श्रीमणिभद्रबिम्ब ज. मु. भट्टारक श्रीजिनमुक्तिसूरि प्रतिष्ठितम / .. . प्रोसवाल भवन धर्मशाला-स्टेशन रोड़ ___ (201) 4. छत्री-पब्बासन लेख- - श्रीआदिनाथायनमः श्रीबुद्धितिलक शान्तिचन्द्र सदगुरुभ्यो नमः परमपूज्य शासनप्रभावक प्राचार्यदेव विजय भुवनशेख रसूरीश्वरजी म. सा. तथा मुनिराज श्रीमहिमाविजयजी म. सा. नी शुभ-सानिध्यमां वि. संवत 2037 ना वैसाख सुद 14 रविवार ता. 17-5.81 ना शुभमुहर्ते श्रीपादीश्वर भगवान का चरण (स्तूप) प्रतिष्ठा बालोतरा-शुभं भवतु। (202) 5. चरण-पादुका लेख..: सं. 2016 माघ सु. 14 गु पु. योगें श्रीआदिनाथ-चरण-पादुका बालोतरा लड़ीया बोरा मशा. प्रसादोराज, चन्दन, मोती भानीरामारणी,
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 47 पुत्र-पौत्रादिसहिते का प्रा मेवानगररे श्रीसंघेन / प्रतिष्ठितम विजयश्रीहिमाचल सूरिभिः / / श्रीखरतरगच्छ जैन-दादावाड़ी (203) 6. श्रीजिनकुशलसूरिश्वर छत्री लेख -- . स्वस्ति श्रोबालोतरानगरे सं. 2036 ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी तिथौ गुरुवासरे खरतरगच्छसंधेन कारिते कलिकाल कल्पतरु श्रीजिनकूशलसूरि मूत्तिः प्रतिष्ठित खरतरगच्छे जिनहरिसागरसूरि-शिष्य अनुयोगाचार्य कान्तिसागरादिभिः-शुभ भवतु श्रीसंघस्थ (204) 7. पादूका लेख:___स्वस्ति श्रीबालोतरानगरे सं. 2036 ज्येष्ठ शुक्ल पंचम्या गुरुवासरे नवांगी टोकाकार खरतरगच्छाचार्य श्रीमभयदेवसूरिश्वरैण पादुका प्रतिष्ठितं जिनहरिसागरसूरि-शिष्य खरतरगच्छाचार्य श्रीकान्तिसागरादि शुभं भवतु श्री संघस्य / / . (205) 8. पट्ट लेखः ॐ ह्रीं श्रीजिनकुशलसूरि सद्गुरुभ्यो नमः स्वस्ति श्रीबालोतरानगरे श्रोसंधेन कारिते दादावाड़ी मध्ये श्रीजिन कुशलसूरि मूर्तिःपादुकात्व प्रतिष्ठित नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि संतानीय जिनहरिसागरसूरि शिष्य अनुयोगाचार्य कान्तिसागरैः श्री श्रीखरतरगच्छे संवतः 2036 ज्येष्ठ शुक्ल पचम्यां गुरुवासरे। शुभं भवतु श्रीसंघस्य / ___ श्रीविमलनाथजी जैन-मन्दिर तपागच्छ (206) 6. प्रतिष्ठा लेखः - अस्याभिनव विमलजिनमन्दिरस्य निर्माणकार्य बालोतरा श्री. संघेन कारितं प्रतिष्ठितं च तपागच्छेश शासनसम्राट जगद्गुरुदेव श्री. मद्विजय हीरसूरिश्वर संतानीय हितान्तेवासी प. पू. मेवाड़ केसरी श्रीनाकोड़ा तीर्थोद्धारक प्राचार्य देव श्रीमद्विजय हिमाचलसूरिभिः वि. सं. कराग्निखनेत्रे 2032 माघ सु. 14 शनौ पुष्य योगे लि. हिमाचलन्तेवासी पं. श्री विद्यानन्द विजया गरिएक / श्रीरस्तु:
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________________ 48 ] बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (207) 10. चौबीसी लेख - श्रीजैनसंघ बालोतरा श्रीऋषभदेव भगवान चौवीसी श्रीअंजन. शलाका विधि पू. प्रा. वि. कनकप्रभसूरिजी तथा पू. प्रा. वि. भवनशेखरसरिजी नी निश्रा मां झाब नगर मां वि. सं. 2035 महा सुद 14 शनिवार ता. 10-2-76 ना रोज शुभलग्ने कराई छ / (208) 11. श्री विमलनाथजी पंच धातु बिंब: सं. 1532 वर्षे मार्ग सुदि 6 शुक्रे नागपुरवास्तव्य श्रीमाल फोफलियागोत्रे सा. बृहड़ भा. नापाई पुत्रबुढाकेन भा. लालीयेम जगमाल भ्रातृ स. कुटुबयुतेन श्रीविमलनाथबिंब कारितं प्र. श्रीधर्मघोषगछे श्रीपद्मानन्दसूरिभिः भावहर्ष गच्छ उपासरा ___ (206) 12. पीत पाषाण पादुका लेख: संवत 1816 वर्षे चैत्र सुदि 4 दिने रविवारे रोहिणी नक्षत्रे श्रीवीर माह पादुका कारिता। (210) 13. पीत पाषाण लम्बा पाषाण दोनों कोनों पर व बीच में लेख:-- ... एक सिरे पर लेख: संवत 1732 वर्षे चैत्र वदि 2 दिने चन्द्रेश श्रीअनंतहंसगरिण नां शिष्य पन्यास श्रीविमलोदयां नां पादुके प्रतिष्ठिते श्री पं. जिनच द्रसूरिभिः (211) 14. दूसरे सिरे पर लेख:-- सवत 1731 वर्षे चैत्र वदि 2 सुक्रे श्रीमजिनचन्द्रसूरि नां पादुके श्रीउदय निघानगणि कारिते च प. पुण्यहर्षेण नंदिनयरतेन // (212) 15. बीच में श्वेत गोलाकार लेख:-- .. संवत् 1732 वर्षे चैत्र वदि , द्वितीयायां श्रीजिनकुशलसुरिणां पादुके प्रतिष्ठितं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ...
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख / 46 मणिभद्रजी का मन्दिर (213) 16. श्रीपार्श्वनाथजी प्रतिमा लेख. संवत 1880 ...." रायचन्द पचेसरा (214) 17. स्थापना लेखः वि.सं. 2032 माघ शु. 14 शनौ पृश्य अस्य मणिभद्रस्य मंदिरे श्री. र्श्वनाथादि प्रभुणां पुनः प्रतिष्ठा बालोतरा श्रीसंधेन कारिता प्रतिष्ठितं तपागच्छेश हितान्तेवासि विजय हिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु ..(215) / 18. पंच धातु प्रतिमा लेखः ॥सं. 1525 वर्षे मार्गशीर्ष वदि 6 शुक्रे श्रीउपकेशज्ञातीय श्रीगड़गोत्रे म. / / नरपाल पु.बछराज भा.पकम्मी पु.सारंग सुदयवत्छीभ्यां पेतु पुण्यार्थ श्रीकुयनाबिंब कारितं / श्रे. श्रीरूड़पल्लीय ग. श्रीदेवसुन्दरपूरिपट्टे भ. श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः श्रीसंभवनाथजी का मन्दिर (खरतरगच्छ) (216) 16. पब्बासन पर लेख: सं. 2041 माघ शुक्ल त्रियोदश्यां रात्रौ प्रभुसंभवनाथ-पार्श्वनाथादिबिम्बानां अंजनशलाका कारापितं सं. 2041 माघ शुक्ल चतुर्दश्यां सोमवासरे पुष्य नक्षत्रे प्रभसंभवनाथ, पार्श्वनाथ, गौतमस्वामी, दादा जिनकुशल सूरि, नाकोड़ा भैरव, घटाकर्ण महावीर यक्ष-यक्षिण्यादि-बिबानि प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छे प्राचार्य जिनकान्तिसागरसूरि, मणिप्रभसागरादिभिः // शुभं भवतु श्रीसंघस्य // 1 (217) 20. श्रीसंभवनाथ प्रतिमा लेखः सं. 2041 माघ शुक्ल 14 बालोतरानगरे दादावाटिकायां जैनश्व खरतरगच्छसंघेन कारापितं श्रीसंभवनाथ जिन बिम्ब प्रतिष्ठापितं खरतरगच्छाचार्य जिनकान्तिसागरसूरि, मणिप्रभसागरादिभिः .
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________________ 5. ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख केसरियानाथजी का मन्दिर (218) 21. स्वस्ति श्रीबालोतरानगरे सं. 2036 ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी तिथी गुरुवासरे खरतरगच्छसंघेन कारिते कलिकाल कल्पतरु श्रीजिनदत्तसूरि मूत्तिः प्रतिष्ठितं खरतगच्छे जिनहरिसागरसूरि-शिष्य अनुयोगाचार्य कान्तिसागरादिभिः शुभं। खरतरगच्छ दादावाड़ी के पीछे (कमरे में) . (216) 22. पादुका लेखः संवत् 1732 वर्षे चैत्र वदि द्वितीयायां सोमे श्रीमज्जिन श्रीजिन चन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं पादुके वा. श्रीपुण्यनिधानगणिः कारिते च पं. पुण्यहर्षेण / (220) 23. पादुका लेखः प्राचीन समाधि-स्थल वि.सं. 2032 माघ सुद 14 शनौ श्रीभावहरषगच्छेश क्षमारत्नसूरिश्वराणांमियं चरण-पादुका बालोतरासघन का. प्रा विजय हिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु / (221) 24. श्वेत पाषाण पादुका: ॥सं. 1923 व शा. 1786 प्र. मासोत्तम ज्येष्ठ शुक्लपक्षे चतुर्थी तिथौ गुरुवासरे श्रीम. नवरतराणांधिश्वर भट्टार्कायायाम श्रीजिनकुशल-पादुका प्रतिष्ठितं स्थापितं श्रीम. बोलपुरोपाश्रया श्रीभावहर्षगच्छयां श्रीजिनपद्मसूरिभिः बुढ़ीवाड़ा यह ग्राम बालोतरा पादरू बस मार्ग पर पाया. हुमा है। यहां एक प्राचीन उपासरा है जो अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है / उपासरे में मूलनायक श्रीऋषभदेवजी की श्वेत पाषाण-प्रतिमा है जिसका लेख अस्पष्ट है। ... (222) 1. श्रीआदिनाथ प्रतिमा लेखः-- संवत् 1746 वैसाख सुदि 3.......
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 51 भाडखा यह ग्राम बाड़मेर से उत्तर में शिव जैसलमेर बस मार्ग पर पाया हुअा है। यहां पर पहले जैन-धर्मावलम्बी प्रोसवाल जाति के 48 गांवों की पंचायतें होती थी। 24 गांव बाड़मेर पंचायत तथा 24 गांव कोटड़ा पंचायत की सम्मिलित बैठक गांव भाडखा में होती थी। यहां पर श्रीनेमिनाथजी का मन्दिर है। (223) 1. श्रीमूलनायकजी प्रतिमा लेख: / / संवत 1928 रा मिति माघ सुदि 6 श्रीजिनमुनिसूरिभिः कारितं समस्त श्रीसंघेन / (224) 2. प्रतिष्ठा लेखः भाडखा रा जैनसंघ रो देरासर करावेउः श्रीजीतसागरजी को वार श्रीमेगनाथजी री में / 1678 रा वैसाख वद 4 वा: शनीशर / (225) 3. पंच धातु प्रतिमा लेखः // सं. 1518 वर्षे ऊकेशवंश माह सु 10 सा. देसल सा. कुसला श्रावकेरण स्वपुण्यार्थे प्रात्मश्रेयसे श्रीपद्मप्रभबिंब कारितं / प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्रीजिनभद्रसूरिभिः (226) 4. पंच धातु प्रतिमा लेख: सवत 1556 वर्षे ज्येष्ठ सुदि 8 शुक्रे श्रीउएसवंशे श्रे. नंदा भा. तायकदे पुत्र श्रे. प्रांबा सुश्रावकेरण भा. हेमाई पुत्र श्रे, कान्हा लघुभ्राता श्रे. वधमानस हितेन स्व-श्रेयसे श्रीअंचलगछेशश्र सिद्धान्तसागरसूरीश्वराणमुपदेशेन श्रीवासुपूज्यबिंब कारि. प्र. श्रीसंघेन श्रीअहमदावादे / मजल यह ग्राम समदड़ी अजीत बस मार्ग पर आया हया है। यहाँ पर श्रीसुमतिनाथजी मूलनायक भगवान का शिखरबन्ध मन्दिर है। साथ में श्रीसंभवनाथजी, श्रीशांतिनाथजी भगवान् स्थापित हैं। प्रतिमाओं की स्थापना सवत 2035 में हुई।
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________________ 52 ] बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (227) 1. पूर्व मूलनायक श्रीपादीश्वर भगवान् प्रतिमा लेखः सं. 1606 वर्षे माघ कृष्ण परवा साहि दांग्रव उहसवालज्ञा. श्रे. देल्हड-पाल्हणश्रे. वागदेवीसहितेन श्रीऋषभदेवबिंब कारित प्रतिष्ठितः (228) 2. पंच धातु प्रतिमाः __ सं. 15.05 वर्षे मार्गवदि 7 दिने शुक्र सवराशाह साखगोत्रे सा. उगड़ा भार्या पोपहादे पुत्र तीराकेन भा. वोकलदे कारिता प्रतिष्ठित खरतरगच्छे श्रोतितवईसूरि श्रीनिहालगरसूरिभिः श्रीअजीतनाबिंब / / 3. पंच धातु प्रतिमा:- / ___ स. 1605 वर्षे माधवदि 11 गुरौ उशवालज्ञा. बापणागोत्रे सादा भा. सिरीमादे पु. अदा भा. भवकादे पुत्र जोगकेन भा. जयवंतदे पु. जीवालाखादिसहितेन स्वःश्रेयोर्थ श्रीकुथनाथबिंब का. प्र. उशवालगछे श्री. सिंहसूमिः यतियों की छतरियाँ (230) 4. पादुका लेख:-- | गुरां साहेब श्री श्री 108 श्री माहा / / विजेचन्दजी साहेब चरणपादुका प्रतिष्ठित / / संवत 1994 रा वैसाख सुद 2 बुधवासरे / / दीपचन्द।। धनराज प्रतिष्ठितम / / मजल नग्र स्थापितं / / सुभ भवतु / / ___(231) 5. चरण-पादुका लेख: श्रीगुरां साहेब श्री श्री 105 पं. // हुक्मचन्दजी चरणपादुका // संवत 1664 रा वैसाख शुक्ल 2 ने बुधवासरे / दीपचन्द धनराज प्रतिष्ठम शुभ भवतु / मजल नग्र प्रतिष्ठिम / / कल्याणमस्तु / / - (232) 6. चरण-पादुका लेख: श्री 1008 श्रीस्वगुरोंसा श्रीदीपचन्दजी स्थापित द्वारा इन्द्रचन्द 1964 सन् (233) 7. छतरियों की मढी सती लेख: // श्री अमाजी री बोउ दोलारी मा पोतरो पुरमल गोत सोलंकी
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 53 सती नाम जतनादे कांकरीयाणी की। मु / / ताराजी री बेटी सं. / / 1608 मो / / फागुण सुदी 10 मडली यह ग्राम बालोतरा आगोलाई बस मार्ग पर आया हुआ है / यहां पर पुलिस थाना है / कोई जैन मन्दिर, उपासरा नहीं है / पास के गांव नेवड़ी के मुत्ता के शाजी मडली की सीमा में डकैतों से लड़ते हुए जूझार हो गये थे, उनको छतरो है। अाजकल नेवड़ो में भी कोई जैन घर नहीं है। (234) 1. जूझार मुत्ता केशाजी की मूर्ति पर लेखः - -: श्रीरामजी :__ संवत 1867 रा काती सुदी 11 वार बुध दिन मुत्ता केसरी रामावत जात हिरण विसनागरणजो, जोधा भीमसींग धीरजसींगोत रा वंमरा ऊँठों री वार काम पाया संवत 1867 रा काती सुदी 11 वार बुध रो पुतली मुत्ता मुकन केसराणी बैठाई। मिठोड़ा यह ग्राम बालोतरा पादरू बस के रास्ते पर आया हुया है। यहां से काफी जैन-परिवार सिवाना में जाकर बस गये हैं तथा वहां पर मिठोड़ों का बास के नाम से उनका मौहल्ला और मन्दिर है। गांव में एक शिखर बन्द मन्दिर है जिसमें श्रीमूलनायकजी श्रीसुविधिनाथजी की प्रतिमा है / . (235) ॐ अर्हते नमः 1. प्रतिष्ठा लेख: त्रैलोक्य पूजिताय श्रीसुविधिजिनेश्वराय नमः ख नेत्राकाश द्वि विक्रम संवतसरे 2020 ज्येष्ठ शुक्ल 12 बुधवासरे श्रीसुधर्मस्वामिनः सुविहित प्राचार्यपरम्परायां तपोगच्छप्रवर्तक श्रीमद्जगच्चन्द्रसूरि वद्यमान श्रीविजयरत्नसूरि, विजयप्रमोदसूरीशाणांपट्टे सु शोभायमान क्रियाद्वारक समर्थशासनप्रभावकाचार्यशिरोमरिणश्रीमदविजयराजेन्द्रसूरीश, श्रीमदविजयधनचन्द्रसूरीश, श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरि, श्रीमद्विजययतिन्द्रसूरीश चरणचन्चरीक मुनिराजश्रीविद्याविजयेन श्री मिठोड़ा सकल
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख संघकृत महामहोत्सवेन सह श्रीमूलनायक श्रीसुविधिनाथादिजिनबिंबाना प्रतिष्ठिता / श्रीसंघश्रेयार्थे शुभम भूयात / (236) 2. मूलनायक श्रीसूविधिनाथजी लेख: विक्रम सं. 2001 माघसिते 6 भृगुवासरे फोसा मूता सेसमल हजारीमलभ्यां श्रीसुविधिनाथजिनबिंब निर्मापित तदं अजनशलाका गदैया माणकजी सुत परागचन्द्रेण कारिता, श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वर करकमले: श्रीमाहोरनगरे-लि. मुनिनीतिविजयेन / (237) 3. श्रीसुमतिनाथजी लेख:-- विक्रम सं. 2001 माघसिते 6 भृगुवासरे नेनावत हेमाजी सुत कपूरचन्द्रेण श्रीसुमतिनाथ जिनबिम्ब कारित, गदैया मारणकजी सुत परागचन्द्रेण अंजनशलाका कारितं कृता च श्रीविजययतीन्द्रसूरिभि आहोरनगरे राजेन्द्र सं. 39 (238) 4. श्रीसुमतिनाथजी लेखः स. 2001 माघ सुदि 6 भृगौ तलेसरा सोलंकी शा. रामचन्द ताराचन्द्रेण श्रीसुमतिजिनबिंब कारित तद् अंजनशलाका कारिता गदैया मारणकजी परागचन्द्रेन श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वर कर-कमलैः पाहोरनगरे श्रीराजेन्द्रसूरि सं. 36 5. 5. पंच धातु प्रतिमा लेख: // संवत 1952 माघ सुदि 15 श्रीहरजी नगरवास्तव्य शा. धनाजीके श्रीशांतिनाथपंचतीर्थी करापितं / उद्यापना करापितं श्रीजावालनगरे / प्राग्वाटज्ञातीय सा जला करापितं / प्रतिष्ठितं श्रीविजयराजेन्द्रसूरिभिः। . मेवानगर यह ग्राम बालोतरा से 11 कि. मी. तथा जसोल से 8 कि. मी. पहाड़ों के बीच में पाया हुआ है / प्रसिद्ध जैन तीर्थ नाकोडाजी इसी गांव की सीमा में स्थित है जिनके लेख अलग से नाकोडाजी के नाम से दिये गये हैं। इस गांव का प्राचीन नाम शिलालेखों में वीरमपुर लिखा मिलता
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 55 है। मन्दिर से गांव एक कि. मी. दूर है / मन्दिर व गांव के बीच एक कुप्रा पाया हया है जिसके पास काफी छतरियां बनी हुई हैं उनमें से काफी तो राजपूतों की देवलियां हैं, परन्तु दो जैन सती देवलियां प्राप्त हुई हैं / (240) 1. जैन सती लेखः - संवत 1685 वर्षे जेठ सुदि 6 दिने गुरवारि समदरडिया गोत्र बालड़ प्रचला भार्या सोहागदे पुत्र दुजरणसाल सरग पुहता मुलतान नगए द्रजणसाल भार्या नवलादे सती श्रीवीरमपुर हुई / / सुत्रधार धरमसीकृत।। (241) 2. // 60 / / संवत 1667 वर्षेः फागुण वदि 6 वार शुक्र: चित्रा नषत्रेः सघवी चांगाः पुत्रः सुरताण: भार्याः सतवंती: सीलवती: मांनादेः स्वर्गगतौः सूत्र कचराः सूत्र धरमसीकृतं / / मोकलसर यह ग्राम समदड़ी भीलड़ी रेल मार्ग पर रेलवे स्टेशन है। यहां कई स्थानों से बसें आती जाती हैं / तहसील मुख्यालय सिवाना का भी रेल्वे स्टेशन यही गांव है / यहां श्रीपार्श्वनाथजी का मन्दिर है / (242) 1. श्रीमूलनायकजी श्रीपार्श्वनाथश्री प्रतिमा लेख: सवत 1545 वर्षे वैसाख सुदि 3 (243) 2. पंच धातु प्रतिमा लेखः.. सं. 1466 फा.सु. 2 ऊकेशज्ञातीय सा. कडुमा भा. कोलूण पुत्र सा. रतनाकेन भा. रतनादे पुत्र वीरमयुतेन स्वश्रेयसे श्रीकुथुनाबिंब का प्र. श्रीसूरिभिः / / . (244) 3. पंच धातु प्रतिमा लेख: सं. 1530 वर्षे फागुण सुदि 10 उ. कुससगोत्रे सा. भाड़ा भा. पदमिणी श्रीशांतिनाथबिम्ब का. प्र. श्रीसिघसेनसरिपट्ट श्रीश्रीधनेश्वर सूरिभि / / प्रतिष्ठितं / रमणीया यह ग्राम मोकलसर से पादरू बस मार्ग पर पाया हमा है। मन्दिर
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख के जीर्णोद्वार का काम चालू था / मन्दिर में मूलनायकजी श्रीसुमतिनाथ जो हैं। मूलनायकजी की प्रतिमा मय परिकर के है / / (245) 1. प्रतिष्ठा लेखः... वि.सं. 2042 वैसाख शुक्ल अष्ठपी रवि पुष्यनक्षत्रे तपा. प्रा. विजयराजतिलकसूरि एवं प्रा. वि. प्रद्योतनसूरिभिः प्रतिष्ठितां। (246) 2. मूलनायकजी प्रतिमा लेखः___ सं. 1998 मार्ग सुद 6 सोमवासरे गोलनगरे श्रीसंघेय श्री. सुमतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छाधिराज श्रीविजयसिद्धसूरिनिदर्शन प. कल्याण विजयगणिः / / (247) 3. पंच धातु प्रतिमा लेख.. ॥सं. 1512 फागुण सु. 12 बुववार सा. वारदेव पुत्र देवदत्तयुतेन निजश्रेयार्थ श्रीविमलनाथ बिम्ब का. प्र. श्रीतपा मा. श्री. हेमरत्नसूरिभिः राखी यह ग्राम मोकलसर खंडप मार्ग पर आया हुआ है / गांव में एक जैन-मन्दिर है जिसमें मूलनायकजी श्रीसुमतिनाथज़ी विराजमान हैं। . - (248) 1. श्रीमूलनायकजी प्रतिमा लेखः- स्वस्ति श्रीपालीनगरे श्रीवीर 2511 वर्षे पोष कृ. 6 दिने श्रीसुमतिनाथ जिनबिंब श्रीराखी जैनसंघ कारितं प्रतिष्ठितं च योगनिष्ठप्रा.श्रीबुद्धिसागरसूरीश्वर परम्परक प्रा. श्रीकैलाससागरसूरीश्वर प्रा. श्रीकल्याणसागरसूरीश्वर आ. श्रीपद्मसागरसूरीश्वर सहितैः शुभं भवतु श्रीश्रमण संघस्य / / .. . (246) 2. पंच धातु प्रतिमा लेखः संवत 1506 वर्षे पू. सु. 8 बुध श्रीमकाष्ठासंघ गोछ भ. श्रीधमी-: मन श्रीभीमा-भोपा गयागोत्रे नारा सहजातीय / ठा. खेता, राण।। श्रीचन्द्रबिंब करापितं ठा. खेताकृतम /
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 57 (250) 3. श्रीशांतिनाथजी प्रतिमा लेख:- // संवत 1955 फागुण वदि 5 गुरो राखीनगरेवास्तव्य पोरवाड़जातीय सा. जवेरचन्द तिलोकचन्द जीत्केन बिंबकारितं प्रतिष्ठितं / श्रीराजेन्द्रसूरिणां प्रतिष्ठा कारितामोसवाल / मू / जसरूप जीताजीत्केन माहोर नगरे तसं / राणी ग्राम - यह ग्राम बाड़मेर चोहटन बस मार्ग पर पाया हुआ है। बाड़मेर से दक्षिण पश्चिम में है / यहां एक घुमटीवाला जैन-मन्दिर है / मूलनायक जी श्री सुमतिनाथजी विराजमान हैं। (251) 1. श्रीमूलनायकजी श्रीसुमतिनाथजी प्रतिमा लेखः-- सं. 2016 माघ सुद 14 गुरु पुष्ययोगे श्रीसुमतिनाविब मेवानगरे श्रीसंघेन कारापिता पू. प्राचार्यदेवविजय हिमाचलसूरिभिः (252) 2. प्रतिष्ठा लेखः वि. सं. 2017 द्वि. ज्येष्ठ सु 13 सोमे राणीगांव श्रीसंघेन श्रीसुमतिनाथ प्रतिष्ठा कारापिता, खरतरगच्छाचार्य श्रीहरिसागरसूरि शिष्याण अनु. यो. आ. कांतिसागरेण प्रतिष्ठितं श्रीसंघस्य श्रेयसे भवतु / (253) 1 // संवत 1534 वर्षे माह सुदि 5 दिने मोढ़ज्ञातीय मंत्रिदेव कारापितं, प्रतिष्ठितं श्रीविद्याधर गच्छे श्रीहेमप्रभसूरिभिः .: यह ग्राम बाड़मेर तहसील में है / यह बाड़मेर मुनाबाव रेलवे का स्टेशन है जो बाड़मेर से पश्चिम में पाया हुआ है / यहाँ पर एक जैन मन्दिर है. जो घर मन्दिर है। प्रतिमा पंच धातु की है तथा श्री पार्श्वनाथ भगवान् की है, प्रतिमा प्राचीन है। .
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________________ 58 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (254) 1. श्री मूलनायक जी पंच धातु प्रतिमा लेखः.. सं. 1270 वर्षे ज्येष्ठ सुदि 5 रवि श्रीश्रीमाल श्रे. भीमा भार्या तेजूश्रेयसे पुत्र श्रीपार्श्वनाथविब कारितां प्रतिष्ठितं अ. सलाखाये श्रीधनदेवसूरिशिष्य-श्रीधर्मचन्द्रसूरिभिः / विठूजा . बालोतरा से विठूजा बस मार्ग है / यह बस आसोतरा होकर जाती है। अाजकल विठजा में एक जैन घर है। किसी समय जैन-धर्म को मानने वालों को काफी बड़ी आबादी थी। यहां पर आज भी एक खण्डहर रूप में जैन-मन्दिर विद्यमान है / उस पर कोई लेख नहीं है। विशाला यह ग्राम बाड़मेर से उत्तर पश्चिम में पाया हुपा है / बाड़मेर से हरसारणी व गिराब जाने वाले बस मार्ग पर स्थित है। यहाँ पर पचधातु की बड़ी प्रतिमा है। जो करीब चालीस से. मीटर ऊंची होगी। मन्दिर श्रीविमलनाथजी का है। श्वेत पाषाण प्रतिमा पर कोई लेख नहीं है। . (255) - शिला लेख स्थापना:१. श्री गोड़ी पार्श्वनाथ नमः सं. 1688 वरषे नवो जिनचैत्य करावंत // श्रीवैसाला मध्ये। संवत 1878 वरष मासोतममासे भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे 13 तिथौ / चन्द्रवारे। धनिष्ठानक्षत्रे सुकरमाजोगे / नवो जीर्णोद्धार करावतं / खरतरगच्छे जं.। जुगप्रधान भट्टारकजी श्रीश्री 108 श्रीजिनहरषसूरिजी विराज्ये / समस्त खरतर अांचलगच्छे श्रीसंघ पंचायती करावतं / प्रांचल गछे सा. श्री / मनरूप / आसकरण / महैस / मनरूप / खरतरगछे सा. ठाकरसी / मु. जेठा / सबला / सा. हीरा बेगड़गछे सा. देवा / समस्त श्रीसघ करावत // पं.।प्र। मनरूप / पं. धीरहर्षचन्द चतुर्मासीकृत्वा / / श्री / / सुभ भवतः कल्याण राठोड। बाहडमेरा / राजश्रीसोभासंघजी महासंघजी। राजसीयोत विजेराज्ये रु. 500 लागा छ / वैशाला मध्ये // श्री / / .
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 54 - (256) . . 2. पंच धातुं प्रतिमा छोटी: // स. 1520 वर्षे ज्येष्ठ वदि 6 शु. उ. सेठिगोत्रे जसा. भा. जाल्हणदे पुत्र सीघर भार्या बीजू पुत्र सोगासहितेन श्रीकुथनाथबिम्ब का. प्र. नागको गच्छे भ. श्रीधनेश्वरसूरिभिः / / श्री / / (257) 3. पंचधातु प्रतिमा बड़ी-र ___ संवत 1637 वर्षे माघ वदि 8 शा. श्रीदीववास्तव्य श्रीश्रीमालज्ञातीयये / रामईया भार्या लाह सुत सिंह राउस भार्या राषमादेप्रमुख कुटुंबसंयुक्त न. श्रीग्रादिनाबिंब कारापितं / श्रीमहात्पागछे भट्टार्क श्रीहीरविजयसूरिभि-प्रतिष्ठित / शुभ भवतु / / श्री / / शिव .. . यह ग्राम बाड़मेर में इसी नाम की तहसील का मुख्यालय है। यहाँ तक बाड़मेर से बस पाती जाती है तथा बाड़मेर जैसलमेर, जैसलमेर बस मार्ग में भी पड़ता है / आजकल यहां जैन लोगों के तीन चारघर हैं। पुराना खंडहर जैन-मन्दिर है जिस पर कोई लेख नहीं है। ' सरगपा . यह ग्राम बाड़मेर से पूर्व दिशा में पाया हुआ है / बाड़मेर सिगदरी रोड पर सपा घाटा उतरने पर गांव तीन मोल पड़ता है। सिरणदरी से नोहर जाने वाली बस मार्ग पर है / यहाँ पर एक घर मन्दिर है जिसका न. म लक्ष्मी भवन हैं। - (258) 1. रथापना लेखः परम पूज्य मेवाड़-केसरी * प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयहिमाचल सूरीश्वरजी महाराज के शिष्यरत्न मुनिश्रीलक्ष्मोविजयजी मुनिश्रीमानक विजयजी के उपदेश से सणपा श्रीसंघ द्वारा निर्मित लक्ष्मी भवन . . (256).. 2. मूलनायकजी श्रीपादिनाथजी पंच धातु प्रतिमाः" / / संवत 1528 वर्षे वैसाख वंदि 5 महेवावास्तव्य उकेशज्ञाः चोपड़ागोत्रे सा. साल्हा भा. सिरिमादे सुत. हेमा राउलीस्या भा. हेमादे || ॐ॥
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________________ 60 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख तोली पुत्र वीरम पोपा भा. रूपी-सुतउदादिकुट बयुतेन स्व श्रेयोर्थ श्रीया दिनाथबिंब कारित / प्रतिष्ठितं श्रीउपकेशगछे कुकदाचार्यसंताने श्रीदेवगुप्तसूरिभिः समदड़ी जंक्शन यह नगर बाड़मेर जोधपुर रेल मार्ग पर पाया हुआ है / यहाँ से रेल की एक लाईन सिवाना जालोर होती हुई भीलड़ी जाती है। यहाँ दो जैन मन्दिर हैं, परन्तु दोनों का जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है। जूना बास में मन्दिर तीन चौथाई बन चुका है तथा नया बास में आधा बना है / अभी पूजायें घर मन्दिरों में हो रही है / जूना बास मन्दिर में कोई लेख नहीं है। नया बास में सुपार्श्वनाथजी के मन्दिर तथा पास ही में बनी दादावाड़ी से लेख प्राप्त हुए हैं / नया बास मन्दिर लेख ___(260) 1. श्रीसुपाश्वनाथजी मूर्ति लेख: ॥मा 62 / / 1786 प्रामाय श्रीगुरुवासरे प्रणा मिशतं 2. पंच धातु प्रतिमा लेख: संवत 1266 वर्षे वैशाख सुदि 10 बुध श्रा. शालिग पुत्र पार्श्वन श्रीने मिनाथ-प्रतिमा पित्रुः श्रेयार्थ कारिता प्रतिष्ठिताः श्रीपार्श्वदेवः प्रेरितः . (262) / 3. पंच धातु प्रतिमा लेख: ॥सं. 1514 वर्षे फागुण वदि 12 सोम जाईलवालगोत्रे छाजल यांस खीमा पुत्र सा धीरा पुत्रात्पं // सा. झाझरण देन सई। श्रीनिजपितृ धीरा पुण्यार्थ श्रीसंभवनाथबिंब का. प्र. तपागच्छे श्रीपूर्णचन्द्रसूरिपट्टे श्रीहेमहंससूरिभिः // (263) 4. पंच धातु प्रतिमा लेख: संवत 1556 वर्ष वैशाख सुदि 13 रवि उपकेशज्ञाति तातहड़गोत्रे सा. हड़ा भा. सुहरादे पु. सामल भा. सुगुरगदे पु. समसूर सहसमल आत्मश्रेयांस श्रीसूविधिनाथबिब कारितं प्रतिष्ठितं उपकेशगछे कूकदाचार्यसंताने श्रीश्रीश्रीदेवगुप्तसूरिभिः // // नदताय चन्द्राकों॥ श्री॥ . (261) . e-imidis
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख : 65 (264) 5. वीर संवत 2510 तमे वर्षे विक्रम संवत 2040 तमे वर्षे चैत्र कृष्ण पंचमी दिने शुक्रवासरे प्रातःकाले तपागच्छीय सिध्धांत महोदधि स्वः आचार्य श्रीविजयप्रभसूरीश्वराणां पुण्यप्रभावक श्रीविजयकलापूर्ण सा. गरिण श्रीहेमचन्द्र विजयादिभिः प्रतिष्ठितं श्रीगिरनार तीर्थ सहस्राम्रवने श्रीसमवसरणमंदिरे श्रीसहषावन कल्याणभूमि तिर्थोधार समिति करितां जनरालाकां विधिप्रतिष्ठामहोत्सवे कारापितं श्रीचोबीसी शांतिजिनबिंबमिदं राजस्थान समदड़ीग्रामस्य संप्रति महेसाणावास्तव्य मुलतानमलजी पुत्र रूपचन्द-सपरिवारेण / समदड़ी दादोवाड़ी लेख (265) 6. धातु मूत्ति लेख भाषा गुजराती:-- शीव (मूबई) उपनगरे वी. सं. 2465 जे. शु. 5 दिने समदडी (मारवाड़) नि. बी. प्रो. कंकुगोत्रीय स्व; श्रीदयारामजी सुपुत्री मुल्तानमलजी तथा मुकनचंदजी सुपत्नी समादेवी सुपुत्र नरपतलाले श्रीवासुपुज्यस्वामी-पंच तीर्थी भराव्यां / तपा. प्रा. श्रीकैलाशसागरसूरीश्रे प्रतिष्ठित कर्या छ / - (266) 7. दादा जिनदत्त सूरि जी:-- वि. सं. 2024 का वैशाख शुक्ला 6 को शा. गणेशमल पुखराज ... श्रीजिनदत्तसूरि की मूत्ति भरवाई प्राचार्य श्रीप्रेमसूरिजी मुनियोन जिनप्रभविजयजी प्रतिष्ठा करापितं // (267) 8. सिद्ध-चक्र-यन्त्र लेख:--.. ॥सं. 2036 माघ सुद 14 गुरु पुष्य योगे श्री सिद्धचक्रयन्त्रलुणावत समदड़ी वा. शाह सानीत पुत्र प्रतापमल करापितम मेवानगरस्य नाकोड़ा तीर्थ श्रीसंघेन श्रीहिमाचलसूरिभिः।। . . (268) 6. श्याम पाषाण प्रतिमा श्री ऋषभदेवजी लेखः संवत 1775 वर्षे मिति वैसाख सुदि 3 श्रीरीषबदेवजीबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीपूजजी श्रीरघोसीघजी।
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________________ 62 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (266) 10. श्रीआदिनाथजी श्वेतपाषाण लेख:... सं. 2011 मार्ग सु. 6 बुधे जाबालिपुरवा. सा. भीमराजने स्व. भार्या गजीश्रेयसे आदिनाथबिंब का. सा. जोधाजी मनीराम का. प्रतिष्ठायांम पं. कल्याणविजयगणिना मांडवला (270) 11. श्रीसुमतिनाथजी श्वेत पाषाण लेख: 2013 वर्षे माघ शुल्क: 10 रवि गोलनगरीय मु. ऋषभचन्द्रेन स्वपित जुहाराजी स्वमात देवीचन्द हस्तीमलयो स्वस्यब श्रेयार्थ श्री सुमतिनाथ : कारित : श्री पुजाजी पत्नया गजरां श्राविकया स्वपुत्र " देवीचन्द नेनमल चम्पालाल छगनलाल सहितयां कारितं प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठितः ! पं. कल्याण विजयगरिण नामनि सौभाग्यविजयादिपरिवारेण / .. (271) .. 12. श्रीशीतलनाथजी लेख:- 2013 वर्षे माघ सु. 10 रवी गोलनगरीय मारणकजी पुत्र घेवरचन्द्रेण स्वमातु धापुश्रेयार्थ श्रीशीतलनाथसामी सा. पूजाजी भार्या गजरा श्राविका का. प्रतिष्ठाया प्रतिष्ठितः पं. कल्याणविजयगरिण नामनि सौभाग्य विजयादि। 13. श्याम पाषाण श्रीसुमतिनाथजी लेखः संवत 1468 वर्षे चेत्र सुदि 5 प्राग्वाट उसासी भं.। ..........श्रीसुमतिनाबिंब कारिता प्रतिष्ठितं / .. ... सिणधरी .. ... सिणधरा .. / थह. ग्राम बाड़मेर से पूर्व में बाड़मेर बालोतरा बस मार्ग पर पाया हुआ है / यहां पर एक तपागच्छ का दूसरा खरतरगच्छ का मन्दिर आया हुअा है। ... (273) .. ...... 1. श्री ऋषभदेव मन्दिर के मूलनायक जी पर लेख ॥ऋषभदेवजीबिंब स्थापितं ..... ........... .
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख / 63 ................... (274) . . 2. श्रीमहावीरजी प्रतिमा लेख ॥सं. 1884 मा. सुद 5 श्रीजिनहर्षमूरि, पं. वा. माणिक्यहंसगणि श्रीमहावीरजिनबिंव प्रतिष्ठित / (275) 3. प्रतिमा लेख ॥सं. 1955 रा फागुणमासे कृष्णपक्षे 5 तिथी गुरुवासरे जिनमुक्तिसूरिभिः। प्रतिष्ठिापित श्री माहोरनगरे।। श्रीचन्दाप्रभ सिणधरी। . (276) 4. पादुका लेख सं. 1994 रा फागुण सुदि 2 भृगुवासरे स्थापितं / श्रीजिन - कुशलसूरि गुरुचरण स्थापितं सिणधरीग्रामे पं. प्र. ही मतमल / (277) . . . . . . . . . 5. प्रतिष्ठा लेख - ॥श्री ऋषभदेवस्वामी ने नमः / श्रीः।। ॥सं. 1955 शाके 1820 रा प्रवर्तमाने मासोत्तममासे पौषमासे शुक्लपक्षे द्वादश्यायां तिथौ सोमवासरे शुभलग्ने श्रीभावहर्षगच्छे सीभीत: उ. प. पू. श्रीजुहारमलजो सोमपुरा केवलरामः वाः वा: कोसेलाव वाला मन्दिर उपदेसित श्रोहोरविमलजो श्रोसिणधरीनगरे समस्त श्रीसंधेन नीबड़ा वाले मन्दिर श्रीऋषभस्वामीबिंब स्थापितः अथ प्रतिष्ठा हुई तीनरे चढ़ावा रो वीगत। ...... दाः पं. हिमतमल रा छ श्रीभावहर्षगच्छे / / सकलसंघ सुखदायक / श्रीहरि विहार उपासरा (278) 6. यह श्रीहीर विहार प. पू. मेवाड़ केसरी श्रीनाकोड़ाउद्धारक प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयहिमाचलसूरीश्वरजी महाराज साहेब के शिष्यरत्न पू. मुनिराज श्रीलक्ष्मी विजयजी महाराज के उपदेशों द्वारा निर्मित कराया ॥श्रीरस्तु।। सियाणी क यह ग्राम बाड़मेर से पश्चिम में आया हुया है। बाड़मेर से यहाँ पर प्रसिद्ध. ऐतिहासिक स्थान किराडू होकर बस जाती है। यहां पर
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________________ 64 ] बाडमैर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख श्रीपादीश्वर भगवान का मन्दिर है / यहाँ पर एक चरण-पादुका पर इस जिले का सबसे प्राचीन जैन लेख अंकित है। (276) 1. श्रीमूलनायकजी आदिनाथजी प्रतिमा लेखः___स. 1910 सावरण प्रथम मासोत्तममासे 5 गुरुवार श्रीऋषबदेजी - (280) (280) . .. 2. मन्दिर में शिलाले . ॥श्रीआदिनाथ:खर कर्मजाल हन्तार को दुस्तर संकट छ:सुरेन्द्र भू भृजण संस्तुताने पायाद्मवात्तव मतं शिष्ठ रक्तमान / सीहाणी पूरे श्रीवृद्धिचन्द तशिष्यकर्पूरविजय तशिष्य धन्य विजयोन सदुपदेशेन तत्रस्य संघ कारापित चैत्ये श्रीपादिनाथ प्रतिमा सं. 1977 ज्येष्ठ सुद 5 तिथौ शनो श्रेयोनिमित्तं स्व-परहिताय प्रतिष्ठापिता पुनस्तत्र धर्मशाला कारितिति / / इष्टदेवाय नम / / (281) 3. पंच धातु प्रतिमा लेख:... संवत 1438 वर्षे असाढ सुदि / शुक्रे माह वाशव्यःसांडा भार्या संसारदे भा. सूमलदेसुतसहितेन सामलपितृश्रेयार्थ महिपाल श्रीपार्श्वनाबिंब कारितं आगमगच्छ श्रीजयतिलकसूरिउपदेशात / (282) 4. श्याम पाषाण प्रतिमा श्रीमल्लिनाथजी पर लेख:-- संवत 1493 वर्षे फागुण वदि 1 दिने श्रीमल्लिनाथबिंब प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे / (283) 5. चरण-पादुका लेख:-- सं. 1072 वर्षे मिति अषाढ वदि 5 बुधवार श्रीमुनिधर्मसीगणी पादन्यास कारापिता श्रीपतविकरणशिष्य-अमरसी भा. शान्तिदेवीकोटमध्ये। .. . . . . . . .. सिवाना ... .. यह ग्राम इस जिले का प्राचीन गांव है। यह इसी नाम की तहसील का मुख्यालय है / यहां किला तथा नगर का परकोटा बना हुमा है / इस गांव का इतिहास जितना पुराना है . उतना पुराना कोई मन्दिर या शिलालेख नहीं मिला / इसका कारण मुसलमानों के हमलों के समय
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 65 मन्दिरों का तोड़ना तथा मूर्तियों का खडित करना हो सकता है / यहाँ पर अलाउद्दीन खिलजी ने चौहान सांतलदेव पर, अकबर ने राव चन्द्रसेन पर तथा औरंगजेब ने वीर राठौड़ दुर्गादास पर हमले किये थे / अकबर ने राठौड़ राव कल्याणमल रायमलोत पर भी हमला किया था। ___यहाँ के मन्दिरों की विगत इस प्रकार है:१. गौड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर-पोल के अन्दर 2. दादावाड़ी जिनकुशलसूरिजी-पोल के अन्दर 3. गुणेशमलजी भीमराजजी का मन्दिर श्रीपार्श्वनाथमन्दिर 4. चौमुखजी श्रीपार्श्वनाथजी मन्दिर 5. मिठोड़ों का बास-जैन मन्दिर 6. पादरू का बास जैन मन्दिर 7. मोकलसर रोड, जैन मन्दिर 8. राज मन्दिर 6. जैन पेढ़ी में निर्माणाधीन मन्दिर श्रीगौड़ी पार्श्वनाथजी मन्दिर (284) 1. प्रतिष्ठा लेखः श्रीवितरागाय नमः ॥अस्य मन्दिरस्य पुनरुद्धार गढ़सिवानावास्तव्य समस्त श्री. संघेन कारितः प्रतिष्ठापितश्च प्रतिष्ठितं जगद्गुरुदेव श्रीमद्विजयहीरसूरीश्वरसंतानीय हितसत्कविजय हिमाचलसूरिभिः संवत रसकरा भ्र नेत्रं मार्ग शुक्ल षष्ठया मूत्तियो अर्कवासरे श्रीरस्तु // लिपिकृतं विद्यानन्दविजयः 2. पंचधातु प्रतिमा:- . . - // सं 1510 वर्षे माह वंदि 5 दिन उ., बलाहड़ीयागोत्र सा. वीसल भा. धानी पुत्र लाषा भा. लषमश्री पु. हाल भिः सह सा. ऊपरण मित्र श्रीशांतिनाथ बिम्ब कारापितं प. श्रीपल्लिकायगछे श्रीयशोदेवरिभिः / / शुभभवतु // __(286) 3. गुरांसा की छतरी:- संवतः 1766 वर्षे शाके 1635 प्रवर्तमाने असाढ़ सुदि-सोमवारे (285)
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख भट्टारकश्रीजिनसुदर सूरिजी विजयराज्ये पादुका प्रतिष्टितं श्रीमहाराजाधिः राज माहाराज श्रीग्रजीतसिंघजी विजयराज्ये श्रीसिवाणगढ़ महादुर्गेपादुका करापिता / (287) 4. एक ही शिला पर चार पादुका लेखः (i) भट्टारक श्री जिनसमुद्र सूराधिराज पादुका (ii) वा. श्रीसामीदासजी केन पादुका (iii) भवानीदासजीकेन पादुका (iv) प. श्रीदेवीदासजीकेन पादुका (288) 5. पादुका लेखः-- // संवत 1922 रा शाके 1787 वर्षे माघ वदि तिथौ दिन दिसु पांचम बुधवासरे पूर्वाषाढ़ानषत्रे गुरां साहिबजी श्रीश्रीराधाकिशनजी तशिष्य अखेचन्दजो तत् शिष्य ताराचन्द पादुका प्रतिष्ठितं / / श्रीदादाजी जिनकुशलसूरिजी दादावाड़ी ___ (286) 1. पातुका लेख पीत पाषाण:-- // संवत 1661 वर्षे वैसाख सुदि 3 दिने गुरुवारे रोहिनी नक्षत्रे खरतरगछे श्रीजिनकुशलसूरीश्वरांणि पादुका प्रतिष्ठितं / ...... स्थानकवासी धर्मशाला (290) 1. पादुका लेखः- संवत 1608 रा माह सुदि 5 विवेकविजेजी शिष्य विनविजे गुरांसा नौहरविजेजी। श्रीवासुपूज्य भगवान का शिखरबन्द मन्दिर (261) 1. प्रतिष्ठा लेखः- . अस्य नूतन जिनमंदिरस्य निर्माणितं उम्मेदपुरा (गढ़ सिवाना)वास्तव्य समस्तश्रीसंघेन प्रतिष्ठिापितश्च प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छीय
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 6. प्राचार्य श्रीमज्जिनकृपाचन्द्रसूरीश्वराणां पट्टधर प्राचार्य श्रीमजिज्न जयसागरसूरीश्वरेण नेतृत्वे वि. सं. 2000 रा वैसाख सुद 6 (262) 2. पंच धातु प्रतिमा लेख:. सं. 1602 फागुण वदि 2 लोढ़ागोत्र संघ घिरपाल भार्या लाछी स्वयार्थ कारिताः (263) 3. पंच धातु प्रतिमा लेख:-- सं. 1768 वैसाख सुद 5 बुधवारे श्रीवासुपूज्य कारापितः अमृतीया बेड़ा श्रीरतनलालजी बालड़ (264) 1. श्रीप्रासापुराजी प्रतिमा लेखः यह देवली नई पारकर बाई भंडारीजी रतनमलजी प्रेमराजजी सूरजमल बेटा पोतरा हरखमलजी रा 1982 रा मिति जेठ सुद 10 सा प्रेमराज। श्रीसुमतिनाथजी का मन्दिर शामरणा शिखर (265) 1. प्रतिष्ठा लेख: - प्रतिष्ठा संवत 2040 माघ वद 6 आचार्यश्रीविजयसोमचन्द्रसूरीश्वरजी मुस्तानमल कुन्दनमल धार्मिक ट्रस्ट द्वारा बनवाया गया / ... झंडा का चौक-पोल के अन्दर (266) 1. शिला पट्ट लेख: ॥श्रीजालंधरनाथजी / / . सही ॥सिधश्री राज राजेश्वर महाराजाधिराज महाराजा श्री श्री 108 श्री श्रीतखतसिंघजी देववचनायतु कसबै सिवारणा रा महाजनां समस्तौ ने मेहरबान होयने दंण्ड विराड माफ कियो है सो पाल औलाद कदेही लिरासी नहीं दुवायती रावराजा बाहादर लोढ़ा रिधमलजी री संवत 1600 / फागुण सुद 3
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________________ 60 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख राजमन्दिर श्रीकुन्थुनाथजी शिखरबन्द (न्याति नोहरे के पास) (267) 1. प्रतिष्ठा लेखः- .. . वि. सं. 2041 वैशाख कृष्ण 5 शुक्रवासरे निमाजनगरे श्रीकू थनाथजिनबिंब सिवानावास्तव्य श्रीमदराजचन्द्र मुमुक्षुमंडलेन कारापितं तथा तपा. आचार्य पद्मसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं च शुभ भूयात श्रीसंधस्य च / / -- सुमतिनाथजी का मन्दिर-न्याति नोहरा, मोकलसर रोड (268) 1. प्रतिष्ठा लेख श्रीगढ़सिवानानगरे वि. सं. 2040 माघमासे कृष्णपक्षे प्रतिपदा तिथौ बृहस्पतिवासरे श्रीसुमतिनाजिनबिंब श्रेष्ठिवर्यं मुल्तानमलजीश्रेयोर्थे अमीचन्द प्रवीणकुमार हीराचन्द जिनेश विवल महावीर विक्रम बागरेचा सपदियारेण श्रीतपागच्छीय प्रा. भ. श्रीमद्विजयसोमचन्द सूरीश्वरजी पं. श्रीजिनचन्द्रविजयजी सपरिवारस्य शुभनिश्रामम अंजनम कारितम् / / तथैव कृष्णपक्षे पष्ठि तिथौ चन्द्रवासरे प्रतिष्ठितम / / इति शुभं भवतु / / श्री ऋषभदेवजी का मन्दिर-पादरू का बास (266) 1 प्रतिष्ठा लेख जयन्तु वीतरागाः श्रीसौधर्म वृहत्तपोगच्छाधिपति पूज्यपाद भट्टारक गुरुदेव प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर जी मा. के पट्टधर न्याय चक्रवर्ती श्रीधनचन्द्रसूरीश्वर जी म. के पट्ट साहित्य विशारद श्रीभूपेन्द्रसूरीश्वरजी म. के पट्ट तीर्थोद्धारक श्रीयतीन्द्रसूरीश्वर म. के पट्ट गणाधीश श्रीविद्याचन्द्रसूरीश्वरजी ने. वि. सं. 2501 वि. सं. 2031 श्रीराजेन्द्रसुरि सं. 66 पौष सु. 14 के दिन शुभ लग्नांश में चौमुख चैत्य की प्रतिष्ठा की। चौमुखजी का मन्दिर श्रीपार्श्वनाथजी (300) 1. प्रतिष्ठा लेख-.. श्री पार्श्वनाथ प्रभु की स्थापना इस मन्दिर की प्रतिष्ठा परम
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख पूज्य सकल आगम रहस्य वेदी बाल ब्रह्मचारी स्व. प्रा. देव विजयहर्ष सूरीश्वर जी म. के प्राज्ञाकारी पूज्य पाद मुनिराज श्रीकस्तरविजयजी महाराज (देहलावाला) के कर कमलों से सम्पन्न हुई वि. सं. 2022 मीगसर शुक्ल 10 वार शुक्र चौधरी चन्नीलाल सरदारमल संतोकचन्द्र पुखराज पारसमल सुरजमल जवाहरलाल बेटा पोता अगदाजी बागरेचा की तरफ से / (301) 2. पंच घातु प्रतिमा-- सं. 1508 वर्षे प्राषाढ़ सुदि 6 रा सुराणा गोत्रिय भा. सीमाकेन स. सहसराज निमित्ते श्रीसुपार्श्वबिंब कारित प्र. पं. श्री.राज गच्छे श्री............. 3. पंच धातु प्रतिमा- // स 1508 वर्षे जेष्ठ सुदि 13 बुधे उपकेश ज्ञातोय बालड़ गांगा स. दीता भा. कमीदे पु. रूपा भा. मोहणदे पु. वरडा सहि. श्रेयस श्री शान्तिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं वोकड़ी गच्छे श्रीमलयचन्द्रसूरिभिः / हरसारणी यह ग्राम बाड़मेर से उत्तर पश्चिम आया हुआ है। यहाँ तक बाड़मेर से बस जाती है। यहाँ पर श्री शान्तिनाथजी का मन्दिर है। (303) 1. मन्दिर पर लेख: ___ श्री जैन श्वेताम्बर श्री शान्तिनाथजी का मन्दिर हरसाणी सं, 2010 चैत्र सुदि 15 वी 2480 (304) 2. पंच धातु प्रतिमा : ___ सं. 1325 माघ सुदि 5 सनै श्री सुरता श्री श्रीमाल सा, मूलदेव भार्या मुजल पुत्र सा. कालऊ भार्या तयजलदेवी पुत्र सा. घतऊ भा सोमऊ ए तिष्णं श्रेयसे श्री आदिनाथ प्रभृति पंचायतन कारित प्रतिष्ठितं पल्लि गच्छे श्री - सूरिभिः ___ (305) 3. पंच धातु प्रतिमा: सं. 1523 बर्षे दिवे कातीय सुद 6 बुधे मोदाई प्राग्वाट ज्ञातीय सा. लापाजी भा. राणी सुत श्रे, कालाकेन भा. कर्मादे सुत होग भा. राजि
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________________ 70 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख कुटुब युतेन स्टेयेस श्रीशांतिनाथबिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं राद्रगच्छे श्रीक्षमाचन्द सरभि: (306) | 4. पंच धातु प्रतिमा: // सवत 1525 वर्षे मार्ग सुद 10 उकेश सो. राना भा. रानोद पु. सो. नगराज भा. नयणदे पु. सो. मांकाकेन भा. धनाई पु. कमलसी बछराज हांसादि कुटुब युतेन श्री विमलनाथ बिम्ब का. प्र. तपागछे श्री रत्नशेखरसरिराजे पेट्ट श्रीतपागच्छनायक श्रीलक्ष्मीसागरसूरि राजे अहमदाबाद / / श्रीः / / (307) 5. श्री दादाजी प्रतिमा लेख: सं. 2036 जे. सु. 6 शुक्रवासरे हरसानी नगरे पू. श्रीजिनकुशलसूरिबिम्ब खरतरगच्छाचार्य श्रीमानन्दसागरसूरि शिष्यरे उदयसाग प्रतिष्ठितः श्रेष्ठ बिकचन्द शेरमलाणी छाजेड़ सत्र स्थापी छ।
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख श्रीनाकोड़ा तीर्थ-मेवानगर . (308) 1. तीर्थ की पेढ़ी श्रीपार्श्वनाथ प्रतिमाःसंवत 106 .....(1060) वैशाख वदि 5 धर्मेण प्रतिमा कारितेति / / श्री पार्श्वनाथ मन्दिर लेख (309) 2. कीत्तिरत्नसूरि मूत्तिः संवत 1536 वर्षे श्रीकीतिरत्नसूरि गुरुभ्यो नमः सा. जेठा पुत्री रोहिणी प्रणमति / (310) 3. श्री पार्श्वनाथ मन्दिर चौकी: // स्वस्तिश्री र्जयो मंगलाभ्युदयश्च / संवत. 1678 वर्षे शाके 1544 प्रवर्तमाने / द्वितीय आसाढ़ सुदि 2 दिने रविवारे / राउल श्री जगमालजी विजयराज्ये / श्री पल्लिकीय गच्छे भट्टारक यशोदेवसूरि जी विजयमाने श्री महा. वीर चैत्ये श्रीसंघेन चतुषिका कारिता श्रीनाकोड़ा पार्श्वनाथ प्रसादात शुभं भवतु उपाध्याय श्री कनकशेखर शिष्य पं. सुमतिशेखरेण लिखितं श्रीछाजहड़ देवशेखरजी संबन कारापिता सूत्रधार ! ऊजल भ्रातृ झांझा घड़िता मंत्रिज कचरा। (311) 4. श्री पार्श्वनाथ मन्दिर रंग मंडपः // 60 // प्राषाढ़ादि संवत 1681 वर्षे चेत्र वदि 3 दिने भोगवारे हस्त नक्षत्रे वीरमपुरे राउल श्री जगमालजी विजयराज्ये श्री पल्लिवाल गच्छे भट्टारक श्रीयशोदेवसूरिजी विजयमाने श्रीपार्श्वनाथ जी चैत्ये श्री. पल्लिगच्छ संधेन गवाक्षत्रय सहिता सुशोभना निर्गम चतुष्किका कारापिता उपाध्याय श्री हरशेखराणं पट्ट प्रभाकरो उपाध्याय श्री कनकशेखर तत्पट्टांलंकारोपाध्याय श्री देवशेखरे स्वर्गते उपाध्याय श्री कनकशेखर हस्त दीक्षिते उपाध्याय श्री सुमतिशेखरेण स्वहस्ते
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________________ 72 ] बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (312) 5 नालिमण्डप का शिलालेखः संवत 1681 वर्षे प्राषाढ़ वदि 6 सोमवारे। राउल श्रीजगमालजी राज्ये / श्रीपल्लिगच्छीय श्रीसंघेन श्रीपार्श्वनाथजी. चैत्ये नालिमण्डपं कारापित उपाध्याय श्री. शिवा लिखितं / सूत्रधार मेघा सूत्र कचरा सू तारा कारीगर कमांण / शुभंभवतु श्री संघस्य श्रेयोस्तु // 6. श्री पार्श्वनाथ मूर्ति परः-- .. - - सं. 2016 माघ शु 14 तिथौ गुरु पुष्य योगे वेलूर वा. जवानमल गणेशमल परिवार सहितेन श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्र. मेवानगरे श्रीसंघेन. प्रतिष्ठितं श्रीविजयहिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु / (314) 7. परिकर पर:-- . सं. 2016 माघ शु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीपार्श्वनाथ परिकर प्र. वि. हिमाचल सूरिभिः श्री / (315) 8. परिकर मूत्तियो पर:-- सं. 2016 माघ शु 14 गुरु पुष्य योगे श्रीपार्श्वनाथस्येदं परिकर तखतगढ़ वा. जवानमल सांकलचन्द भुरमल रामचन्देन कारितं प्रतिष्ठितं मेवानगरे श्रीसपेन, प्रतिष्ठितं प्राचार्य विजयहिमाचलसूरिभिः कल्याणमस्तु शिल्पज्ञं सरेमल चारणोद श्री। 6. श्री पार्श्वनाथ सपरिकर मूत्ति परः-- . .सं. 2016 माघ शु.१४ तिथौ गुरु पुष्य योगे तखतगढ़ वास्तव्य जवानमल सांकलचन्द भरमल रामचन्द पुत्र पौत्रादि सहिते : श्रीपार्श्वनाथ परिकर सहितं बिम्ब कारितं प्र. मेवानगरे श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं प्र. प्राचार्य विजयहिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु। (317) . 10. परिकर पट :___सं. 2016 माघ शु. 14 गुरु पुष्प योगे श्रीपार्श्वनाथ परिकरं प्र. वि. हिमाचलसूरिभिः श्री:
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन मिलालेख [73 (318) 11. परिकर मूर्तियों पर :-- सं. 2016 माघ शु. 14 गुरु पुष्य योगे श्री पार्श्वनाथेदं परिकरं वेलर वास्तव्य जवानमल गणेशमलेन कारितं प्रतिष्ठितं मेवानगरे श्री संघेन प्रतिष्ठितं प्राचार्य विजयहिमाचलसूरिभिः कल्याणमस्तु शिल्पज्ञ सरेमल सोमजी चारणोद (राजस्थान) (319) 12. शांतिनाथ पंचतीर्थी : रोहिडावाला श्री शिवगंज निवासी (राज.) पोरवाल वजरीय परमार गोत्रिय ज्ञातीमा श्रीचुन्नीलालजी घ. प. कंकुबाई सुपुत्र श्रीदेवीचन्दजी तेमनी घ. प. बगसीबाई ना पुत्र श्री अनराज सम्पतराज सरदारमल कन्हैयालाल आदि परिवारे श्रीशान्तिनाथ पंच तीर्थी भरावी प्रतिष्ठा पू. प्रा. श्री विजय जिनेन्द्रसूरिजी महाराजे शिवगंज मां करावी स्वस्ति श्री 2466 वोराब्दे सं. 2026 वि. वर्ष मार्ग सुद 10 ता. 15-12-1672 शुक्रवार श्रीपार्श्वनाथ मन्दिर गर्भ गृह (1) (320) 1. / / सं. 1861 माघ शुक्ल 5 श्रीमाल गोत्र श्रीराम........... श्रीरीषभदेवजी (321) . , 2. शिलापट्ट प्रशस्ति ॥सवत् 1864 वर्षे माघ वदि 5 सूर्जवासरे श्रीवृहत खरतरगच्छे सकल भट्टारक सिरोमरिण जंगम युगप्रधानम / श्री श्री 108 श्री श्री श्रीजिन हर्ष सूरिजी सूरीश्वरराज श्रीचिन्तामरिण पार्श्वनाथजी श्रीमहावीर जी संकल श्रीसघ सहितेन श्रीपाताल चैत्य नौतन कारापित प्रतिष्ठितं वा। जराज लिपिकृतं देहरारी दरोगाई सुप्रसादति सानक पंच दत। श्री राठौड़ वंशे राज श्रीजैसिंगदेजी विजे राज्ये / सूत्रधार गजधर सम्भू कृत: जोध हरदेवाजी रो बेटो। __(322) 3. यक्षमूर्ति: सं. 1661 माघ शु. 13 दिन /
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________________ 74 ] बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (323) 4. देवीमूतिः-- सं. 1661 माघ शु. 13 दिने / (324) 5. आदिनाथ:। स्वस्ति श्रीमहेसाणानगरे वि. सं. 2028 वर्षे वैशाख सु. 6 दिन श्रीआदिनाथबिंब म. हरिचन्द सुपुत्र रघुनाथ सुपुत्र कल्याणजी सुपत्नी लीलावन्त्या कारितं प्रतिष्ठितं च तपा. आ. श्रीकैलाशसागर सूरिणा। (325) /6. सुपार्श्वनाथ:-- श्रीमहेसाणानगरे श्रीवीर सं. 2468 वर्षे वैशाख सु. 6 दिने श्रीसूपार्श्वनाथ जिनबिंब शेरगढ़ नि. चौपड़ा पुखराज सुपुत्र संपतमलेन कारितं प्रतिष्ठित च. तपा. प्रा. कैलाससागर सूरिणा // (326) 7. महावीर:---.. स्वस्ति श्रीमहेसाणानगरे 2028 वर्षे वैशाख सुद 6 दिन श्रीमहावीर स्वामी जिनबिंब रसिकलाल सुपुत्र देवेन्द्र श्रेयोर्थ कारितं च तपा. ओ. श्रीकैलाससागर सूरिणा।। श्री पार्श्वनाथ मन्दिर गर्भगह (2) (327) 1. शिलापट्ट प्रशस्तिः // उपाध्याय श्री 5 देवशेखर विजयराज्ये / / // 60 // संवत 16 प्राषाढ़ादि 67 वर्षे भाद्रप शुक्लपक्षे श्री नवमी दिने शुक्रवासरे श्रीवीरमपुरे श्रीपारसनाथ श्रीमहावीर भूमिगृहं .. श्रीपल्लिवालगच्छे भट्टारिक श्रीयशदेवसूरि विजयराज्ये, राउल श्रीतेजसीजी विजयराज्ये कारितं श्रीसधेन पण्डित श्रीसुमतिशेख रेण लिपिकृत / सूत्रधार दामा तत्पुत्र मनाधना वरजांगनेकृतम // भ्रात्तीज सोमा मेघा कला पुत्र कल्याण // भाणेज नासण / श्रीपारसनाथ श्रीमहावीर श्रीरक्षा शुभं भवतु : / / सू. गजघर (328) 2. सुपार्श्वनाथ:-- सं. 1880 माघ सुदि 5 दिन गुरो". ..
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (326) 3. शान्तिनाथ:सं. 1655 माघ शु............ __ (330) 4. धर्मनाथ: सं. 1955 फा. 5 गुरौ श्रीधर्मनाथ जिन बिम्ब प्र.व.ख. भ श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः-- (331) 5. महावीर:-- ___सं. 1955 फागुण वदि 5 प्रतिष्ठितं राजेन्द्रसूरिभिः सियाणासंघेन बिम्ब कारितं सौधर्म तपागच्छे प्र. जसरूपजीतेन पाहोर / - (332) 1. संभवनाथ:-- सं. 1661 मा. शु. 13 श्रीसंभव बि. का .........." (333) 7. सुमतिनाथ:सं. 1991 मा. शु. 13 सुमतिबिंब का. श्रीसंघेन मेवानगरे (334) 8. सुपार्श्वनाथ:सं. 1661 मा. शु. 13 सुर्य वि. का. श्रीसंघेन .. (335) 6. चन्द्रप्रभ: / स. 1661 माघ सुदि 13 दिने श्रीचन्द्रप्रभुजीबिम्ब कारापितं श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं जगद्गुरुदेव श्रीमद्विजयहीरसूरीश्वरजी के संतानीय अनुयोगाचार्य श्री हितविजयजी महाराज के पंन्यास श्रीहिम्मतविजयेन श्रीमेवानगरे / श्रीरस्तु॥ (336) 10. श्रेयांसनाथ: ॥सवत 1991 माघ सुदि 13 दिन श्रीश्रेयांसस्वामीबिम्ब कारापितं श्रीसघन प्रतिष्टितं जगद्गुरुदेव श्रीमद्विजयहीरसूरीश्वरजी के सन्तानीय / अनुयोगाचार्य श्रीहितविजयजी महाराज के पन्यास श्री हिम्मत विजयेन श्रीमेवानगरे। श्रीरस्तु / / ...
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 14. पद्मावती: (337) 11. शांतिनाथः / संवत 1991 माघ शुक्ल 13 दिने श्रीशान्तिनाथ बिम्ब कारापितं श्रीसंघेन जगद्गुरुदेव श्रीमद्विजयहीरसूरीश्वरजी के सन्तानीय अनुयोगाचार्य श्री हितविजयजी मा. प.प्र. श्री हिम्मतविजयेन श्रीमेवानगरे / श्रीरस्तु। - (338) . 12. चन्द्रप्रभः। स्वस्ति श्रीमहेसाणानगरे वि. सं. 2028 वर्षे वैशाख सु. 6 दिन श्रीचन्द्रप्रभबिम्ब....करसन बेनश्रेयाथं .. (336) / 13. पार्श्वयक्ष.- . श्रीमहेसाणानगरे श्रीवीर सं. 2468 वर्षे वैशाख सुद 6 दिन श्रीपार्श्वयक्षबिम्ब ...सागरमल सुपुत्र रूपचन्देन कारितं प्रतिष्ठितं प्रा. कैलाससागरसूरिणा। (340) / श्रीमहेसाणानगरे श्रीवीर सं. 2468 वर्षे वैशाख सुद 6 दिन श्रीपद्मावतीदेवीबिंव ... (341) 15. मणिभद्रः श्रीमहेसाणानगरे श्रीवीर सं. 2468 वर्षे वैशाख सु. 6. दिन श्रीमरिणभद्रबिम्ब शेरगढ़ निवासी मिश्रीमल सुपुत्र भूरामलेन कारितं प्रतिष्ठितं च. पा. कैलाससागरसूरिणा। (342) 16. श्रीप्रासाददेवी:-- 1 श्रीमेहेसाणानगरे श्रीवीर सं. 2498 वर्षे वैशाख सुद 6 दिन श्री. प्रासाददेवीबिम्ब ...... प्रतिष्ठितं आ. कैलाससागरसूरिणा। श्यामला पार्श्वनाथ मन्दिर (343) 1. सरस्वती मूर्ति, पीत पाषाण:...॥संवत 1681 वर्षे प्रथम चैत वदि 5 दिने गुरुवारे स्वातिनक्षत्र तत्दिने प्रतिष्ठितं / सांघीदास कारितं सूत्रकल्याण रूचरा
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 77 ___ (344) 2. सुपार्श्वनाथ:मीती बसा. सुद 3 संमत 17 छासटा के रा........प्रणमति (345) ..... 3. शिलापट्ट प्रशस्तिः . श्रीचक्रेश्वरिजीये नमः / / सं. 1661 वर्ष माघ सु. 13 मंदबासरे तिष्य ऋक्षे श्रीमेवानगरे श्रीनाकोड़ा पार्श्वनाथचैत्ये दक्षिणभागे शाल और छत्री अजनशालाका प्रतिष्ठा समये प्रतिष्ठितं पूज्य वयोवृद्धानुयोगाचार्यदेव श्री श्री श्री 108 श्री श्री श्रोहितविजयजी महाराज के पट्टालंकार अनुयोगाचार्य श्री श्री श्रीहिम्मतविजयेन गुरुभक्त्यर्थे कारितं शा. कपूरचन्द हजारीमल भीखचन्द ऋषभदास सोनमल देवीचन्द सरेमल. बाबुलाल गुलाबचन्द सिरदारमल लालचन्द मोहनलाल बेटा पोता हुक्माजी रा की तर्फ से मोटावाड़ा वाला मु. वरद रा उपरोक्त तीर्थोंद्वारिका साध्वीजी सुन्दर श्रीजी के सदुपदेश से स्वश्रेयार्थे कारितं गजधर सोमपुरा सूत्रधार कीस्तुरचन्द दीपचन्द सिरेमल बेटा पोता भगवानजी ।मु। चाणोद। (346) 4. आदिनाथ: सं 1961 माघ शु, 13 दिने श्रीऋषभजिनबिंब कारापितं श्रीसंघेन प्र. जगद्गुरुदेव श्रीमद् विजयहीरसूरिश्वरजी के सन्तानीय अनुयोगाचार्य श्रीहितविजयजी ............ / __ (347) 5. आदिनाथजी:: ॥सं. 1961 रा माघ शुक्ल 13 दिने श्रीऋषभदेवजीबिन कारापितं श्रीसंघेन प्र. 'जगद्गुरुदेव श्रीमद्विजयही रसूरिश्वरजी के . सन्तानिया अनुयोगाचार्य श्रीहितविजयजी मा. के शिष्य पन्यास श्रीहिम्मत- ' विजयेन श्रीमेवानगरे। (348) 6. अजितनाथ:___सं. 1991 माघ शु. 13 दिने श्रीअजितनाथ जिनबिंब कारापितं श्रीसंघेन प्र. जगद्गुरुदेव श्रीमदविजयहीरसूरिश्वरजी के सन्ता नीया अनुयोगाचार्य श्रीहितविजयजी...........
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 7. सुमतिनाथ: सं. 1661 माघ शु. 13 श्रीसुमतिनाथबिंब कारापितं सा. पनालालजी असताजी मु. गोदणवाला की तरफ सु. थापितं जगतगुरुदेव श्रीमद्विजयही सूरिश्वरजी के सन्तानीय नुयोगाचार्य श्रीहितविजय जी के प. श्रीहिम्मतविजय। (350) 8. पद्मप्रभः ॥सं, 1961 माघ शु. 13 दिने श्रीपदमप्रभुजीबिंब कारापित श्रीसंघेन प्र. जगदगुरुदेव श्रीमद विजय हीरसूरिश्वरजी के सन्तानीया अनुयोगाचार्य श्री हितविजयजी मा. के पं. श्रीहिम्मतविजयेन श्रीमेवानगरे श्रीरस्तु। (351) 6. पद्मप्रभः ॥सं. 1661 मा. शु. 13 दिने श्री पदमप्रभुजीबिंब कारापित श्रीसंधेन प्र. जगदगुरुदेव श्रीमद्विजय हीरसूरिश्वरजी के सन्तानीय अनुयोगाचार्य श्रीहितविजयजी म .... (352) 10. सुपार्श्वनाथ:-- - सं. 1661 मा. शु. 13 श्रीसुपार्श्वनाथ बिंब कारापितं सा. पना. लालजी असताजी मु. गोदणवाला की तरफ सु थापीतं जगदगुरुदेव......... (353) 11. शांतिनाथ :-- सं. 1661 माघ शु. 13 दिने श्रीशांतिनाथ जिनबिंब कारापितं श्रीसंघेन प्र. जगदगुरुदेव श्रीमदविजय हीरसूरिश्वरजी के सन्तानीया अनुयोगाचार्य श्रीहित विजयजी म. के प. हिम्मतविजयेन श्रीमेवानगरे श्रीरस्तु / (354) 12. शान्तिनाथ: सं. 1991 माघ सु. 13 दिने श्रीशान्तिनाथबिंब कारापितं श्रीसंघेन प्रतिष्ठित प. हिम्मतविजयेन श्रीमेवानगरे 13. पार्श्वनाथ:-- सं. 1661 माघ सु. 13 श्रीपारश्वनाथजीबिंब सा. पनालालजी
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 79 असताजी सू. गोदणवाला की तरफ सु. थापित जगदगुरुदेव श्रीमदहीरसूरीश्वरजी के सन्तानीय अनुयोगाचार्य श्री हितविजयजी के शिष्य हिम्मतविजयेन श्रीमेवानगरे (356) 14. पार्श्वनाथ ॥सं. 1661 रा माध रा शुक्ल 13 दिने श्रीपारश्वताथजीबिम्ब कारापितं श्रीसधेन प्र. जगदगुरुदेव श्रीमद्विजयहीरसूरीश्वरजी के सन्तानीया अनुयोगाचार्य श्री हितविजयजी मा. के प. श्रीहिम्मत विजयेन श्रीमेवान गरे श्रीरस्तु / (357) 15. चक्रेश्वरीदेवी- . ॥सं. 1661 माघ शु 13 दिने श्रीचक्रेसरीजो की मूत्ति श्रीवलद रा वास्तव्य शा. मनरूपजी हुक्माजी वालों की तरफ ने कारापिता प्रतिष्ठिता अनुयोगाचार्य श्रीमहिन विजयजीमहाराज के शिष्य पन्यासजी श्रीहिम्मतविजयेन स्व-पर-कल्याणार्थे श्रीमेवानगरे श्रीरस्तु / (358) 16. पद्मावतीदेवी ॥सं 1961 माघ शु. 13 दिने श्रीपद्मावती वलदरा वास्तव्य शा. मनरूपजी हुक्माजी वालों की तरफ से कारापिता प्रतिष्ठिता अनुयोगाचार्य श्रीहितविजयजी म. के शिष्य पन्यास हिम्मतविजयेन स्व-पर-हितार्थ श्रीमेवानगरे। (356) 17. हित विजयः-- ॥सं. 1961 माघ शु. 13 दिने श्रीमद् प्राचीन अनुयोमाचार्य श्रीहित विजयजी महाराज की मूत्ति कारापितं मलादर वास्तव्य शा. नोपोजी तथा गुड़ा वास्तव्य शा. अचलाजी की तर्फ से दर्शनार्थ प्रतिष्ठितं, प्रापका ही शिष्य हिम्मतविजयेन गुरुभक्त्यर्थे स्थापितं // श्रीमेवानगरे श्रीरस्तु / (360) 18. स्वरूप श्रीपादुका:-- // सवत 1961 रा माघ शु. 13 शनिवारे गुरणीजी स्वरूपश्रीजी वर्ण-पादुका साध्वी सुन्दरश्री स्वपरदर्शनार्थ कारापितं तपागच्छाधिप अनुयोगाचार्य श्रीमद् स्वर्गस्थ गुरुदेव पं. हितविजजी महाराज के शिष्य श्री पं. हिम्मतविजयेन प्रतिष्ठित मेवानगरे लि. पं. चतुरसागर
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________________ 80 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (361) 16. सणगारश्रीपादुका:-- संवत 1961 माघ शुक्ल 13 शनिवारे गुरणीजी श्रीसणगार श्रीजी चर्ण-पादुका साध्वी सुन्दरश्री स्व.परदर्शनार्थ करापितं तपागच्छाधिप अनुयोगाचार्य श्रीमद् स्वर्गस्थ गुरुदेव श्री पं. हितविजयजी 'महाराज के शिष्य पं. हिम्मतविजयेन प्रतिष्ठितं श्रीमेवानगरे लि. पं. चतुरसागर पीपाड़ निवासी। 20. सुन्दरश्री मूत्तिः -- ॥सं. 1966 कार्तिक कृष्ण पक्षे 8 दिने गुणपुष्ययोगे तीर्थोद्धारक साध्वी श्रीसुन्दर श्रीजी महाराज की मूत्ति स्थापितं / / ___ (363) 21. सुन्दरश्री की छत्री परः-- श्री श्री श्री 1008 श्रीहितविजयजी महाराज के समुदाय की स्वर्गस्थ स्थविरा साध्वीजी श्रीसणगार श्रीजी की सशिष्या स्वर्गीय सुशीला प्रवर्तिनी साध्वोजी श्रीसुन्दर श्रीजी ने महान परिश्रम द्वारा अनेका अनेक भविजनों को सदुपदेश देकर इस महान प्राचीन पवित्र तीर्थ का पुनरुद्धार कराया है। विशेष यह है कि उक्त सदगुरुदेव महाराज के शिष्य रत्न प्रतिष्ठा- अंजनशलाकादि विविध क्रिया-कुशल प्रवर श्रीश्रीश्री 1008 श्रीश्रीश्री प्राचार्य महाराज श्री-. - हेमाचलसूरीजी महाराज और उक्त साध्वीजी श्रीमाणक्य श्रीजी तथैववत शिष्या साध्वी जी श्रीप्रसन्न श्रीजी के शिष्या करणश्री भुवनश्री मादि संवत 1966 सु.. . . - इस प्राचीन पवित्र तीर्थ की आज दिन तक देख-रेख करते हैं लेख सं. 2011 मिति मगसर 7 . (364) 22. सुमतिनाथ: * / 2016 माघ शु. 14 गुरु-पुष्ययोगे श्रीसुमतिनाथबिम्ब पुण्यपतब, शिवाजीनमरे वा. सघवी केसीमल तत्पत्नी मगीदेवी तत्पुत्र सूरजमले लीलादेवीपत्नीसहितेन कारित प्रति. मेबानगरस्य . श्रीनाकोड़ातीर्थ
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 81 श्रीसंघेन / प्रतिष्ठितं विजयहिमाचलसूरिभिः / / श्रीरस्तु / / कल्याणमस्तु / शिवं भवतुः // (365) 23. वासुपूज्य: / सं. 2016 माघ शु 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीवासुपूज्य बिम्ब पुण्यपतन शिवाजीनगरे वा. संघवी केमरीमल तत्पत्नी मगीदेवी तत्पुत्र सूरजमले लीलादेवीपत्नीसहितेन कारितं प्रतिष्ठितं मेवानगरस्य श्रीनाकोड़ातीर्थ श्रीसंघेन / प्रतिष्ठित विजयहिमाचलरूरिभिः / / श्रीरस्तु।। कल्याणमस्तु / / (366) 24. वासुपूज्य:-- ॥सं 2016 माघ सु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीवासुपूज्यबिम्ब मेवानगरे श्रोसंघेन कारापितं प्रतिष्ठितं प्राचार्यदेव वि. हिमाचलसूरिभिः शुभमस्तु (367) 25. कुन्थुनाथ: ॥सं. 2016 माघमासे शुक्लपक्षे 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीकुन्थुनाथबिम्ब पुण्यपतन शिवाजीनगरे वा. संघवी केसरीमल तत्पत्नी मगीदेवी तत्पुत्र सूरजमले लीलादेवीपत्नीसहितेन कारितं प्रतिष्ठा मेवानगरस्य श्रीनाकोड़ा तीर्थे श्रीसंघेन / प्रतिष्टितं विजयहिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु / / कल्याणमस्तु // शिवं भवतुः / / (368) 26. कुन्थुनाथ :-- // सं. 2016 माघ शु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीकुन्थुनाथ बिम्ब पुण्यपतन शिवाजीनगरे वा. संघवी केसरीमल तत्पत्नी मगीदेवी तत्पुत्र सूरजमले लीलादेवीपत्नीसहितंन कारितं प्रतिष्ठा मेवानगरस्थ श्रीसधेन / प्रतिष्ठितं विजय हिमाचलसूरिभिः // श्रीरस्तु / / कल्याणमस्तु // शिवं भवतु। (366) 27. मुनिसुव्रतस्वामी:-- ... / सं. 2016 माघ शु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीमुनिसुव्रतस्वामी बिम्ब मेवानगरे श्रीसंधेन कारापितं प्रतिष्ठितं प्राचार्यदेव विजयहिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु।।
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________________ 82 ] बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख - . (370) 28 श्यामला पार्श्वनाथ :--- सं 2016 माघ सु 14 तिथौ गुरुपुष्ययोगे सप्तफणान्वितं श्री-- पार्श्वनाथप्रतिविम्ब मेवानगरे श्रीसंघेन कारितं प्रा. शान्ति- लक्ष्मी. भव्य-मानक- विद्या विजयेन सुछत्रेःसह हितान्तेवासी-प्राचार्यदेव विजय हिमाचलसूरिभिः / कल्याणमस्तु / (371) * 26. श्यामला पार्श्वनाथ छत्री पर :-- .. सं. 2016 गुरुपुष्ययोगे श्रीश्यामलापार्श्वनाथ बिम्ब मेवानगरे प्रतिष्ठितं प्राचार्य देव-विजय हिमाचलसूरिभिः . . (372) : 30. सरस्वती:..... ॐ श्रीसरस्वतिदेव्यो तमः। स. 2016 माघ सु. 14 गुरुपुष्पयोगे श्रीसरस्वती-मूर्ति कारापितं प्रतिष्ठापित च मेवानगरे श्रीसंधेन प्रतिष्ठितं विजयहिमाचलसूरिभिः श्री रस्तु। नामस्ते शारदादेवी कश्मीरप्रतिवासिनी त्वामहं प्रार्थये / माता विद्यादानं प्रदेहिम् / विद्यानन्दविजय श्रीरस्तु श्री / / (372) 31. सुमतिनाथ / श्री महेसाणानगरे श्रीवीर सं. २४६८वर्षे वैशाख सु 6 दिन श्री. समतिजिनबिम्ब शेरगढ़ नि. चौथमल सपुत्र टाणचन्देन कारित प्रतिष्ठितं च तपा. प्रा. कैलाशसागरसूरिणा // " (374) /32. शान्तिनाथ :-- . स्थस्ति श्र महेसाणानगरे वि. सं. 2028 वर्षे बैशाख सुद 6 दिन श्री शांतिनाथजिनबिम्ब भावनगर नि. मगनलाल सपुत्र रामचन्द्र सपत्नी चन्दनलक्षम्या कारितं प्रतिष्ठितं च तपा. प्रा. श्रीकैलाससागरसूरिणा। पंचतीर्थो मन्दिर 1. पार्श्वनाथ-अग्रभाग:- . संवत् 1504 वर्षे वैशाख सुदि 7 छाजहड़गोत्रे श्रीपार्श्वनाथबिंब मह कुन्तपालेन कारितं / /
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख पृष्ठ भाग लेख : // 60 / / संवत.१५०४ वर्षे वैशाख सुदि 7 बुधे श्रीखेड़भूम्यां / / श्री. महेवास्थाने / श्रीप्रोसवंशे-महं लखमा पुत्र महं. वयरा पुत्र महं' तील्हा भार्या गोइणि पुत्र 4 सं. राजसिंह मह. नरा महं ठाकुरसी -महं नरा भार्या पेमलदेव्या पुत्र महं. कुन्तपाल भार्या कश्मीरदे पुत्र महं गुणदत्त .. . महं श्री कुन्तपालेन प्रात्मपूण्यार्थे कारिता / / प्रतिष्ठितां श्रीपल्लिकीयगच्छे श्रीनन्नाचार्यसन्ताने। . . : . -श्रीशांतिसूरि तत्पट्ट श्रीयशोदेवसूरि // श्रीनन्नसूरि श्री उद्योतनः सूरि ...... पट्टालंकारश्रीशांतिसूरि तत्पट्टे पूज्य श्रीयशोदेवसूरिभिः प्रतिष्ठितम / सुभ भवतु ....... - महं चोला सुखा। श्रीरस्तु ...... ....सूत्र महं रामदो सुखाः समस्तदोषास्तु समाप्तं ....... . (376) 2. शान्तिनाथ अग्रभाग-शान्ति देवदत्त:-- पृष्ठ भाग सं- 1513 वर्षे माघ मासे... ... मा. प्रीमलदे पुत्र सा. देवदत्तेन भा. दे... ...माई पुत्रो-पुत्र-सकुटुम्ब ......तपा. श्रीसोमसुन्दरसूरि-शिष्य श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / (377) 3. महावीरःश्रीमहावीर बिंब श्रीछाजहड़ गोत्रे शुभं भवतु / / (378) 4. आदिनाथ मूलनायक:-- - स. 1661 रा माघ सुद 13 दिने आदिनाथबिंब कारापितं श्रीसंघेन पू. जगद्गुरुदेव श्रीमदविजयही रसूरीश्वरजी के सन्तानीय / अनुयोगाचार्य श्रीहितविजयजी म. के प. पं. श्रीहिम्मतविजयेन श्रीमेवानगरे।। . (376) .5: वेदी पर शिलालेख :-. . श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथपंचतीर्थमन्दिरं श्रीनाकोड़ा पार्श्वनाथ प्रत्यक्षाधिष्ठायकस्य चरणकमले किंचितभक्तेन सप्रणतिपुरशरं समर्पित प्रतिष्ठापितं मेवानगरस्थ नाकोड़ातीर्थे श्रीसंघेन, प्रतिष्ठितं विजयहिमाचलसूरिभिः संवत 2016 वर्षे 6200 रूप्यका.नि देवालय निमितं //
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________________ 84 / बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (380) 6. नेमिनाथ : ॥सं. 2016 माघ सु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीनेमिनाथ बिम्बं प्र. मेवानगरस्थ श्रीनाकोड़ातीर्थ श्रीसंघेन / प्रतिष्ठितं विजय हिमाचलसूरिभि( // श्रीरस्तु / कल्याणमस्तु / शिवं भवतु : - (381) 7. सिद्धाचल पट्ट :. विक्रम संवत 2018 के मगसर वदि 7 से इस तीर्थस्थान पर पूज्य अनेक संस्थानों के संस्थापक विश्ववंद्य जैनाचार्य श्री श्री 1008 श्रीमज्जिनहरिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब के शिष्यरत्न व्याख्यान वाचस्पति शासनप्रभावक श्री 1008 श्रीकांतिसागरजी महाराज एवं व्याकरण न्यायतीर्थ साहित्यशास्त्री मुनिराज श्रीदर्शनसागरजी महाराज के सानिध्य में उपध्यानतप शुरु होकर पोष सुदी 14 को माल उत्सव के उपलक्ष में उपध्यान तपस्वीयों की ओर से यह पट बनवाया गया। पंचतीर्थी मन्दिर की प्रालमारी में (382) 1. वासुपूज्य: ॥सं. 1681 वर्ष फा. शु. 10 बु.। समरथ वरधमान / वासुपूज्य कडुअामती। (383) 2. पार्श्वनाथ: // सं. 1716 वर्षे पंचोली कृष्णा भार्या सरखमादे श्रीपार्श्वनाथबिम्ब / (384) 3. आदिनाथ:-- . // सं. 1718 वर्षे सा. रामजीसुत डोसा आदिनाथविम्ब कारित प्रतिष्ठितं श्रीविजयगच्छे कल्याणसागरसूरिसुमतिसागरसूरिभिः पुण्यार्थे श्री। (385) 4. अष्टमंगल: सं. 1961 शा. 1856 मार्ग शुक्ल 13 दिने मेवानगरे
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 85 (386) 5 अष्टमंगल: ॥सं. 2016 माघ शु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीप्रष्टमंगलपाट श्रीमेवानगरे नाकोड़ातीर्थ श्रीसंधेन कारि. प्र. प्राचार्यदेव विजयहिमाचलसूरिभिः / (387) 6. अजितनाथ-चतुर्विंशतिका: वि. सं. 2028 ज्येष्ठ शु. 4 भृगु. इां अजितनाथचतुर्विंशतिका घाणेराव वा. गुदेचागोत्रीय केसरीमलस्य पुत्र प्रोटरमलेन स्वमात पानी देव्याः स्मृतौ कारिता प्ररिष्ठापिता च सीलदर संघेन प्रतिष्ठित विजयहिमाचलसूरिभिः लि. विद्यानन्दविजय श्रीरस्तु। (388) 7. पार्श्वनाथ: श्रीधोरीमना रा वासी रांका रोडीया जोधराज प्रतापमलजी की तरफ से उजमणानीमिते विजयहिमाचलसूरिभिः वि. सं. 2028 ज्येष्ठ शु. 4 भृगु. (386) 8. अष्टमंगल:. वि. सं. 2028 ज्ये. शु. 4 भृगु. इयं श्रीअष्टमंगलपट्टिका घामेराव वा. गुन्देचागोत्रीय केसरीमलस्य पुत्र प्रीटरमलेन (वर्तमान विद्यानन्दविजयः) स्व- मातु पानीदेव्याः स्मृतौ कारिता प्रतिष्ठापितं च सीलदरसधेन प्रतिष्ठित विजयहिमाचलसूरिभिः लि. संपतविजयश्रीरस्तु / (360) 8. अष्टमंगल: वि. सं. 2028 ज्ये. शु. 4 भृगु इदं अष्टमंगल धोरीमना रा वासो रांका रोडीया जोधराज प्रतापमलजी तरफ से जमरणानमित्त भार्या मीराबाई तरफ थी उजवणानिमत्ते का. भेंट प्र. सिलदरसंघेन प्र. वि. हिमाचलसूरिभिः सीलदरनगरे श्रीरस्तु लि. लक्ष्मीविजय / . (361) 10. महावीर-चतुर्विशतिकाः. . दोहिड़ावाला श्रीशिवगंजनिवासी (राज.) पोरवाल जाजरिया परमारगोत्रीया ज्ञातिया श्रीचुन्नीलालजी घ. प. कंकुबाई. सुपुत्र श्रीदेवी
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________________ बाडमैर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख चन्द तेमनी ध प बगसोबाई ना पुत्र श्रीमनराज संपतराज सरदारमल कन्हैयालाल आदि परिवारे श्रीमहावीरस्वामीजी बि. का चौबीशी प्रतिष्ठा प्र. प्रा. श्रीविजयजिनेन्द्रसरिजी महाराजे शिवगंज मां कगवी / स्वस्तिश्री 2466 वीराब्दे 2026 वि. वर्षे मार्ग सुद. 10. शुक्रवार तारीखं 15 12-1672 (62) 11. अष्टमंगल:-- . रोहिडावाला श्रीशिवगंज निवासी (राज ) पोरवाल जाजरिया पर. मार गोत्रीया ज्ञातीया श्रीचन्नीलाल घ. प ककुबाई ना पुत्र श्रीदेवीचन्द तेमनी ध. प. बगसीबाई ना पुत्र श्रीमनराज संपतराज सरदारमल कन्हैयालालं आदि परिवारे श्रीप्रष्टमगल भरावी प्रतिष्ठा पू प्रा. श्रीविजय जिनेन्द्रसूरिजो महाराजे शिवग जमा करावी स्वस्तिश्री 2466 वीराब्दे 2026 वि. वर्षे मार्ग सुद 10 शुक्रवार ता. 15-12-1972 . , .. ... (363) . . 12. नवपद मन्त्र:..." . . वि. सं. 2032 माघ सु. 14 शनी पुष्ये इदं श्रोसिद्धयंत्रसादड़ी श्रीविकासंघेन का.प्र. वि. हिमाचलसूरिभिः बालोतरानगरे श्रीरस्तु / / (364) 13. अष्टमंगल:.. वि. सं. 2032 माघ सु. 14 शनी पुष्ये इदं अष्टमंगल पाटली सादड़ी श्राविकासंघेन का. प्र. वि. हिमाचलसूरिभिः बालोतरानगरे श्रीरस्तु / . . . केसरघर के पास की शाल (365) .1. महावीरः- . . . ' श्रीखेड़ वर्द्धमानं नमामि (366) 2. आदिनाथ:मादिनाथ हांपा कारित-श्रीविजयसेनसूरिभिः प्रति.। .. (367) 3. श्रेयांसनाथ:-- - // सं. 1955 फागुण वदि 5 गुरौ शेरगढ़वास्तव्य संघेन बिंब कारितं प्रतिष्ठा कृता भ. राजेन्द्रसूरिणा कारापिता.... ... .
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (368) 4. पापर्वनाथ:-- ॥सं. 1955 फागुण वदि 5 गुरौ शेरगढ़वास्तव्य संघेनबिब कारितं प्रतिष्ठा कृता भ. राजेन्द्रसूरिणा कारापिता जशरूपजी........ .. (366) 5. आदिनाथ: . सं. 1661 रा माघ सुद 13 दिने प्रादिनाबिंब कारापित श्रीसंघेन पू. जगद्गुरुदेव श्रीमद् विजयहीर सूरीश्वरजी के सन्तानीय अनुयोमाचार्य श्रीहितविजय जी म. के प. पं. हिम्मतविजयेन श्रीमेवानगरे / (400) "6. पार्श्वनाथ: सं. 1661 माघ सुद 13 दिन श्रीपारसनाथजीबिंब कारापितं श्रीसंघेन प्र. जगद्गुरुदेव श्रीमद्विजयही रसूरीश्वरजी के सन्तानीय अनुयोगाचार्य श्रीहित विजयजी ....... ... .. .(491) 7. पार्श्वनाथः• सं. 2016 माघ सुद 14 तिथौ गुरुपुष्ययोगे श्रीपार्श्वनाथबिब तखतगढ़ वा. प्राग्वाट संघवी ऋषभचन्द केशरीमल तत्पुत्र शांति सुनील नन्दकुमारादि माता उनीदेवी सहः... लि. मुमुक्षु भव्यानन्दविजयेन श्रीरस्तु। (402) 8. पार्श्वनाथः-- - श्रीमहेसाणानगरे श्रीवीर सं. 2468 वर्षे वैशाख सु. 6 दिन श्रीपार्श्वनाथ जिनबिंब शेरगढ़नि उदेचन्द सुपुत्र चुन्नीलालेन कारितं प्रतिष्ठितं च तपा. प्रा. कैलाससागरसूरिणा। (403) 6. चन्द्रप्रभु: वि. सं. 2026 माघ सुद 13 गुरो पुष्ये इद चन्द्रप्रभबिंब कारा. श्रीसंघेन .... . (404) 10. श्रेयांसनाथ:-- . वि. सं. 2026 माघ सु. 13 गुरौ पुष्ये इदं श्रीश्रेयांसनाथबिंब कारी. श्रीसंघन ...
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________________ 88 . ] बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 11. मुनि सुव्रतस्वामी:-- (405) वि. स. 2026 माघ सु 13 गुरौ पुष्ये इदं मुनिसुव्रतस्वामीविव..... श्रीग्रादिनाथ मन्दिर (406) 1. शांतिनाथ का उसग्ग:या : संवत 1203 वैसाख सुदि 12 श्रीवच्छक चैत्ये दा. सोलंकिकवंशज : __ उद्धरण--वराह पेषुकः श्रीमतुपेसकीयगच्छ प्रतिष्ठितं श्री. सिद्धाचार्यारणांगच्छे पापनसुत-जेसल-साढा-देल्हा-मातृमोहिणीसहितं कारितं / / (407) 2. नेमिनाथ का उसग्गीय :-- - संवत 1203 वैशाख सुदि 12 श्रीवच्छकचैत्ये सोलकिकवंशज सा. उद्धरण--बारहपेप्षुकै. श्रीसंडेरकीमगच्छे श्रीशान्ति भट्टाचार्यसूर रिणां-वासुदेव सह-के.शेन सर्बश्रेपोर्थ कारितं / जिणचन्द . (408) 3. महावीर :-- ___ सं. 1513 वर्षे माघ सुदि / (406) 4. विमलनाथ परिकर (ऊपर के हिस्से में): स. 1524 वर्षे ज्ये. शु. 6 वीरमपुरवासी उसवाल सा. बाहड़ चाहड़ चण्डा जेठा नामके: श्रीविमलनाथ परिकर कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसोमसुन्दरसूरि-शिष्य श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः (परिकर के नीचे के हिस्से पर) / सं. 1524 वर्षे ज्येष्ठ सुद 6 ऊकेशवंशीय लिंगागोत्रे सा. चांपा भा. कुरांदे पु. सा. बाहड़ चाहड़ चण्डा-भा. कपूरदे पु सना दत्तपुत्र सा. देवराज लाखरण हीरो दवीमा कुरा मेघा प्रापा दमराजादि कुटम्बयुतः श्रीविमलनाथ परिकर कारितः प्रतिष्ठित श्रीतपागच्छ श्रीसोमसुन्दर सूरिशिष्य श्रीलक्ष्मीसागर सूरिभिः
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख - - ... (410) 5. शिलापट्ट प्रशस्ति:-- // सं. 1562 वर्षे आसु. सुदि 10 दिन राउल श्रीवीरसिंघविजय - राज्ये श्रीविमलनाथ प्रासादे। श्रीतपागच्छाधिराज परम भट्टारिक श्रीश्रीश्रीहेम विमलसूरिशिष्य पं. लावण्य समुद्रगणिनामुपदेशेन / . श्रीवीरमपुर निवासी श्रीसकलसंघेन कारापिता / नवचतुष्किता सूत्रधार हालाकेनकृत चिरंनन्दतु / / श्रीरस्तु / / श्रीसकलसंघस्यः / सूत्रधार राउत भाइला करति / / ___(411) 6. शिलापट्ट प्रशस्ति:-- // संवत् 1568 वर्षे वैशाख सुदि 7 दिन गुरुपुष्ययोगे। राउल श्रीकुम्भकर्णविजयराज्ये : श्रीविमलनाथे प्रासादे श्रीतपागच्छनायक भट्टारकप्रभुश्रीश्रीश्री हेमविमलसूरिशिष्य पं. चारित्रसागरगणिनामुपदेशेन श्रीवीरमपुरवासि सकलश्रीसंघेन कारापितो रंगमण्डप: सूत्रधार हालाकेनकृन / चिरनन्दतु (412) .. .. : . 7. शीतलनाथ:-- ___ श्रीशीतलनाथवि. का. श्रीमेरुप्रभसूरिभिः (413) 8. प्रादिनाथ: स. 1606 व. म. कृ............ श्रीरस्तु // .... 12) 6. महावीर: स, १६३२........सुद 5... .... 10. शिलापट्ट प्रशस्तिः - // सं. 1637 वर्षे माह वदि 7 दिने / राउलश्रीमेघराजजी विजय राज्ये / श्रीतपागच्छे श्रीगच्छाधिपतिभट्टारक श्रीश्री ५हीरविजयसूरिविजयराज्ये श्रीवोरमपुरिवास्तव्य श्र सकलसघेन नवाउद्धार कारापितां / / सूत्रधार घरासी पुत्र सूत्रधार राउतकेन कृतं श्रीरस्तु: शुभं भवतु / मूल गम्भारा थकी नव उधार कीधा सकलसंघेन / सूत्रधार क्रिसना / "
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________________ 60 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख - mummene. . . ..-.. 11. अजितनाथ: सं. 1651 मा. शु. 5 श्रीअजितजिनबिम्बस्य अंजनशलाका श्रीविजैक.......रापिता। (417) 12. प्रादिनाथ (श्याम पाषाण): ___ सं. 1958 माघ सित. 13 गुरौ.......श्रीऋषभदेव बिम्ब कारित प्रतिष्ठितं भ. श्रीविजयराजेन्द्रसूरि ........... (418) 13. शान्तिनाथ:- .. सं. 1958 माघ सित. 13 सियाणावास्तव्य बालाभार्या मगनी विबकारितं प्रतिष्ठितं भ. राजेन्द्रसूरिभिः............ (416) .. 14. संभवनाथ:-- सं. 1661 मा. शु. 13 श्रीसंभवबिंब का. श्रीसंघेन प्र. हिम्मतविजयेन मेवानगरे। . . (020) .. (420) ... . 15. सम्भवनाथ:---... सं. 1991 मा. सु. 13 संभवबिंब का. श्रीसंघेन। (421) 16. संभवनाथ:सं. 1661 मा. सु. 13 दि. संभवबि. का. श्रीसंघेन........... "(422) 17. पार्श्वनाथ:सं 1661 मा. सु. 13 दि. पार्श्वविं. का. श्री........। (423) 18. सुविधिनाथ:-- सं. 2016 माघ सु. 14 गुरौ पुष्ययोगे श्रीसुविधिनाबिंब मेवानगरे श्रीसंघेन कारापिता........ गर्भगृह-प्रादिनाथ मन्दिर .. (424) 1. शीतलनाथ. शीतल थारु
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख ... / / . (425) 2. शांतिनाथ: शांति देवलदे 3. सं. 1955 फा. व. 5 सिवाणावास्तव्य समस्तसंघेन बिंब. कारितं..... पुण्डरीक गणधर की देहरी 1. पुण्डरीक गणधर देहरी के सभामण्डप की दीवार का लेख: (427) // 60 // संवत चन्द्रकला पक्ष वृषे मासे श्रीवरिण के तिथौ च विशदे श्रीपचमीवासरे हस्तकि श्रीतपागच्छे हीरविजयपुण्यदयाचार्ये मुदा। 1 प्रासादे विमलनाथे........... कल्पद्र म / रगद्रग विद्रंग चित्रकलित श्रीमण्डपोनूतनः श्रीमत्संघ कदम्बकाय / / 2 / / सवत 1647 वर्षे प्राषाढ़ वदि 8 दिने राउल श्रीवीरमदेवजी पाटे तपागच्छसधेन मण्डप: कारितः // सूत्रधार क्रिसनाकेनकृतः / / चेला शिवा लिखितौं / सूत्रधार सीमा पंचाईण / / शुभं भवतुः।। (428) 2. पुण्डरीकगणधर के पीछे की चौकी: संवत 1637 वर्षे शाके 1533 प्रवर्तमाने द्वितीय भाषाढ़ सुदि 6 दिने शुक्रवारे उत्तराफाल्गुनीनक्षत्रे राउल श्रीतेजसीजी विजयराज्ये श्रीविमल. नाथप्रासादे श्रीतपागच्छेभट्टारिक श्री ५श्रीविजयसेनसूरिविजयराज्ये आचार्य श्रीविजयदेवसूरिविजयराज्ये श्रीवीरमपुरवासि सकलश्रीसंघकारापितां शुभं भवतु / / " सूत्रधार कृसना पंचाइण केन कृतं / मुनिसामीदास लिखितं भवतु / / (429) / 3. पुण्डरीक 'गणघर की देहरी भीतर की दीवार का लेखः-- / संवत 1865 वर्षे फागुण वदि 13 रविवारे श्रीवृहत्खरतरगच्छे जंगन युगप्रधान सकल भट्टारिकशिरोमणि भट्टारिकजी श्रीश्री १०८श्रीजिनहरकसूरिजी
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________________ 62 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख सूरीश्वरेण सकलश्रीसंघेनस हितेन नालमण्डप नोतनं कारापित ।।चैत्य सर्वेषु जीर्णोद्धार कारापिता लिखतं वा. / जयराज / / सूत्रधाररामचन्दजी-पुत्रढ़ालजीकृत वास जोधपुर / / श्रीरस्तु / / कल्याणमस्तु / / (430) 4. सूविधिनाथ: ॥स. 2016 माघ सु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीसुविधिनायबिंब मेवानगरे श्रीसन कारापितं प्रतिष्ठित प्राचार्यदेव-विजयहिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तुः ...... . . (431) 5. शान्तिनाथ:... // सं. 2016 माघमासे शुक्लपक्षे 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीशान्तिमाथबिम्ब मेवानगरे श्रीसंघेन कारापित प्रतिष्ठितं प्राचार्यदेव विजय हिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु। . (432) 6. पुण्डरीक गणधरः.. वि. सं. 2016 माघ सु. 14 गुरुपुष्ये श्रीपुण्डरीकगणधर-मूर्ति बलाणावास्तव्य प्राग्वाट श्रीभीकमचन्द चेनाजी ताराचन्द मूलचन्द चन्दनमल माता चनादेव्येसह श्रीपुण्डरोकगणधर प्रतिमेय कारिता प्र. मेवा. नगरे श्रीसंघेन प्रतिष्ठित हितान्तेवासीविजयहिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु / / 7. पुण्डरीकगणघर की छत्री:-- : ॥श्री। श्रीपुण्डरीकगंणधरेभ्यो नमः / / माधेमासि सिते दलं ऋतुवरं शम्भुप्रिय शुभतिथि माने मानसधारित प्रभुवर श्रीमद् विजयहिम्मतम / मेवानाम सुनामधन्यनगरं सर्वेश्वरभासित / पुण्डरीक गणनायक जिनवर देवं च संस्थापितम स. 2016 माघ शुक्ल तिथौ गुरुपुष्ययोगे श्रीरस्तु। ....... / चौमुखजी की देहरी 1. प्रादिनाथ:॥ समत 1543 रा वसख सुदी 3 वार गुरु ऋषभदेव ......... (435) 2. महावीर: / / सं 1628 शा. 1763 माघ सुदि 13 गुरौ .......
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख - 3. सुमतिनाथ: // सं. 1955 फागुण वद 5. गुरौ अगवरीनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञा / व / केरा सूतो राजा बनाकेन विबकारितं प्रतिष्टितं भ. राजेन्द्रसूरिभिः प्र. का जशरूप जीतमलेन सुधर्म तपागच्छे पाहोरनगरे। .. .. . (437) . . . 4. चन्द्रप्रभ: सं. 1655 व. / फाल्गुन कृष्ण 5 गुरौ अगवरीनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञा। व. सा केरा सुतो राजा वनाकेन बिंबकारितं प्र. भ. राजेन्द्रसूरिणा प्रति. कारापिता जशरूप-जीतमलाभ्यां सुधर्म तपागच्छे प्राहोर. नगरे: (438) 5. मल्लिनाथ: // सं. 1955 व. / फाल्गुन कृष्ण 5 मुरौ अगवरीवास्तव्य प्राग्वाटज्ञा / वृ / सा केरा सुतो राजा बनाकेन बिंबकारितं प्रतिष्ठितं / राजेन्द्रसूरिणा प्रति. कारापिता जशरूप जीतमलाभ्यां सुधर्म तपागच्छे पाहोर नगरे / (439) 6. पार्श्वनाथ-पादुका: ॥संवत 1966 माघशुक्ला 10 श्रीमंडवारीयावास्तव्य सा. खमा सूत जेठा-डाहा-विनयचन्द्र कारापितांजनशलाका महो. जोधपुरनिवासी प्रोसवंशीय टाटीया सूत सिरदारमल माणकचंदेन- श्रीपार्श्वनाथ-पादुकांजनशलाकासह : प्रतिष्ठा कारापिता कृता श्री श्री 1008 श्रीमदविजयराजेन्द्रसूरीश्वर शिष्य भ. श्रीधनचन्द्रसूरिभिः श्रीसौधर्म वृहत्तपागच्छे श्रेयते भवतु / श्री। .... (440) 7. पाश्वनाथ:सं. 1661 मा. शु. 13 दि. पार्श्वबि. का....... (441) 5. ब्रह्मयक्ष: ॐ नमः सं. 2003 रा फाल्गुन कृष्ण 7 बुधे .......
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________________ 64]. बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (442) 9. वेरोश्यादेवी: ॐ नमः सं. 2003 रा फाल्गुण कृष्ण 7 बुधे अगवरीनगरे श्रीमल्लीनाथजिनचैत्ये . वेरोश्यादेवी विजय प्राणदसूरिगच्छे यति. पं. राजविजय प्रति. . (443) 10. आदिनाथ: सं. 2005 माघ सु 5 जालोरवास्तव्य सा. छोगालाल पुत्रेण शा. हिम्मतमलेन पुत्र हर्षचन्द्रादिसहितेन श्रीग्रादिनाबिंब कारितं मं- देवीचंद मिश्रीमलेन कारितं प्रतिष्ठायां पं. प्र. कल्याण विजयगणिना जाबालिपुरे। (444) 11. अजितनाथ: सं. 2005 माघ सु. 5 जालोरवास्तव्य सा. छोगालाल पुत्रेण सा. हिम्मतमलेन पुत्र हर्षचन्द्रादिसहितेन श्री अजितनाथबिंब कारितं में देवीचन्द मिश्रीमलेन कारितं प्रतिष्टायां पं. प्र. कल्याणविजयगरिगना जाबालिपुरे। (445) 12. शांतिनाथ: स. 2005 माघ सु. 5 जालोरवास्तव्य सा. छोगालाल पुत्रेण शा. हिम्मतमलेन पुत्र हर्षचन्द्रादिसहितेन श्री शांतिनाबिंब कारितं मं. देवीचन्द मिश्रीमलेन कारित प्रतिष्ठायां पं. प्र. कल्याणविजयगणिना जाबालीपुरे। (446) ..13. श्रेयांसनाथ :-- .....सं. 2005 माघ सुद 5 जालोरवास्तव्य सा. छोगालाल पुत्रेण सा. हिम्मतमलेन: पुत्र हर्षचन्द्रादिसहितेन श्रीश्रेयांसनाथ बिम्ब कारित भं. देवीचन्द्र मिश्रोमलेन कारित प्रतिष्ठायां पं. प्र. कल्याणविजयगणिना जाबालिनगरे 147) 14. चौमुख जी की छत्री पर : ॥श्री // सं. 2016 माघ सु. 14 गुरुपुष्य योगे श्रीश्री ऋषभादिचतुर्मुख देवबिम्ब जालोरनिवासी हिम्मतमल सोगाजी देवप्रसादसहितं कारितं प्रतिष्ठा मेवानगरे श्रीसंत कारिता प्रतिष्ठितं प्राचार्यदेवविजयहिमाचलसूरिभिः / / श्रीरस्तु / / ले. लक्ष्मीविजय . .
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________________ बाड़मर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख . [ 65 (448) 15. सुमतिनाथ :-- ॥स. 2016 माघ सु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीसुमतिनाथबिम्ब तखतगढ़ वा. हिमतमल हीराचन्द्रस्य पत्नी छोगीदेवी कारापितां प्र. मेवानगरे श्रीसधेन प. वि. हिमाचलसूरिभिः _ (446) 16. सुमतिनाथ :-- स. 2016 माघ सु. 14 गुरु पुष्ययोगे श्री सुमतिनाथबिम्ब पोमावा वा. रांकागोत्रोय राई चन्द............ 17. सुपार्श्वनाथ :-- स. 2016 मा. सु. 14 गुरुपुष्य योगे .......का. प्र, मेवानगरे श्रीसधेन प्र. वि. हिमाचलसूरिभिः (451) / 18. सुविधिनाथ : // सं. 2016 माघ सु. 14 गुरी पुष्ययोगे श्रीसुविधिनाथ बिम्ब मेवानगरे श्रीसधेन कारापितां / (452) 16. सुविधिनाथ :-- 4. सं. 2016 माघ सु 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीसुविधिनाविम्ब पोमावा वा. रांका गोत्रीय राईचन्द............का. प्र. मेवानगरे श्रीसंधेन प्र. वि. हिमाचलसूरिभिः 20. वासुपूज्य :-- // सं. 2016 माघ सु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीवासुपूज्य बिम्ब तखतगढ़ वा. हिम्मतमल हीराचन्दस्य पत्नि छोगीदवी कारापित प्र. मेवानगरे श्रीसंधेन प्र. वि. हिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु : 21. मुनिसुव्रत :-- . सं. 2016. माघ सुः 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीमुनिसुव्रतस्वामीबिम्ब मेवानगरे. नाकोड़ातीर्थं श्रीजैनश्वेताम्बरसंधेन कारापितं प्रतिष्ठितं विजयहिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तू / mil . .
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख .... (455) 22. पार्श्वनाथ :-- ॥सं. 2016 मा. सु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीपार्श्वनाथ बिम्ब वानगरस्थ नाकोड़ातीर्थे श्रीजैनश्वेताम्बरसधेन कारापित प्रतिष्ठितं. बिजयहिमाचलसूरिभिः चौमुखजी की देहरी की प्रालमारी (456) 1. पार्श्वनाथ पंचतीर्थी: संवत 1316 वर्षे माघ वदि 3. गुरौ श्रीयशोभद्रसूरि-सन्तान ऊदा पु. बोसरि वस्ता भ्रा. कुरासहितेन श्रीपार्श्वनाथबिंब प्रतिष्ठितं श्रीशालिभद्रसूरिभिः ॐ री (457) 2. महावीर पंचतीर्थी: संवत 1321 वर्षे माघ वदि 5 बुधे श्रे. अरपाल भार्या पदमसिरि पु. जसकर्णं प्राणचन्द्रेण मातृ-पितृ-श्रेयोर्थ श्रीमहावीरबिंव कारितं प्र. सूरिभिः॥ (458) 3. महावीर पंचतीर्थी:' संवत 1346 वर्षे वैशाख सु 5 श्रे. सहदेव भा. साजणि पू. महरणसिंह पुत्र गज भा. सापू. तिरिणकाया श्रीमहावीरबिंब प्र. श्री त्रि. जयप्रभसूरिभिः (456) 4. संभवनाथ पंचतीर्थी: संवत 1464 वर्षे फागुण वदि 11 गुरौ उ. व्यव. कडूमा भा. कपूरदे पुत्र वीरम भा. विजलदे पित्रोः श्रेयसे श्रीसंभवनाथबिंब कारितं वो. प्रतिष्टितं श्रीधर्मचन्द्रसूरिभिः . . (460) 5. चन्द्रप्रभ पंचतीर्थी: सं. 1506 वर्षे वे. सुदि 7 रवी श्रीश्रीमालज्ञातोय श्रेष्ठि हेमा भार्या मेचु सुत वीराकेन स्वपितृव्य श्रेष्ठि गेला पुण्यश्रेयोर्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंब कारित प्रतिष्ठित श्रीसूरिभिः / / बड़ालम्बीवास्तव्य /
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (461) 6. पार्श्वनाथ पंचतीर्थी:- ..... संवत 1921 वर्षे माघ सुद 7 गुरौ श्रीअंचलगच्छे पूज्यभट्टार्क श्रीरत्नसागरसूरीश्वराणामुपदेशात श्रीकरणदेशे नरसि नाथा तथा संघ समस्तेन प्रतिष्ठितं श्रीपार्श्वनाथबिंब भरावितं / / प्रादिनाथ मंदिर की शाल में (462) 1. पीतपरिकर की मूत्ति पर:-- ॥सं. 1518 वर्षे माह सुदि 10 सोमे उपकेश ज्ञातीय वरहडीयागोत्र सा. अमर भा. ऊमादे पू. दुसल भा. दूषलदे पुत्र सा. खीमा भा. खेतलदे पु. सा. माडा सा. धर्मा तया माडा भा. माणिकदे तथा धर्मा भा. धरमलदे ...श्रीमहावीरपरिकत करित प्रतिष्ठित'.... 2. पीत परिकर की मूर्ति परः ॥सं. 1518 वर्षे माह सुदि 10 सोमे उपकेशज्ञातीय वरहडीयागोत्रे सा. अमर भा. ऊमादे पु. दुसल भा. दुषलदे पु. खीमा भा. खेतलदे पु. सा. माडा सा. धर्मा तथा माडा भा. मारिणकदे तथा धर्मा भा. घरमलद (464) 3. पार्श्वनाथ परिकर मूतिः सं. 1537 वर्षे ज्येष्ठ वदि 4 सोमे। छाजहड़गोत्र / मं. कुन्तपाल पुत्र गुणदत्तेन अन्य पुण्यार्थ। परिकरं / / प्रतिष्ठितं श्रीपल्लीकीयगच्छे भ. श्रीउज्जोयणसूरिभिः मं. गुणदत्तन। . (465). 4. आदिनाथ पादुका:. सं. 2016 माघ सुद 14 गु. पु. योगे श्रीआदिनाथ चरणपादुका वादनवाड़ी नि. भण्डारी नेमाजी तत्पुत्र लुभचन्दस्य पुत्र सागरमलेन कारापित 1. प्र. मेवानगरस्थ नाकोड़ातीर्थ श्री संघेन प्रतिष्ठापित विजयहिमाचलसूरिभिः ।कल्याणमस्तु।।
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________________ बाड मैर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख श्री शान्तिनाथ मन्दिर ___ (466) 1. नेमिनाथ का उसग्गीया :-- सुखड वेवल देल्हा वाछिगा सुहड़ी रुपिणी वालदेवी जामणो (467) उजोवरण रासल सुमति श्रे. वीरा देऊ हेमन्ती काबी जिनदेवो (468) 3. कीतिरत्न सूरि-पादुका : // संवत 1525 वर्षे वैशाख वदि 5 दिन श्रीवीरमपुरे श्री. खरतरगच्छे श्री कीतिरत्न सूरीणां स्वर्गः तत्पादुके संखवालेचा गोत्रेसाः काजल पुत्र साह त्रिलोकसिंह खेतसिंह जिणदास गउडीदास कुसलाकेन भरापित सं. 1631 वर्षे मार्गशिर वदि 3 प्रतिष्ठितं श्री जिनचन्द्रसूरिभि : // (466) 4. रंगमण्डल के उपरः॥६० / / संवत 1586 वर्षे कार्तिक वदि 8 दिन / (470) 4. शिलापट्ट प्रशस्तिः -- // संवत 16....4 वर्षे भाद्रवा सुदि 12 सोमे राउल श्री मेघराज विजै राज्ये श्रीखरतरगच्छे जिनचन्द्रसूरिविजैराज्ये सूत्रधार जोधा सूत्रधार सामल सुरताण उदा सोजिग गोमा रूपा ईसर श्री थीपा / उजल (471) . / संवत 1614 वर्षे श्रीवीरमपुरे // श्रीशान्तिनाथचैत्ये मार्ग शोर्षमासे प्रथम द्वितीया दिने / श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरि विजय राज्ये // सश्रीक वीरमपुरे विधि चैत्यराजे / प्रोत गचंगशिखरे नुतदेवराजे। __सोवर्ण वर्ण व पुषं सुविशुद्धपक्षे। श्रीशान्तितीर्थ प्रतिमाकृत शुद्ध पक्षं // 1 //
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख / अर्हतन्तमहत गतातन्तलतान्त भक्त्या / श्रीशान्तिनामकमनन्तनितान्ति भक्त्या। श्री विश्वसेनतनुज भजतात्मशक्या / सारंगलक्षण जिन स्मरतोक्त.युक्त्या // 2 // यस्यातीत भवेऽप्कारि महता शकस्तवामर्षि श्येनाकारभता कपोत तनुभृद रक्षापरिक्षाहत : भोक्ता यौगिक थोयिचक्रीपादवी साम्राज्यश्रियः / स श्रीशान्तिजिनोऽस्तु धार्मिकनृणां दातात्म सम्पच्छियः / / 3 // _ श्रीशान्तिदेवीऽवतु देवदेवौ धर्मोपदिष्टा मुदयायिसेवः / नन्तास्ति यस्यादिमवर्णनामा राज्योपमास्तस्य सुभक्तिनामा // 4 // श्रीधनराजोपाध्यायानामुपदेशेन पण्डित मुनिमेरू लिखितं / / सूत्रधार जोधा रंगा गदा नरसिंगकेन कोरितानि काव्यानि चतुष्किका मूल मण्डपे / / शुभ भूयात् // राउल श्रीमेघराजविजयराज्ये श्रीशान्तिनाथ नालिमण्डपो निष्पन्नतः / / (472) 7. शिलापट्ट प्रशस्ति: / ई० / / ॐ नमः सिद्ध। अप्रा इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ / ट ठ ड ढ ण त थ द ध न / प फ ब भ म / य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ। मंगलमहेसरी देहि विद्या परमेसरी / / सूत्रधार अजाम ....... भिन्नाक्षरों में........ / / सं. 1638 वर्षे असाढ़ सुदि 8 दिने गुरुवारे श्रीसमस्तसंघेन उधार कारापिता शुभं भवतु / . 9 (473) 8. युगप्रधान जिन चन्द्रसूरि-पादुका: // संवत 1684 वर्षे / वैसाख सुदि 8 / गुरौ। श्रीवृहतखरतराधीश युगप्रधान युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिश्वराणां पादुके। कारिते / कां / राघव / चांदा। सुरताण / जसवंत / कमलसी। भ्रातृव्य राजसीसहितः / भट्टारकःश्रीजिन राजसूरि विजयराज्ये। आ. श्रीजिनसागरसरि योवगज्ये / प्र. श्रीधर्मनिधान महोपाध्यायेः / श्रीवीरमपूर सकलसंघस्य शं स्यात / प्रणमति / वि. धर्मकीति गरणी: / सूत्रधार मेघाकेन / / (474) 6. पद्मप्रभुः-: ॥स. 1880 / व / मार्ग सुदि 5 गुरौ / भ. श्री विजय जिनेन्द्रसूरिभिः पद्मप्रभदेवबिंब प्रतिष्ठित / श्रीवडगाम ना समस्तसंघ .......
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________________ 100 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन न शिलालेख (475) 10. शांतिनाथ मूलनायक: / / सं. / / 1610 / शाके 1775 रा प्रवर्त्तमाने माशोत्तममासे माघमासे धवलपक्षे 5 तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महाराजाजी श्री. तखतसिहजी कु / श्रीजसवन्तसिधजी विजयराज्ये श्रीपालीनगरे समस्तश्रीसंघ महामहोच्छवेनांजनसिलाकाकृत.।। जोधनगरे वास्तव्य श्रीप्रोसवंशे मु। श्रीअखेचन्दजी तत्पुत्र मु. / / श्रीलक्ष्मीचन्दजी तत्पुत्र मु. / / श्री।। मुकनचन्दजी धर्मानुरागेन महोछव कागपित श्रीमहेवापडगने श्रीविरमपुरनगरमध्ये संखलेचा माला सा. कारापित श्रीजिनालये श्रीशान्तिनाथ विम्ब प्रतिष्ठित जगदगुरु डिरुदधारक क. खरतरगच्छ भावहर्षगच्छेश / भ / श्रीजिनक्षमासूरिपट्टे / भ। श्रीजिनपद्मसूरिभि. प्रतिष्ठित सकल श्रेयोथम / / (476) 11. सुपार्श्वनाथ: ॥सं. 1910 रा शाके 1775 रा पवर्तमाने मासोत्तमासे माघमासे धवलपक्षे 5 तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महाराजाजी श्रीतखतसिंहजी / कु / श्रीजसवन्तसिंहजा विजयराज्ये श्रीपालीनगरे समस्तश्रीसंघ महामहोच्छवेनांजनसिलाकाकृत मु. // श्रीमुकुनचन्दजी धर्मानुरागेन महोच्छव कारापित' श्रीमहेवापरगने श्रीवीरमपुरनगर मध्ये संखवालेचा माला सा. कारापित श्रीजिनालये श्रीसुपार्श्वनाथबिंब प्रतिष्ठित....... भ. श्रीजिनपद्मसूरिभिः .......... (477) 12. चन्द्रप्रभ: // संवत 1910 शाके 1775 प्र. मासोत्तममासे माघमासे शुक्ल पक्ष 5 तिथो गुरुवासरे श्रीपालीनगरे अंजनशलाकाकृतं / समस्तसंघ सयुक्तेन स्वश्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्रबिम्ब कारितं / प्रतिष्ठितं / भ। श्रीजिनपद्मसूरिभिः खरतर श्रीभावहर्षगच्छे / श्रीमदवीरमपुरनगरे जिनालये स्थापित // (478) 13. कुन्थुनाथ: सं 1965 फागुन कृ. गुरो सिवानावास्तव्य संघेन बिम्ब कारित प्रतिष्ठितं भ. राजेन्द्रसूरिभिः प्र. जसरूप जीताभ्यां.........."आहोर नगरे।
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख / 101 (476) 14. वासुपूज्य: ___ संवत 1961 माघ सुदि 13 दिने वासूपूज्य जो बिम्ब कारापितं श्री सघन प्र. जगदगुरुदेव श्रीमद्विजयहीरसूरीश्वरजी के .... (480) 15. जिनदत्तसूरि-मूत्तिः -- वि सं. 2008 मार्गशीर्ष शुक्ल 1 . गुरो गढ़ सिवाना निवासी ललवानी जैन कुटुबेन खरतरगच्छाचार्य जंगम युगप्रधान भट्टारक दादा श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां मूति कारिता श्रोजिनरत्न सूरिणा च प्रतिष्ठा मेवानगरे / पेढ़ो द्वारा पुनः स्थापित सं. 2026 मिति मार्ग शुक्ल 6 शांतिनाथ मन्दिर गर्भगृह (481) 1. जिनभद्रसूरि-मूत्ति:. संवत 1518 वर्षे ज्येष्ठ वदी 5 दिने ऊकेश वंशे व्य. कुशलाकन सपरिकरेण श्रेयोर्थ श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणां मूर्तिः कारिता। प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः // (482) 2. शिला पट्ट प्रशस्तिः संवत 1666 वर्षे / भाद्रपद शुक्ल पक्षे / श्री द्वितीया दिनः। शुक्रबारे श्रीवीरमपुरे। श्रीशांतिनाथप्रासादे / भूमिगृहे / श्रीखरतरगच्छे / युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये / आचार्यश्री जिनसिंहसूरि योवराज्ये / श्रीराउल श्रोतेजसीजी विजयराज्ये / कारितं श्रीसंघेन / लिखितं वा श्रोगुणरत्न गणीनां विनयेन रत्नविशालगणिना। सूत्रधार चांपा पुत्र / रत्ना पुत्र / जोधा दामा / पुत्र मन्ना धन्ना / वरजांगेन कृता भत्रीज सोमा किल्याण / केला। मेघा / श्रीरस्तु / शांतिनाथ मन्दिर प्रादिनाथ देहरी . (483). 1. वासुपूज्य: श्रीवासुपूज्य सा. मेघाकेन....संवत 1513 वर्षे माघ सुदि 3 दिन ..
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________________ : बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (484) 2. आदिनाथ:-- सं. 2016 माघ शु. 14 तिथौ गुरुपुष्ययोगे श्रीऋषभजिनबिंब बाड़मेर वा बोथरा लक्ष्मण दास सागरमल सरदारमल पासू सोहन चपा. लाल पुत्र-पौत्रादिसहितेः धनसुख स्मृतो कारितं प्र. मेवानगरे श्रीसंघेन प्रतिष्ठित प्राचार्यदेव विजय हिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु / / शांतिनाथ मन्दिर नेमिनाथ देहरी (485) 1. संवत 1524 वर्षे ज्येष्ठ वदि.......... श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः सा. माला पुत्र भाऊ। . (486) 2. नेमिनाथ:-- सं. 2016 माघ सु. 14 गुरुपुण्ययोगे श्रीनेमिनाथप्रतिमेयं मेकानगर श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठितं श्रीजगदगुरुदेव श्रीमदविजयहीरसूरीश्वर सन्तानीय हितान्तेवासि प्राचार्यदेव विजय हिमाचलसूरिभिः / / ले. श्रीभव्यानन्दविजयः श्रोरस्तु / सरेमल / शांतिनाथ मन्दिर पार्श्वनाथ देहरी . (487) 1. आदिनाथः. संवत 1406 वर्षे............... ... (488) 2. शांतिनाथःसंवत 1524.......... (486) 3. पार्श्वनाथ: वि. सं. 2026 माघ सु. 13 गुरो पुष्ये इदं जीरावला पार्श्वनाथबिंब वादनवाड़ी वा. सालेचागोत्र पूनमचन्दस्य श्रेयोर्थ मगराज बाबूलाल राजमल ताराचन्दस्य पुत्र पौत्रेः का. प्र. नाकोड़ातीर्थे श्रीसंघेन प्र. वि. हिमाचलसूरिभिः लि. पं. विद्यानन्दविजय / ... . .
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख - शांतिनाथ मन्दिर महावीर देहरी (460) 1. पार्श्वनाथ:संवत 1513 वर्षे ............. (461) 2. आदिनाथ: संवत 1518 वर्षे माघ सुदि 10 गुरो....... प्रतिष्ठितं श्रीमेकप्रभसुरिभिः (462) 3. महावीरः - सं. 2016 माघ सु. 14 गुरुपुष्ययोगे श्रीमहावीरबिंब मेवानगरे श्रीसंघेन कारित प्रतिष्ठित जगदगुरुदेव श्रीमदविजयहोरसूरीश्वर सन्तानीय हितान्तेवासी प्राचार्यदेव विजयहिमाचलसूरिभिः / ले. भव्यानन्दविजयः / श्रीनेमिनाथजी को टूक (463) 1. नेमिनाथ पादुका:-- ॥ॐ ह्रीं श्रीं श्रीजीनेश्वरजी नेमीश्वर भगवान री चरणपादुका मु / / सीरदारमल पारसमल वा. जोधपुर वाला टाटीयागोत्रे खरतरगच्छे वाला थापीतं बीरमपुर नगर मध्येः संवत 1988 रा साके 1862 रा मासोत्तममासे पासोजमासे सुक्लपक्षे द्वादशी रविवारे / (464) 2. शांतिनाथ-पादुका:-- वि सं. 2026 माघ सु. 13 गुरो पुष्ये इयं श्रीशान्तिनाथचरणपादुका नाकोड़ातीर्थे श्रीसंघेन का. प्रतिष्ठापितां च प्रति. तपागच्छेशजगद्गुरु श्रीमद्विजयहीरसूरीश्वर सन्तानीय हितान्तेवासी विजय श्रीहिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु लि. पन्यास श्रीविद्यानन्द विजय / (465) 3. पार्श्वनाथ-पादुकाः-- वि.सं. 2026 माघ सु. 13 गुरो पुष्ये इदं श्रीपार्श्वनाथचरंण-पादुका नाकोड़ातीर्थे श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठापिता च प्रतिः तपागच्छेश जंगदगुरु
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________________ 104 ] बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख श्रीमद् विजयही रसूरिश्वर सन्तानीय हिनान्तेवासी विजय श्री हिमाचलसूरिभिः श्रीरस्तु लि. पन्यास श्रीविद्यानन्द विजय / श्रीदादाजी को टूक 1. जिनकुशलसूरि-पादुका:-- जंगम युगप्रधान भट्टारक छोटादादा साहेब श्रीजिनकुशलसूरिजी वि.सं. 1330 सिवाणा गांव में छाजेड़ गोत्रनामंत्री जिल्हागार की धर्म पत्नि माता जयतश्री की कूख से जन्म, व सं. 1347 में श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वरजी के पास दिक्षा, व सं. 1366 अहिलपुर पाटण में प्राचार्य पद, सं. 1386 माह वदि-- देरा. स. ... श्रीजिनदत्तसूरि दादावाड़ी ((467) 1. जिनदत्तसूरि-पादुका:-- स 2000 वर्षे वैसाखशुक्ला. 6 श्रीगढ़सिवाना उम्मेदपुरा श्रीसघन जं. (यु.) दादा श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां चरणपादुके कारित खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनजयसागरसूरि नेतृत्वे पं. यति नेमिचन्द्रेण। (468) 2. जिनदत्तसूरि-पादुका:-- ॐ ह्रीं श्रीं दादाजी श्री जिनदत्तसूरिजीगुरुभ्यो नमः (466) 3. मणिधारी जिनचन्द्र सूरि पादुका.-- .: ॐ ह्रीं श्री दादाजी श्रीमणिधारीजी जिनचन्द्रसूरिजीगुरुभ्यो नमः (500) 4. जिनकुशलसूराि-पादुका. ॐ ह्रीं श्रीं दादाजी श्रीजिनचन्द्रसूरिजीगुरुभ्यो नमः / 5. जिनचन्द्रसूरि पादुका:-- .... .. ॐ ह्रीं श्री दादाजी श्रीजिनचन्द्रसूरिजी गुरुभ्योनमः- . ..
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 105 + कोतिरत्न सूरि-स्तूप के लेख (502) . 1. स्तूप के खण्डित छज्जे परः-- रतिपति नरपति चरणं....सुमयनमचय परिचय हरणं (503) 2. स्तूप के पीताम परः- // 60 // श्रीसूरिमन्त्राहत विघ्नराजा श्रीकीत्तिरतनामिघ्तसूरि राजा श्रीसंघ संजोन्नति हेतु राजा श्री........ (504) 3. स्तूप की चौखट पर:-- // 60 / / श्रीमतश्रीजिनभद्रसूरिगणमृतपाण्याम्बूजाप्तोदया। धन्याचार्य पदावदात वदिताः श्रीकीतिरत्नाहुयाः। नम्नानम्रशिरत शिरोमणिविभा प्रोदभौसिलाहिर्दया / .. राजानन्दकरा जयन्तु विलसत्त श्रीशंखघालान्वया / 4. षोदशदल कमल गभित चित्र काव्य:-- सुरंसारं चरं स्वरं वारं कारं निरन्तरम् / सार सौरतरं स्मर हर शर ज्वर चरम् / / . . प 5. स्वस्तिक पर चित्रकाव्यः-. . मभास्वरगवनद दमि कीतिराजः . मदे प्रस्तरबदं दम कीतिराजः - म--श्रुतपदं दमिता मिताक्षः मद मानंति....घरोक्ष:-- ज्ञानं नं सुतं पुनं सुनं चनं यनं डनं धन स्नान चन वीनं मेम-नमनं स्वनम् / 6. षोडसदल कमलगभित काव्यः-- हारं हीर तिरस्कारं वैरं वार हरं स्वरम् / र पुर ... र स्मेरं स्मर सूर धुर धुरम // .. AN . . .. .
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________________ 106 ] ... बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख (508) 7. स्तूप की देहली के नीचे के हिस्से पर:-- सं . वर्षे . सुदि 5 दिन रविवारे श्रीनगरे राउल श्री....विजयराज्ये प्राचार्यश्रीकीतिरत्नसूरिसन्तानीयोपाध्याय श्री५श्रीक्षान्तिरत्नगरिण ..... रामचन्द्र-मेघराजसहितेन कारितं श्रीरस्तु। (506) 8. जिनकीतिरत्नसूरि-पादुका: वि.सं. 2008 मार्गशीर्ष शुक्ल 1 गुरो श्रीखरतरगच्छेश्रीजिनकीतिरत्नसूरिचरणपादुका श्रीसंघेन कारिता श्रीजिनरत्नसूरिणा च प्रति. (510) . . 6. जिनकीतिरत्नसूरि मूत्तिः-- वि. सं. 2008 मार्गशीर्ष शुक्ल 1 गुरो मेवानगरे जनसंघेन श्रीजिनकीतिरत्नसूरिश्वराणांमूर्ति कारिता श्रीरत्नसूरि प्रतिष्ठिता च सुविहित श्रीखरतरगच्छाचार्य श्रीजिनकृपाचन्द्रसूररिणां शिष्य श्रीजिनजयसागरसूरीश्वराणामुपदेशेन श्रीजिनकीतिरत्न-स्तूप जीर्णोद्धार निर्मापितः / . . (511) . 10. जिनकृपाचन्द्रसूरि-पादुका : _ वि. सं 2008 मार्गशीर्ष शुक्ल 1 गुरु मेवानगरे श्रीखरतरगच्छसंघेन खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरिपादुका कारिता श्रीजिनरत्नसूरिरणा च प्रतिष्ठिता (512) - : ... ..... 11. जिनजयसागरसूरि-पादुका : वि. सं. 2008 मार्गशीर्ष शुक्ल 1 गुरु मेवानगरे श्रीखरतरगच्छसंघेन खरतरगच्छाचार्यश्रोजिनजयसागरसूरिपादुका कारिता श्री. जिनरत्नसूरिणा च प्रतिष्ठिता। श्रीनाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर के परिसर में स्थित श्री रणछोड़रायजी के मन्दिर में राठौड़ क्षत्रियों की ऐतिहासिक प्रशस्ति .. (513). 1. ॐ नमः श्रीगणेशाय नमः / सूरिजवंशी कनोजीमा राठोड़
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________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 107 सीहा सोनिग एणे गोहिलां पास खड़गबले लीघी, महाराजा सीहाजी पु. राजा प्रासथान पु. धूहड़ नी देवी नागणेची अविचल राज दी। 2. राजा श्रीधूहड़ पु. रा. राईपाल पु. रा. कन्हराउ, कन्हराउ पु. रा जाल्हरणसिंह पु. रा. छाडा पु. रा. तीडा पु. रा. सलखा द्वितीयाचन्द्र आराधित राऊ श्रीमाला पु. रा. जगमाल पु. राउल 3. मंडलिक पु. रा. श्रीभोजराज पु. रा. वीदा पु. रा. नीसल पु. रा. वरसींग पु. रा. हापा पु. रा. श्रीमेघराज पु. माण दुरजोधनराज श्रीदुजरणसालजी राणी मोढी संतोषदे पु राउ. श्रीतेजसींघ 4. द्वितीय भार्या सत्यवती रांणी श्रीसीसोदणी दाडिमदे कुक्षि पुत्ररत्न छत्रीस राजकूली सिणगार गोत्र गोवाल 'प्रजापाल परमदयाल गो ब्राह्मण प्रतिपाल कण्ठ शोभित विजयश्रीवरमाल महाराउल 5. श्रीजगमालजी विजयगज्ये तद्गहे राणी भठियारणो जीवंतदे चहुप्राणी जमणादे सोढ़ी चउरगदे देवड़ी अमोलकदे भटियाणी संताणदे राणी 5 पटराणी देवड़ी कुक्षि रत्न प्रधान कुअर श्रीभारमलजी 6. उदयमान राउलजी स्वपुण्यार्थे स्वकुल वृध्यर्थे स्वश्रेयसे परमेश्वर भक्त्यर्थे सं. 1686 वर्षे उत्तर गोल गते श्रीसूर्य कुम्भ संक्रान्तो वसन्तऋतौ चेत्र वदि 7 भोमवासरे 7. अनुराधानक्षत्रे रवियोगे श्रीरिणछोड़देवगहं कारापितं चिरस्थेयात् / राजा श्रीवासथान पुत्र 13 तीयांरी 13 साखि राठोड़ा री हुई प्रथम सूहड़ 1 धांधल 2 ऊहड़ 3 वानर 4 8. वाजा 5 गोइंदरा 6 अणंतरा 7 गूडाला 8 चाचिग 8 ग्रासहोल 10 जोपसा 11 वहपसा 12 खीमसा साखि 13 / / : / / सूत्रधार गजधर कल्याण सूत्र, सोभा सूत्र. मेघा . 6. सूत्र, तारा सूत्रः गोपाल सूत्र. हेमा / राठोड़-वंश की वंशावली राक सीहाजी . प्रासथान / सोनिग
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख राईपाल - कन्हराउ जाल्हरणसी छाड़ा .: तीडा / सलखा मल्लिनाथ जगमाल प्रथम मंडलिक भोजराज वीदा नीसल वरसींग 1562 राउल कुम्भकर्ण 1568 हापा मेघराज मांण दुरजोधन एवं जनसाली तेजसिह . : : जगमाल द्वितीय 1656 भारमल
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________________ परिशिष्ट (1) लेखानुसार गच्छ नामावली 1. प्रागम गच्छ 16. बृहद् तपागच्छ .. 3. उपकेश गच्छ 20. बृहद् ब्राह्मणोया गच्छ 3. उशवाल गच्छ 21. ब्राह्मण गच्छ 4. अंचल गच्छ 22. बोकरीया गच्छ 5. खरतर गच्छ 23. भावदेवाचार्य. गच्छ 6. चित्र गच्छ 24. भावहर्ष गच्छ 7 तपागच्छ 25. मजहड़ीया गच्छ 8. त्रिभवीया गच्छ 26. मलधार गच्छ 6 धर्म घोष गच्छ 27. राज गच्छ 10. नारणकीय गच्छ 28. राद्र गच्छ 11. नारणावाल गच्छ 26. रूद्र पल्लीय गच्छ 12. पल्लि गच्छ 10. विजय गच्छ / 13. पल्लिकीय गच्छ 31. विजयानन्दसूरि गच्छ 14. पल्लिवाल गच्छ 32. विद्याधर गच्छ 15. पायचन्द गच्छ(पावचन्द्र गच्छ 33. वध तपागच्छ 16. पिप्पल गच्छ -34. सिद्धाचार्य गच्छ . . 17. बृहद् गच्छ 35. सौधर्म बृहद् तपागच्छ 18. बृहद् खरतर गच्छ ६.संडेरक गच्छ ..::
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________________ लेखांक A ... .272 " नगर : 174 परिशिष्ट (2) संवतानुसार लेखों की सूची संवत ग्राम-नाम लोक संत ग्राम 1072 सियाणी ... 283 1452 कोटडा 1060 नाकोड़ा तीर्थ : 308 1458 चोहटन .406 1461 कोटडा 407 1468 समदडी। .66 1476 जसोल 1232 जसोल 70 1481 धोरीमनी 1237 खेड़ ...44 1483 कोटड़ा / 1243 जसोत .62 1463 बाडमेर 1246 , 72, सियाणी 1266 समदड़ी 261 1464 नाकोडा तीर्थ 1270 रामसर 254 1466 बाड़मेर १२८०.नगर 64 1466 मोकलसर 1306 / / 85 1501 खंडप 1316 नाकोड़ा तीर्थ 456:1503 बाड़मेर 1321 ,.... 457 1504 नाकोड़ा तीर्थ 1325 हरसाणी. 304 1505 मजल.. 1337 खंडप .46 1507 कोटड़ा 1346 नाकोड़ा तीर्थ 458 1508 बाड़मेर 1352 जूना बाहड़मेर 73 , सिवाना 1356 जसोल , बाड़मेर 184 1506 नाकोड़ा तीर्थ 1406 नाकोड़ा तीर्थ 487 . राखी 1438 नगर 93 1510. सिवाना , सियारणी 281 1512 कोटड़ा 1450 कोटड़ा 33 , रमणीया ". बाड़मेर 185 , बाड़मेर 136 .. ... : 375 ... .: 227 301 302 460 246 285 38 247 155
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जीन शिलालेख [ 111 1513 कोटड़ा , समदड़ी , नाकोड़ा तीर्थ 1514 बाड़मेर 1516 नगर 1517 जसोल G. . 1518 कनाना m , भाडखा . , नाकोड़ा तीर्थ .G.W 35. 1527 बाड़मेर ..... 186 262 , 376 . गुड़ामालानी ... 408 1528 खडप 483 , पारलू ...... 0 , . सगपा 173 - 1530 मोकलसर , कोटड़ा ..66 1532 बालोतरा 13 . , पचपदरा 225 1534 डंडाली 462 , राणीग्राम 2 1535 कर्मावास 471. 1536 जेठन्तरी बाड़मेर .. , नाकोड़ा तीर्थ : 18 1537 कोटड़ा 256 नाकोड़ा तीर्थ 464 8 1541 कोटड़ा / __14 1543 नाकोड़ा तीर्थ . 434 305 1545 मोकलसर 242 15 1546 गुड़ामालानी / 16 1555 कोटड़ा ... .67 1556 समदड़ी 128 भाडखा .. 2 366 1557 कोटड़ा 485 1558 बाड़मेर 488 1556 कोटड़ा 306 1562 नाकोड़ा तीर्थ 215 1567 पासोतरा 106 1568 थोब 156 नाकोड़ा तीर्थ "....0 4x950-Marr 1516 जसोल 1520 कर्मावास , विशाला 1522 आसोतरा 1523 कनाना हरसारणी 1524 कनाना . sxr Dum नगर पाटौडी नाकोड़ा तीर्थ 1525 हरसारणी बालोतरा पचपदरा or...... me moon ... 1527 बाड़मेर
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________________ 112 ] बाडमैर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख W W.WWKA ~ mr mmm mr. ~. . . ... 6 ..137 255 - ~ 157 3 बाडमेर . 168 1672 बाड़मेर 1575 कोटड़ा 36 1.676 , 1576 अजीत 4 1677 पचपदरा 1581 कोटड़ा - 23 , . कोटड़ा 1586 नाकोड़ा तीर्थ 466 1678 नाकोड़ा तीर्थ 1562 नगर ___64 1681 // 1598 नगर 1600 कोटड़ा 25 // 1602 , .... सिवाना 262 , जेठन्तरी 1604 नाकोड़ा तीर्थ 470 1684 नाकोड़ा तीर्थ 1605 मजल .. 226 1685 बाड़मेर 1606 // 227 मेवानगर / ., नाकोड़ा तीर्थ 413 1686 नाकोड़ा तीर्थ 1614 कोटड़ा .. 4.0 1688 बिशाला... नाकोड़ा तीर्थ 471 ..1661 कनाना 1632 // 1637 // 1667 मेवानगर " विशाला 257 . 1700 जसोल .. 1638 नाकोड़ा तीर्थ 472 : 1713 बाड़मेर 1644 बाड़मेर 151 . 1716 नाकोड़ा तीर्थ 1647 नाकोड़ा तीर्थ. 427 , 1718 , 1652 धोरीमना 80 1731 बालोतरा , नगर 86 1732 // 1653 कोटड़ा :1656 नगर 87 , , 1664 अजीतं :- ... 3,1733 बाड़मेर 1665 बाड़मेर 142 - 1746 बुढ़िवाड़ा 11666 नाकोड़ा तीर्थ 466 1758 नगर : 327 . 1766 नाकोड़ा तीर्थ '1671 नगर 86.1768 सिवाना बाड़मेर . .. .. 150 1766 , 414 सिवाना 415." 241 -.0.9. WWDOW: ....... m: 384 211 212 210 .. 216 . 222 0. 344 263 286
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________________ बाड़मर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 113 1775 समदड़ी 1786 , 1816 बालोतरा 1825 जसोल 1826 , 1833 कोरना 1835 गुड़ामालानो 268 1608 बाड़मेर 260 मजल 206 , सिवाना 61 1610 नाकोड़ा तीर्थ . 475 477 पादरु पाटौड़ी 1848 जसोल 1854 कोरना 1861 पादरु , नाकोड़ा तीर्थ 1862 कल्याण पुरा , बाड़मेर 1864 नाकोडातीर्थ Urxxx ww Sam M 126 . सियाणी - 276 127 1921 पासोतरा 126 नाकोड़ा तीर्थ 461 130 1922 सिवाना : 28 60 1623 बालोतरा 41 1628 बाड़मेर .., बाड़मेर 320 , भाडखा 223 16 , नाकोड़ा तीर्थ 435 158 1941 पचपदरा 321 1647 खण्डप 426. 1651 नाकोड़ा तीर्थ 23.4 1652 मिठौड़ा 23.6 . 45 , पचपदरा 115 118 1655 पासोतरा . ..5 255 , ., .. 213 बालोतरा .... 328 , राखी .. 250 474 सिणधरी... 1867 मडलो 186.. खण्डप 1877 पचपदरा ... 1878 विला 1880 बालोतरा नाकोड़ा तीर्थ Pos .. 275 , 329 नाकोड़ा तीर्थ // 274 1882 जसोल 1883 पचपदरा 1884 सिणधरी 1900 सिवाना 1601 थोब 1903 बाड़मेर 1604 थोब 78 140
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 418 1955 नाकोड़ा तीर्थ 397 1996 पादरू 18, नाकोड़ा तीर्थ 426 1968 रमणीया .. 478 1666 कल्याणपुरा 20 417 2000 पादरू 124 सिवाना 1962 बाड़मेर - नाकोड़ा तीर्थ 467 163 2001 धोरीमना 1666. नाकोड़ा तीर्थ 363 , मिठोड़ा 236. 436 // 1976. बाड़मेर 141 // 1977 सियारणी 280 2002 पादरू '122 1978 भाडखा. 224 ,, , 123 1981 जेठन्तरी 76 2003 नाकोड़ा तीर्थ 441 : 1982 सिवाना 264 // " ". 1986 नाकोड़ा तीर्थ 463 2005, 443 से 446 166.1 अजीत 2008, 480 .:. पारल 135 , 506 से 512 ., नाकोड़ा तीर्थ 322 बाड़मेर 180 323 2006 कनाना / . .3.32 से 337 2010 हरसाणी 345 से 361 2011 समदड़ी 378 2013 अजीत 385. समदड़ी .271 400 3016 बाड़मेर 303. 270 175 (168 440 , बालोतरा ' " 476 416 से 422 203 1994 मजल 251 .. 231 276 राणीग्राम नाकोड़ा तीर्थ 313 से 318 , 364 से 372 सिगधरी
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 115 ov m . 362 -m Nx 403 120 // 2016 नाकोड़ा तीर्थ .376 2028 नाकोड़ा तीर्थ 381 ." " ,.380. ___ " ,..., 387 से 360 , . 401 2026 सिवाना 284 . 386 ___, नाकोड़ा तीर्य 316 ,,... 423 ___ . . 361 .430 से 433 .447 से 455 . " से 405 , 465 486 , , , 484 से 486 464 462 // 495 2017 राणीग्राम 252 2031 पारलू 131 2020 पादरू 134 125 // बाड़मेर 161 , बाड़मेर 171 , सिवाना 266 , मिठोड़ा 235 2032 बाड़मेर 206 2022 बाड़मेर , सिवाना 220 2024 पचपदरा 111, नाकोड़ा तीर्थ 363 364 , बाड़मेर 172 2033 पचपदरा 108 . समदड़ी 2025 खंडप 47 , बाड़मेर 143 " समदड़ी 144 2026 बाड़मेर 178 // 147 2027 पारलू 132 2034 , 133 2035 धोरीमना 2028 कोरना 42 , बाड़मेर 207 डंडाली 100 2036 , नाकोड़ा तीर्थ 324 , समदड़ी 267 326 , बालोतरा 203 से 205 338 , , " , 374 // हरसारणी ..... 307 214 106 265 // // TETTERFERE 162 218
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________________ बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख 2037 पचपदरा " बाड़मेर " बालोतरा 2038 बाड़मेर 107 2040 सिवाना 110 समदड़ी 114 2041 बालोतरा 146 ___ सिवाना 166 गुड़ामालानी 197 , बाड़मेर 166 से 16 2040 प्रासोतरा - बाड़मेर , सिवामा 181 को रमणीया 24 265
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