________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 35 .. 8. अजनशलाका लेख :-- श्री चिन्तामणी पार्श्वनाथ जैन मन्दिर की मूत्तियों की अंजनशलाका प्रतिष्ठा विक्रम सदत 2033 मिगसर शुक्ला एकादशी के शुभ दिन में प्रचलगच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीगुणसागरसूरीश्वरजी महाराजजी ने करवाई। परमपूज्य आचार्य भगवन्त ने बाड़मेर अचलगच्छ जैन श्रीसंघ के प्राग्रह पर विक्रम संवत 2033 में बाड़मेर नगर में परम पूज्य प्राचार्य देव श्रीगुणसागरसूरीश्वरजी म. सा., प. पू तपस्वी रत्न उपाध्याय श्रीगुणोदयसागरजी म. सा., परम पूज्य साहित्य रत्न श्रीकलाप्रभ सागरजी म. सा., परम पूज्य श्रीवीरभद्रसागरजी म. सा., परम पूज्य श्री महोदय सागरजी म. सा., परम पूज्य श्रीसूर्योदयसागरजी म. सा., परमपूज्य श्रीमहाप्रभसागरजी म. सा. परम पूज्य श्रीहरिभद्रसागरजी म. सा., परम पूज्य श्रीराजरानसागरजी म. सा., प. प. पूर्णोदयसागरजी म. सा. ग्यारह साधुनों सहित एवं पाच र्यदेव की प्राज्ञा. त्तिनी साध्वी श्रीप्रियवन्दा श्रीजी म सा., वनलता श्रीजी म. सा... इन्दुकला श्रीजी म. सा. ने यहां चतुर्मास किया / ऐतिहासिक चतुर्मास में प्राचार्यदेव के सद्उपदेश से बाड़मेर में श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथजी के जैन मन्दिर के प्रांगण में चारों ओर नवीन चार जिनालय बनाने हेतु विक्रमी संवत 2033 श्रावण शुक्ला तृतीया को शिलारोपण भव्य समा.' रोह के साथ सम्पन्न हा शिलारोपण के चार-पांच मास के पश्चात ही चारों कोनों में लघु जिनालय प्रतिष्ठा के लिये बनकर तैयार हो गये / इन नवनिर्मित चार लघु मन्दिरों के साथ श्रीगौड़ी पार्श्वनाथ की प्रतिमा जो नीचे के छोटे पार्श्वनाथ मन्दिर में विराजमान थी उन्हें बहमान के साथ श्रीचिन्तामरिण पार्वनाथजी के बड़े मन्दिर में शिखर के पीछे नया चौमुखी का मन्दिर बनवाकर अन्य तीन नई श्रीपार्श्वनाथजी की प्रतिमानों सहित प्रतिष्ठित किया। इसके पास ही अचलगच्छधिपति आद्य आचाय दादा श्रीपायरक्षितसूरीश्वरजी महाराज स हेब की प्रतिमा मध्य में प्रतिष्ठित की इसी प्रतिमा के जिमणे बाजू इन्हीं के शिष्य लक्ष क्षत्रिय प्रतिबोधक जैन बनाने वाले प्राचार्य दादा श्रीजयसिंहसूरीश्वरजी और दाहिने बाजू बाड़मेर के श्रीचिन्तामरिण पार्श्वनाथजी के उपदेशक व प्रतिष्ठायक प्राचार्य श्रीदादाधर्ममूर्तिसूरीश्वरजी की प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई। ये तीनों प्राचार्य दादा युगप्रधान पदवीधारक हैं / अचलगच्छीय नीचे