________________ - प्राचार्य कालक.की बहिन साध्वी सरस्वती का गर्दभिल्ल द्वारा हरण, कालकाचार्य का पार्श्वकुल अर्थात पारसियों के कुल-स्थान वर्तमान ईरान की ओर इस मरुप्रदेश के मार्ग से जाना व शकों का इसी प्रदेश से प्रागमन व यहां से समुद्री मार्ग से गुजरात की ओर से मालवा क्षेत्र पर आक्रमण एक ऐतिहासिक घटना है / प्राचार्य कालक का काल ईसा से पूर्व पहली व दूसरी शताब्दी के मध्य का है व इस काल में किराड़ , जना, खेड़ व वीरमपुर, प्रोसियां, सत्यपूर (सांचौर), भीनमाल में विशाल जैन-प्रभाव ने ही कालकाचार्य को इस पथ से ईरान तक जाने का मार्ग प्रशस्त किया था / . .. गर्दभिन्ल को परास्त करने के तुरन्त बाद शकों की निरंकुशता के कारण कालकाचार्य ने उनका साथ छोड़ दिया व विक्रमादित्य ने शकों को पुनः इसी मार्ग से भारत के बाहर खड़ेद दिया। विक्रमादित्य के गुरु आचार्य सिद्धसेन दिवाकर थे व इस बिजय के पश्चात जब यह क्षेत्र गुप्तों के अधीन पाया तो प्राचार्य सिद्धसेन दिवाकर का विचरण भी इस क्षेत्र में हुप्रा। . ............... ...... . - गुप्तों के काल के पश्चात् सम्राट हर्षवर्द्धन अथवा वहद भोज के समय चीनी यात्री ह्यांगचांग भारत आया था। हर्षवर्द्धन के दरबार में बाणभट्ट व मयूर भट्ट इत्यादि विद्वान थे और उनकी विद्वता से अधिक प्रभाव प्रमाणित करते हुए प्राचार्य मानतुगसूरि ने भक्तामरतोत्र की रचना की / प्राचार्य मानतुगसूरि के जीवन-वर्णनों में उनका खेड़ वीरमपुर आने का उल्लेख मिलता है। ह्यांगचांग की यात्राओं में उसका भीनमाल से खेट (खेड़) उडम्बर (शेरगढ़ तहसील में औदम्बर व उड़), पीतशीला (जैसलमेर के पास वर्तमान में पीतला) होते हए मुलतान जाने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि खेड़ उस काल का महत्त्वपूण नगर था। - सिंध में दाहर पर मुस्लिम अाक्रमण 712 ई. में हुआ / इस काल में मौर्यों व गुप्तों के पश्चात प्रतिहारों व परमारों का इस क्षेत्र पर अधि. कार हुा / मोहम्मद बिन कासिम के पश्चात सिंध के मुसलमान शासकों ने इस क्षेत्र पर आक्रमण प्रारम्भ कर दिये थे जो गजनवी के सोमनाथ आक्रमण तक चालू रहे। खेड़ मन्दिर व सिनली में मन्दिरों को मुस्लिम अाक्रमणों से बचाने हेतु 'गधी गाल' की मूर्तियां मिली हैं जो इस क्षेत्र पर लगातार मुस्लिम हमलों का प्रमाण है / इन आक्रमणों में मन्दिरों की तोड़-फोड़ व कलामूर्तियों को विकृत करना, मन्दिरों को मस्जिदों में