________________ ( 7 ) परिवर्तित करना ग्राम बात थी। पूरे बाड़मेर क्षेत्र में इस प्रकार के भाग्नावशेषों की भरमार है / खेड़ के वैष्णव मन्दिर की समस्त कलाकृतियां विकृतरूप में है व इसी काल में जैन मन्दिर भी तड़ गये व उनके अवशेष जसोल व मेवानगर में प्राप्त हैं / नाकोड़ा तीथ पर खण्डित परिकर भी इसके प्रमाण है, पर च कि ऐसे प्राक्रमण स्थायी प्राधिपत्य में परिवर्तित नहीं हुए अतः जब भी आक्रमण होते अथवा समीप के क्षेत्रों में प्रशांति होती तो प्रतिमानों को भूमिगत कर दिया जाता व स्थिति सामान्य होने पर पुन: जीर्णोद्धार करा दिया जाता व प्रतिमाएं प्रतिष्ठित करादी जाती थी। परमारों के काल में ही गुजरात के सोलंकी सम्राटों का प्रभाव इस क्षेत्र पर बढ़ा व गुजरात के सभी सोलंकी सम्राट जैन-धर्म से प्रभावित थे व सिद्ध गज जयसिंह व विशेष रूप से कुमारपाल तो प्रसिद्ध जैन-सम्राट हुए हैं अत: इस काल में इस क्षेत्र में भी जैन प्रभाव को पर्याप्त सहयोग मिला। किराड़ व बाड़मेर जिले के अनेक स्थानों पर सोलंकी राजामों के लेख मिले हैं। प्रस्तुत संग्रह के नाकोड़ा तीर्थ के संवत् 1203 के काउ सग्गियों पर सोलंकी राज्य होने का उल्लेख है। विक्रमी 1082 में मुहम्मद गजनवी लुद्रवा को रोंदते हए किराडू जूना (बाहड़मेर) से धोरीमन्ना, पालनपुर होते हुए सोमनाथ पहुँचा / इस अशांति के समय समस्त जिले में संकट का आभास हुप्रा प्रत: प्राप्त लेखो में इस काल के लेखों का प्रभाव है, और उसके पश्चात् पुन: कुमारपाल के समय शांति स्थापन होने पर भूमिगत प्रतिमानों का जीर्णोद्धार होने से उस समय की बहुत सी प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं / गजनवी व गोरी के बीच के सौ वर्षों के काल को इस क्षेत्र में जन-संस्कृति के फैलाव का स्वरिंगम युग कहा जा सकता है व इस लेख-संग्रह में इस काल के शिलालेखों की पर्याप्त सूची उपलब्ध है। पृथ्वीराज की पराजय के पश्चात इल्लूमिश व अजमेर में स्थित उस के हाकिम बाबाशाह के समय में सिंदरी के समीप नाकोड़ा नगर पर मुस्लिम हमला हुआ और इसी हमले में सभवतया यह नगर ध्वस्त हुआ और सम्भव है इसी समय नाकोड़ा तीथं की वर्तमान पार्श्वप्रभु की प्रतिमा को भूमिगत किया गया हो। यह समय संवत 1270 मे 1350 वि. के मध्य होना चाहिए / शिलालेखों में महेवा क्षेत्र के इस काल के शिलालेख नहीं है। ...,