________________ बाड़मेर-जिले के प्राचीन जैन शिलालेख [ 5 (16) 1. श्रीमूलनायकजी शांतिनाथजी प्रतिमा लेखः / सं. 1862 वर्षे माघ शुक्ल पंचम्यां श्रीकल्याणपुर श्रीसंघेन श्रीशांतिनाबिंब प्रतिष्ठापितं श्रीवृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहरिसूरिभिः / / (20) 2. प्रतिष्ठा लेख: ।श्रीजिनाय नमः संवत् 1966 वैसाख मासे शुक्ल दसमी तिथौ रविवासरे श्रीकल्याणपुरनगरे सकलश्रीजैनश्वेताम्बरसंघेन श्रीशांतिनाथ जिनभवनस्थ जीर्णोद्धार कारितं प्रतिष्ठापितं च देवदेवीपरिवार एवं दादा श्रीजिनकुशलसूरिपादुकासहिते जिनबिंबानि वृहत् खरतरगच्छाधिपति श्रीजिनजयसागरसूरिनेतृत्वे पं. यतिवर्य नेमिचन्द्रेण क्रिया बिभानंच कारितं ॥श्री रस्तु।। यावज्जंबूदीवे यावन्नसत्रे मदितो मेरू: यावच्चद्रादित्यो नावद्भवनं विसरी भवतु / कल्याणमस्तु / ग्राम किराडू यह ग्राम बाड़मेर से पश्चिम में आया हुआ है / प्राज के लिखित इतिहास के अनुसार यह ग्राम इस जिले का सबसे प्राचीन मरु प्रदेश की राजधानी था / यहाँ पांच खण्डहर मन्दिर हैं जो कला के इस जिले के ही नहीं, परन्तु राजस्थान के गौरव हैं / एक भो जैन मन्दिर नहीं है। परन्तु सोमेश्वर मन्दिर के वि सं. 1206 के लेख का जैन धर्म से सम्बन्ध है। यह ग्राम बाड़मेर मुनाबाव रेलगाड़ी के खडीन स्टेशन से तीन किलोमीटर दूर है तथा बाड़मेर सीयारणी बस मार्ग पर है। वि.सं. 1206 का लेख. अब खराब हो चुका है और कुछ पुस्तकों में छपा है जो प्राप्त नहीं हो सका परन्तु आशय प्राप्त हुपा है वह इस प्रकार हैअहिंसा की आज्ञा (अमारी प्राज्ञा): महाराजा अल्हणदेव जो अपने प्रभु (श्रीकुमारपाल) की कृपा से आज शिवरात्रि के दिन किरातकूप, लाटहरड़ा और शिव का शासक है यह प्रमारी आज्ञा प्रचारित करता है कि हर मास के दोनों पक्षों की प्राठम, एकादशी व चतुर्दशी को कोई महाजन, तंबोली, ब्राह्मण इत्यादि जीव