Book Title: Asprushad Gatiwad
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Jinshasan Aradhak Trust

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Page 11
________________ ख - श्री उभयन्द्रायार्य हैन शनमहि२-५॥८५.. 32. २ ३७, नं. १११८१, पत्र-६ छस्मृति ईवाजयन्वीतरागान्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्रीयशोविजयविरचितःअस्पृशतिवाद वादः जयत्यनेकान्तकण्ठीरवाअस्पृशनतिमतीत्यशोमते सिवा तीनदिमत्तिःसुमेधसामाश्त्यवतमपटप एसा चारमधुनसानुपकमः॥श्द दिकेचिदतिस्थून मतोऽन्तराजपदेशा स्पर्शनं दिनाक्यमुपरिभागी प्रदेश स्पर्शन सालव इतिबम्त्रम्यमाणाः सिधिगमनसमये स्थान्तमिव गतिमभिमन्यन्ते सूचोक्तांच सिद्ध तोगतेरस्पृशतासमय पार्श्व प्रदेशास्पर्शनेन समर्थयन्ति तेषांकामप्यदिग्दीमाकजयामाायत एवमुपनि तिनोपरितन प्रदेशस्पर्शनस्याधस्तनाधस्तनदेशपाथर्वक नियमीपगमेसमयनाजल्यापच्या समया मन्तिरास्पर्शनोक्तिव्याघातातन्नियमानुपगमेचैकदेजरीवास्विजान्तरानिकपदेहास्पर्शनेने सिविशेषाव गाहनीयफ्तावस्मदनिमतान्युपगमसंगानकोस्मिलविसमटोऽस्विजान्तरानिकपदेशस्यशीन दएकर सयपत्स्यत प्रतिशङ्कनीयमातथा सतितदानी तावतोदष्टस्यैव करणप्रसङ्गात यावत्यैवावगाहमया जीवोऽगाटस्तावत्यैवगतिइत्युक्तिव्याधात असणासाश्वमेवाहा उकुसेनीयडिवाने असमाणग ई एगसमएणंचविसाहेण नुहंगंता सागारीवक्ते सिन्झइतिखवायनासुपस्थाले छवियोण विग्रहस्या नादोऽवियहस्तेन एकेन समयेनास्ववान समयांतर देशान्तरास्पर्शने नेत्यर्थः ऋतुगणितियन

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